वर्तमान में कृषि सुधार कानूनों को लेकर खूब हो-हल्ला मचा है। आन्दोलनजीवी किसानों को फुसला रहे हैं कि केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए ये कानून उनको बर्बाद कर देंगे। परन्तु धरातल पर वस्तुस्थिति कुछ और दिखाई दे रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के प्रयास खेतों व किसानों के जीवन में बदलाव लाते दिखाई रहे हैं। अनेक भूमिपुत्र अपनी मेहनत, लगन, नवाचार व सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर न केवल अपनी बल्कि पूरे देश की दशा व दिशा बदलने में जुटे हैं। इन किसानों से बात करें तो चाहे इनकी कहानी अलग-अलग हो, परन्तु सार एक ही है। इन्होंने ठान लिया है कि वे खेती में घाटे के कलंक को मिटा कर दम लेंगे। इन भूमिपुत्रों से जब इनके खेतों में जाकर बात की गई तो सुखद अनुभव हुआ और देश में खेती-किसानी को लेकर उभरते जोश की अनुभूति हुई। ऐसे ही कुछ बदलाव लाने में जुटे किसानों से हुई बातचीत गौर करने लायक है।
जलवायु अनुकूल खेती का लाभ
बिहार के चम्पारण इलाके में कृषि मॉडल विकास परियोजना के तहत जिले के चार गांवों के किसान वैज्ञानिक तरीके से प्रशिक्षण प्राप्त कर जलवायु अनुकूल खेती कर लाभ उठा रहे हैं। वे बाजार आधारित फसलों का अच्छा उत्पादन कर रहे हैं। राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन द्वारा प्रायोजित आजीविका उन्नयन के लिए जलवायु के अनुकूल कृषि मॉडल का विकास परियोजना में जिले के चार गावों खैरीमल जमुनिया, जसौलीपट्टी, चिंतामनपुर और चंद्राहिया का चयन विगत चार वर्ष पूर्व आइसीएआर के पूर्वी अनुसंधान परिसर द्वारा किया गया था। धीरे-धीरे किसानों को परियोजना के अंतर्गत समेकित कृषि प्रबंधन, वैज्ञानिक तरीके से खाद्यान्न उत्पादन, सब्जी उत्पादन, मुर्गी पालन, बकरी पालन तथा मत्स्य पालन इत्यादि का प्रशिक्षण दिया गया। आज ये किसान सफलतापूर्वक बाजार आधारित फसलों का अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।
तालाब बदल रहे ग्रामीणों का जीवन : दर्शन सिंह
भूमिगत जल की स्थिति के लिहाज से पंजाब के बेहद संवेदनशील फरीदकोट व मोगा जिलों में पांच साल में तस्वीर काफी बदल गई है। सरकार की जल संरक्षण योजना के तहत इस अवधि में जिले में 22 नए तालाब बनाए गए हैं, जिनके चारों ओर पक्के पैदलमार्ग हैं और किनारों पर पौधे लगाए गए हैं। इनमें वे तालाब शामिल हैं जो कम से कम ढाई एकड़ जमीन पर बने हैं। छह अन्य छोटे तालाब भी बनाए गए हैं। स्थानीय किसान दर्शन सिंह की मानें तो फरीदकोट के 150 तालाबों का जीर्णोद्धार भी किया गया है। इससे सैकड़ों लोगों को रोजगार तो मिला ही, तालाबों के किनारे पौधे लगाने से पर्यावरण भी सुधरा। तालाब के पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए भी किया जा रहा है। नलकूप पर बोझ कम होने से भूमिगत जलस्तर भी बढ़ा है। इन तालाबों में से पचास प्रतिशत से ज्यादा में साल भर पानी लबालब रहता है। गांव पक्का चार में भूमिगत जलस्तर पहले 40 फुट पर पहुंच गया था, जो अब 34 से 35 फुट तक आ गया है।
हटे बिचौलिये, किसान हुए मालामाल
एक ओर पंजाब के किसान कृषि सुधार कानूनों के विरोध में आन्दोलन कर रहे हैं, वहीं पंजाब के अमृतसर व तरनतारन जिलों में बहुत से किसान ऐसे भी हैं, जो इन सबसे हटकर खेती की तस्वीर बदलने में लगे हैं। ये किसान पंजाब में मण्डीकरण व्यवस्था से निकल कर अपनी अलग राह बनाने में जुटे हैं। हर जिले में केन्द्र सरकार की किसान उत्पादक संगठन योजना के जरिये किसानों के छोटे-छोटे समूह बन रहे हैं। केन्द्रीय कृषि विभाग की छह से अधिक एजेंसियां इन किसान समूहों का सहयोग कर रही हैं। जिले में 20 के करीब एफपीओ बन चुके हैं। इनमें से सात-आठ समूहों ने काम करना भी शुरू कर दिया है। इन एफपीओ के माध्यम से किसान अपने उत्पादों को खुली मण्डी में बेचकर जहां मुनाफा कमा रहे हैं, वहीं बिचौलियों की भूमिका अब खत्म हो गई है। गेहूं-धान के फसली चक्र से भी निकल किसान अब नकदी फसलों पर भी ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।
