गत 30 मार्च के चीनी समाचार पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ की मानें तो 26 और 29 मार्च को चीनी वायु सेना के विमानों ने दो अभ्यास कार्रवाइयों में ताइवान द्वीप को पश्चिम और पूर्व, दोनों दिशाओं से घेरा था। 29 मार्च के अभ्यास में अतिरिक्त विमानों ने ताइवान के पूर्वी हिस्से तक पहुंचने के लिए मियाको जलडमरूमध्य को पार किया था। इसके मुताबिक 10 विमानों ने 29 मार्च को ताइवान के स्वयंभू दक्षिण-पश्चिम वायु रक्षा पहचान क्षेत्र में प्रवेश किया जबकि वाई-8 पनडुब्बीरोधी युद्धक विमान ने वापसी से पहले बाशी चैनल को पार कर इस द्वीप के दक्षिण-पूर्व तक उड़ान भरी। इसने यह भी कहा कि 26 मार्च के अभ्यास से अलग, चीनी वायु सेना ने 29 मार्च को युद्धक विमानों का एक और बड़ा भेजा था जिसे ताइवानी रक्षा अधिकारी नहीं देख सके थे, लेकिन जापानी अधिकारियों ने देखा था।
चीनी वायु सेना का 26 मार्च का अभ्यास उसी मौके पर हुआ जब ताइवान और संयुक्त राज्य अमेरिका समुद्री युद्ध में सहयोग के ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि क्वाड समूह (भारत, जापान, अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया) की बैठक के बाद से ही दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता बढ़ गई है। उसने ताइवान के हवाई क्षेत्र में पहले से ज्यादा मौकों पर घुसपैठ की है। इसने ताइवानी रेल दुर्घटना पर उसे शोक संदेश भेजने पर भी भारत को धमकी दी है। ‘ग्लोबल टाइम्स’ (6 अप्रैल) को ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ के इस कथन पर आपत्ति है कि बीजिंग साफ तौर पर ‘एक भारत’ विचार का सम्मान नहीं करता। ऐसे में कोई कारण नहीं है कि भारत चीन के क्षेत्रीय दावों के बारे में अत्यधिक संवेदनशील हो। उसने शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में रिसर्च सेंटर फॉर चाइना-साउथ एशिया कोआॅपरेशन के महासचिव लियू जोंगई के बयान के हवाले से लिखा कि ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ सार्वजनिक रूप से यह कहने में अपनी सीमा से बहुत आगे चला गया है कि ताइवान द्वीप एक देश है।’
ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक उन्होंने आगे टिप्पणी की कि ‘अब तक नई दिल्ली के पास एक-चीन सिद्धांत को तोड़ने की हिम्मत नहीं है। लेकिन वह पर्दे के पीछे से खेल रही है।’ लियू जोंगई ने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय मीडिया संस्थानों की टिप्पणियां केवल प्रेस की तथाकथित स्वतंत्रता के कारण नहीं हैं, बल्कि भारत सरकार इस मामले में कदम दर कदम आगे बढ़ने में उनका समर्थन कर रही है। ग्लोबल टाइम्स ने धमकी दी कि ‘अगर भारत वास्तव में इस मुद्दे का फायदा उठाने की कोशिश करता है, तो चीन के पास उसका भ्रम तोड़ने के लिए पर्याप्त औजार हैं।’ इस अखबार ने कहा कि ‘ताइवानी अलगाववाद का समर्थन करने की स्थिति में, नई दिल्ली को बीजिंग की जवाबी कार्रवाइयों से सावधान रहना चाहिए। इन उपायों में से एक सिक्किम को भारत के भाग के रूप में मान्यता न देना हो सकता है, और यदि भारत चीन में अलगाववादी ताकतों का समर्थन करता है, तो चीन उत्तर-पूर्व भारत में अलगाववादी ताकतों का समर्थन कर सकता है।’
