गत दिनों पश्चिम बंगाल में मजहबी उन्मादियों की एक भीड़ ने किशनगंज (बिहार) के थाना प्रभारी अश्विनी कुमार को पीट-पीट मार डाला। पर इस हत्या पर वे लोग चुप्पी साध गए, जो कथित ‘मॉब लिचिंग’ (भीड़ द्वारा किसी की हत्या करना) की घटनाओं के विरुद्ध ‘अवार्ड वापसी’ का नाटक करते हैं। तो वे लोग भी चुप रहे, जो ‘मॉब लिचिंग’ के विरुद्ध सड़कों पर प्रदर्शन कर लोगों में भय पैदा करते हैं। वे नेता भी चुप रहे, जो किसी चोर की पिटाई पर कहते हैं, ‘‘देश में असहिष्णुता बढ़ गई है, मुसलमान असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।’’
साफ है, ये लोग तभी मुंह खोलते हैं जब कोई मजहबी उन्मादी मरता है। इन सेकुलरों की नजर में भीड़ द्वारा किसी हिंदू की हत्या ‘मॉब लिचिंग’ नहीं है। अश्विनी कुमार हिंदू थे। इसलिए इस जमात ने उनकी हत्या पर चुप रहना ही ठीक समझा। इस जमात को इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा कि अश्विनी की हत्या से उनकी मां इतनी गमजदा हो गर्इं कि उन्होंने दूसरे दिन प्राण त्याग दिए। दोनों मां-बेटे का अंतिम संस्कार 11 अप्रैल को एक साथ किया गया।
उल्लेखनीय है कि अश्विनी कुमार के नेतृत्व में किशनगंज से पुलिसकर्मियों का एक दल एक मोटरसाइकिल चोर को पकड़ने के लिए पंतापाड़ा (पश्चिम बंगाल) गया था। वहां आरोपी ने गांव के लोेगों को इकट्ठा करके पुलिस वालों पर हमला कर दिया। अश्विनी कुमार के साथी तो जान बचाकर भाग गए, लेकिन उन्हें भीड़ ने पकड़ लिया और लाठी-डंडों से पीट-पीट कर मार डाला। पंतावाड़ा पुलिस चौकी में दर्ज एफआईआर में पुलिस ने बताया है कि मस्जिद से कहा गया कि ‘गांव में चोर-डाकू घुस आए हैं।’ इसके बाद गांव वाले पुलिसकर्मियों पर टूट पड़े। पुलिस वाले वर्दी में थे। इसके बावजूद उन्हें चोर-डाकू कहा गया और उन पर हमला करवाया गया।
सवाल उठता है कि यह दुस्साहस उस गांव के लोगों में कहां से आया? इसका उत्तर है वोट बैंक की राजनीति। इसी राजनीति की वजह से बंगाल का यह पूरा क्षेत्र, जिसे ‘चिकेन नेक’ कहा जाता है, बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों से भर गया है। ये घुसपैठिए न तो किसी कानून को मानते हैं, और न ही पुलिस को भाव देते हैं।
अश्विनी कुमार के पिता महेश्वरी प्रसाद का सात वर्ष पूर्व निधन हो गया था। अश्विनी की दो बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी नैंसी 15 साल की है तो ग्रेसी एवं वंश जुड़वां हैं, जिनकी उम्र 6 वर्ष है। अश्विनी कुमार एक साहसी पुलिस अधिकारी थे। उन्होंने सात माह पूर्व ही किशनगंज थाने में अपना पदभार ग्रहण किया था। वे किशनगंज के ही ठाकुरगंज से स्थानांतरित होकर आए थे। अपराधी उनसे डरते थे। छापेमारी टीम में शामिल इंस्पेक्टर मनीष कुमार ने ग्वालपोखर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई है। इसमें 21 नामजद समेत 500 अज्ञात लोगों के विरुद्ध शिकायत की गई है। अब तक पांच आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। बंगाल पुलिस ने घटना के दिन ही मुख्य आरोपी फिरोज आलम, अबुजर आलम एवं फिरोज आलम की मां सहीनुर खातून को गिरफ्तार कर लिया था। 11 अप्रैल को अब्दुल मलिक उर्फ मलिक तथा इस्माइल को गिरफ्तार कर लिया गया। ये सभी अभियुक्त पंतापाड़ा के ही निवासी हैं।
