एस. वर्मा
समूची दुनिया एक साल से भी अधिक समय से कोरोना महामारी से जूझ रही है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर को पहले से अधिक खतरनाक बताया जा रहा है। भारत में भी रोजाना संक्रमण के डेढ़ लाख से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। कई राज्य इस महामारी की चपेट में हैं। वहीं, चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए गई विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीम ने पिछले दिनों रिपोर्ट जारी की, जिसमें वही बातें दोहराई गर्इं, जो चीन पहले से कहता आ रहा है। कुल मिलाकर डब्ल्यूएचओ की टीम ने अपनी रिपोर्ट में चीन को क्लीनचिट देने का प्रयास किया है। महत्वपूर्ण बात है कि 14 जनवरी से 10 फरवरी तक विशेषज्ञों की टीम ने चीन में वुहान सहित कई स्थानों की जांच की, पर कोरोना वायरस के स्रोत का पता नहीं लगा पाई। यही नहीं, इस रिपोर्ट पर वायरस की उत्पत्ति को लेकर कई अनसुलझे सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
चीन के 17 विशेषज्ञों व 17 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के समूह द्वारा तैयार डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट पर अमेरिका, जापान सहित दुनिया के 14 देशों ने सवाल खड़े किए
हैं। इन देशों का कहना है कि डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट ठीक से तैयार नहीं की है। इसमें वास्तविक आंकड़ों और नमूनों को शामिल नहीं किया गया है।
रिपोर्ट लिखने में चीन ने की मदद !
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस का कहना है कि ‘‘यह रिपोर्ट बहुत अच्छी शुरुआत है, लेकिन यह अंत नहीं है। हमें अभी वायरस के स्रोत की जानकारी नहीं मिली है। वुहान और अन्य जगहों के बाजारों में वायरस पहुंचाने में कृषि कार्य में उपयोग किए जाने वाले जानवरों ने क्या भूमिका निभाई होगी, इसका पता लगाने के लिए भी और अधिक अध्ययन करना होगा।’’ कहने को तो जांच दल ने चीन के अस्पतालों, बाजारों और प्रयोगशालाओं का दौरा कर डाटा एकत्र किया और दूसरे देशों के अध्ययनों की समीक्षा तथा दक्षिण चीन के बाजारों में आपूर्ति करने वाले खेतों से लिए गए नमूनों के विश्लेषण के बाद यह रिपोर्ट जारी की है। लेकिन जांच स्थानीय प्राधिकरण की कड़ी निगरानी एवं नियंत्रण में की गई, जिसका विरोध हुआ था। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट आने से पूर्व ही गत 28 मार्च को सीएनएन से साक्षात्कार में अमेरिकी विदेश मंत्री एन्थनी ब्लिंकन डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट की ‘कार्यप्रणाली और प्रक्रिया’ पर चिंता जता चुके हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कार्यप्रणाली के बारे में वास्तविक चिंताएं हैं और जो प्रक्रिया रिपोर्ट को तैयार करने में अपनाई हुई, उसमें यह तथ्य भी शामिल है कि बीजिंग सरकार ने इसे लिखने में मदद की है। अब देखना है कि उस रिपोर्ट से क्या निकलता है।’’ उनके साक्षात्कार के दो दिन बाद रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें वायरस की उत्पत्ति और फैलाव के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। अमेरिका शुरू से ही कहता आ रहा है कि इस वायरस की उत्पत्ति और प्रसार वुहान की प्रयोगशाला से हुआ है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो इस वायरस को ‘चायनीज वायरस’ नाम भी दे दिया था। लेकिन चीन बार-बार अमेरिकी आरोपों को खारिज करता रहा और डब्ल्यूएचओ ने मामले की लीपापोती में उसका भरपूर साथ दिया। यही नहीं, डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस को लेकर दुनिया को बार-बार बरगलाया। अगर वह दुनिया को पहले ही आगाह कर देता तो शायद यह समस्या इतना विकराल रूप धारण नहीं करती। वुहान में पहली बार नंवबर 2019 में कोरोना वायरस संक्रमण का मामला सामने आया, लेकिन चीन ने एक माह तक इस दबाए रखा। डब्ल्यूएचओ ने वही किया, जैसा चीन ने उससे कहा।
रिपोर्ट पर किसी को नहीं भरोसा
कोरोना वायरस को लेकर चीन और डब्ल्यूएचओ की भूमिका शुरू से ही संदिग्ध रही है, इसलिए कोई भी इस रिपोर्ट पर भरोसा नहीं कर पा रहा। कुल मिलाकर डब्ल्यूएचओ ने चीन को बचाने का ही प्रयास किया है। डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों की टीम ने वास्तविक आंकड़े एकत्र करने की बजाए जांच के नाम पर खानापूर्ति की और चीनी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के उपलब्ध कराए गए अधिकतर आंकड़ों और रिपोर्टों का ही अनुसरण किया। इसलिए वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए जांच अभियान मात्र दिखावा था। यह चीन और डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों के संयुक्त अध्ययन से अधिक कुछ नहीं है, क्योंकि रिपोर्ट में जो निष्कर्ष निकाले गए हैं, वे भी संदेह के घेरे में हैं।
निष्कर्ष में वायरस की उत्पत्ति और फैलाव को लेकर चार संभावनाएं जताई गई हैं। इसमें से एक संभावना यह है कि वायरस ‘फोजन फूड’ से फैला। हाल के समय में चीन के सरकारी मीडिया ने भी बार-बार इस बात पर जोर दिया है। चीनी मीडिया का इशारा विदेशों से आने वाले खाद्य पदार्थों की ओर था। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सार्स कोविड-2 वायरस के खाद्य संचरण के कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं। साथ ही, यह भी कहा गया है कि ‘कोल्ड चेन’ से वायरस के फैलने की संभावना बहुत कम है। यानी ‘फोजन फूड’ से वायरस के फैलाव की चीन की कहानी को लेकर विरोधाभास है। हालांकि रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने इस संभावना से इनकार भी नहीं किया है कि प्रयोगशाला में किसी दुर्घटना के कारण वायरस वहां के कर्मियों में फैला हो। लेकिन यह विश्लेषण नहीं किया गया कि किसी ने जान-बूझकर तो वायरस नहीं फैलाया। हैरत की बात है कि इस बाबत जांच दल ने किसी से पूछताछ भी नहीं की। यह जानने के लिए भी पूछताछ नहीं की गई कि क्या वायरस प्रयोगशाला में तैयार किया गया? दरअसल, विशेषज्ञ वायरस जीनोम के विश्लेषण के आधार पर इस संभावना को पहले ही खारिज कर चुके हैं। टेड्रोस अदनोम ने कहा, ‘‘वायरस के प्रयोगशाला से फैलाव को लेकर अधिक ठोस निष्कर्षों पर पहुंचने के लिए और अधिक आंकड़ों व अध्ययनों की जरूरत है। हालांकि टीम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रयोगशाला से ‘वायरस लीक’ होने की संभावना कम है।’’
ड्रैगन और डब्ल्यूएचओ की साठगांठ
