वैसे तो पश्चिम बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनाव पर पूरे देश के साथ-साथ दुनिया भर की नजरें टिक गई हैं, परन्तु पंजाब में कांग्रेसी इन चुनावों पर दूरबीन से टकटकी लगाए हुए दिखाई दे रहे हैं और अरदास कर रहे हैं कि जैसे भी हो ममता दीदी का ‘खेला खत्म हो। ऐसा नहीं है कि यहां के कांग्रेसियों को दीदी से कोई सीधा बैर या वहां अनमने ढंग से ही सही परन्तु चुनाव लड़ रही कांग्रेस पार्टी से कोई लगाव है। बल्कि वे तो प्रशान्त किशोर के रूप में अपने राह के रोड़े को हटाना चाहते हैं। अगर दीदी हारती हैं तो यह हार उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशान्त किशोर की होगी जो पंजाब में मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर के दोबारा से रणनीतिकार नियुक्त हुए हैं और यहां के कांग्रेसियों पर धौंसपट्टी जमाते दिखाई दे रहे हैंं। पीके को पंजाब के कांग्रेसी पानी पी-पी कर कोस रहे हैं।
पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाने में जुटे प्रशांत किशोर की आगे की राह पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम पर टिक गई है। राज्य के कई मौजूदा विधायकों को अगले चुनाव में टिकट नहीं दिए जाने की सिफारिश के कारण इन दिनों कांग्रेस विधायकों की नाराजगी झेल रहे प्रशान्त किशोर ने ऐलान कर दिया है कि अगर पश्चिम बंगाल में भाजपा को 100 से अधिक सीटें मिलीं और ममता बनर्जी की सरकार दोबारा न बनी तो वह चुनावी रणनीतिकार का काम छोड़ देंगे और कोई अन्य काम करके अपना गुजर-बसर कर लेंगे।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर से प्रशांत किशोर को अपना प्रमुख राजनीतिक सलाहकार बनाए जाने के बाद जैसे ही उन्होंने सूबे के कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाकर उनसे फीडबैक लिया तो उसे लेकर कई विधायक नाराज हो गए थे। विधायकों का कहना था कि प्रशान्त की ओर से उन्हें बुलाकर पूछताछ या जानकारी हासिल करना ऐसा साबित करता है कि प्रशान्त अब कैप्टन अमरिन्दर सिंह और प्रदेश अध्यक्ष चौ. सुनील जाखड़ से भी बड़े हो गए हैं।
बीते दिनों जब यह बात सामने आई कि प्रशान्त किशोर ने करीब 30 विधायकों की सूची पार्टी आलाकमान को सौंपी है, जिनके बारे में सिफारिश की गई है कि इन विधायकों को 2022 में टिकट न दिया जाए। यह बात मीडिया में आते ही कांग्रेस विधायकों का गुस्सा भड़क गया। हालांकि उनमें से किसी ने भी सार्वजनिक तौर पर इसका विरोध नहीं किया, लेकिन पार्टी के भीतर यह मामला इतने बड़े विवाद का विषय बन गया कि खुद कैप्टन को प्रशान्त किशोर के बचाव में आगे आना पड़ा। उन्होंने कहा कि प्रशान्त केवल सलाहकार हैं और वे सलाह ही दे सकते हैं। किसी को टिकट देना या नहीं देना, यह प्रशान्त तय नहीं करेंगे, बल्कि कांग्रेस हाईकमान की ओर से तय विधि से ही उम्मीदवार तय किए जाएंगे।
प्रदेश के कांग्रेस विधायकों ने अब 2 मई का इंतजार करना शुरू कर दिया है, जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होंगे। विधायकों का कहना है कि दीदी के चुनाव नतीजे देख लें, उसके बाद प्रशान्त किशोर की रणनीति का इम्तिहान लिया जाएगा। अगर दीदी सरकार नहीं बना सकीं तो पंजाब में प्रशान्त के लिए काम कर पाना संभव नहीं रहेगा और कैप्टन के लिए भी अपने पार्टी सहयोगियों की बात माननी ही होगी।
दूसरी ओर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पंजाब राज्य उद्योग विकास निगम के अध्यक्ष कृष्ण कुमार बावा की नई किताब राजनीति में बवाल मचा सकती है। दो दिन पहले कैबिनेट मंत्री साधू सिंह धर्मसोत ने उनकी किताब, ‘संघर्ष के 45 साल’ का लोकार्पण किया है। किताब में वाबा ने कई रहस्यों से पर्दा उठाया है। बावा ने अपनी किताब में प्रशान्त किशोर के कामकाज से पर्दा हटाते हुए लिखा है कि कांग्रेस में शरीफ होना गुनाह है। कई ऐसे लोग पैसे के जोर पर टिकट ले जाते हैं जिनका कांग्रेस की विचारधारा से कोई सरोकार नहीं। टिकट वितरण के समय प्रवासी लोग, दूसरी पार्टियों से आए नेता, धनाढ्य, सेवामुक्त अफसरों के नाम आगे आ जाते हैं।
विधानसभा चुनाव 2017 का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा कि वह लुधियाना की आत्मनगर सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने उन्हें इस सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी करने को कहा था, लेकिन कई लोग प्रशान्त किशोर की फौज को खुश करने में लग गए। कैप्टन के आश्वासन के बावजूद मुझे टिकट नहीं मिला। लोहड़ी के अवसर पर रायकोट में आयोजित समारोह में कैप्टन ने मुझे चिन्ता न करने को कहा और लुधियाना पूर्वी हलके से चुनाव में उतारने की बात की, लेकिन वही हुआ जो पंजाब मामलों के प्रभारी और स्थानीय नेता चाहते थे। शरीफ होने के कारण मेरा टिकट कट गया।
बहरहाल, बंगाल के चुनाव परिणाम तय करेंगे कि पंजाब में पीके का भविष्य क्या होगा और फिलहाल पीके से डरे हुए कांग्रेसी विधायक दीदी की विदायी के लिए अरदास करते दिख रहे हैं।
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