कृषि विशेष : जैविक अपनाएं, मिट्टी की ताकत बढ़ाएं
May 16, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

कृषि विशेष : जैविक अपनाएं, मिट्टी की ताकत बढ़ाएं

by WEB DESK
Apr 16, 2021, 12:24 pm IST
in भारत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

मनोज सिंह

बात 1966-67 की है। किसानों को समझाया गया कि खेती करने का उनका पारंपरिक तरीका सही नहीं है। इसे सही करना है। इस तरीके को नाम दिया गया-हरित क्रांति। इसमें किसानों को समझाया गया कि वह गोबर की खाद की जगह रासायनिक खाद का इस्तेमाल करें। कीटनाशकों व खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल करें। निश्चित ही हरित क्रांति के बाद देश के अनाज भंडार भर गए और लोगों को पर्याप्त भोजन मिलना शुरू हो गया। बदले में किसानों को क्या मिला- भारी कर्ज। कमजोर होती जमीन। खेती पर खर्च। रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के अंधाधुंध, असंतुलित प्रयोग का दुष्प्रभाव मनुष्य और पशुओं के स्वास्थ्य पर नहीं, बल्कि पानी, भूमि एवं पर्यावरण पर भी स्पष्ट दिखने लगा है।

रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का भूमि में प्रयोग, भूमि को मृत माध्यम मान कर किया गया है। अत: भूमि के स्वास्थ्य की रक्षा करके खेती की ऐसी प्रणाली अपनानी होगी जिसमें भूमि को जीवित सजीव माध्यम माना जाए, क्योंकि मृदा में असंख्य जीव रहते हैं। ये जीव एक-दूसरे के पूरक तो होते ही हैं, साथ में पौधों की वृद्धि के लिए पोषक तत्व भी उपलब्ध करवाते हैं। अत: जैविक कृषि पद्धति में उपलब्ध अन्य कृषक हितैषी जीवों के मध्य सामंजस्य रख कर खेती करनी है। मिट्टी, पौधों में वृद्धि एवं विकास का माध्यम है। पौधों के समुचित विकास व फसल उत्पादन के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज, खाद एवं मिट्टी का उर्वर होना नितांत आवश्यक है। इसे देखते हुए एक बार फिर से जैविक खेती पर जोर दिया जा रहा है। इस दिशा में काफी प्रयास तो हो ही रहे हैं, उत्साहवर्द्धक नतीजे भी निकल रहे हैं। एक बड़ा तबका जैविक उत्पाद की मांग भी कर रहा है। आज हर कोई जहर मुक्त भोजन की मांग कर रहा है।

जैविक खेती के सिद्धांत
1. प्रकृति की धरोहर है।
2. प्रत्येक जीव के लिए मृदा ही स्रोत है।
3. हमें मृदा को पोषण देना है न कि पौधे को, जिसे उगाना चाहते हैं।
4. ऊर्जा प्राप्त करने वाली लागत में पूर्ण स्वतंत्रता।
5. पारिस्थितिकी का पुनरुद्धार।

ऐसे देना होगा बढ़ावा

मुख्य उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग खत्म कर जैविक उत्पाद के अधिक से अधिक उपयोग को बढ़ावा देना है। पर बढ़ती आबादी को देखते हुए तुरंत उत्पादन में कमी न हो इसलिए रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से कम कर जैविक उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित करना है। जैविक खेती का प्रारूप निम्नलिखित क्रियाओं से प्राप्त किया जा सकता है –

1. कार्बनिक खादों के उपयोग से
2. जीवाणु खादों का प्रयोग कर
3. फसल अवशेषों के उचित उपयोग से
4. जैविक तरीकों द्वारा कीट व रोग नियंत्रण कर
5. फसल चक्र में दलहन फसलों को अपना कर
6. मृदा संरक्षण की क्रियाएं अपना कर

फायदे हैं अनेक

1. भूमि की उर्वरा शक्ति में स्थायी वृद्धि होती है।
2. पर्यावरण के अनुकूल एवं प्रदूषण रहित फसल उत्पाद मिलते हैं।
3. सिंचाई में कम पानी की आवश्यकता पड़ती है।
4. पशुधन का महत्व बढ़ जाता है।
5. फसल अवशेषों को खपाने की समस्या नहीं होती।
6. अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार मिलती है।
7. कृषि मित्र जीव सुरक्षित रहते हैं एवं इनकी संख्या में वृद्धि होती है।
8. मृदा स्वास्थ्य और मानव स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
9. कम लागत में अच्छी फसल मिलती है।
10. किसानों को अधिक लाभ मिलता है।
 

