-ऋतुराज सिंह
बीजापुर में नक्सली हमले ने एक बार फिर देश का ध्यान खींचा है। नक्सलियों ने घात लगाकर सुरक्षाबलों पर हमला किया, जिसमें 22 जवान बलिदान हो गए, जबकि 30 जवान घायल हुए हैं। एक जवान नक्सलियों के कब्जे में हैं। बाद में 8 अप्रैल को नक्सलियों ने सीआरपीएफ के अपहृत कमांडो को सुरक्षित रिहा कर दिया। उन्हें 3 अप्रैल को अगवा किया गया था।
केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों ने 8 मार्च को आगाह किया था कि नक्सली एरिया कमांड माडवी हिडमा बीजापुर या सुकमा में हमला कर सकता है। बाद में खुफिया सूचना मिली कि हिडमा छत्तीसगढ़ में तर्रेम के आसपास देखा गया है। इसके बाद स्थानीय पुलिस, डीआरजी, सीआरपीएफ, कोबरा बटालियन के जवान संयुक्त अभियान पर निकले। उन्हें 25 लाख के इनामी नक्सली हिडमा को जिंदा या मुर्दा पकड़ना था। सूत्रों के मुताबिक, नक्सल रोधी अभियान में दो दिन की देरी हो गई थी, फिर भी सुरक्षाबल के जवान हिडमा को ढूंढने के लिए आगे बढ़े। अभियान पर निकली संयुक्त टीम ने तर्रेम के आसपास 15 किलोमीटर के दायरे में पांच शिविर लगाए थे। 3 अप्रैल को बीजापुर के झीरागांव में पुलिस और सुरक्षाबलों की नक्सलियों से मुठभेड़ हुई। जहां मुठभेड़ हुई, वह गांव बीजापुर और सुकमा जिले की सीमा पर स्थित है। हिडमा तो पकड़ में नहीं आया, बल्कि नक्सलियों ने जवानों को तीन तरफ से घेर लिया। यह घेरा अंग्रेजी के अक्षर ‘यू’ जैसा था। मुठभेड़ सुबह 11.30 पर शुरू हुई और शाम चार बजे तक चली। हालांकि नक्सलियों की संख्या 600 थी और जवान 2000। फिर भी 22 जवानों को जान से हाथ धोना पड़ा। बलिदान हुए जवानों में डीआरजी व सीआपीएफ के 8-8 तथा एसटीएफ के 6 जवान शामिल हैं। एक महिला नक्सली का शव भी बरामद हुआ है।
हिडमा को पुलिस पिछले कई वर्षों से तलाश रही है। हिडमा को दबोचने के लिए सभी को यही सही अवसर लगा। जवानों को इस अभियान के दौरान रास्ते में दो गांव मिले। इनमें एक टेकलागुडम पहाड़ी पर स्थित है, जबकि झीरागांव मैदान में स्थित है। दोनों ही गांव पूरी तरह खाली थे। खाली गांवों को देखकर जवान समझ गए कि वे देरी से पहुंचे हैं। जैसे ही टेकलागुडम पहाड़ी से जवान नीचे झीरागांव उतरे, वे नक्सलियों के षड्यंत्र में फंस गए। हालांकि इस मुठभेड़ पर कई सवाल उठ रहे हैं। आईजी बस्तर पी. सुंदरराज और बीजापुर के एसपी कमललोचन कश्यप ने मीडिया से बात करना बंद कर दिया है। मुठभेड़ के बाद छत्तीसगढ़ के डीजी (नक्सल अभियान) अशोक जुनेजा एक ही बात बोल रहे हैं कि हमने भी नक्सलियों को बड़ी क्षति पहुंचाई हैं। वहीं, सीआपीएफ के डीजी कुलदीप सिंह ने 25-30 नक्सलियों को मारने का दावा किया है, जबकि दो दिन पहले जारी नक्सलियों के प्रेस नोट में दावा किया गया कि मुठभेड़ में केवल 6 नक्सली मारे गए हैं, जिनके नाम सुरेश ग्राम मीनागट्टा, ओडी सन्नी ग्राम किस्टाराम, कोवासी बदरू ग्राम कटेकल्याण, पद्दम लखमा ग्राम चिकपाल और माडवी सुक्का ग्राम जीरागुड़ा बताए हैं।
सीआरपीएफ डीजी और डीजी नक्सल अभियान का कहना है कि नक्सली हथियार और जूते लूटकर ले गए हैं। नक्सली अपने साथ एके 47 रायफल, दो इंसास रायफल और एक एलएमजी लूटकर भागे हैं। नक्सलियों ने भी माना कि वे हथियार और कारतूस लूटकर ले गए हैं। साथ ही, 24 जवानों को मारने का दावा भी किया है। इस समय नक्सली अपना सालाना अभियान ‘टैक्टिकल काउंटर आॅफेंसिव कैंपेन’ चला रहे हैं। ये अभियान मार्च से जून तक चलाया जाना है, जिसमें बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों को निशाना बनाया जाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना को लेकर दुख व्यक्ति किया, जबकि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने असम दौरा बीच में ही छोड़कर दिल्ली लौटकर बैठक की। दूसरे ही दिन वे रायपुर, जगदलपुर और बीजापुर के बासागुड़ा शिविर तक पहुंच गए। वहीं, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपना असम दौरा पूरा करने के बाद छत्तीसगढ़ लौटे।
हिडमा बीजापुर के तर्रेम से दस किलोमीटर दूर पुवर्ती गांव का रहने वाला है। तर्रेम में एक शिविर स्थापित किया गया है और तर्रेम से सिलगेर तक अर्धसैनिक बल के जवानों ने सड़क भी बना दी है। इसी से हिडमा चिढ़ा हुआ था।
कौन है हिडमा?
