पूरे भारत में महाराष्ट्र में ही सबसे अधिक कोरोना पीड़ित मरीज हैं और यहीं सबसे ज्यादा लोग मर रहे हैं। लेकिन राज्य सरकार इस अवसर पर भी राजनीति करने से नहीं चूक रही है। संघ के कार्यकर्ताओं को पीड़ितों की सेवा करने से रोक रही है, यह सोचकर कि कहीं इसका लाभ भाजपा को न मिल जाए
मुम्बई में रहने वाले शांताराम कोरोना से पीड़ित अपनी पत्नी को लेकर अस्पतालों के दरवाजे खटखटाते रहे। उन्हें कहीं जगह नहीं मिली और पांच घंटे बाद उनकी पत्नी का निधन हो गया। विलेपार्ले, मुम्बई के ही अविनाश को कोरोना के कारण ‘ब्रेन हेमरेज’ हो गया। काफी प्रयास करने के बाद भी किसी कोविड अस्पताल में उन्हें जगह नहीं मिली। बाद में भाजपा के स्थानीय विधायक के सहयोग से उन्हें एक सामान्य अस्पताल में अस्थाई तौर पर भर्ती कराया गया। एक दिन बाद महापालिका ने उन्हें एक ऐसे छोटे अस्पताल में जगह दे दी, जहां न कोई वेंटिलेटर की सुविधा थी, न ही ‘ब्रेन हेमरेज’ का इलाज करने वाला कोई डॉक्टर। इस कारण उस अस्पताल में जाने के तीन घंटे बाद ही उनका निधन हो गया। इन दो घटनाओं से अंदाजा लगा सकते हैं कि मुम्बई का क्या हाल है। न अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध हैं, न योग्य औषधियां, न आॅक्सीजन। इस कारण देश में सर्वाधिक कोरोना मरीज महाराष्ट्र में हैं। अब यह महामारी गांवों तक पहुंच गई है। बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं। हालत यह है कि श्मशानों और कब्रिस्तानों में शवों की कतार लगी है। इस परिस्थिति के लिए महाराष्ट्र सरकार के घिनौने कारोबार को जिम्मेदार माना जा रहा है।
पिछले वर्ष से भी बुरा हाल है महाराष्टÑ का। देश का सबसे अधिक विकसित कहलाने वाला महाराष्ट्र आज अन्य राज्यों के सामने हाथ पसार रहा है। जिस राज्य में बहुत सारे उद्योग हैं, वह आज दूसरे से आॅक्सीजन, वेंटिलेटर, इंजेक्शन और औषधियां मांग रहा है। होना तो यह चाहिए था कि महाराष्ट्र आज इन सभी चीजों की आपूर्ति करता। महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्यमंत्री डॉ. रणजीत देशमुख स्वयं एक शल्य चिकित्सक हैं। डॉ. देशमुख सितंबर,2020 से लगातार राज्य सरकार को सावधान कर रहे थे कि राज्य में कोविड पीड़ितों के लिए आॅक्सीजन की कमी होने जा रही है, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। जब राज्य के हालात बिगड़ने लगे, तब सरकार में शामिल गठबंधन के नेता राग अलापने लगे, ‘‘मोदी महाराष्टÑ को आॅक्सीजन नहीं दे रहे हैं।’’ दवाई कंपनियों की मानें तो राज्य में रेमडेसिविर इंजेक्शन की भी कोई कमी नहीं है, लेकिन जरूरतमंदों को यह नहीं मिल पा रहा है। यही हाल टीका का भी है। इस रपट के लिखने तक राज्य में 9,00,000 टीका का भंडार पड़ा हुआ है, पर टीकाकरण की गति बहुत ही धीमी है। इस कारण मुम्बई में टीका लगवाने वालों की कतार एक-एक किलोमीटर लंबी लग रही है। आॅनलाइन पंजीकरण कराने वाले भी तय दिन और समय पर टीका लेने पहुंचते हैं, तो उन्हें कहा जाता है कि टीका नहीं है। लोगों को टीका के लिए भी सुबह सात बजे ही केंद्र पर आकर टोकन लेना पड़ता है। एक दिन में केवल 100 टोकन दिए जाते हैं। नागरिक परेशान हैं। लेकिन जो लोग सत्ताधारी किसी नेता के माध्यम से टीका लेने जाते हैं, उन्हें बिना किसी पूर्व पंजीकरण और कतार का टीका लग जाता है। राज्य सरकार की गलत नीतियों के कारण दूर-दराज के क्षेत्रों में भी कोरोना पैर पसार चुका है। नांदेड़ जैसी छोटी जगह में एक दिन में 10 लोग मर रहे हैं। दरअसल, शहरों से जो कामगार राज्य के विभिन्न हिस्सों में गए, वे कोरोना लेते हुए गए। कई जिलाधिकारियों ने गांव आने वाले मजूदरों की जांच करने की बात कही तो राज्य के एक मंत्री ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह देते हुए कहा, ‘‘अगर शहरों से आ रहे लोगों की जांच की जाएगी तो वे डर के मारे गांव नहीं जाएंगे और इस कारण शहरों में भीड़ बनी रहेगी। इससे प्रशासन पर दबाव बना रहेगा।’’