कोई कमीशन नहीं, किसान मुनाफे में
अमृतसर में चौगावां खण्ड के किसान नवदीप सिंह कहते हैं कि ‘हमने कृषि विभाग के अधिकारियों के सहयोग से एक एफपीओ गठित किया है। ब्लॉक के सब्जी व दालों के उत्पादक 125 किसान हमारे समूह के सदस्य हैं। हम स्थानीय स्तर पर सब्जियां, धान व दालें इकट्ठी करके बाजार में सीधे बिक्री के लिए लेकर जाते हैं। मुनाफा सभी सदस्य आपस में बांट लेते हैं। इससे सभी को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिल जाता है। इतना ही नहीं, उत्पादों की बिक्री भी आसानी से हो जाती है। हम थोक मूल्यों पर सदस्य किसानों से उनके उत्पाद लेकर खुदरा मूल्यों पर सीधे बेचते हैं’।
फार्मा कंपनियों को शहद की आपूर्ति
अजनाला खण्ड के किसान पंजाब सिंह ने बताया कि क्षेत्र के 280 किसानों ने मिलकर एफपीओ बनाया है। समूह में 50 से अधिक मधुमक्खी पालक किसान हैं। समूह के सदस्य अन्य किसानों से मधु इक_ट्ठा कर खुद पैकिंग करके सीधे मण्डी में बेच रहे हैं। 2007 में 35 किसानों ने समूह बनाकर मधुमक्खी पालन करके शहद बाजार में बेचने की शुरुआत की, जो सफल रही। आज बड़ी दवा कम्पनियां और शहद बेचने वाली कम्पनियों की ओर से उनके समूह को शहद के आर्डर सीधे मिल रहे हैं।
‘खेती’ से खेती सिखा रहे नीरज
जब 27 वर्षीय नीरज कुमार ने ‘एक्सेस एग्रीकल्चर यंग एंटरप्रेन्योर चैलेंज फंड 2019’ के बारे में सुना, तो वह यह जानकर उत्साहित थे कि विजेताओं को डिजिसोफ्ट पोर्टेबल प्रोजेक्टर मिलेगा। नीरज बिहार के दुरडीह गांव के एनजीओ ‘खेती’ के सह-संस्थापक हैं। जो चीज उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित करती थी, वह यह थी कि प्रोजेक्टर में 80 से अधिक अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय भाषाओं में कृषि विज्ञान और ग्रामीण उद्यमिता पर 200 से अधिक वीडियो की पूरी एग्रीकल्चर लाइब्रेरी थी। नीरज का संगठन किसानों और ग्रामीण समुदाय के लिए सामुदायिक विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर केंद्रित है। इसने पारिस्थितिक कृषि व्यवसाय को बढ़ावा देकर ग्रामीण बिहार में खेती को टिकाऊ और लाभदायक बनाने के लिए एक किसान केंद्रित हस्तक्षेप मॉडल पेश किया है। नीरज ने कहा कि कई किसान टिकाऊ खेती के तरीकों से अवगत नहीं हैं, जो उत्पादकता और लाभ में सुधार करते हैं, उस अवधि में पर्यावरणीय क्षति को कम करते हैं। इसलिए, वे प्राकृतिक खेती और जैविक खाद के प्रयोग पर बैठकों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों को और अधिक प्रासंगिक और सार्थक बनाने के लिए वे स्मार्ट प्रोजेक्टर और एक्सेस एग्रीकल्चर वीडियो रखने के इच्छुक थे। ये वीडियो ग्रामीण समुदायों की विभिन्न कृषि तकनीकों और तरीकों की खोज करने में मदद कर रहे हैं जो अधिक उत्पादक, टिकाऊ और पारिस्थितिक हैं, जिससे उनके कौशल में सुधार और कृषि उत्पादन में दक्षता तथा राजस्व में वृद्धि हुई है।
जैविक खेती को जीवन का मिशन बनाया : सुरजीत