हरियाणा में जींद के आसपास के 70 गांवों में जैविक तरीके से कपास उगाई जा रही है। कुरुक्षेत्र के गुरुकुल में जैविक खेती हो रही है। यहां तैयार फसलों की मांग इतनी है जो पूरी नहीं हो पा रही है। देश के दूसरे हिस्सों में भी किसान जैविक खेती की ओर उन्मुख हो रहे हैं। पांच साल से जैविक खेती कर रहे अंबाला जिले के समालखा गांव के किसान प्रमोद चौहान बताते हैं कि सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि जैविक खेती है क्या? यह क्यों जरूरी है, क्योंकि इसे समझे बिना हम तय नहीं कर सकते कि सही क्या है और गलत क्या है? चौहान बताते हैं कि जैविक खेती हमारी सनातनी परंपरा है। यह खेती का टिकाऊ मॉडल है। इसमें किसान पूरी तरह आत्मनिर्भर होता है, क्योंकि उसे पशुधन से गोबर मिल जाता है। इसका उपयोग वह खाद के तौर पर करता है। जिस जमीन में गोबर की खाद डाली जाती है, उसकी उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे इतनी बढ़ जाती है कि उसमें उगने वाली फसल पर कीटों और बीमारियों का असर ही नहीं होता। इसमें उगने वाली फसल की बीमारियों को सहने और कीटनाशकों के हमले को झेलने की क्षमता बहुत बढ़ जाती है। यह सब कुछ प्राकृतिक तरीके से होता है। इसी फार्मूले पर जींद के गांवों में कीटनाशक मुक्त कपास की खेती लंबे समय से हो रही है।

जैविक खेती है क्या?
जैविक खेती एक ऐसी पद्धति है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा खरपतवार नाशकों के स्थान पर जीवांश खाद, पोषक तत्वों (गोबर की खाद, हरित खाद, जीवाणु कल्चर, जैविक खाद आदि) जैव नाशियों (बायो-पेस्टीसाइड) व बायो एजेंट जैसे क्राइसोपा आदि का उपयोग किया जाता है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति लंबे समय तक बनी रहती है, पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता व कृषि लागत घटने व उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ने से किसान को अधिक लाभ भी मिलता है। जैविक खेती एक सदाबहार कृषि पद्धति है, जो पर्यावरण, जल व वायु की शुद्धता, भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाने वाली, जल धारण क्षमता बढ़ाने वाली, रसायनों के न्यूनतम उपयोग, कम कृषि लागत पर दीर्घकालीन स्थिर व अच्छी गुणवत्ता वाली फसलें देती है।

यह होती है रासायनिक खेती
हाइब्रिड यानी संकर बीजों के साथ रासायनिक खाद व कीटनाशक इस्तेमाल कर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, जिससे किसानों की आय भी बढ़ सकती है। इसमें दिक्कत यह है कि किसान पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो जाता है, क्योंकि पारंपरिक खेती में किसान गेहूं के साथ चना उगाता था। इससे होता यह था कि चना हवा से नाइट्रोजन लेकर जड़ों के माध्यम से जमीन में नाइट्रोजन छोड़ता था। इसका लाभ गेहूं को मिलता था। इस तरह से यूरिया की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। रासायनिक खेती में किसान चूंकि खरपतवार नाशकों का प्रयोग करता है, इसलिए चने की खेती नहीं कर पाता। इस तरह से किसानों को खेतों में यूरिया खाद डालनी पड़ती है। यूरिया का प्रयोग कितना बढ़ गया है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि हरित क्रांति के वक्त किसान प्रति एकड़ 10 से 15 किलोग्राम यूरिया प्रयोग करते थे, वह भी डर-डर कर।

कंपनियां किसानों को यूरिया डालने के लिए प्रेरित कर रही थीं। किसानों ने यूरिया का इस्तेमाल किया तो उन्हें सकारात्मक परिणाम भी मिले। किसानों ने सोचा नहीं था कि यूरिया खाद से फसल का उत्पादन बढ़ता है। लेकिन लंबे समय तक इसके प्रयोग के बाद जब फसलों का उत्पादन नहीं बढ़ा, तब किसानों को लगा कि जिस यूरिया को वे सोना समझ बैठे हैं, वह तो धीरे-धीरे उनके खेतों को बंजर कर रहा है। दरअसल, अधिक उत्पादन की उम्मीद में किसानों ने 1985 से 1995 के बीच प्रति एकड़ 125 किलोग्राम यूरिया प्रयोग कर उपज को 10-12 गुना बढ़ाया। फिर साल दर साल यूरिया की मात्रा बढ़ाते चले गए। नतीजा यह हुआ कि 1997 तक आते-आते एक एकड़ खेत में 175 किलो यूरिया डाला जाने लगा। बस यहीं से फसल उत्पादन कम होना शुरू हो गया।

