जितेन्द्र कुमार त्रिपाठी
फ़्रांस के यूरोपीय एवं विदेश मामलों के मंत्री ज्यां इव ले ड्रिया 13 अप्रैल को तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर नई दिल्ली पहुंचे। उनके अति व्यस्त कार्यक्रम के अनुसार पहले दिन उन्होंने भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से औपचारिक प्रतिनिधिमंडल स्तर पर वार्ता की। फ़्रांस में पढ़े कुछ छात्रों को “ब्रांड एलुमनाई स्टूडेंट अम्बेस्डर्स ऑफ़ फ्रांस” नियुक्त किया और भारत—फ़्रांस के बीच सिनेमा के क्षेत्र में सहयोग पर आधारित एक कार्यक्रम में शिरकत की। उन्हें प्रधानमंत्री से भी मिलना था किन्तु यह मुलाक़ात नहीं हो पाई, क्योंकि पिछले माह की अमेरिकी रक्षा सचिव के साथ हुई मुलाक़ात के बाद प्रधानमंत्री कोरोना के चलते किसी भी विदेशी नेता से रूबरू नहीं हो रहे हैं। यात्रा के दूसरे दिन उन्होंने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ एक कार्यक्रम में और “रायसीना विमर्श” के छठें संस्करण में विश्व के कई नेताओं के साथ भाग लिया। 15 अप्रैल को अतिथि मंत्री बंगलुरू जाएंगे जहां वे बंगलुरू जीव विज्ञान केंद्र द्वारा आयोजित ” स्वास्थ्य एवं जीव विज्ञान के क्षेत्र में भारत फ्रांस के बीच सहयोग” पर चर्चा करेंगे और इसरो ( भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन) के ह्यूमन स्पेस फ्लाइट सेंटर का दौरा करेंगे तथा फ्रांसीसी तकनीकी समुदाय से भी मिलेंगे।
भारतीय और फ्रांसीसी विदेश मंत्रालयों द्वारा द्विपक्षीय वार्ता पर जारी की गयी विज्ञप्तियों के अनुसार दोनों विदेश मंत्रियों के बीच कई मुद्दों पर विस्तृत रूप से चर्चा हुई। द्विपक्षीय सहयोग को और प्रगाढ़ करने, रणनीतिक सहभागिता-विशेषकर रक्षा क्षेत्र में-बढ़ाने, अंतरिक्ष के मामलों में जानकारी का आदान प्रदान बढ़ने तथा जैतापुर स्थित परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए 6 और ई.पी. आर. (यूरोपियन प्रेशराइज़्ड रिएक्टर) भारत को देने की संभावनाओं पर भी चर्चा हुई। इसके अतिरिक्त दोनों देशों में व्यापार बढ़ने पर भी वार्ता हुई। भारत-फ़्रांस व्यापार स्थिर गति से आगे बढ़ रहा है और पिछले वर्ष यह आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद 10.75 अरब अमेरिकी डॉलर था। दोनों मंत्रियों में इस बात पर भी सहमति बनी कि भारत और योरोपीय संगठन के बीच प्रस्तावित व्यापार और निवेश समझौते की वार्ता में अधिक तेज़ी लाई जाए। विज्ञप्तियों के अनुसार दोनों मंत्रियों ने कई क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी विचार विमर्श किया। हिन्द प्रशांत सागर क्षेत्र में दोनों देशों द्वारा उठाए गए क़दमों, ख़ासकर 2018 में फ्रांस द्वारा उद्घोषित “हिन्द- प्रशांत रणनीति” पर विस्तार से चर्चा हुई और प्रधानमंत्री मोदी 2019 में निरूपित “हिन्द -प्रशांत समुद्र के लिए पहल” को फ़्रांस ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया। दोनों देशों ने विधि पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था लागू करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और योरोपीय संघ द्वारा हिन्द -प्रशांत क्षेत्र के लिए विकसित की जा रही रणनीति से सहमति व्यक्त की। वार्ता का एक महत्वपूर्ण बिंदु था त्रिपक्षीय सहयोग। क्वाड (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत तथा जापान का चतुष्टय) की ही तर्ज़ पर बने इस त्रिपक्षीय सहयोग समूह में भारत, फ़्रांस और ऑस्ट्रेलिया हैं तथा इसका उद्देश्य भी लगभग समान ही है।
यह प्रश्न स्वाभाविक है की आखिर इस यात्रा से हासिल क्या हो रहा ? दरअसल, इस यात्रा का महत्व इसके समय से ही पता लग जाता है। सारी दुनिया के लिए हिन्द-प्रशांत क्षेत्र नए आकर्षण और धींगा-मुश्ती का केंद्र बन चुका है। चीन के आर्थिक साम्राजयवाद और उसकी दादागीरी से निपटने के लिए पश्चिम ने कमर कस ली है। भारत चीन की बाढ़ के खिलाफ एक प्रभावी बांध के रूप में सक्षम है। यह लद्दाख के सीमा विवाद ने विश्व को बता दिया जब चीन की आशा के विपरीत भारतीय सेनाओं के सीमा पर डटे रहने से चीन को वापस लौटना पड़ा। यह मात्र संयोग नहीं है कि कोरोना महामारी की भयावहता के बावज़ूद पिछले 25 दिनों में एक के बाद एक, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के तीन स्थाई सदस्यों, अमेरिका, रूस और फ्रांस के मंत्री भारत यात्रा पर आए और चौथे स्थायी सदस्य ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का दौरा होते होते रह गया। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत और फ़्रांस के हित सामान हैं और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि फ़्रांस ने ही सबसे पहले हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के लिए रणनीति घोषित की थी। एक और दिलचस्प संयोग यह है कि ले ड्रिया का यह भारत दौरा उस समय हो रहा है जब पड़ोसी पकिस्तान में फ़्रांस से राजनयिक सम्बन्ध पूरी तरह तोड़ने की कट्टरपंथी मांग को लेकर हिंसा भड़क उठी है। फ़्रांस इस्लामिक कट्टरवाद के इतना खिलाफ है कि अभी 14 अप्रैल को ही वहां की संसद ने एक ऐसा विधेयक पारित कर दिया है जिसके तहत सरकार को कट्टरवाद से लड़ने के लिए नई शक्तियां प्रदान की गयी हैं।
यह भी पूछा जा सकता है कि इस दौरे से किस देश को क्या मिला ? जहां तक फ़्रांस का सवाल है, उसे इस दौरे से हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अपनी रणनीति का एक सशक्त समर्थक मिला है। साथ ही यह यात्रा रफाल सौदे के अतिरिक्त अन्य रक्षा क्षेत्रों में नए सहयोग की तमाम संभावनाएं खोल सकती है तथा अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग में गुणात्मक वृद्धि ला सकती है। भारत के लिए इस यात्रा का परिणाम है साझा हितों के विस्तार से संबंधों में और अधिक प्रगाढ़ता जो रणनीतिक दृष्टि से अहम साबित हो सकती है। साथ ही यदि हमें फ़्रांस से तकनीकी दृष्टि से उन्नत योरोपियन प्रेशराइज़्ड रिएक्टर मिल जाते हैं (जिसकी संभावनाएं इस वार्ता के दौरान तलाशी गईं) तो ऊर्जा पर हमारी आत्मनिर्भरता बढ़ जाएगी। यह अविस्मरणीय है कि फ़्रांस ने सदैव क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हमारा साथ दिया है, सुरक्षा परिषद् में सदा हमारे पक्ष में मतदान किया और स्थायी सदस्यता की हमारी दावेदारी को प्रबल समर्थन दिया है।
(लेखक पूर्व राजदूत हैं।)
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