दक्षिण चीन सागर में चीन के सैन्यीकरण, और जिबूती में उसके पहले नौसैनिक ठिकाने की स्थापना तथा हिंद महासागर में बढ़ती नौसैनिक गतिविधियों के कारण क्वाड एक बार फिर महत्वपूर्ण हो गया है। क्वाड सदस्यों ने इस साल मार्च में अपना पहला सम्मिलित बयान जारी किया था जिसमें चीन का अलग से उल्लेख नहीं किया गया था, परंतु एक अधिकारी ने प्रेस से अलग कहा कि चारों नेताओं ने चीनी चुनौती के बारे में चर्चा की और साफ किया कि उनमें से किसी को भी चीन के बारे में कोई भ्रम नहीं है।
क्वाड हालांकि एक मजबूत अवधारणा है, पर वास्तविकता में यह संभवत: तब तक कमजोर रहेगी जब तक कि हिंद-प्रशांत रणनीति को इसमें अधिक समग्र तरीके से नहीं अपनाया जाता। इसके लिए क्वाड+6, जिसमें क्वाड के मूल सदस्यों के अलावा वियतनाम, इंडोनेशिया, ताइवान, सिंगापुर, फ्रांस और यूके शामिल हैं, ऐसा विचार है जो क्षेत्र में भू-राजनीतिक सुरक्षा के लिए एक व्यवहार्य विकल्प बन सकता है।
यूरोप की चिंता
उल्लेखनीय है कि चीनी नौसेना के हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति सुदृढ़ करने और जिबूती में एक ठिकाना बनाने के साथ ही, भूमध्यसागरीय क्षेत्र और बाल्टिक सागर में उसकी गतिविधियों ने प्रमुख यूरोपीय शक्तियों को चिंता में डाल दिया है। इसके परिणामस्वरूप फ्रांस और ब्रिटेन पहले से ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ाने में लगे हैं। फरवरी 2021 में, फ्रांस ने अमेरिका के साथ नौसैनिक अभ्यास से पहले अपने युद्धपोत दक्षिण चीन सागर में भेजे और इस क्षेत्र में परमाणु शक्ति वाली पनडुब्बी भी तैनात की। ब्रिटेन ने घोषणा की है कि उसके नए और सबसे बड़े विमानवाही युद्धपोत एचएमएस क्वीन एलिजाबेथ को दक्षिण चीन सागर में तैनात किया जाएगा और आने वाले महीनों में यही इसकी तैनाती का प्रमुख क्षेत्र हो सकता है।
इस साल के वार्षिक ज्यान डी’आर्क प्रशिक्षण और गश्ती मिशन से पहले फ्रांसीसी नौसेना ने कहा कि यह सिर्फ प्रशिक्षण मिशन नहीं है, बल्कि वास्तविक परिचालन तैनाती है जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस की रक्षा रणनीति का हिस्सा है। ध्यान देने योग्य है कि फ्रांसीसी नेतृत्व वाली टास्क फोर्स उन देशों में रुकेगी जिनके चीन के साथ असहज संबंध हैं। सिंगापुर विवादित क्षेत्र का दावेदार नहीं है, फिर भी वह अमेरिका और भारत के साथ अपनी सुरक्षा साझेदारी बढ़ा रहा है। फ्रांस का भारत के साथ पहले ही एक समुद्री सहयोग समझौता हो चुका है जिसके मुताबिक वह हिंद महासागर और दक्षिणी प्रशांत महासागर में भारतीय नौसैनिक पोतों को फ्रांस की नौसैनिक सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति देगा।
फ्रांस और ब्रिटेन के प्रवेश से क्वाड मजबूत होगा क्योंकि उनकी नौसेना के पास सिंगापुर में डेरा डालने के अधिकार के साथ ही एक रक्षा कर्मचारी कार्यालय भी है। उधर लंदन और पेरिस दोनों ही जापान और आॅस्ट्रेलिया के साथ भी सैन्य सहयोग बढ़ा रहे हैं।
दक्षिण चीन सागर में चीन के खिलाफ अपने समुद्री क्षेत्रीय दावों का बचाव करने में वियतनाम सबसे दृढ़ राष्ट्र रहा है। इसके अतिरिक्त यह रणनीतिक रूप से प्रशांत क्षेत्र में स्थित है। जनवरी 2017 में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने वियतनाम के तट रक्षक बल के लिए छह गश्ती नौकाएं देने की घोषणा की थी। 1975 के बाद से पहली बार मार्च 2018 में अमेरिकी नौसेना के विमानवाहक पोत, कार्ल विन्सन और इसके 5,000 नौसैनिकों और वायुसैनिकों की टुकड़ी ने दनांग बंदरगाह में लंगर डाला। वियतनाम और भारत भी लगातार एक दूसरे के साथ संबंध मजबूत कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार और नौवहन के लिए संचार के चार महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों पर इंडोनेशिया का नियंत्रण है। ये चार मार्ग मलक्का, सुंडा, लोम्बोक और मकास्सर जलडमरूमध्य से होकर हैं जिनमें से तीन हिंद और प्रशांत महासागर को जोड़ने के कारण इसे हिंद-प्रशांत रणनीति का महत्वपूर्ण सदस्य बनाते हैं।