आज पांच दशक के बाद जब हमारे यूरिया के अधिक इस्तेमाल के कारण खेती पर संकट के बादल मंडराने लगे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को (26 दिसंबर, 2017 को प्रसारित ‘मन की बात’ में) यूरिया का कम से कम उपयोग करने की अपील करनी पड़ी। इसके साथ ही, सरकार यूरिया पर सब्सिडी भी कम करती जा रही है। 2015-16 के बजट में यूरिया के लिए 72,438 करोड़ रुपये सब्सिडी का प्रावधान किया गया, जिसे 2016-17 में घटाकर 70,000 करोड़ रुपये कर दिया गया। इसके बाद से इसे लगातार कम किया जा रहा है। बीते 50 साल में हमने एक एकड़ खेत में करीब 6,610 किलो यूरिया प्रयोग कर लगभग 5,337 कुंतल उपज (गेहूं व चावल) हासिल की।

सोच बदलने का समय
अब वक्त आ गया है कि किसान जैविक खेती के बारे में सोचें। किसान प्रमोद चौहान कहते हैं कि उन्हें जैविक खेती करते हुए न तो बाजार की दिक्कत आई और न उत्पादन की। शुरू में उत्पादन कुछ कम हुआ, पर बाद में सब ठीक हो गया। वे कहते हैं कि किसान अपनी जमीन और अपनी स्थिति को ध्यान में रख कर जैविक खेती के मॉडल को अपना कर धीरे-धीरे आगे बढ़ें। जैसे ही कुछ जमीन जैविक पद्धति में आ जाए, बाकी जमीन पर यह प्रयोग करना चाहिए। इस तरह धीरे-धीरे जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है। जैविक खेती ही टिकाऊ खेती का मॉडल है।

उपभोक्ता भी जागरूक बनें
जरूरत है कि उपभोक्ता भी जागरूक बनें। उन्हें रासायनिक व जैविक कृषि उत्पाद में अंतर करना सीखना होगा। साथ ही, यह भी देखना होगा कि उनके लिए सही क्या है। उपभोक्ताओं को भी यह तय करना है कि वे जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ ज्यादा कीमत चुका सकते हैं या फिर रासायनिक खेती से पैदा हुई फसल से सेहत खराब कर इलाज पर पैसा खर्च करना चाहते हैं।

जैविक खेती की तुलना में रासायनिक खेती पर लगभग 60 प्रतिशत ज्यादा खर्च होता है। यह खर्च यूरिया पर ही नहीं, डीएपी खाद, हाइब्रिड बीज, कीटनाशक और खरपतवार नाशक पर भी होता है। किसान इस खर्च को उठाने के लिए आढ़ती या किसी अन्य माध्यम से कर्ज लेते हैं। फसल यदि अच्छी हुई तो सब ठीक, लेकिन फसल खराब होने पर किसान का आर्थिक ढांचा चरमरा जाता है। पंजाब में किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों में यह भी एक वजह मानी जा रही है। प्रमोद चौहान कहते हैं कि रासायनिक खेती की दिक्कत यह है कि खर्च बढ़ रहा है, लेकिन उत्पादन उतना नहीं बढ़ रहा है जो चिंता की बात है। इसलिए हमें यह भी सोचने पर विवश होना पड़ रहा है कि अब आगे क्या? जैविक या रासायनिक खेती। लेकिन अंबाला कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. देवेंद्र चहल कहते हैं कि जैविक खेती एक स्तर तक तो ठीक है। लेकिन हर किसान यदि जैविक खेती करने लगेगा तो अनाज उत्पादन का संकट भी आ सकता है, क्योंकि रासायनिक खेती से जैविक खेती पर आते ही फसल उत्पादन एक बार तो काफी कम हो जाता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि किसान जैविक खेती से रासायनिक खेती पर आने का जोखिम नहीं उठाने की स्थिति में हैं। क्योंकि इसमें खर्च बहुत अधिक है।