पंजाब पुलिस में नौकरी के बाद मोहाली जिले के गांव तंगोरी के सुरजीत सिंह नेशनल आर्गेनिक फार्मिंग, गाजियाबाद से जुड़े और फिर जैविक खेती को अपना मिशन बनाया। उन्होंने ऐसे प्रयोग किए, जिनसे वह दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गए हैं। आज पर्यावरण प्रेमी किसान के रूप में उनकी पहचान है। किसान सुरजीत सिंह ने जैविक खेती के लिए मिट्टी के बर्तनों में लस्सी रखनी शुरू की। इसका प्रयोग उन्होंने खाद के रूप में किया, जिसके चौंकाने वाले नतीजे आए। इसके प्रयोग से फसलों को रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ी। यही नहीं, फसलों को कोई बीमारी भी नहीं लगी। बकौल सुरजीत सिंह, जैविक खेती के कारण उनकी फसल की कीमत बढ़ गई। फसल के दो से ढाई गुना भाव मिलने लगे। सुरजीत ने 5 एकड़ में गेहूं व 2.5 एकड़ में गन्ने की खेती की। गन्ने से सीधा गुड़ तैयार किया। उनका गुड़ खेत में ही 100 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से होगा लाभ : जसकरन/बलविंद्र
पंजाब के बठिंडा के दो प्रगतिशील किसानों, जसकरण सिंह और बलविंदर सिंह का कहना है कि नए कृषि सुधार कानून किसानों के लिए नए विकल्प और अवसर पैदा करेंगे। किसान जब नए कृषि कानूनों को अपनाएंगे तो उन्हें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे का पता चलेगा। फसल विविधीकरण से खाद और कीटनाशकों की खपत भी कम होगी। नकली बीजों की बिक्री पर पर सख्ती से लगाम लगेगी। 18 एकड़ रकबे में खेती करने वाले किसान जसकरण सिंह पहले धान, नरमा और गेहूं की खेती करते थे लेकिन पिछले कुछ समय से इन्होंने खेतों में किन्नू के बाग भी लगा लिए हैं। हाल में गेहूं की बिजाई की है। इस बार उन्होंने काले गेहूं की बिजाई की है। काले गेहूं का बीज करीब पांच हजार रुपये प्रति क्विंटल मिलता है। वह कहते हैैं कि फसल तैयार होने पर इसकी कीमत सामान्य गेहूं से तीन से चार गुना तक मिलती है। ई-कॉमर्स सहित कई बड़ी कंपनियां इसकी खरीद करती हैं। जसकरण ने कहा कि उनका बेटा एमबीए की पढ़ाई करने के बाद अब जैविक खेती कर रहा है। इससे आय अच्छी होती है।
मूल्य संवर्द्धन व प्रसंस्करण सफलता के मंत्र : कैलाश चौधरी
कैलाश चौधरी गांव कीरतपुरा, राजस्थान के एक प्रगतिशील किसान हैं। मूल्य संवर्द्धन और प्रसंस्करण ने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया है। अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी संस्थान, लुधियाना की मदद से अब वह न केवल अधिक कमाई कर रहे हैं बल्कि लगभग 70 लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार दे रहे हैं। जब कई साल पहले उन्होंने खेती शुरू की थी तो मुख्य चिंता थी कि किस प्रकार अपनी 20 एकड़ पैतृक जमीन के साथ जीविका चलाई जाए। इसी दौरान उन्हें जानकारी मिली कि स्थानीय कमीशन एजेंट उन्हें गेहूं की जो कीमत दे रहे थे, जयपुर में उससे दोगुनी कीमत पर वही गेहूं बेचा जा रहा था। अंतर सिर्फ इतना था कि इस गेहूं का श्रेणीकरण करते हुए पैकेजिंग कर दी जाती है। कैलाश ने भी ऐसा ही किया और अपने गेहूं की ज्यादा कीमत प्राप्त की। पैकेजिंग के महत्व को जानने के बाद उन्होंने एक छोटे से कमरे के अंदर एक लाख रुपये का निवेश करके खाद्य प्रसंस्करण इकाई की स्थापना की। इसमें लुधियाना के संस्थान की तरफ से उन्हें तकनीक और उससे संबंधित सारी जानकारियां उपलब्ध कराई गर्इं। इससे कैलाश को अपने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने में काफी मदद मिली। वर्तमान में वे आंवला जूस, आंवला पाउडर, एलोवेरा जूस, स्क्वैश, अचार, मिठाई आदि का उत्पादन करने के साथ अमेरिका, इंग्लैंड, यूएई और जापान को इनका निर्यात भी कर रहे हैं। उन्होंने जैविक खेती और खाद्य प्रसंस्करण के लिए 1500 किसानों का एक समूह भी बनाया है।
मशरुम की खेती में माहिर विवेक
देहरादून के विवेक उनियाल ने फौज से सेवा मुक्त होकर धरती मां की सेवा करने का फैसला किया। उनकी मुलाकात मशरूम फार्मिंग करने वाले एक किसान दीपक उपाध्याय से हुई, जो जैविक खेती भी करते हैं। दीपक जी से विवेक को मशरूम की किस्मों ओयस्टर, मिल्की और बटन के बारे में पता लगा। उनकी बहन कुसुम ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। दोनों बहन—भाई ने मशरूम की खेती करने के लिए सोलन, हिमाचल प्रदेश से ओइस्टर मशरूम के बीज खरीदा और एक कमरे में मशरूम उत्पादन शुरू किया। मशरूम फार्मिंग के साथ ही विवेक पिछले कई वर्षों से जैविक खेती कर रहे हैं। अब तक वे अनेक किसानों के साथ मिलकर लगभग 45 मशरूम प्लांट लगा चुके हैं।
