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होम भारत बिहार

यह है चर्च का असली चेहरा

by WEB DESK
Apr 20, 2021, 03:30 pm IST
in बिहार
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अरुण कुमार सिंह, विशेष रपट

रायसेमला (खूंटी) में ईसाई मिशनरियों ने पहले छल से जमीन पर कब्जा किया और उस पर चर्च बना दिया। जब जमीन मालिक ने विरोध किया तो उसके साथ रोजाना झगड़ा किया जा रहा है और गांव वालों को भड़का कर उसका सामाजिक बहिष्कार करवा दिया गया है। वह परिवार गांव के कुंए से पानी भी नहीं पी सकता है

‘‘भारत में पिछले 25 साल में उतने चर्च नहीं बने, जितने कि पिछले एक साल में बने।’’
यह कहना है डेविड रीव्स का। डेविड उस ईसाई संगठन ‘अनफोल्डिंग वर्ल्ड’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हैं, जो पूरी दुनिया में अनेक भाषाओं में बाइबिल का अनुवाद कराकर लोगों तक नि:शुल्क पहुंचाता है। डेविड ने यह भी दावा किया है कि कोरोना काल में भारत के 50,000 गांवों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया था और उस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता भी मिली। उन 50,000 गांवों में से कुछ गांव इस प्रकार हैं— रायसेमला, बिरमकेला, तिरला कोकया, बिशनपुर, घुनसुली, कोलाद बंधवा आदि। ये सभी गांव झारखंड के खूंटी जिले में तोरपा थाने के अंतर्गत पड़ते हैं। सूत्रों ने बताया कि इन गांवों में 2020 में लॉकडाउन के दौरान ही चर्च बने हैं। ज्यादातर गांवों में छल—कपट से ही जमीन ली गई है। इन गांवों में इन दिनों जो कुछ हो रहा है, वह डेविड रीव्स की बातों को पुष्ट करने के लिए काफी है।

रायसेमला की पाहन टोली में तो चर्च के लोगों ने सारी हदें पार कर दी हैं। उल्लेखनीय है कि अप्रैल, 2020 में लॉकडाउन के दौरान कुछ लोग पाहन टोली के चमू मुंडा, जो निरक्षर हैं और ठीक से हिंदी भी बोल नहीं पाते हैं, के पास पहुंचे। उन लोगों ने उनसे कहा कि कारोबार करने के लिए एक गोदाम बनाना है। इसलिए कुछ जमीन चाहिए। इस संबंध में कई दिनों तक बात होती रही और अंत में चमू पांच डिसमिल जमीन 20 वर्ष के पट्टे पर उन्हें देने के लिए तैयार हो गए। कुछ दिन बाद ही पट्टे की कागजी कार्रवाई पूरी कर ली गई। इसके लिए चमू को 50,000 रु. दिए गए। इसके बाद उस जमीन को घेरकर उन लोगों ने वहां निर्माण कार्य शुरू किया। इस दौरान चमू की और 10 डिसमिल जमीन पर भी उन लोगों ने कब्जा कर लिया और वहां गोदाम की जगह चर्च बना दिया। तब पता चला कि कारोबारी के नाम पर जो लोग आए थे, वे वास्तव में मिशनरी से जुड़े लोग थे। इसकी जानकारी मिलने पर चमू और उनके परिवार के लोगों ने निर्माण कार्य का विरोध किया। उस समय ग्राम पंचायत के जरिए किसी तरह मामला शांत कराया गया और तय हुआ कि जो निर्माण हो गया है, उसे छेड़ा न जाए और हां, आगे से ध्यान रखा जाए कि पट्टे की शर्तों का उल्लंघन न हो।

पीड़ित परिवार का कहना है कि वास्तव में उस पंचायत के पीछे भी चर्च के लोग ही थे। लेकिन चर्च के लोग इस मामले से ऐसे पिंड छुड़ाते हैं, मानो उन्हें कुछ भी पता नहीं। बहुत मुश्किल से उस चर्च की देखरेख करने वाले मसीह टोपनो कुछ बोलने के लिए तैयार हुए। उन्होंने कहा, ‘‘जमीन वैधानिक तरीके से ली गई है। इसके लिए पैसे भी दिए गए हैं।

सब कुछ लिखित में है। अब न जाने किसके बहकावे पर जमीन देने वाले हमारा विरोध कर रहे हैं।’’ लेकिन पीड़ित परिवार का कहना है कि चर्च के लोगों ने फर्जी कागजात बनवा लिए हैं। यह भी बताया कि पंचायत के कुछ दिन बाद ही चर्च के लोगों ने चमू से किसी बहाने एक सादे कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए। उस कागज पर लिखा गया है कि चमू ने 30 डिसमिल जमीन चर्च को दे दी है। जब इसकी जानकारी चमू के परिवार वालों को हुई तो उन्होंने इसका विरोध किया। मामला खूंटी की जिला अदालत तक पहुंच गया है। इस मामले को उठाने में चमू की बहू आकृति धान की मुख्य भूमिका है। आकृति कहती हैं, ‘‘मेरे बाबा (ससुर) की निरक्षरता का फायदा मिशनरी वालों ने उठाया और हमारी 30 डिसमिल जमीन पर कब्जा कर वहां मकान (जिसे ईसाई चर्च कह रहे हैं) बना लिया। उन लोगों ने हमारे साथ धोखा किया। इसलिए मैंने मकान के गेट पर ताला लगा दिया है। यह ताला तभी खुलेगा जब हमारे साथ न्याय होगा।’’