सेवा करने वालों को रोका गया
राज्य में पिछले वर्ष से ही कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए अनेक संगठन और व्यक्ति काम कर रहे हैं। इनमें संघ परिवार के भी अनेक संगठन शामिल हैं। संघ के स्वयंसेवक हर तरह की सेवा कर रहे हैं। मुंबई, पुणे, नासिक, नागपुर, अकोला आदि शहरों में संघ के स्वयंसेवक शवों का अंतिम संस्कार भी कर रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य से राज्य सरकार इन कार्यकर्ताओं को सेवा करने से रोक रही है। पिछले दिनों पुणे में भाजपा के एक सथानीय नेता ने कोविड सेवा केंद्र शुरू किया, तो शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने उसे जबरन बंद करवा दिया। मुंबई के विलेपार्ले स्थित एक टीका केंद्र पर कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या नहीं थी, तो संघ के कार्यकर्ता वहां चिकित्सकों की मदद करने लगे। दूसरे दिन राष्ट्रवादी कांग्रेस तथा शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने पुलिस से संघ के स्वयंसेवकों को वहां से हटाने की मांग की। जब वहां के डॉक्टर तथा पुलिस ने पूछा कि इनकी जगह यहां मदद कौन करेगा, तब वे कार्यकर्ता वहां से भाग गए। ठाकरे सरकार अपनी राजनीति को चमकाने के लिए संघ के स्वयंसेवकों को मदद कार्य से रोक रही है।
अफवाह को हवा
राज्य में रेमडेसिविर की कमी को जब भाजपा ने मुद्दा बनाया तो कई मंत्रियों ने विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को चुनौती दी कि वही रेमडेसिविर की आपूर्ति कराएं। इस चुनौती को स्वीकार कर फडणवीस ने दमन की एक कंपनी से बात की तो वह राष्ट्र को अतिरिक्त 50,000 रेमडेसिविर देने के लिए तैयार हो गई। लेकिन आपूर्ति से पहले ही एक मंत्री के सहायक ने उस कंपनी के मालिक को फोन पर धमकाया कि विपक्ष के नेता के कहने पर आप इंजेक्शन नहीं दे सकते हैं? इसके बाद भी कंपनी के मालिक नहीं माने तो उन्हें अपराधी की तरह पकड़ कर पुलिस थाना लाया गया। जब देवेंद्र फडणवीस को यह बात पता चली तो वे पुलिस थाने पहुंचे। उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से बात की तो स्पष्ट हुआ कि इस औषधि कंपनी के मालिक के विरुद्ध पुलिस के पास कोई शिकायत नहीं आई है। इसके बाद उन्हें छोड़ दिया गया। इसके बाद से सत्ताधारी गठबंधन के नेताओं ने अफवाह फैलानी शुरू की, ‘‘यह कंपनी रेमडेसिविर की कालाबाजारी कर रही थी। उसके विरुद्ध पुलिस ने कार्रवाई की तो फडणवीस उस कंपनी को बचाने के लिए आगे आ गए।’’ राज्य के अनेक पत्रकार भी यह खबर चलाने लगे।
अस्पतालों में आग का दौर
राज्य के अस्पतालों में लगातार आग लगने की घटनाएं हो रही हैं। इससे अब तक 90 रोगी मर चुके हैं। पिछले दिनों नासिक तथा बीड में अस्पताल की आॅक्सीजन टंकी में रिसाव के कारण 40 लोग मारे गए। ऐसे ही मुम्बई के कई अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं हुर्इं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि महाराष्ट्र के लोग सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं के कारण महामारी की मार झेल रहे हैं। इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी।
राजेश प्रभु सालगांवकर (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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