प्रमोद जोशी
हर रोज कोरोना के नए संक्रमणों की बढ़ती संख्या के साथ चीनी वायरस की इस दूसरी लहर को लेकर कई प्रकार की आशंकाएं घर करती जा रही हैं। कोरोना संक्रमण के मामलों में हम एकबार फिर से अमेरिका और ब्राजील से आगे निकल गए हैं, जबकि हमने इन्हें पीछे छोड़ दिया था। चिंता इस बात की है कि हम आर्थिक-पुनर्निर्माण की जिस सीढ़ी पर तेजी से चढ़ने लगे हैं, उसमें व्यवधान न पड़े। बहुत सी ताकतों को हमारी प्रगति पसंद नहीं। पर सबसे बड़ी जरूरत नकारात्मकता की काली चादर को धोने की है।
सब मानते हैं कि संकट वास्तव में घना है, पर हमें उसका सामना करना है। अर्जुन का उद्घोष याद करें, ‘न दैन्यं न पलायनम्’। निराशा को अपने जीवन में प्रवेश न करने दें। आपकी निराशा से उन तमाम लोगों का धैर्य जवाब देने लगता है, जो घबराहट और ‘डिप्रेशन’ में हैं। यह भावनात्मक-संग्राम है। अपने मनोबल को बनाकर रखें और इस युद्ध में विजय सुनिश्चित करें।
पहला चरण, टीकाकरण
इस विजय का पहला चरण है टीकाकरण। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि राज्यों को कोरोना टेस्ट बढ़ाने की जरूरत है। अगले चार सप्ताह काफी अहम रहेंगे। इसलिए सबको पूरे अनुशासन के साथ दिशानिर्देशों को मानना जरूरी है। बेवजह यात्राओं से बचें और सांस्कृतिक, सामाजिक कार्यक्रमों पर भीड़ जमा न करें। कोविड-19 का सामना करने के लिए दो रास्ते खुले हुए हैं। एक रास्ता सावधानी का है। दूसरा रास्ता टीकाकरण का।
वैक्सीनेशन की वैश्विक गणना करने वाली एक वेबसाइट के अनुसार 13 अप्रैल तक 79 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोविड-19 के टीके लगाए जा चुके थे। इनमें 11 करोड़ से ज्यादा भारत में लगे हैं। भारत में हालांकि अमेरिका और चीन और ब्रिटेन के बाद टीकाकरण शुरू हुआ है, पर 10 करोड़ की संख्या पार करने में भारत ने सबसे कम 85 दिन का समय लगाया, जबकि अमेरिका में 89 और चीन में 102 दिन लगे।
भारत में इस समय हर रोज औसतन 38 लाख से ज्यादा टीके लग रहे हैं। यह औसत भी बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं। कुल वैक्सीनेशन के दृष्टिकोण से भारत का स्थान दुनिया में इस समय तीसरा है और जिस गति से टीकाकरण हो रहा है, उम्मीद है कि हम शेष विश्व को पीछे छोड़ देंगे।
स्पूतनिक-वी भी मैदान में
अभी तक देश में दो स्वदेशी वैक्सीनों के इस्तेमाल की अनुमति मिली थी, अब 12 अप्रैल को केंद्र्रीय औषधि प्राधिकरण की विशेषज्ञ समिति ने देश में कुछ शर्तों के साथ रूस की वैक्सीन ‘स्पूतनिक-वी’ के आपातकालीन इस्तेमाल को मंजूरी देने की सिफारिश की है। देश के औषधि महा-नियंत्रक इस सिफारिश पर अंतिम निर्णय करेंगे। उम्मीद है कि इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक यह निर्णय हो जाएगा। एक नई वैक्सीन के बढ़ जाने के बाद आशा है, देश में टीकाकरण को गति मिलेगी। कैडिला वैक्सीन भी भारत में विकसित हो रही है। उसे भी अनुमति कुछ समय में मिल जानी चाहिए।
भारत ने इस बीच एक बड़ा फैसला और किया है। अमेरिका, यूके, यूरोपीय संघ, जापान और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जिन वैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति दे दी है, उन्हें भारत में भी अब बगैर किसी ‘ट्रायल’ के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मिल जाएगी। यह काफी बड़ा फैसला है। भारत में वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की स्वीकृति के लिए, यहां कुछ लोगों पर ‘ट्रायल’ करना जरूरी है। रूसी कंपनी ने ‘ट्रायल’ का यह स्टेज पूरा किया है। अमेरिकी कम्पनी फायजर ने शुरू में यहां पर आवेदन किया था, लेकिन जब उन्हें यह बताया गया कि यहां उन्हें ट्रायल करना होगा तो उन्होंने अपना आवेदन वापस ले लिया। मॉडर्ना ने आवेदन ही नहीं किया। अब इन सभी वैक्सीन के इस्तेमाल का रास्ता खुल जाएगा।