आकृति के इस कदम से मिशनरी वाले इतने खफा हैं कि उन लोगों ने उनका और उनके परिवार के अन्य लोगों का जीना दूभर कर रखा है। बाहर से लोगों को बुलाकर आकृति और उनके परिवार के लोगों के साथ झगड़ा किया जाता है। यही नहीं, आकृति के घर वालों को गांव के एकमात्र कुंए से पानी भी नहीं भरने दिया जाता है। आकृति ने बताया, ‘‘गांव में जो लोग ईसाई बने हैं, उनकी जमीन पर ही कुछ साल पहले सरकारी पैसे से एक कुंए का निर्माण हुआ था। उसी से सभी पानी पीते हैं, लेकिन अब हमारे परिवार के लोगों को कुंए से पानी भरने नहीं दिया जाता है। इस कारण गांव से बाहर लगे एक चापाकल (हैंडपंप) से पानी लाना पड़ता है। उन लोगों ने हमारा सामाजिक बहिष्कार कर दिया है। गांव का कोई भी ईसाई न तो हमारे घर वालों से बात करता है और न ही किसी तरह का लेन-देन करता है।’’

उल्लेखनीय है कि रायसेमला में कुल 27 घर हैं। इनमें से 15 घर के लोग ईसाई बन चुके हैं। सामाजिक कार्यकर्ता प्रिया मुंडा कहती हैं, ‘‘लगभग 10 साल पहले रायसेमला गांव के सभी लोग अपने को सरना मानते थे और प्रकृति की पूजा करते थे। यानी हिंदू थे, लेकिन 2011 में इस गांव पर मिशनरियों की नजर पड़ी और आज 15 घर ईसाई हो चुके हैं। अब ये लोग बाकी लोगों पर भी ईसाई बनने का दबाव डाल रहे हैं। यह तो बहुत ही गलत बात है। इसका विरोध होना चाहिए।’’ सच में किसी पर अपना धर्म बदलने के लिए दबाव डालना, कोई छोटी घटना नहीं है। इसके बावजूद सेकुलर मीडिया ने इस मामले को महत्व न देकर उसे एक तरह से दबाने का ही काम किया है। इस घटना पर सेकुलर मीडिया की चुप्पी पर रांची के सामाजिक कार्यकर्ता सुन्दर मुंडा आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहते हैं, ‘‘यदि ऐसा किसी हिंदू गांव में किसी ईसाई के साथ होता तो यह मामला कुछ ही मिनटों में अंतरराष्टÑीय रूप ले लेता और कहा जाता कि देखो भारत में कैसी असहिष्णुता बढ़ गई है कि लोगों से जबरन अपना मत-पंथ छोड़ने के लिए कहा जा रहा है।’’

चर्च के लोगों का इतना दुस्साहस कैसे बढ़ रहा है? इस पर तोरपा (खूंटी) के भाजपा विधायक कोचे मुंडा कहते हैं, ‘‘झामुमो और कांग्रेस गठबंधन की वर्तमान सरकार एक तरह से चर्च के इशारे पर चल रही है। चर्च जो कहता है, वही यह सरकार करती है। इसलिए चर्च के लोग स्वछंद हैं, उन पर कोई लगाम नहीं है। वे जो चाहते हैं, वही करते हैं। उन्हें 2017 में भाजपा सरकार द्वारा बनाए गए ‘धर्म परिवर्तन निषेध कानून’ का भी डर नहीं लगता है, क्योंकि उन्हें पूरा भरोसा है कि वर्तमान सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती।’’ कोचे यह भी कहते हैं, ‘‘चर्च के लोग गांव-गांव में फैल चुके हैं। इन लोगों का एक ही काम है कन्वर्जन की भूमि तैयार करना। इसके लिए छल-कपट का सहारा लिया जाता है और दुर्भाग्य से कुछ लोग उनके झांसे में आ भी रहे हैं। यह भारत और भारतीयता के लिए ठीक नहीं है। कन्वर्जन से लोगों की सोच ही बदल जाती है, चाहे वह सोच अपने धर्म, अपनी संस्कृति या अपने देश के प्रति ही क्यों न हो।’’ वे यह भी कहते हैं, ‘‘कन्वर्जन करने वाले लोग आतंकवादियों से कम खतरनाक नहीं हैं। ये लोग अंदर ही अंदर जन सामान्य को लालच देकर ईसाई बना लेते हैं और उन्हें देश से ही नफरत करने की सीख देते हैं।’’