माडवी हिडमा 90 के दशक में नक्सली संगठन से जुड़ा। अपनी गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे नक्सली नेताओं का चहेता बना और संगठन में आगे बढ़ता गया। माडवी हिडमा ऊर्फ संतोष ऊर्फ इंदमूल ऊर्फ पोड़ियाम भीमा उर्फ मनीष के नाम जगह और वारदात के हिसाब से भी बदले जाते हैं। हिडमा ही 2010 में ताड़मेटला में 76 जवानों की हत्या का मास्टर माइंड था। इस घटना के बाद नक्सली संगठन में हिडमा को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं की हत्या से लेकर बस्तर में हरेक छोड़ी-बड़ी घटनाओं की योजना हिडमा ने ही बनाई। हिडमा पर भाजपा विधायक भीमा मंडवी की हत्या का भी आरोप है।
400 नक्सलियों का सुरक्षा घेरा
हिडमा नक्सलियों की बटालियन नंबर एक का नेतृत्व करता है। वह चार स्तरीय सुरक्षा घेरे में चलता है और हर स्तर में करीब 100 नक्सली होते हैं। हर दल दूसरे दल से करीब एक किलोमीटर के फासले पर चलता है। इन सबके बीच में हिडमा चलता है। उसकी सुरक्षा में महिला नक्सलियों की टोली भी शामिल है।
पहली बार बस्तर को नक्सली कमांड
वैसे तो प्रत्येक कमांडर स्तर का नक्सली आंध्रप्रदेश या महाराष्ट्र से बनाया गया है। लेकिन हिडमा बस्तर का पहला ऐसा नक्सली है, जिसे एरिया कमांडर की बड़ी जिम्मेदारी मिली है। स्थानीय होने के साथ उसे कई बोलियां भी आती हैं। बताया जाता है कि वह हलबी और गोंडी का जानकार है, जो यहां के दुर्गम इलाकों में बोली जाती है। हिडमा के पहले जो कमांडर रहे हैं उसमें रमन्ना, गोपन्ना, गणेशन, कोसा जैसे बड़े नक्सली आंध्र प्रदेश से ही संबंध रखते रहे हैं। वे बस्तर में सिर्फ हमले और वसूली को अंजाम देने के लिए सक्रिय रहा करते थे। कई बड़े नक्सली मुठभेड़ में मारे गए तो कइयों ने समर्पण का रास्ता चुना।
ये हैं शीर्ष 10 वांछित नक्सली
ल्ल माडवी हिडमा , नक्सली बटालियन 1 का कमांडर
ल्ल कमलेष उर्फ लच्छू, नक्सली बटालियन का कमांडर
ल्ल साकेत नुरेटी , प्लाटून नं. 1 का कमांडर
ल्ल लल्लू डंडामी , प्लाटून नं. 1 का कमांडर
ल्ल मंगेषक गोंड , प्लाटून नं. 2 का कमांडर
ल्ल राम जी , प्लाटून नं. 2 का कमांडर
ल्ल सुखालाल , प्लाटून नं. 17 का कमांडर
ल्ल मलेष , प्लाटून नं. 18 का कमांडर
पहले भी हुए बड़े नक्सली हमले
ल्ल 23 मार्च 2021- नक्सलियों ने नारायणपुर में आईडी ब्लास्ट के जरिए किया हमला, धमाके में 5 जवान शहीद हुए थे।
ल्ल 22 मार्च 2020- सुकमा में कोराजडोंगरी के चिंतागुफा के पास नक्सली हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे। शहीद होने वाले जवानों में डीआरजी के 12 जवान और एसटीएफ 5 जवान थे।
ल्ल 9 अप्रैल 2019- लोकसभा चुनाव में नक्सलियों ने दंतेवाड़ा के श्यामगिरी में हमला किया था, जिसमें भीमा मंडावी और उनके चार सुरक्षाकर्मी भी मारे गए थे।
ल्ल 24 अप्रैल 2017- सुकमा जिले में सड़क निर्माण करने वालों अफसरों पर नक्सलियों ने हमला किया। दुर्गपाल में हुए इस हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान बलिदान और 7 घायल हुए थे। यह 2017 का सबसे बड़ा हमला था।
ल्ल 11 मार्च 2014- सुकमा जिले में झीरम घाटी के घने जंगलों में नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया। इसमें सीआरपीएफ के 11 जवान, 4 पुलिसकर्मी बलिदान हुए। 1 नागरिक की भी मौत हुई थी।
