कोविड संकट में भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अराजकता से बाज नहीं आ रहे हैं. पीएम के साथ कोरोना को लेकर हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक को लाइव करना सिर्फ प्रोटोकॉल का उल्लंघन ही नहीं बल्कि यह दिल्ली के मुख्यमंत्री की ओछी मानसिकता का प्रतीक है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल काम करने के बजाय प्रचार करने और अराजकता पैदा करने में दिलचस्पी रखते हैं। प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की बैठक को लाइव लीक करके केजरीवाल ने एक बार फिर यही साबित किया है। मोहल्ला क्लीनिक की डींगें मारने वाले केजरीवाल की ये क्लीनिकें कोविड संकट के दौर में लापता हैं और केंद्र द्वारा ऑक्सीजन संयंत्र लगाने के लिए आगाह किये जाने के बावजूद केजरीवाल हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। नतीजा आज सामने है।
‘‘आम आदमी पार्टी को अपना नाम बदलकर प्रचार आदमी पार्टी कर लेना चाहिए। पीएम के साथ सीएम की मीटिंग का लाइव टेलीकॉस्ट करके सीएम केजरीवाल ने साबित कर दिया कि उन्हें मुद्दा सुलझाने से ज्यादा मुद्दा भुनाने में रुचि है। एक वैश्विक महामारी को लेकर देश के सर्वाधिक प्रभावित प्रदेशों की साझा बैठक में स्टंटबाजी करना शर्मनाक है।’’
दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा पीएम मोदी के साथ चल रही बैठक को गुप-चुप तरीके से लाइव किए जाने पर पत्रकार रंगनाथ सिंह ने सोशल मीडिया पर इसे शर्मनाक लिखा।
केजरीवाल की इस हरकत पर पीएम मोदी ने कड़े शब्दों में फटकार लगाते हुए कहा- ‘‘यह हमारी जो परंपरा है, हमारा जो प्रोटोकॉल है, यह उसके खिलाफ हो रहा है कि कोई मुख्यमंत्री ऐसी इनहाउस मीटिंग को लाइव टेलीकास्ट करे। यह उचित नहीं है। ऐसे समय में हमें हमेशा संयम का पालन करना चाहिए।’’
केजरीवाल ने बैठक में अपनी गलती मानी और आगे से ऐसा ना करने का विश्वास भी दिलाया लेकिन ऐसी गलती उनसे पहली बार हुई हो, ऐसा नहीं है। राजनीति में आने के बाद उन्होंने जितनी गलतियां की हैं, उसकी कोई सूची बनाई जाए तो वे गलतियों का साक्षात पुतला ही जान पड़ेंगे।
इसी साल 8 अप्रैल को प्रधानमंत्री के साथ देश में कोविड 19 से बेकाबू हुए हालात और कई राज्यों में संक्रमण के प्रसार की रोकथाम के मुद्दे पर हुई बैठक में अरविन्द केजरीवाल की जो तस्वीर मीडिया में आई थी, उसे देखकर कोई भी समझ सकता था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री बैठक को लेकर गम्भीर नहीं हैं। पिछले 15 दिनों से दिल्ली में मौत का जो तांडव चल रहा है, उसे देखकर तो यह भी समझ में आता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री दिल्ली को लेकर भी गंभीर नहीं हैं।
दिल्ली की सीमा पर इकट्ठा हुई भीड़ के समर्थन में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल हमेशा रहे हैं। उन्होंने वह भीड़ बॉर्डर पर जमी रहे, इसके लिए हरसंभव मदद पहुंचाने की व्यवस्था की। केजरीवाल की सरपरस्ती में दिल्ली बॉर्डर पर सारे नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ती रहीं। अब आम आदमी पार्टी के नेता दिखावा कर रहे हैं। जब वे बॉर्डर पर राजनीति कर रहे थे, उस वक्त दिल्ली वालों की थोड़ी चिन्ता कर लेते तो आज हालात इतने खराब नहीं होते। तब वे समझने को तैयार नहीं थे कि देश और दुनिया से कोरोना अभी गया नहीं है?