डब्ल्यूएचओ जो आजकल चीन सरकार का प्रवक्ता बना दिखाई देता है, ऐसा हमेशा से नहीं था। 1948 में डब्ल्यूएचओ की स्थापना चेचक, पोलियो और तपेदिक जैसी महामारियों से निपटने के लिए हुई थी। अपने कार्यों की वजह से खासतौर से गरीब देशों की सहायता कर इसने प्रतिष्ठा पाई लेकिन 2006 में मार्गरेट चान के महानिदेशक बनने के बाद 2009 में स्वाइन फ्लू और 2014 में इबोला की रोकथाम में लापरवाही सहित बड़े आर्थिक घोटाले सामने आए। वे 2006-17 तक पद पर रहीं। इसके बाद टेड्रोस अदनोम ने कार्यभार संभाला और तभी से यह संगठन विवादों का केंद्र बन गया। टेड्रोस अफ्रीकी देश इथोपिया से हैं और डब्ल्यूएचओ का महानिदेशक बनने से पहले वहां के स्वास्थ्य मंत्री और विदेश मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं। इथोपिया के साथ चीन के घनिष्ठ संबंध हैं। यह देश अफ्रीका में चीनी औपनिवेशीकरण के प्रवेश द्वार की तरह है। ऐसे में टेड्रोस की नियुक्ति के लिए चीन की जोर-आजमाइश मायने रखती है। बदले में ट्रेड्रोस ने भी चीन को कभी निराश नहीं किया। शुरुआत में डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस से जुड़ी जानकारियां दबाने की पुरजोर कोशिश की। उस समय दुनियाभर में चीन की निंदा हो रही थी। चीन एक महीने से वायरस की उत्पत्ति, संक्रामकता, प्रसार और इससे होने वाली मौतों के आंकड़ों पर लगातार पर्दा डाल रहा था। लेकिन टेड्रोस ने बार-बार चीन की ‘पारदर्शिता’ की सराहना की। चीन के प्रति टेड्रोस के पक्षपातपूर्ण व्यवहार का यह एक छोटा-सा उदाहरण है।
चीनी शोधकर्ताओं के कोरोना वायरस की आनुवंशिक अनुक्रमण पर सूचना साझा करने के बाद 11 जनवरी, 2020 को टेड्रोस ने एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के निदेशक मा शियाओवेई को ‘भाई’ कहकर संबोधित किया। साथ ही, सूचना समय पर साझा करने के लिए उनकी प्रशंसा की, जबकि सच्चाई यह है कि चीनी शोधकर्ताओं ने इस सूचना को 10 दिनों तक दबा कर रखा। यदि यह सूचना पहले साझा की जाती तो दुनियाभर में लोगों की जान बचाई जा सकती थी। वास्तव में कोरोना वायरस के प्रसार के लिए जितना चीन जिम्मेदार है, उतना ही डब्ल्यूएचओ भी है। सूचनाओं के तीव्र प्रसार के दौर में एक ट्वीट कितना विनाशकारी साबित हो सकता है, इसका प्रमाण भी इसी संगठन ने प्रस्तुत किया है। इसने 14 जनवरी, 2020 को ट्वीट किया, ‘‘चीनी अधिकारियों द्वारा की गई प्रारंभिक जांच में नोवेल कोरोना वायरस के मानव से मानव संचरण का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है।’’ ठीक उसी दिन वुहान स्वास्थ्य आयोग ने एक सार्वजनिक बुलेटिन जारी किया था। इसमें उसने कहा था, ‘‘हमें मानव से मानव संचरण का प्रमाण नहीं मिला है।’’ हालांकि इसके साथ चीन सरकार ने आगाह भी किया था, जिसमें कहा गया था कि सीमित रूप से मानव से मानव संचरण की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन निरंतर संचरण का जोखिम कम है।’’ बस यही ‘चीनी खेल’ डब्ल्यूएचओ के सहयोग से जानलेवा बन गया।
चीन की खुली कलई
‘वुहान फाइल्स’ 117 पन्नों का एक गोपनीय दस्तावेज है, जो इस महामारी से जुड़ी चीन सरकार की कारगुजारियों पर प्रकाश डालता है। इसमें खुलासा किया गया है कि कैसे चीन ने सबूत नष्ट किए और फर्जी आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। चीन की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली से जुड़े एक व्हिस्ल ब्लोअर के लीक किए गए इस दस्तावेज के हवाले से सीएनएन ने बताया कि हुबेई प्रांत में कोरोना वायरस संक्रमण के जो मामले पहले दर्ज किए गए, उनमें इन्फ्लुएंजा जैसी महामारी सामान्य से करीब 20 गुना अधिक मौजूद थी। वुहान के मुकाबले युचांग और शियानिंग शहरों में इस वायरस का प्रकोप कहीं अधिक था। दस्तावेज के अनुसार, कोरोना वायरस और इन्फ्लुएंजा, दोनों आपस में जुड़े हुए थे। लेकिन चीन सरकार ने इन्फ्लुएंजा के परिमाण में तीव्र उछाल से जुड़ी जानकारी छिपाई। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात की पूरी संभावना है कि यह अपरिभाषित कोविड-19 मामलों की ही उछाल रही हो। लेकिन चीन के साथ डब्ल्यूएचओ भी चुप रहा और दुनिया को मौत के मुंह में जाने दिया। इसलिए डब्ल्यूएचओ से यह उम्मीद करना कि वह चीन की भूमिका की निष्पक्ष जांच करेगा, बेमानी है।
एक साल बाद भी खतरा
एक साल से भी अधिक समय से दुनिया इस महामारी से जूझ रही है। वैक्सीन भी बन गई हैं, लेकिन खतरा टलने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है। यह मानव निर्मित अब तक की सबसे विनाशकारी आपदा है। इस आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इसे जैविक हथियार के रूप में विकसित किया गया है। इसके लिए भले ही दुनियाभर में चीन की थू-थू हो रही है, लेकिन उसे इसकी परवाह नहीं है। वह और अधिक निर्लज्जता से आलोचनाओं के जवाब दे रहा है। पहले तो चीनी अधिकारियों ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति से किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया था, लेकिन अब वे दावा कर रहे हैं कि विदेशों से आने वाले फ्रोजन फूड से यह वायरस चीन में आया। साथ ही, चीन यह आरोप भी लगा रहा है कि अमेरिकी सेना वुहान में इस वायरस को लेकर आई। चीन के विशेषज्ञ और अधिकारी इस वायरस की उत्पत्ति के बारे में गढ़े गए झूठ को वैज्ञानिक शोध का आवरण देने की कोशिश कर रहे हैं। चीन सरकार संचालित चाइनीज एकेडमी आॅफ साइंस के कुछ वैज्ञानिकों ने एक शोध में दावा किया है कि वायरस का उद्गम वुहान में नहीं, बल्कि भारत में हुआ है। 22 पन्नों के इस शोधपत्र को सोशल साइंस रिसर्च नेटवर्क में देखा गया जो चिकित्सा विज्ञान की शोध पत्रिका ‘लांसेट’ को प्रकाशन हेतु भेजा गया था, लेकिन कुछ समय बाद ही इसे वहां से हटा दिया गया।
चीन सरकार और व्यक्तिगत रूप से शी जिनपिंग के लिए यह समय मुश्किलों से भरा हुआ है। ऐसे में वे और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी अपने दुष्प्रचार का एजेंडा आगे बढ़ाते दिख रहे हैं, जिसमें डब्ल्यूएचओ उनके सहयोगी की भूमिका निभा रहा है।
संभावित निष्कर्ष और विरोधाभास
चीन में मिले प्रमाणों के आधार पर डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे संभावनाओं पर आधारित हैं। इसके अनुसार-
इनसानों में फैलने वाले कई वायरस की उत्पत्ति जीव-जंतुओं से हुई है। वह जीव-जंतु चमगादड़ हो सकता है। यह भी संभव है कि इसका प्रसार पैंगोलिन या मिंक से हुआ हो।
संभवत: कोरोना वायरस से संक्रमित जीव-जंतुओं ने इनसानों से पहले किसी अन्य जानवर को संक्रमित किया हो, फिर उससे इनसान संक्रमित हुए हों। इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि चमगादड़ों में मिले सार्स-कोविड-2 से संबंधित कई वायरस में कुछ भिन्नताएं हैं, जो बताती हैं कि बीच में कोई ‘कड़ी गायब’ है। यह गायब कड़ी कोई जानवर भी हो सकता है, जो पहली बार किसी संक्रमित जानवर और इनसान, दोनों के संपर्क में आया हो। यह कोई जंगली जानवर भी हो सकता है, जिसे खेती के काम में लाया जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ‘‘यह संभावना ऐसी उलझन की ओर ले जाती है, जिसे सुलझाना मुश्किल है।’’