ताइवान को शामिल किए जाने पर आश्चर्य हो सकता है, क्योंकि मूल क्वाड या प्रस्तावित क्वाड+6 गठबंधन के सदस्यों के साथ इसके राजनयिक संबंध नहीं हैं। इसके बावजूद, इसमें शामिल अधिकांश देशों के साथ ताइवान के संबंध हैं और उसने अपनी नई दक्षिणोन्मुखी नीति के तहत भारत और आसियान देशों के साथ जुड़ाव को और बढ़ाया है।
एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ताइवान के रणनीतिक उद्देश्य इन्हीं देशों जैसे हैं और हिंद-प्रशांत रणनीति में भागीदारी के लिए उसने अमेरिका, जापान, भारत और दक्षिण कोरिया से संपर्क किया है। ताइवान की भागीदारी महत्वपूर्ण है क्योंकि स्प्रैटली शृंखला के सबसे बड़े द्वीप इटु आबा के साथ ही दक्षिण चीन सागर के उत्तर-पूर्वी निकास को नियंत्रित करने वाले प्राटास द्वीप पर उसका नियंत्रण है। ताइवान के पास दक्षिण चीन सागर में आसपास के क्षेत्रों में अधिक सटीक स्थितिजन्य जागरूकता हासिल करने के लिए रडार और सेंसर स्थापित करने की क्षमता भी है। यह ताइवान को न केवल हिंद-प्रशांत रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए बल्कि पूर्वी एशिया में चीन के विस्तार पर नजर रखने के लिए भी महत्वपूर्ण सहयोगी बनाता है।
तब होगी रणनीति सफल
क्वाड+6 सहित हिंद-प्रशांत रणनीति को एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (एएजीसी) में अतिरिक्त समर्थन मिलेगा, जिसका उद्घाटन भारत और जापान ने किया था। एएसीजी वास्तव में एक हिंद-प्रशांत स्वतंत्र गलियारे को रेखांकित करेगा। इसका वित्तपोषण जापान करेगा जबकि अफ्रीका के बारे में भारत की जानकारी का उपयोग किया जाएगा। इस प्रकार यह बीआरआई को टक्कर देने में सक्षम है।
इस रणनीति की सफलता तभी सुनिश्चित होगी जब इसका विस्तार अन्य समान विचारधारा वाले देशों तक या छोटी शक्तियों को शामिल करने के लिए किया जाए। इन छह देशों को शामिल करने से विद्यमान हिंद-प्रशांत ढांचे के भीतर शक्ति का अधिक समावेशी संतुलन बनेगा और बहु-ध्रुवीयता के सपने को साकार करने की दिशा में महत्वपूर्ण विकास होगा। यह आवश्यक है कि समकेंद्रिक रणनीतिक हितों वाले राष्ट्रों का समूह गठित किया जाए जो व्यवहार के स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन सुनिश्चित कर सके और आक्रामकता को रोक सके। यह आसियान का एक व्यवहार्य विकल्प भी प्रदान करेगा जो केवल आम सहमति के आधार पर निर्णय लेने के अपने मार्गदर्शक सिद्धांत के कारण सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए आगे बढ़ने के प्रति अनिच्छुक रहा है। दरअसल, शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन की बढ़ती आक्रामकता ने इस मुद्दे को तात्कालिक महत्व का बना दिया है।
नम्रता हसीजा (लेखिका सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रैटेजी में रिसर्च फैलो हैं)
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