राकेश सैन
दिल्ली की सीमा पर चल रहे कथित किसान आन्दोलन के दौरान जहां किसानों व आढ़तियों के बीच के रिश्ते को नाखून और मांस का रिश्ता बता कर उसका महिमामण्डन किया जा रहा था और आढ़ती किसानों को पिज्जा खिला रहे थे। वास्तविकता के धरातल पर वही रिश्ता अब खरबूजा और छूरी का बनता दिखाई दे रहा है। भारत सरकार पंजाब के किसानों को गेहूं की फसल का भुगतान सीधे खाते में जमा करवा रही है तो कुछ आढ़ती किसानों को मजबूर कर रहे हैं कि वे उन्हें ब्लैंक चेक दें, ताकि उनकी दुकानदारी चलती रहे। कुछ स्थानों पर आढ़ती किसानों से गेहूं के साथ ही एडवांस चेक भी ले रहे हैं, जिसके जरिये वह किसानों के खाते में आई राशि का उपयोग कर सकें।
गेहूं क्रय केंद्रों पर किसानों के नाम से आढ़ती खरीद का खेल कर रहे हैं। जिसमें क्रय केंद्र प्रभारी व संबंधित अधिकारी भी कथित तौर पर सहयोग कर रहे हैं। क्रय केंद्रों पर गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा करने के लिए आढ़तियों के जरिए खरीद जारी है, जिसमें किसानों के साथ ही आढ़ती भी मुनाफा काट रहे हैं। पूरे जिले में प्राइवेट व्यापारी गेहूं की खरीद के बाद इसे क्रय केंद्रों तक किसान के ही नाम से पहुंचा रहे हैं। नकद भुगतान मिलने से किसानों को भी इस खेल से कोई ऐतराज नहीं है।
गेहूं खरीद में आढ़ती साहूकार की भूमिका में हैं। जहां किसान साल भर दवाई, शादी-ब्याह आदि के नाम पर एडवांस में पैसे लेते हैं, जबकि किसान हर हाल में फसल की बिक्री आढ़ती को ही करते हैं। भले ही किसान को एमएसपी के मुकाबले कुछ कम पैसे ही मिलें। एक किसान ने बताया कि आढ़ती और किसान के बीच अक्सर पारिवारिक संबंध हो जाते हैं, जिस कारण क्रय केंद्र तक कुछ गिने-चुने किसान ही पहुंच पा रहे हैं। जबकि क्रय केंद्र प्रभारी लक्ष्य पूरा करने को हर खरीद पर दांव लगा रहे हैं।
बठिण्डा के गांव बल्लुआना के किसान भरपूर सिंह ने बताया कि उसने दो साल पहले घरेलु काम के लिए दो लाख लिए। मूलधन जितना भुगतान करने के बावजूद उसका एक लाख रुपया बकाया है। अब आढ़ती उन्हें खाली चैक पर हस्ताक्षर करके देने को कह रहे हैं और कहा जा रहा है कि अगर ऐसा न किया गया तो उसकी फसल नहीं बेचने दी जाएगी।
केवल भरपूर सिंह ही नहीं पंजाब में बहुत से ऐसे किसान हैं, जिनके पास 4-5 एकड़ जमीन है और उन्होंने आढ़तियों से ऋण लिया हुआ है। ब्याज दर ब्याज लगने पर यह कर्ज मर्ज बना हुआ है। अब किसानों के खाते में सीधा भुगतान होने पर आढ़ती उन्हें चैक देने को कह रहे हैं। पहले यह राशि आढ़तियों के पास आती थी और वे मनमाफिक ब्याज वसूल कर आधी-अधूरी राशि किसानों को देते थे। अब खेल बदल चुका है तो आढ़तियों ने दूसरा पैंतरा अपनाना शुरू कर दिया है। दिल्ली की सीमा पर चल रहे कथित किसान आन्दोलन के दौरान आढ़तियों ने इस आन्दोलन को खूब हवा दी और वित्त पोषण भी किया ताकि उनकी लूटखसूट का सिलसिला आगे भी चलता रहे। इसके लिए किसानों को बहकाया गया कि सरकार उनकी जमीनें हड़पना चाहती है। असल में आढ़ती किसानों के नाम पर अपनी साहूकारी बचाने का प्रयास कर रहे थे जो अब धीरे-धीरे साबित होती जा रही है।
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