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने साल 2014 में ही घोषणा कर दी थी कि वे अराजक हैं। उस दौरान उनका अराजक होने वाला बयान मीडिया की सुर्खियां बना था। वे दिल्ली की अपनी सरकार के मंत्रियों के साथ तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के खिलाफ रेल भवन के बाहर धरना देने गए थे। उसी धरने के दौरान उन्होंने खुद को अराजक बताया था। यह सच है कि उसके बाद उन्होंने कभी खुद को अराजक बोलकर संबोधित नहीं किया लेकिन अपनी हरकतों से वे बार-बार दिल्ली वालों को अपनी अराजकता का सबूत देते रहे हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने आज जिस तरह प्रधानमंत्री के साथ बातचीत को लीक किया है, उसके बाद दिल्ली के एक बड़े वर्ग से यह मांग उठ रही है कि मुख्यमंत्रियों की आंतरिक बैठक में दिल्ली का प्रतिनिधित्व राज्यपाल कार्यालय ही करे तो अच्छा होगा।
दिल्ली में जिस तरह ऑक्सीजन की स्थिति को लेकर मुख्यमंत्री केजरीवाल केन्द्र सरकार के आगे आज गिड़गिड़ाने को मजबूर हैं। यदि उन्होंने आने वाले समय में राजधानी में ऑक्सीजन की जरूरत को समझा होता तो शायद दिल्ली वालों को यह दिन ना देखना पड़ता। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को ऑक्सीजन की आवश्यकता और आपूर्ति सुनिश्चित करने संबंधी आदेश जारी किया था। इसका उल्लेख पिछले साल 7 अप्रैल 2020 को महानिदेशक, स्वास्थ सेवा, भारत सरकार द्वारा जारी पत्र में मिलता है। पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि कोविड संक्रमित मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है, इसीलिए ऑक्सीजन की उपलब्धता और आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। उस पत्र के मिलने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एआईआईजीएमए (ऑल इंडिया इन्डस्ट्रियल गैसेज मैनुफैक्चर्स एसोसिएशन) के अधिकारियों से मिलने की कोशिश की। इस बात का प्रयास किया कि दिल्ली में चार-पांच ऑक्सीजन प्लांट लग जाएं। 7 अप्रैल 2020 को जारी किए गए पत्र को आज एक साल से अधिक समय गुजर चुका है। दिल्ली वालों के ऑक्सीजन की जरूरत को पूरा करने के लिए दिल्ली सरकार की तरफ से क्या प्रयास किया गया? अरविन्द केजरीवाल बताने की स्थिति में हैं? आज जब संकट की स्थिति है तो जवाबदेही किसकी है?
मोहल्ला क्लिनिक को लाखों रुपये के विज्ञापनों की मदद से इस तरह प्रचारित किया गया था, जैसे मोहल्ला क्लिनिक में विश्व स्तरीय स्वास्थ सुविधाएं उपलब्ध होंगी। कोविड 19 के इस मुसीबत की घड़ी में सारे मोहल्ला क्लिनिक कहां गायब हो गए हैं? उनकी ना कोई रिपोर्टिंग कर रहा है और ना उन मोहल्ला क्लिनिकों का कहीं विज्ञापन दिखाई पड़ता है।
दिल्ली में ऑक्सीजन संकट को आम आदमी पार्टी नहीं समझ रही थी, ऐसा नहीं है। दिल्ली में ऑक्सीजन को लेकर दिल्ली सरकार की तैयारी की रिपोर्ट लगातार मीडिया में आ रही थी। अब लगता है कि वह रिपोर्ट विज्ञापनों की तरह पेड भी हो सकता है। उनमें बताया जा रहा था कि कोविड अस्पतालों में हर बेड पर ऑक्सीजन का इंतजाम करेगी दिल्ली सरकार। 12 जून 2020 को आम आदमी पार्टी के ट्वीटर हैंडल से शेयर की गई एक खबर में यह तक दावा किया गया कि जहां तक पाइप के जरिए ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं है, वहां ऑक्सीजन सिलेन्डर दिया जाएगा।
पिछले साल 27 अगस्त को आम आदमी पार्टी के ट्वीटर हैंडल पर शेयर किया गया, आवश्यकता पड़ने पर ऑक्सीजन सिलेन्डर की घर पर व्यवस्था कराई जाएगी। जब केजरीवाल सरकार के पास ऑक्सीजन को लेकर कोई तैयारी ही नहीं थी तो यह सारे दावे वे क्या केन्द्र की मोदी सरकार के भरोसे कर रहे थे?
आशीष कुमार ‘अंशु’
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