केले की खेती ने घोली जीवन में मिठास : त्रिपाठी बन्धु
बहराइच, उ.प्र. के अमितेश और अरुणेश के पिता गांव के प्रधान थे और अपनी 65 बीघा जमीन में वे रवायती खेती के साथ साथ केले की खेती भी करते थे। अमितेश (बड़ा भाई) बीएससी एग्री. की पढ़ाई करके किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे और अरुणेश भी बीएससी बायो. की पढ़ाई के साथ एसएससी की तैयारी कर रहे थे। दोनों भाइयों के द्वारा की गई एक नई शुरुआत के कारण उनके खेत में तैयार हुई केले की फसल की गुणवत्ता काफी बढ़िय़ा थी, कई कंपनी वाले उनसे सीधा व्यापार करने के लिए संपर्क करने लगे। दोनों भाइयों ने अपनी मेहनत और सोच से अपने पिता के केले की खेती के कारोबार को बड़े स्तर पर ले जाने का सपना सच कर दिखाया है।
फूलों से महकी जिंदगी : जसवंत सिंह
जसवंत सिंह को फूलों की खेती करने के लिए प्रेरणा और दिलचस्पी उनके दादा जी से मिली। आज जसवंत सिंह ऐसे प्रगतिशील किसान हैं, जो जैविक तरीके से फूलों की खेती कर रहे हैं। 12वीं की पढ़ाई के बाद जसवंत सिंह ने पीएयू की तरफ से बागवानी का प्रशिक्षण लिया। 1998 में उन्होंने जमीन के छोटे से टुकड़े पर फूलों (गेंदा, गुलदाउदी, ग्लेडियोलस, गुलाब और स्थानीय गुलाब) की खेती की शुरुआत की। उन्होंने आय में 8000 से 9000 रुपए का मुनाफा कमाया। जसवंत सिंह की तरक्की देखकर उनके पिता और परिवार के सदस्य बहुत खुश हुए। इससे जसवंत सिंह जी की हिम्मत बढ़ी। धीरे-धीरे उन्होंने फूलों की खेती का विस्तार 2 एकड़ तक कर लिया और इस समय वे 3 एकड़ में फूलों की खेती कर रहे हैं।
शहद ने जीवन में घोली मिठास : मुकेश देवी
हरियाणा के जिला झज्जर के गांव मिल्कपुर में मधुमक्खीपालन के क्षेत्र में मुकेश देवी के सफल प्रयासों ने साबित कर दिया है कि यदि आपमें जुनून है तो कुछ भी असंभव नहीं है। 1999 में, मुकेश देवी के पति जगपाल फोगाट ने अपने रिश्तेदारों से प्रेरित होकर मधुमक्खीपालन की शुरुआत की। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान की गई ट्रेनिंग की सहायता से मुकेश देवी भी 2001 में अपने पति के उद्यम में शामिल हो गईं। जिस काम को उन्होंने कुछ मधुमक्खियों के साथ शुरू किया, धीरे धीरे वह काम समय के साथ बढ़ने लगा। आज वह दूसरे राज्यों, जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, राजस्थान और दिल्ली में भी विस्तृत हो गया है।
बीजों के पारखी हैं शमशेर
हरियाणा के प्रगतिशील किसान शमशेर सिंह संधु अन्य किसानों के विपरीत मुख्यत: बीज तैयार करते हैं जो उन्हें रासायनिक खेती तकनीकों की तुलना में अच्छा मुनाफा दे रहे हैं। कृषि के क्षेत्र में अपने पिता की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, शमशेर सिंह ने 1979 में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद खेती को अपनाने का फैसला किया। उन्होंने बीजों पर ध्यान दिया। बीज की तैयारी के लिए शमशेर पहले स्वयं यूनिवर्सिटी से बीज खरीदते, उनकी खेती करते, पकने पर इसकी कटाई करते और बाद में दूसरे किसानों को बेचने से पहले अर्धजैविक तरीके से इसका उपचार करते। इस व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं। उनका उद्यम इतना सफल रहा कि उन्हें 2015 और 2018 में इनोवेटिव फार्मर अवार्ड और फैलो फार्मर अवार्ड से सम्मानित किया गया है।
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