कोरोना महामारी के इस दौर में हमें अपनी तेज रफ्तार जीवनशैली पर पुनर्विचार करने का समय मिला है। स्वस्थ जीवनशैली के लिए स्वस्थ मन एवं शरीर जरूरी होता है। भारतीय परंपरा में जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए ‘जीवेत् शरद: शतम्’ की कामना की जाती है, जो अथर्ववेद का एक सूक्त है। इसमें व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के साथ उसके दीर्घायु होने की कामना की गई है—
पश्येम शरद: शतम्। जीवेम शरद: शतम्।
बुध्येम शरद: शतम्। रोहेम शरद: शतम्।
पूषेम शरद: शतम्। भवेम शरद: शतम्।
भूयेम शरद: शतम्। भूयसी: शरद: शतात्।
(अथर्ववेद, काण्ड-19, सूक्त-67)
अर्थात् हम सौ शरद तक अपनी दृष्टि से देखें यानी सौ वर्षों तक हमारे आंखों की ज्योति स्पष्ट बनी रहे। हम सौ वर्षों तक जीवित रहें। सौ वर्षों तक हमारी बुद्धि सक्षम बनी रहे, हम ज्ञानवान बने रहें। सौ वर्षों तक हमारी उन्नति होती रहे। सौ वर्षों तक हमें पोषण मिलता रहे। हम सौ वर्षों तक बने रहें। सौ वर्षों तक कुत्सित भावनाओं से मुक्त होकर पवित्र बने रहें। सौ वर्षों से अधिक समय तक हमारा कल्याण होता रहे।
आज जब हम अपने आसपास देखते हैं तो स्वस्थ व्यक्ति कहीं नहीं दिखता, 100 वर्ष तक स्वस्थ रहना तो असंभव-सा हो गया है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? हमसे कहां चूक हुई? क्या हम चिंता मुक्त सौ वर्षों के स्वस्थ जीवन की अवधारणा को फिर से साकार नहीं कर सकते? जब हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने की कोशिश करते हैं, तब मुख्यत: दो बातें सामने आती हैं- हमारी जीवनशैली और प्रकृति से बढ़ती दूरी। अब दिल्ली का ही उदाहरण लें तो यहां वायु प्रदूषण से लोगों के फेफड़े खराब हो रहे हैं। शेष भारत के मुकाबले यहां के लोगों की औसत आयु भी 2 से 3 वर्ष कम हो जाती है। स्वस्थ जीवन के लिए स्वस्थ भोजन, स्वस्थ हवा के साथ अच्छी नींद और व्यायाम भी जरूरी होता है। लेकिन आधुनिकता और आपाधापी के इस दौर में हम व्यवस्थित जीवन से दूर हो गए हैं। रोजमर्रा के जीवन में हमें एक तिहाई समय जीविकोपार्जन पर, एक तिहाई अपने शरीर पर जिसमें नींद और व्यायाम शामिल है तथा एक तिहाई समय अपने परिवार व समाज को देना चाहिए। लेकिन हमारी दिनचर्या इसके विपरीत है। हम अधिक समय धन कमाने पर लगाते हैं। अक्सर हमारे पास परिवार व समाज के लिए भी समय नहीं होता। नींद और व्यायाम शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी हैं, पर लोग इनके साथ भी समझौता करने लगे हैं। इसलिए हमें अपने आचरण में व्यवस्थित जीवनशैली को अपनाने पर विचार करने की जरूरत है। इसके लिए हमें प्राथमिकता तय कर उसके हिसाब से काम करना होगा, तभी हम स्वस्थ और दीर्घायु रह सकते हैं।
सबसे पहले स्वास्थ्य: स्वस्थ रहने के लिए 6-7 घंटे की पर्याप्त नींद जरूरी है। नींद पूरी नहीं होने पर शरीर व दिमाग पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। वहीं योग, प्राणायाम व व्यायाम शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। नियमित रूप से हरी सब्जियां, फल, दूध, दही युक्त भोजन निश्चित रूप से शरीर पर चमत्कारिक प्रभाव डालता है और कई प्रकार की बीमारियों से बचाता है।
परिवार व समाज को समय : खुद के लिए समय निकालने के बाद परिवार व समाज के लिए समय दें। लोगों के साथ भावनात्मक जुड़ाव हमें खुशियां व सकारात्मक ऊर्जा देता है। बड़े-बुजुर्गों के साथ समय बिताने पर उनके अनुभवों से भी सीखने का अवसर मिलेगा जो जीवन के कठिन दौर में आपकी राह आसान करेंगे।
कार्य और रोजगार:जीवनयापन के लिए धन आवश्यक है, पर सबसे जरूरी नहीं। अगर ऐसा होता तो दुनिया के सबसे अमीर ही सबसे ज्यादा सुखी होते। एक शोध के अनुसार, दुनिया की सबसे अमीर और सबसे गरीब एक प्रतिशत आबादी के बीच खुशी का अंतर एक प्रतिशत भी नहीं है। संभव हो तो वैसा काम चुनें, जिससे खुशी मिले। पसंद का काम करने पर हम अपना सर्वोत्तम योगदान देते हैं। इसके अलावा, रहने के लिए भीड़-भाड़ वाले शहरों के बजाए गांव और छोटे शहरों को प्राथमिकता दें। इसका लाभ यह होगा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण के साथ साफ पानी, ताजी हवा के साथ प्रकृति के करीब रहने का अवसर भी मिलेगा। बड़े शहरों में काम के लिए दूर जाना पड़ता है, जिसमें बहुत समय लगता है, लेकिन छोटे स्थानों पर यह समय भी बचेगा।
प्रकृति से जुड़ें: भारतीय संस्कृति में सारे पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं। हम नदी को मां का दर्जा देते हैं, सूर्य एवं वायु को देवता मानते हैं। हम वृक्षों को भी पूजते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम प्रकृति से दूर होते गए, बीमारियां घर करती गर्इं। आज बहुतायत आबादी बीमारियों से जूझ रही है और दवाओं पर आश्रित है।
डॉ. राजेन्द्र ऐरन
(लेखक आईएमए स्टैंडिंग कमेटी फॉर एथिक्स के राष्ट्रीय सह-अध्यक्ष हैं)
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