भारत सबसे आगे
भारत में दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे तेज टीकाकरण हो रहा है। हालांकि शुरू में कुछ लोगों ने टीकाकरण का विरोध किया था। बाद में उन्हीं में से कुछ लोग अब यह मांग कर रहे हैं कि सबके लिए वैक्सीन खोल दी जानी चाहिए। बुनियादी तौर पर यह माँग निर्दोष और निर्मल लगती है, पर कैसे? जिन्हें व्यवस्था करनी है, उन्हें वैक्सीन की आपूर्ति और उसका वैश्विक वितरण, सब बातों को देखना है। शुरू में तो वैक्सीन के प्रति भी लोगों ने अरुचि दिखाई। जैसे ही संक्रमणों की संख्या बढ़ी है, वैक्सीन की मांग भी बढ़ी है।
थोड़ी देर के लिए मान लें कि हम सब लोगों के लिए वैक्सीन खोल दें, और करीब 100 करोड़ लोगों को वैक्सीन देनी है, तो इसका मतलब हुआ कि 200 करोड़ खुराक की जरूरत होगी। दुनिया की सारी वैक्सीन-आपूर्ति भी जोड़ लें, तो आज 200 करोड़ डोज नहीं मिलेंगी। जाहिर है हमें व्यावहारिकता को भी सामने रखना होगा। जैसे-जैसे आपूर्ति बढ़ेगी, वैसे-वैसे यह सबको मिलती जाएगी। पहला लक्ष्य 30 करोड़ का है। जनवरी में सरकार ने जो लक्ष्य घोषित किया था, वह पहले तीन करोड़ टीकों का था। वह लक्ष्य स्वास्थ्यकर्मियों के लिए था। उसे पार करके अब हम तीस करोड़ की दिशा में बढ़ रहे हैं।
अभी तक दुनिया में 12 वैक्सीन सामने आई हैं। इनमें तीन चीनी, एक रूसी, एक भारतीय और शेष पश्चिमी देशों में विकसित हैं। भारत में भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के अलावा आॅक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित कोवीशील्ड बनती है। भारत का सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता संस्था है। जनवरी में जब भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को विशेष परिस्थिति में आपातकालीन उपयोग की अनुमति दी गई, तब उसे लेकर कुछ विशेषज्ञों ने अपनी असहमति दर्ज कराई, पर दुनियाभर की वैक्सीन की रिपोर्टों को देखे, तो पाएंगे कि अमेरिका की फायजर बायोएनटेक और भारत बायोटेक दो वैक्सीन ऐसी हैं, जिनका दुष्प्रभाव लगभग शून्य है।
लापरवाही से बचें
अचानक जो दूसरी लहर आई है, उसके पीछे बड़ा कारण यह है कि हमने लापरवाही शुरू कर दी। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने गत 12 अप्रैल को इस सिलसिले में आयोजित एक वर्चुअल-सम्मेलन में कहा कि यह दूसरी लहर आने की वजह यह है कि हम कोविड-19 से जुड़े सेफ्टी-प्रोटोकॉल का पालन करने में कोताही बरतने लगे थे। आप बाजारों, रेस्त्राओं, होटलों, सिनेमाघरों, शादीघरों और दूसरी जगहों पर जाएं, तो इस बात को देख सकते हैं। यूरोप में भी यही हुआ था। जैसे ही संक्रमणों की संख्या कम हुई, लोग लापरवाह हो गए और वहां मामले बढ़ने लगे। नए वेरिएंट की मृत्युदर ज्यादा नहीं है। पिछले के मुकाबले यह वेरिएंट ज्यादा संक्रमित करता है लेकिन मृत्युदर उतनी ज्यादा नहीं है।
जनवरी फरवरी में केस कम हुए थे। फिर 16 जनवरी से वैक्सीन लगने लगी, तो लोगों ने लापरवाही शुरू कर दी। वायरस तो हमारे बीच ही घूम रहा था। उसे मौका मिल गया फैलने का। दूसरे इस बीच वायरस का रूप भी बदल गया है। यूके से आया वायरस पुराने रूप के मुकाबले 30-60 गुना ज्यादा तेजी से फैलता है। इसी वजह से तेजी से केस बढ़े हैं। जो डेटा पंजाब से आ रहा है, उसमें नजर आता है कि वहां के ज्यादातर पॉजिटिव केस यूके वेरिएंट के हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल में कहा, एक महीने पहले तक उत्तर प्रदेश में सिर्फ 1500 एक्टिव केस थे। लेकिन, इसके बाद लोगों ने मान लिया कि कोरोना का उपचार शुरू हो गया है, हर स्तर पर लापरवाही भी हुई। सभी प्रकार के कार्यक्रम शुरू हो गए, भीड़भाड़ शुरू हो गई, सोशल डिस्टेंसिंग खत्म होने लगी।
दहशत न फैलाएं
भले ही संक्रमण बढ़ा है, पर भारत की स्थिति यूरोप के बहुत से देशों से बेहतर है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा है, हमारी मृत्यु दर 1.27 प्रतिशत है, जो दुनिया में सबसे कम है। पर इसके कारण भी लापरवाही शुरू होने लगी। जिनके परिवार में किसी की मृत्यु हुई, वे भयभीत हैं, लेकिन, बाकी लोगों में लापरवाही शुरू हुई।
लोगों को लगा कि 98 प्रतिशत से ज्यादा लोग तो ठीक हो जाते हैं, खौफ खत्म हुआ, जिस वजह से मामले बढ़े। कोविड प्रोटोकॉल को लागू करने के लिए पहले जो कोशिश होती थीं, वे कम हुर्इं, सरकारों की तरफ से भी की जा रही सख्ती कम हुई, ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के नियमों में लोगों की लापरवाही, मास्क को लेकर लापरवाही तमाम वजहें हैं, जिनके कारण मामले बढ़े।
इस मौके पर सबसे ज्यादा जरूरत धैर्य और समझदारी की है। भय का माहौल न बनाएं। यह दूसरी लहर है, गलतियां करके इसे कहर न बनने दें। तमाम नकारात्मक बातों के बावजूद बहुत सी सकारात्मक बातें भी हमारे पक्ष में हैं। कोरोना से सबसे अच्छा बचाव है धैर्य और अनुशासन। चेहरे पर मास्क और हाथों को अच्छी तरह धोकर हम काफी हद तक बचाव कर सकते हैं। कोशिश करें कि छोटे केबिन वाली जिस लिफ्ट में भीड़ हो, उसमें प्रवेश न करें। ज्यादा ऊँची मंजिल तक नहीं जाना है, तो सीढ़ियों का इस्तेमाल करें।
पिछले साल हम असुरक्षित थे। बचाव का कोई उपकरण हमारे हाथों में नहीं था। अब हमारे पास टीके का सुरक्षा-तंत्र है। दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे तेज टीकाकरण भारत में चल रहा है, जो हमारा सबसे बड़ा संबल है। हमने हाल में ‘टीका-उत्सव’ मनाकर एक सकारात्मक संदेश दिया है। पर ‘टीका-उत्सव’ को लेकर भी राजनीति शुरू हो गई।
लॉकडाउन समाधान नहीं
सबसे बड़ी आशंका लॉकडाउन की है। कुछ राज्यों ने आंशिक लॉकडाउन शुरू कर भी दिया है। कई जगह रात का कर्फ्यू लागू है। महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, छत्तीसगढ़ सबसे ज्यादा परेशान हैं। दिल्ली और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने लॉकडाउन की चेतावनी भी दी है। अलबत्ता ज्यादातर मुख्यमंत्री मानते हैं कि लॉकडाउन समस्या का हल नहीं है, बल्कि हम जागरूक रहकर, मास्क पहन कर, सामाजिक दूरी का पालन करके इससे बच सकते हैं।
लॉकडाउन की बातें यदि केवल जनता को चेताने के लिए हैं, तब तो ठीक है, अन्यथा इसके निहितार्थ को समझे बगैर उस रास्ते पर अब नहीं जाना चाहिए। इसके गंभीर आर्थिक परिणामों को पिछले वर्ष हम भुगत चुके हैं। लॉकडाउन की धमकियों से प्रवासी मजदूरों के पलायन का खतरा पैदा हो गया है। दिल्ली के अंतर-राज्य बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर भीड़ जमा होने लगी है। महाराष्ट्र से पलायन शुरू हो गया है।
अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने हाल में पिछले साल के अनुभवों को साझा करते हुए लिखा है कि पिछले साल के लॉकडाउन ने आपूर्ति श्रृंखला को अस्त-व्यस्त कर दिया, उत्पादन कम कर दिया, बेरोजगारी बढ़ाई और करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छीन ली। सबसे ज्यादा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ा था। पिछले साल के विपरीत प्रभाव से प्रवासी मजदूर अभी उबरे भी नहीं हैं। पिछले साल जो मजदूर घरों में वापस लौटे थे, उनके पास भी रोजी का कोई जरिया नहीं था। पिछले साल की अंतिम दो तिहाइयों में आर्थिक गतिविधियों में जो तेजी आई है, उससे उनकी दशा में सुधार शुरू हुआ ही है।
रात्रि-कर्फ्यू की वजह
कुछ जगहों पर रात्रि-कर्फ्यू लगाया गया है। इसपर आपत्ति व्यक्त की जा रही है। आपत्ति व्यक्त करने वालों की बात एक हद तक मान भी लें, पर इसके पीछे की वजह को भी समझना चाहिए। कोई नहीं चाहता कि फिर से लॉकडाउन लागू हो, पर लोगों को चेताने की जरूरत भी है। रात्रि-कर्फ्यू एक प्रकार की चेतावनी है। केवल यह बताने के लिए निरर्थक बाहर निकलना और पाटीर्बाजी करना बंद करें। यह काम दिन के कर्फ्यू से भी सम्भव है, पर उससे आर्थिक गतिविधियों को काफी क्षति पहुंचेगी।
राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते मामलों को देखते हुए दिल्ली सरकार ने सख्त पाबंदियों की घोषणा की है। मेट्रो, डीटीसी एवं क्लस्टर बसें 50 प्रतिशत क्षमता के साथ संचालित करने की अनुमति प्रदान की गई है। इसके अलावा शादी समारोह में 50 मेहमान ही शामिल हो सकेंगे। सभी तरह की सामाजिक, राजनीतिक, खेल, मनोरंजन, सांस्कृतिक एवं धार्मिक सभाओं पर रोक लगा दी गई है। सरकारों को रोक लगाने का मौका ही क्यों मिले? सामाजिक-कार्यक्रमों का नियमन सामाजिक जिम्मेदारी है। हमें सामुदायिक स्तर पर पहल करके इनका विनियमन करना चाहिए।
टीका लगने पर भी कोरोना!
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 37 डॉक्टरों के संक्रमित होने की खबर है। ऐसा ही समाचार लखनऊ के मेडिकल कॉलेज से मिला है। सबको हल्के लक्षण हैं। अस्पताल प्रशासन की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक इन डॉक्टरों को कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक लग चुकी है।
विशेषज्ञों के अनुसार लोग वैक्सीन लगने के बावजूद कोरोना संक्रमित हो सकते हैं। कोरोना की सभी वैक्सीन आपातकालीन उपाय के रूप में लगाई जा रही हैं। जो वैक्सीन दस-दस साल के शोध के बाद लगाई जाती हैं, उनपर भी यह बात लागू होती है। कोई भी वैक्सीन शत-प्रतिशत प्रभावी नहीं होती। संक्रमित होना और संक्रमण से बीमार होने में भी अंतर है। वैक्सीन लगने के बाद संक्रमित हो सकते है, लेकिन बीमारी अपेक्षाकृत कम खतरनाक होगी। टीके की वजह से संक्रमित होने के बाद भी शरीर पर उतना नुकसान नहीं होगा, जितना बिना वैक्सीन के हो सकता है।
ध्यान रखें, कोरोना का टीका लग भी गया है तो पूरी सावधानी बरतनी है। टीका लगने का मतलब यह नहीं कि आपको कोरोना नहीं होगा या आप कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं करेंगे। मास्क पहना, हाथ धोते रहना, भीड़ में कम जाना है, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना काफी जरूरी है।
वैक्सीन को लेकर भ्रम