सरना समिति, डोरमा (खूंटी) से जुड़े घासीराय धान मुंडा कहते हैं, ‘‘यदि ईसाई मिशनरियों पर लगाम नहीं लगी तो आने वाले कुछ बरसों में ही खूंटी जिला ईसाई-बहुल हो जाएगा। इसका असर पूरे झारखंड पर पड़ेगा और एक दिन नागालैंड या मिजोरम की तरह झारखंड भी ईसाई बहुसंख्यक वाला राज्य बन सकता है।’’

उल्लेखनीय है कि पूर्वोत्तर भारत के नागालैंड, मिजोरम, मेघालय जैसे राज्य पूरी तरह ईसाई-बहुल हो चुके हैं। इस कारण उन राज्यों में अलगाववादी हरकतें और अन्य देशविरोधी गतिविधियां होती रही हैं। चर्च के लोग इसी रास्ते पर झारखंड को ले जाना चाहते हैं। इसलिए समय रहते इसका समाधान ढूंढना होगा।

मेरे बाबा (ससुर) की निरक्षरता का फायदा मिशनरी वालों ने उठाया और हमारी 30 डिसमिल जमीन पर कब्जा कर वहां मकान (जिसे ईसाई चर्च कह रहे हैं) बना लिया। उन लोगों ने हमारे साथ धोखा किया। इसलिए मैंने मकान के गेट पर ताला लगा दिया है। यह ताला तभी खुलेगा जब हमारे साथ न्याय होगा।
-आकृति धान, जमीन मालकिन

झामुमो और कांग्रेस गठबंधन की वर्तमान राज्य सरकार एक तरह से चर्च के इशारे पर चल रही है। चर्च जो कहता है, वही यह सरकार करती है। इसलिए चर्च के लोग स्वछंद हैं, उन पर कोई लगाम नहीं है। वे जो चाहते हैं, वही करते हैं।
-कोचे मुंडा, भाजपा विधायक

यदि रायसेमला गांव जैसी घटना किसी हिंदू गांव में किसी ईसाई के साथ होता तो यह मामला कुछ ही मिनटों में दुनियाभर में फैल जाती और कहा जाता कि देखो भारत में कैसी असहिष्णुता बढ़ गई है कि लोगों से जबरन अपना मत-पंथ छोड़ने के लिए कहा जा रहा है।
-सुन्दर मुंडा, सामाजिक कार्यकर्ता, रांची

लगभग 10 साल पहले रायसेमला गांव के सभी लोग अपने को सरना मानते थे और प्रकृति की पूजा करते थे। यानी हिंदू थे, लेकिन 2011 में इस गांव पर मिशनरियों की नजर पड़ी और आज 15 घर ईसाई हो चुके हैं। अब ये लोग बाकी लोगों पर भी ईसाई बनने का दबाव डाल रहे हैं।
—प्रिया मुंडा, सामाजिक कार्यकर्ता, खूंटी

कुछ अन्य घटनाएं
पश्चिमी सिंहभूम जिले के दोपाई गांव में भी एक अवैध चर्च का निर्माण बिलिवर्स चर्च द्वारा कराया जा रहा था। स्थानीय मानकी मुंडाओं (11 गांवों के प्रधान को मानकी कहते हैं) एवं ग्रामीणों के विरोध पर निर्माण कार्य रोक दिया गया है। ग्रामीणों ने उस जगह पर ‘सरना भवन’ बनाने के लिए पारंपरिक तरीके से गाजे-बाजे के साथ सरना ध्वज भी स्थापित कर दिया था, लेकिन चर्च वालों का दुस्साहस देखिए कि 12 घंटे के अंदर सरना ध्वज को उखाड़ फेंका गया। इसकी शिकायत भी स्थानीय जिला प्रशासन से की गई है।
पश्चिमी सिंहभूम के खूंटपानी गांव में भी चर्च और स्थानीय लोगों के बीच इसी तरह के अवैध निर्माण को लेकर मतभेद पैदा हुए हैं। इस गांव में रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा एक चर्च बनाया गया है। उसके पास ही दो शिलापट्ट लगाए गए हैं, जिन पर स्थानीय गैर वनवासी समुदाय के इष्टदेव ‘सिंगबोंगा’ का उल्लेख किया गया है। स्थानीय ग्रामीणों ने पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त को एक ज्ञापन देकर उन शिलापट्टों को वहां से हटाने की मांग की है। इन लोगों का कहना है कि ‘सिंगबोंगा’ हिंदुओं के इष्टदेव हैं, फिर चर्च में उनकी चर्चा क्यों? इसका उत्तर भी यही लोग देते हैं कि यह केवल आम लोगों को भ्रमित करने का तरीका है, ताकि लोग मिशनरियों के झांसे में आएं और ईसाई बनें।

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