ल्ल 28 फरवरी 2014- दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में एक एसएचओ समेत 6 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे।
ल्ल 25 मई 2013- बस्तर के दरभा घाटी में हुए इस माओवादी हमले में आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा, कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 लोग मारे गए थे।
ल्ल 4 जून 2011- दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर बारूदी सुरंग रोधी वाहन उड़ा दिया था। इसमें 10 पुलिसकर्मी शहीद हो गए।
ल्ल 29 जून 2010- नारायणपुर जिले के धोड़ाई में सीआरपीएफ के जवानों पर माओवादियों ने हमला किया। पुलिस के 27 जवान मारे गए।
ल्ल 17 मई 2010- एक यात्री बस से दंतेवाड़ा से सुकमा जा रहे सुरक्षाबल के जवानों पर माओवादियों ने बारूदी सुरंग लगा कर हमला किया था, जिसमें 12 विशेष पुलिस अधिकारी समेत 36 लोग मारे गए थे।
ल्ल 8 मई 2010- छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों ने पुलिस की एक गाड़ी को उड़ा दिया था, जिसमें भारतीय अर्धसैनिक बल के 8 जवान शहीद हुए थे।
ल्ल 6 अप्रैल 2010- बस्तर के ताड़मेटला में सीआरपीएफ के जवान खोजी अभियान के लिए निकले थे, जहां नक्सलियों ने बारूदी सुरंग लगा कर 76 जवानों को मार डाला था।
ल्ल 12 जुलाई 2009- राजनांदगांव के मानपुर इलाके में माओवादियों के हमले की सूचना पा कर पहुंचे पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चैबे समेत 29 पुलिसकर्मियों पर माओवादियों ने हमला बोला और उनकी हत्या कर दी।
ल्ल 9 जुलाई 2007- एर्राबोर के उरपलमेटा में सीआरपीएफ और जिला पुलिस का बल माओवादियों की तलाश कर के वापस बेस कैंप लौट रहा था। इस दल पर माओवादियों ने हमला बोला, जिसमें 23 पुलिसकर्मी मारे गए।
ल्ल 15 मार्च 2007- बीजापुर के रानीबोदली में पुलिस के एक शिविर पर आधी रात को माओवादियों ने हमला किया और भारी गोलीबारी की। इसके बाद शिविर में आग लगा दिया। इस हमले में पुलिस के 55 जवान मारे गए।
ल्ल 16 जुलाई 2006- नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में एक राहत शिविर पर हमला किया था, जहां कई ग्रामीणों का अपहरण कर लिया गया था। इस हमले में 29 लोगों की जान गई थी।
ल्ल 28 फरवरी 2006- नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के एर्राबोर गांव में लैंडमाइन ब्लास्ट किया, जिसमें 25 जवानों की जान गई थी।
ल्ल 19 फरवरी 2006- किरंदुल के पास हिरोली मैग्जीन पर हमला, 19 टन बारूद लूटा, सीआईएसएफ के 8 जवान शहीद।
ल्ल 3 सितंबर 2005- बीजापुर के पदेड़ा-चेरपाल के पास हमले में 24 जवान शहीद।
ल्ल ं20 फरवरी 2000- नारायणपुर के बाकुलवाही में एएसपी समेत 23 जवान शहीद, नक्सलियों ने बारूदी विस्फोट का पुलिस वाहन को उड़ा दिया था।
20 साल में 3200 मुठभेड़
छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद से नक्सलियों के साथ मुठभेड़ की 3200 से अधिक घटनाएं हुई हैं। गृह विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2001 से मई 2019 तक नक्सली हिंसा में 1002 नक्सली और 1234 सुरक्षाबलों के जवान मारे गए। इसके अलावा 1782 आम नागरिक नक्सली हिंसा के शिकार हुए हैं।
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