भारत में इस साल 16 जनवरी को जब टीकाकरण की शुरुआत हुई, तो बहुत से लोगों ने भ्रम खड़ा करने का प्रयास किया। बहुत से लोग वैक्सीन के लिए तैयार नहीं हुए। ऐसी खबरें अखबारों के पहले सफे पर छपीं। किसी को बुखार भी आया, तो उसकी खबर। इसके पीछे कल्याण की भावना कम, सनसनी की भावना ज्यादा थी। अब जब 11 करोड़ से ऊपर लोग टीका ले चुके हैं, तब ऐसे भ्रम पीछे चले गए हैं। अब टीकों की मांग बढ़ रही है। सरकार ने 45 से ऊपर के लोगों का टीकाकरण खोल दिया है। अब मांग है कि इससे कम उम्र के लोगों का रास्ता भी खुलना चाहिए। जरूर खुलना चाहिए, टीकों की आपूर्ति को भी देखना होगा।
इसे अफरा-तफरी कहें, हड़बड़ी या आपातकालीन गतिविधि, दुनिया में इतनी तेजी से किसी बीमारी के टीके की ईजाद न तो पहले कभी हुई, और न इतने बड़े स्तर पर टीकाकरण का अभियान चलाया गया। पिछले साल के शुरू में अमेरिका सरकार ने ‘आॅपरेशन वार्पस्पीड’ शुरू किया था, जिसका उद्देश्य था तेजी से वैक्सीन का विकास करना। वहापरमाणु बम विकसित करने के लिए चली मैनहटन परियोजना के बाद से इतना बड़ा कोई आॅपरेशन नहीं चला। यह भी तय था वैक्सीन की उपयोगिता साबित होते ही उसे आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति (ईयूए) मिलेगी और वह अनुमति मिली।
इस तेजी से उम्मीदें बढ़ीं, वहीं कुछ संदेह भी पैदा हुए। इस बात को समझ लिया जाना चाहिए कि सभी वैक्सीन आपातकालीन उपयोग के नाम पर परीक्षणों के लिए निर्धारित समय से पहले इस्तेमाल में लाई जा रही हैं। डब्लूएचओ ने 2019 में वैश्विक स्वास्थ्य के सामने खड़े दस बड़े खतरों में एक ‘एंटी वैक्सीन अभियान’ को माना था। इस संस्था की वैबसाइट में एक पेज खासतौर से वैक्सीन से जुड़ी गलतफहमियों को समर्पित है। पिछले साल मई में जब कोरोना का संक्रमण शुरू ही हुआ था विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ ने आगाह किया था कि अब वैक्सीन बनाने के प्रयास होंगे और उसका विरोध भी होगा। उससे सावधान रहना चाहिए।
और आशंकाएं
कोविड-19 का असर कब तक रहेगा, कहना मुश्किल है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगले कई वर्षों तक हमें मास्क पहनने, हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहना होगा। टीके के बाद भी रोग नहीं लगने की गारंटी नहीं होगी। यह बात पहले से प्रचलित दूसरे रोगों की वैक्सीनों पर भी लागू होती है। कोविड-19 के लिए तो ये पहली पीढ़ी के टीके हैं, जिन्हें ज्यादा से ज्यादा तीसरे चरण के परीक्षणों से प्राप्त आंशिक डेटा के आधार पर स्वीकृत किया गया है।
भारत में मांग की जा रही है कि खुले बाजार में वैक्सीन की बिक्री शुरू की जाए। पर इसके खतरे पर भी हमें विचार करना चाहिए। इलाज जोखिमों से भरा काम है। औषधियों का बाजार दुनिया का सबसे बड़ा ‘फ्रॉड बाजार’ है, जिसमें सालाना करीब 200 अरब डॉलर का कारोबार होता है। कोरोना की वैक्सीनों के वैक्सीन के विकास को लेकर दुनियाभर में अफरा-तफरी है। इसके कारण अंदेशा इस बात का है कि फर्जी वैक्सीनें कहीं बाजार में न आ जाएं।
इस समय सबसे बड़ी चुनौती है वैक्सीन की आपूर्ति श्रृंखला को दुरुस्त रखना। इस वक्त दुनिया में वैक्सीन सबसे कीमती वस्तु मानी जा रही है। इंटरपोल के शब्दों में ‘लिक्विड गोल्ड’। उसके साथ कई तरह की आपराधिक गतिविधियां संभव हैं। चोरी, नकल, साइबर हमले और न जाने क्या-क्या। इंटरपोल ने दिसंबर में आगाह किया था कि संगठित अपराधी वैक्सीन के धंधे में उतर सकते हैं। फिर वैक्सीन कंपनियों की प्रतिद्वंद्विता और प्रतियोगिता भी है।