हो सकता है कि कोविड-19 वायरस खाद्य पदार्थ या जिसमें इन्हें रखा जाता है, उन पात्रों के जरिए इनसानों में पहुंचा हो। ये खाद्य पदार्थ ‘फ्रोजन फूड’ हो सकते हैं, जो अमूमन वुहान के बाजारों में बिकते हैं। एक ओर कहा गया है कि सार्स कोविड-2 वायरस फ्रोजन उत्पादों में बना रह सकता है। दूसरी ओर, विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि ‘फ्रोजन फूड’ में सार्स कोविड-2 वायरस के ठोस सबूत नहीं मिले हैं और ‘कोल्ड चेन’ से वायरस के फैलने की संभावना भी बहुत कम है।
प्रयोगशाला में किसी दुर्घटना के कारण वायरस वहां के कर्मियों में फैला हो। लेकिन रिपोर्ट यह भी कहती है कि प्रयोगशालाओं में ऐसी दुर्घटनाएं दुर्लभ होती हैं, लेकिन ऐसा हो सकता है। वायरस की वृद्धि, जानवरों में टीकाकरण या प्रयोगशाला के नमूनों पर काम के दौरान सीमित सुरक्षा या लापरवाही से प्रयोगशालाओं में व्यक्ति संक्रमित हो सकते हैं। साथ ही, यह भी कहा गया है कि दिसंबर 2019 से पहले किसी भी प्रयोगशाला में सार्स-कोविड-2 से संबंधित वायरस या संयोजन से सार्स-कोविड-2 जीनोम बनाने वाले जीनोम्स का रिकॉर्ड नहीं मिला है।
जांच दल की कोन सी बात सही!
वायरस की उत्पत्ति को लेकर डब्ल्यूएचओ की संभावनाओं से इतर कुछ ऐसे प्रश्न भी हैं, जिनके जवाब या तो खोजने का प्रयास नहीं किया गया या इन्हें अनसुलझा ही छोड़ दिया गया जैसे-
शुरुआत में चीन के वुहान शहर स्थित हुनान बाजार को कोरोना वायरस के फैलाव के स्रोत के रूप में देखा गया। लेकिन जांच दल का कहना है कि ‘इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है’ कि वायरस की उत्पत्ति में इस स्थान की कोई भूमिका है। यह भी कहा गया है कि शुरुआती मामले हुनान बाजार से जुड़े हैं, लेकिन अन्य बाजारों में भी ऐसे ही मामले आए हैं। कई मामलों में तो वायरस का संबंध बाजारों से है ही नहीं। अलबत्ता, जांच दल ने यह पुष्टि जरूर की है कि हुनान बाजार में बड़े पैमाने पर सार्स-कोविड-2 का संक्रमण था, लेकिन वे इसके स्रोत का पता नहीं लगाए पाए। इसके बाद यह निष्कर्ष निकाल लिया कि ‘‘हुनान का बाजार इस महामारी का असली स्रोत नहीं है।’’
रिपोर्ट के अनुसार, वुहान के बाजार में वायरस खेतों से पहुंचा होगा, जहां से उत्पादों की आपूर्ति बाजार में होती है। वहां चमगादड़ों में सार्स-कोविड-2 बड़ी मात्रा में पाया जाता है। इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि पहली बार जब कोविड-19 के संक्रमण का पता चला था तो हुनान बाजार में 20 देशों से पशु उत्पाद आ रहे थे। इनमें कुछ ऐसे भी थे, जिनमें 2019 के अंत में सार्स-कोविड-2 के लक्षण मिले थे। साथ ही, कहा गया है कि ‘इससे जुड़ी कोई कड़ीनहीं दिखी।’
रिपोर्ट के अनुसार, इनसानों में सार्स-कोविड-2 वायरस का पता लगने से पूर्व कई हफ्तों तक उसका प्रसार होता रहा। जांच दल ने वायरस के प्रारंभिक प्रसार का संकेत देने वाले कई देशों में प्रकाशित अध्ययनों की समीक्षा के आधार पर यह बात कही है। यह भी कहा है कि वुहान में संक्रमण का पहला मामला आने से पहले ही कई नमूने पॉजिटिव पाए गए थे। इससे पता चलता है कि वायरस दूसरे देशों में भी फैल रहा होगा।
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