कर्ज लेकर खेती करने पर उतना मुनाफा नहीं मिलेगा। ऊपर से कर्ज चुकाना भी मुश्किल है। लेकिन प्रमोद चौहान इन आशंकाओं को खारिज करते हुए कहते हैं कि आज जैविक खेती समय की जरूरत है। अभी जमीन की उर्वरा शक्ति तेजी से कम हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भूमि स्वास्थ्य कार्ड का जो अभियान चलाया, इससे भी पता चल रहा है कि जमीन में पोषक तत्वों की भारी कमी हो रही है। दूसरी दिक्कत यह है कि रासायनिक खेती से उगने वाली फसल में कीटनाशकों का असर दिखने लगा है। हालांकि इस बारे में अभी कोई विस्तृत शोध तो नहीं हुआ है, पर हिसार विश्वविद्यालय ने मां के दूध पर एक शोध में पाया कि इसमें भी कीटनाशक पहुंच गए हैं। इससे साफ है कि फसलों पर रसायनों का दुष्प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, किसानों को यह भी नहीं पता कि रसायन की कितनी मात्रा फसल में डालनी है। कई बार देखने में आया है कि किसान बहुत ज्यादा कीटनाशक का प्रयोग करते हैं। पंजाब में कैंसर के बढ़ते मामलों के पीछे खेती में प्रयुक्त होने वाले रसायनों को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। पंजाब व हरियाणा में बीटी कॉटन की स्थिति क्या है? दावा किया गया था कि बीटी कॉटन से कपास की खेती करने पर कीट नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन यह दावा पिछले तीन सालों से गलत साबित हो रहा है। इस समय बीटी कॉटन पर भी कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन

तुर्किये को एक और झटका: स्वदेशी जागरण मंच ने आर्थिक, उड़ान प्रतिबंध और पर्यटन बहिष्कार का किया आह्वान

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग   (फाइल चित्र)

भारत के खिलाफ चीन की नई चाल! : अरुणाचल प्रदेश में बदले 27 जगहों के नाम, जानिए ड्रैगन की शरारत?

मिर्जापुर के किसान मुन्ना लाल मिश्रा का बेटा राजकुमार लंदन में बना मेयर, गांव में खुशी की लहर

पेट में बच्चा था… पर रहम नहीं आया! : दहेज में कार ना मिलने पर बेरहम हुआ नसीम, बेगम मरियम को मार-पीटकर दिया 3 तलाक

अमृतसर में नहीं थम रहा जहरीली शराब का कहर : दिन-प्रतिदिन बढ़ रही मृतकों की संख्या, अब तक 24 की मौत

उत्तराखंड : जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में भी डेमोग्राफी चेंज, लोगों ने मुखर होकर जताया विरोध

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन

तुर्किये को एक और झटका: स्वदेशी जागरण मंच ने आर्थिक, उड़ान प्रतिबंध और पर्यटन बहिष्कार का किया आह्वान

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग   (फाइल चित्र)

भारत के खिलाफ चीन की नई चाल! : अरुणाचल प्रदेश में बदले 27 जगहों के नाम, जानिए ड्रैगन की शरारत?

मिर्जापुर के किसान मुन्ना लाल मिश्रा का बेटा राजकुमार लंदन में बना मेयर, गांव में खुशी की लहर

पेट में बच्चा था… पर रहम नहीं आया! : दहेज में कार ना मिलने पर बेरहम हुआ नसीम, बेगम मरियम को मार-पीटकर दिया 3 तलाक

अमृतसर में नहीं थम रहा जहरीली शराब का कहर : दिन-प्रतिदिन बढ़ रही मृतकों की संख्या, अब तक 24 की मौत

उत्तराखंड : जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में भी डेमोग्राफी चेंज, लोगों ने मुखर होकर जताया विरोध

‘ऑपरेशन केलर’ बना आतंकियों का काल : पुलवामा-शोपियां में 6 खूंखार आतंकी ढेर, जानिए इनकी आतंक कुंडली

सेलेबी की सुरक्षा मंजूरी रद, भारत सरकार का बड़ा एक्शन, तुर्किये को एक और झटका

आतंकी आमिर नजीर वानी

आतंकी आमिर नजीर वानी की मां ने कहा था सरेंडर कर दो, लेकिन वह नहीं माना, Video Viral

Donald trump want to promote Christian nationalism

आखिरकार डोनाल्ड ट्रंप ने माना- ‘नहीं कराई भारत-पाक के बीच मध्यस्थता’

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies