वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी और राम बहादुर राय मिलकर 2006-07 में पेड न्यूज के खिलाफ देश व्यापी अभियान चला रहे थे। उन्हें क्या पता था कि समय के साथ इस बीमारी में सुधार नहीं आएगा बल्कि इस रोग को और गंभीर होना है। पेड न्यूज 2013-14 तक आते-आते फेक न्यूज में तब्दील हो गया।
2014 के बाद वरिष्ठ पत्रकारों का एक बड़ा समूह अपने-अपने चैनलों से बेरोजगार हुआ। यह कांग्रेस इको-सिस्टम के पत्रकार थे, जो अपने चैनलों को कांग्रेस की सरकार में लाभ दिलाते थे और खुद भी लाभान्वित होते थे। ऐसी ही एक महिला पत्रकार को अपनी रिपोर्ट के एवज में वन बीएचके मिलने की बात लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पिछले दिनों चर्चा में रही। जब सरकार बदली तो ये पत्रकार चैनल के लिए किसी काम के नहीं रह गए। ऐसे पूर्व पत्रकारों के एक बड़े समूह ने यू टयूब चैनल प्रारंभ किया। जिसे यू ट्यूब के साथ कांग्रेस इको सिस्टम से पैसा मिलना जारी रहा। इन वेबसाइट और यू ट्यूब चैनलों का इस्तेमाल झूठी खबरों को फैलाने में किया जाता रहा।
फेक न्यूज के बाद यह दौर था एड न्यूज का। जिससे विज्ञापन मिलेगा उसके लिए खबर चलाई जाएगी। यहां पाठकों को समझना होगा कि उसकी खबर चलाना और उसके लिए खबर चलाने के बीच में अंतर है। किसी की खबर चलाने का अर्थ विज्ञापन से है। आपने पैसा लिया और किसी का विज्ञापन कर दिया। यह बात समझनी आसान है। लेकिन पैसा देकर आपने खबर को नियंत्रित किया। किसी के पक्ष में क्या चलाना है और कितना चलाना है, इस बात का ध्यान रखा। कौन सी खबर नहीं दिखानी है, इस बात की भी चिन्ता की तो यह किसी की खबर चलाने भर का मामला नहीं है। यह जिससे पैसा लिया, उसके लिए काम करने का मामला है। एड न्यूज खबरिया उद्योग को लगा कैंसर से भी खतरनाक रोग है। जिसकी वजह से समाज का चैनल और अखबारों से विश्वास उठ रहा है। एड न्यूज का प्रतिनिधि चेहरा नए-नए एड मैन अरविन्द केजरीवाल बने हैं।
केजरीवाल की पहचान देश भर के मीडिया संस्थानों में एड मैन की बनी है। वह दिल्ली की मदद करने की जगह चैनलों को विज्ञापन दे रहे हैं। इस तरह वे चैनलों को नियंत्रित कर पाते हैं । एक पूर्व पत्रकार और वर्तमान यू ट्यूबर पूण्य प्रसून वाजपेयी को एक वायरल हुए वीडियो में दिल्ली के मुख्यमंत्री खबर समझा रहे थे। कैसे बात करनी है और क्या पूछना है। और यू टयूबर पूण्य प्रसून वाजपेयी उनकी एक-एक बात को किसी वफादार सिपाही की तरह सुनते जा रहे थे। बाद के दिनों में वे खबरिया चैनलों से विदा हो लिए लेकिन केजरीवाल की वफादारी आज तक नहीं छोड़ी।
यह जादू अरविन्द केजरीवाल अपने विज्ञापन की ताकत से कर पाते हैं। वर्ष 2020-21 में दिल्ली के मुख्यमंत्री राहत कोष में 35 करोड़ रुपए आए लेकिन उनमें से एक रुपया भी कोविड 19 के लिए खर्च नहीं किया गया। चूंकि दिल्ली सरकार विज्ञापनों पर खर्च कर रही थी इसलिए दिल्ली में कोविड 19 पर सरकारी पैसा खर्च हुआ या नहीं हुआ, यह किसी पत्रकार की चिन्ता में शामिल नहीं रहा।
दिल्ली से सांसद परवेश साहिब सिंह वर्मा गलत तो नहीं पूछ रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री से कि उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, असम, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, सिक्किम जैसे अनेक राज्यों ने अपने नागरिकों को मुफ्त वैक्सीन देने का एलान भी कर दिया है। लेकिन दिल्ली सरकार अभी भी सिर्फ मोल भाव करने और शिकायतों में ही अटकी हुई है।
यही केजरीवाल की दिल्ली सरकार है, जिसने कोविड 19 की महामारी के बीच अस्पताल-दर-अस्पताल भटकने पर दिल्ली वालों को मजबूर किया। तीन महीने में केजरीवाल ने 150 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए। आज यदि यह पैसा दवा, ऑक्सीजन और सरकारी अस्पतालों को सुधारने पर खर्च किया होता तो राजधानी इस तरह कोविड में घुट ना रही होती। पांच घंटे में छह चैनलों पर सतरह बार केजरीवाल नजर आए। यह सब मुफ्त में नहीं हुआ। दिल्ली वालों की जान का सौदा विज्ञापन पर पैसे खर्च करके किया गया।
दिल्ली वाले जानना चाहते हैं, यदि अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को शहर से बाहर कर दिया जाए तो दिल्ली का कौन सा काम रुकेगा ? जब इन्हें बात-बात पर केन्द्र के सामने ही गिड़गिड़ाना है तो इनकी दिल्ली को जरूरत क्या है ? दिल्ली का पैसा तो दोनों विज्ञापन पर खर्च चुके हैं और इनका कथित विश्व स्तरीय मोहल्ला क्लिनिक इस तरह कोविड टाइम में दिल्ली से गायब है, जैसे कभी बना ही नहीं था। क्या यह जोड़ी दिल्ली में अखबारों, वेबसाइट्स और खबरिया चैनलों को विज्ञापन देने के लिए और मोहल्ला क्लिनिक के नाम पर दिल्ली को बेवकूफ बनाने के लिए ही बैठी है।
जब दिल्ली आजाद भारत के इतिहास में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, ऐसे समय में सवाल तो यही है कि केजरीवाल-सिसोदिया की जोड़ी ने दिल्ली के लिए क्या किया ? उनका मोहल्ला क्लिनिक कितने लोगों की जान बचा पाया ? जब दिल्ली का हर एक काम केन्द्र सरकार के भरोसे ही होना है, फिर केजरीवाल को दिल्ली ने क्यों चुना है ?
बहरहाल,जिस बेशर्मी के साथ दिल्ली सरकार कह देती है कि हमने कहा, हमने बताया, हमने विज्ञापन दिया। उन्हें कौन समझाए कि दिल्ली ने उन्हें गद्दी पर कहने, बताने और विज्ञापन देने के लिए नहीं बिठाया है। ‘करने’ के लिए बिठाया है और दिल्ली सरकार से यह ‘करना’ ही कहीं ‘गायब’ है।
आशीष कुमार ‘अंशु’
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