आयुर्वेद में है प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का उपाय
आर.एन. पाठक
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए सुबह-शाम काढ़ा पीयें। इस काढ़े में दालचीनी, तेजपत्र, इलायची, गिलोय, पीपर, हरसिंगार की पत्ती, मुलेठी, अदरक मिलायें। यह प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाएगा।
इसके अलावा सुबह-शाम हल्दी मिला दूध पीयें। एक-एक चम्मच च्यवनप्राश खायें। नींबू-पानी लेते रहें। कपूर, लौंग और गुग्गल का धुआं कमरे में करने से वायरस से बचाव होता है। कोरोना में चूंकि फेफड़ों पर असर पड़ता है, इसलिए आयुर्वेद में कोरोना मरीज के फेफड़ों को बचाने की कोशिश होती है। इसके लिए एक दवा बहुत महत्वपूर्ण है-स्वर्ण भस्म-डेढ़ रत्ती, मृग श्रृंग भस्म- दो रत्ती, श्वास कास चिंतामणि-एक रत्ती, गिलोय सत-एक ग्राम, शंख भस्म-चार रत्ती, शुद्ध शेखर रस-दो रत्ती रत्ती- इन सभी को मिलाकर दो पुड़िया बनवा लें। एक-एक पुड़िया शहद के साथ सुबह-शाम लें। कोरोना मरीज को टमाटर का सूप, काढ़ा, नींबू डाल कर माड़, खिचड़ी, दलिया दी जानी चाहिए।
डेढ़-दो माह बाद दिखेगा वैक्सीन का असर
प्रो. संजय राय
सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसीन, एम्स
कोई वैक्सीन इस बात की गारंटी नहीं है कि जिस बीमारी से बचाव के लिए वह वैक्सीन लगी है, वह बीमारी नहीं होगी। कोरोना वायरस से बचाव के लिए बनी वैक्सीन भी इससे अलग नहीं है। वैक्सीन संक्रमण से नहीं बचाते बल्कि लक्षणों से बचाते हैं या संक्रमण को गंभीर होने से रोकते हैं। कोरोना के वैक्सीन लक्षण से बचाव के मामले में 95 प्रतिशत तक और कोरोना संक्रमण के गंभीर होने से रोकने में 100 प्रतिशत तक कामयाब हैं। वैक्सीन की क्लीनिकल टेस्टिंग लक्षणों पर होती है, इसलिए ये लक्षणों पर ही काम करते हैं।
वैक्सीन तत्काल असर नहीं करती है। कोरोना के जो वैक्सीन आयी हैं, वे दो खुराक वाली हैं। दोनों खुराक के बीच कम से कम चार हफ्ते का अंतर होता है। दूसरी खुराक के बाद असर होना शुरू होता है। तो वैक्सीन से कोरोना की मौजूदा लहर पर रोक नहीं लगेगी। ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगने पर डेढ़-दो माह बाद वैक्सीन के असर से इसमें गिरावट आनी प्रारंभ होगी। ऐसे करें बचाव
फिलहाल तो कोरोना पर नियंत्रण का यही उपाय है कि लोग मास्क लगाये रहें, दो गज की दूरी बनाये रखें, बार-बार हाथ धोते रहें, भीड़भाड़ से बचें। अगर सभी लोग नियमित मास्क पहनें तो लॉकडाउन जैसे उपायों की कोई आवश्यकता नहीं है। घबराहट और चिंता से शरीर के भीतर कुछ हार्मोन उत्पन्न होते हैं जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को घटाते हैं। इसलिए घबराहट और चिंता कोरोना के मामले में खतरनाक भूमिका निभाती है। इनसे बचें।
ऐसे होता है उपचार मौजूदा स्वास्थ्य विज्ञान में किसी वायरस को मारने की दवा अब तक नहीं बनी है। किसी व्यक्ति में खांसी को भी स्थायी रूप से खत्म नहीं किया जा सकता। कोरोना वायरस का असर ज्यादातर लोगों में मामूली होता है। लेकिन कुछ लोगों में यह बहुत गंभीर असर डालता है। किसी की खांसी बहुत बढ़ सकती है, किसी को बुखार बहुत तेज हो सकता है तो किसी को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। ऐसे में एलोपैथ में इन लक्षणों पर नियंत्रण की दवाएं दी जाती हैं ताकि मृत्यु को रोका जा सके।
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