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जाने के लिए ‘चिकेन नेक’ से होकर गुजरना पड़ता है। इस गलियारे की चौड़ाई कहीं-कहीं 25 किमी भी नहीं है। एक तरह से देखा जाए तो पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ने वाले इस गलियारे से आठ किमी की दूरी पर बांग्लादेश, 40 किमी की दूरी पर नेपाल, 60 किमी की दूरी पर भूटान और 150 किमी की दूरी पर चीन है। इस इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या काफी अधिक है। बंगाल विभाजन के बाद 1947 में इसे सिलीगुड़ी गलियारा के नाम से जाना जाता था। यदि ‘चिकेन नेक’ पर कोई दुश्मन कब्जा कर ले तो पूर्वोत्तर भारत का यह हिस्सा भारत से अलग-थलग पड़ जाएगा। इसी को देखते हुए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में दिल्ली के शाहीनबाग में हो रहे प्रदर्शन में शरजील इमाम ने कहा था, ‘‘हमारे पास संगठित लोग हों तो हम असम से भारत को हमेशा के लिए अलग कर सकते हैं। रेलवे ट्रैक पर इतना मलबा डालो कि उनको एक महीना हटाने में लगेगा। असम को काटना हमारी जिम्मेदारी है।’’
ये संगठित लोग वही बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं, जिन्हें एक साजिश के तहत ‘चिकेन नेक’ क्षेत्र में बसाया जा रहा है। इसलिए इस क्षेत्र से बांग्लादेशी घुसपैठियों को भगाना बहुत जरूरी है, नहीं तो आने वाले समय में कितने अश्विनी कुमारों की बलि चढ़ानी पड़ेगी, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
यही कारण है कि विद्यार्थी परिषद् जैसे कई संगठन इस स्थान की सुरक्षा के लिए बार-बार आवाज उठा रहे हैं। 2009 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने किशनगंज के रूईधासा मैदान में एक बड़ी रैली का आयोजन किया था। इसमें कहा गया था कि इस क्षेत्र से बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर यथाशीघ्र उन्हें वापस बांग्लादेश भेजा जाए। पत्रकार सुबोध कुमार कहते हैं, ‘‘किशनगंज भारत का सर्वाधिक संवेदनशील जिला हो गया है। यहां रोहिंग्या मुसलमानों को भी बसने में कोई असुविधा नहीं होती। ये अक्सर लूटपाट और अन्य आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। घटनाओं को अंजाम देकर ये लोग आसानी से पश्चिम बंगाल के ग्वालपाड़ा जैसे सीमावर्त्ती थाना क्षेत्रों में चले जाते हैं। वहां उनकी मदद के लिए प्रशासन के साथ स्थानीय जनता भी मौजूद रहती है।’’
किशनगंज अक्सर विवादों में रहता है। भगवान श्रीकृष्ण के नाम पर बसा किशनगंज ही बिहार का एकमात्र जिला है, जहां हिंदुओं की आबादी 50 प्रतिशत से कम है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में श्रीकृष्ण अज्ञातवास से पूर्व पांडवों से मिलने यहां आए थे। उस समय के अवशेष आज भी इस जिले में देखने को मिलते हैं। सागडाला, भातडाला जैसे कई स्थल आज भी मौजूद हैं। किशनगंज के समीप ही कीचक वध का मेला आज भी लगता है। कालांतर में किशनगंज में जनसांख्यिकी परिवर्तन होता चला गया और इस जिले से हिंदुओं की आबादी कम होती चली गयी। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के शहाबुद्दीन 1984 में किशनगंज संसदीय क्षेत्र से ही निर्वाचित हुए थे। ओवैसी की पार्टी का खाता भी इस बार के विधानसभा चुनाव में इसी जिले में खुला। यहां अक्सर मानव तस्करी, गोतस्करी के मामले सामने आते रहते हैं। किशनगंज की सीमा के समाप्त होने के बाद पश्चिम बंगाल का उत्तरी दिनाजपुर जिला पड़ता है, जिसका मुख्यालय इस्लामपुर है। बांग्लादेशी घुसपैठियों का सबसे बड़ा जमावड़ा किशनगंज और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में ही है। इसलिए इन घुसपैठियों को भारत आने से रोकना ही होगा।
उम्मीद है कि अश्विनी कुमार की शहादत इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने के लिए बाध्य करेगी।
संजीव कुमार
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