अप्रैल 2021 का तीसरा सप्ताह। भारत में अचानक चायनीज वायरस कोरोना की दूसरी लहर अपने पूरे वेग के साथ कहर बरपाने लगी। पहले अंदाजा तो था कि दूसरी लहर आ सकती है, यू.के. में उपजा वायरस का नया रूप भारत में दस्तक दे सकता है, लेकिन तीक्ष्णता इतनी ज्यादा होगी, यह नहीं सोचा था। यह सही है कि भारत में लोग भी कुछ लापरवाहियां कर रहे थे, भारत में निर्मित दो वैक्सीन आने के बाद भी जितनी संख्या में लोगों को तब तक ये लग जानी चाहिए थीं, उतनी नहीं लग पाईं। कारण, लोगों में भ्रम और अफवाहें फैलाई गई थीं केन्द्र सरकार के विरोधियों द्वारा कि ‘वैक्सीन लगाना सुरक्षित नहीं है’। और भी कई वजहें रहीं दूसरी लहर की भीषणता के पीछे। आज भी रोजाना 3 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं, हालांकि ठीक होने वालों का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ता गया है।
अप्रैल के तीसरे हफ्ते में महाराष्ट् में प्रकोप बहुत तेज दिखा तो दिल्ली में राज्य सरकार इतनी बेसुध बनी रही कि अस्पतालों और दूसरे चिकित्सा केन्द्रों पर दवाओं और आक्सीजन की कमी घातक रूप लेती गई। केन्द्र सरकार ने तुरंत हरकत में आते हुए जहां से जैसे भी आक्सीजन की आपूर्ति हो सकती थी, वह करने के अपने प्रयास तेज किए। आक्सीजन रेल चलाई गईं, टैंकरों की निर्बाध आवा—जाही सुनिश्चित की गई। कई अन्य रासायनिक प्लांटों को उत्पाद बदलकर आक्सीजन बनाने वाले प्लांट बनाया गया। लेकिन इस बीच वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों की तरफ से शिकायत सुनने में आई कि अमेरिका फार्मा उत्पादों में आवश्यक सामग्री देने से इनकार कर रहा है। लिहाजा वैक्सीन और अन्य जीवनरक्षक दवाओं की आपूर्ति में बाधा आनी ही थी।
ऐसी परिस्थितियों में 26 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्पति जो बाइडन से फोन पर बात की और कोरोना से उपजे हालातों का विश्लेषण किया। मोदी ने वैक्सीन बनाने के लिए जरूरी कच्चे माल और दवाओं की आपूर्ति निर्बाध रखने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उल्लेखनीय है कि पिछले साल जब अमेरिका को हाइडॉक्सीक्लोरोक्वीन की जरूरत पड़ी थी तब भारत ही था जिसने बिना देर किए दवाओं की खेप से लदे विमान अमेरिका रवाना किए थे। मोदी और बाइडन की बात के बाद, उस दिन शाम को प्रेस को संबोधित करते हुए बाइडन ने माना कि ‘भारत ने उनकी जरूरत के वक्त अमेरिका की मदद की थी। अब अमेरिका भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए भारत को हर तरह की मदद करेगा’। बाइडन के अलावा, मोदी ने विश्व के कई और नेताओं से बात की जिनमें यू.के., कतर और रूस के शीर्ष नेता भी थे।
और 27 अप्रैल को ही अल:सुबह यू.के. से दवाएं, 100 वेंटिलेटर और 95 आक्सीजन कंसन्टे्टर लेकर एक विमान दिल्ली में उतरा। उसी दिन शाम को विदेश मंत्री जयशंकर को कनाडा के विदेश मंत्री मार्क गारन्यू ने फोन करके कोविड से उबरने में कनाडा की ओर से मदद का वादा किया। 27 अप्रैल को ही सिंगापुर से भारतीय वायुसेना का विमान क्रायोजेनिक आक्सीजन कंटेनरों की खेप लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुआ। सिंगापुर के उप विदेश मंत्री डॉ. मालिकी उस्मान ने 47 लि. के रीफिल करने लायक 256 सिलेंडर भारत भेजे। इससे पहले 26 अप्रैल को ही भारतीय वायुसेना का सी17 विमान थाईलैंड से 4 क्रायोजेनिक आक्सीजन टैंक लेकर दिल्ली पहुंचा।
28 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी रूस के राष्ट्पति पुतिन से फोन पर बात की। कोविड संकट से निपटने में पुतिन ने रूस की तरफ से हर संभव सहायता का वचन दिया। उसी दिन मारीशस से 200 आक्सीजन कंसन्टे्टर भारत पहुंचे। 1 मई को भारतीय वायुसेना के विमान ने सिंगापुर से 3 क्रायोजेनिक तरल आक्सीजन टैंक भारत पहुंचाए। उसी दिन रूस से स्पुतनिक वैक्सीन की डेढ़ लाख खुराक की पहली खेप भारत पहुंची। 1 मई को ही जर्मनी ने 120 वेंटिलेटर भारत भेजे। उज्बेकिस्तान ने 100 आक्सीजन कंसेनटे्टर और दूसरे मेडिकल उपकरण भारत को भेंट किए। 2 मई को बेल्जियम ने रेमडेसिवीर के 9 हजार वॉयल भारत को दिए। 2 मई को ही फ्रांस ने भारत के साथ अपनी दोस्ती को और प्रगाढ़ करते हुए 28 टन मेडिकल उपकरण भारत को सौंपे जिनमें अस्पताल स्तर के आक्सीजन जेनरेटर और दूसरी मेडिकल सामग्री शामिल थी। 2 मई को अमेरिका से चौथी उड़ान रेमडिसीवर के सवा लाख वॉयल लेकर भारत पहुंची। इसके अलावा अमेरिका से एक हजार आक्सीजन सिलेंडर, रेगुलेटर और दूसरे मेडिकल उपकरण भी पहुंचे।
3 मई को प्रधानमंत्री मोदी ने यूरोपीय संघ की अध्यक्ष वांडर लेयिन से बात करके कोविड से भारत की लड़ाई में यूरोपीय संघ से मिली मदद के लिए धन्यवाद दिया। 3 मई को ही यू.के. से मेडिकल उपकरणों से चौथी खेप के रूप में 60 वेंटिलेटर भारत पहुंचे।
इसमें संदेह नहीं है कि भारत चायनीज वायरस की इस दूसरी और जदा घातक लहर को थामने के लिए अपने पूरे प्रयास कर रहा है, लेकिन ऐसे वक्त में भारत को संकट से उबारने में तमाम देशों ने जो तत्परता दिखाई है उसके पीछे भारत द्वारा कोरोना संकट के दौरान दिखाई गई सदाशयता ही है। दुनिया जानती है कि भारत की वर्तमान केन्द्र सरकार सबके साथ कदम मिलाकर चलना चाहती है और अपने खोल में रहकर अपनी तरक्की सिर्फ अपने लिए ही सीमित रखने के तानाशाही सिद्धांत को नहीं मानती। यह भारत की सफल कूटनीति ही है कि आज भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात प्रमुखता से रखता है और उसकी बात को गंभीरता से सुना जाता है। सबको दोस्त बनाने की इस कूटनीति की वजह से भारत कोरोना संकट से सफलतापूर्वक निपट रहा है।
आलोक गोस्वामी
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