…तुम किसी और को चाहोगे तो मुश्किल होगी!
रास बिहारी
कबूतर को बतौर रूपक इस्तेमाल करते हुए अपनों के पराया हो जाने का दर्द बयान करता एक बहुत ही मशहूर शेर है- पेड़ों को छोड़कर जो उड़े उनका जिक्र क्या/ पाले हुए भी गैरों की छत पर उतर गए। आजकल लोग यह शेर बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के संदर्भ में खूब गुनगुनाते हैं। उल्लेखनीय है कि मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए ममता ने क्या नहीं किया। कभी मस्जिद में नमाज पढ़ी, कभी किसी मजार पर चादर चढ़ाई, तो कभी जिहादियों के समर्थन में आवाज बुलंद की। यही नहीं, मुहर्रम के ताजियों को निकालने के लिए दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन पर रोक लगा दी। मस्जिदों के इमामों को खुश करने के लिए उनका वेतन बढ़ा दिया। इन सबके बावजूद मुसलमान मतदाता उनसे दूर हो रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम तो कुछ ऐसे ही संकेत देते हैं। मुस्लिम प्रभाव वाली विधानसभा की 125 सीटों में से 93 पर तृणमूल कांग्रेस और 23 पर भाजपा ने बढ़त बनाई थी। वहीं लोकसभा की कुल 42 में से 17 पर मुस्लिमों का असर है। राज्य में मुस्लिमों की आबादी लगभग 30 फीसदी है। पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य की 42 में से 18 सीटों पर कमल खिलने से ममता बनर्जी को जबरदस्त झटका लगा था। यह भी कहा जा रहा है कि चुनाव के समय हिंसा न होती तो भाजपा कम से कम पांच सीटें और जीतती।
लोकसभा चुनाव में भाजपा के मत प्रतिशत में जबदस्त उछाल के बाद सबसे अधिक परेशान ममता बनर्जी ही हुर्इं। उन्होंने गुस्से में कहा था,‘‘हां, मैं मुस्लिम तुष्टीकरण करती हूं। ऐसा 100 बार करूंगी, क्योंकि जो गाय दूध देती है उसकी दुलत्ती खाने से कोई नुकसान नहीं होता।’’ ममता को हैरानी इस बात की थी कि आठ मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों पर भाजपा जीत कैसे गई? उल्लेखनीय है कि राज्य में 17 लोकसभा सीटों पर 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। रायगंज, बहरमपुर, मुर्शिदाबाद, मालदा उत्तर, मालदा दक्षिण और जंगीपुर में 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। बशीरहाट, जॉयनगर, मथुरापुर, डायमंड हार्बर और जादवपुर में 31 से 40 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। कृष्णानगर, राणाघाट, बनगांव, बैरकपुर, दमदम और बारासात में 20 से 30 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। चुनावी नतीजों के अनुसार पश्चिम बंगाल के 52 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं ने तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में वोट डाले। 15 से 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता भी भाजपा के पक्ष में गए। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में दो मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए थे, हालांकि दोनों हार गए। भाजपा ने उत्तर बंगाल की आठ लोकसभा सीटों में से मालदा दक्षिण को छोड़कर शेष सभी सीटों (अलीपुरद्वार,रायगंज, कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, बालुरघाट, दार्जिलिंग और मालदा उत्तर) पर जीत हासिल की थी। ये सभी सीटें सीमा से लगी हैं। लगभग 53 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली सीट रायगंज में भाजपा की देवाश्री चौधरी ने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार कन्हैया लाल अग्रवाल को 60,000 से अधिक मतों से हराया था।
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2014 में जीते माकपा के मोहम्मद सलीम और पूर्व केंद्रीय मंत्री दीपा दासमुंशी की जमानत तक जब्त हो गई थी। कूचबिहार में 27 से 30 फीसदी तक मुस्लिम मतदाता हैं। इस सीट पर भाजपा के निशिथ प्रमाणिक ने 54,000 से अधिक मतों से जीत हासिल की थी। प्रमाणिक को मुस्लिम मतदाताओं ने भी समर्थन दिया। जलपाईगुड़ी में 17 से 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार जयंत रॉय ने तृणमूल उम्मीदवार को 1.84 लाख मतों से हराया था। बालुरघाट में 33 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। यह सीट भाजपा की सुकांत मजूमदार ने तृणमूल की अर्पिता घोष को 13,000 मतों से हराकर जीती। नेपाली और बंगाली समाज बहुल दार्जिलिंग सीट में लगभग 14.6 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। चोपड़ा और फांसीदेवा विधानसभा क्षेत्रों की सीमा बांग्लादेश से सटी हुई है। इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार राजू विष्ट ने तृणमूल प्रत्याशी अमर सिंह राई को 4,00,000 से अधिक मतों से हराया था। 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं वाली मालदा उत्तर सीट से भाजपा के खगेन मूर्मू जीते थे। खगेन ने तृणमूल की मौसम बेनजीर नूर को 84,000 से अधिक मतों से हराया था। मौसम 2014 में कांग्रेस के टिकट पर जीती थीं। इसी तरह मालदा दक्षिण में मुस्लिम मतदाता 50 फीसदी से ज्यादा हैं। भाजपा उम्मीदवार श्रीरुपा मित्रा चौधरी कांग्रेस के अबु हासेम खान चौधरी से केवल 8,000 मतों से हारी थीं। इस सीट पर माकपा ने कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन दिया था। दक्षिण बंगाल में नदिया जिले की राणाघाट लोकसभा सीट पर भाजपा के जगन्नाथ सरकार ने तृणमूल उम्मीदवार रूपाली विश्वास को 2,33,00 के भारी अंतर से हराया था। यह सीट भी बांग्लादेश सीमा से सटी है।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल से संसद पहुंचने वाले मुस्लिम सांसदों की संख्या कम हो गई है। 2014 में बंगाल से आठ मुस्लिम सांसद चुने गए थे। तृणमूल कांग्रेस के पांच मुस्लिम सांसदों में तीन महिलाएं हैं। उलूबेड़िया से सजदा परवीन, बशीरहाट से नुसरत जहां और आरामबाग से अपरूपा पोद्दार उर्फ आफरीन हैं। सजदा परवीन पूर्व केंद्रीय मंत्री सुल्तान अहमद की पत्नी हैं और उनके निधन के बाद उपचुनाव जीत कर लोकसभा में पहुंची थीं। आफरीन तो महज 1,142 मतों से भाजपा उम्मीदवार को हराकर किसी तरह इस बार अपनी सीट बचाने में कामयाब रही हैं। तृणमूल के बाकी दो मुस्लिम सांसद मुर्शिदाबाद जिले से चुने गए हैं। खलीलुर रहमान जंगीपुर व अबू ताहेर खान मुर्शिदाबाद से लोकसभा में पहुंचे हैं। हां, कांग्रेस के इकलौते मुस्लिम सांसद अबु हासिम खान चौधरी मालदा दक्षिण की अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे।
2018 के पंचायत चुनाव में भाजपा ने 850 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, वहीं 2013 के पंचायत चुनाव में 100 से कम मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था। 2008 और 2003 के पंचायत चुनाव में भी भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 100 नहीं हो पाई थी। 2016 के राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा ने छह सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे।
इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अभी तक 39 महिलाओं को टिकट दिया है, इनमें तीन मुस्लिम महिलाएं हैं। भाजपा ने माफूजा खातून को मुर्शिदाबाद जिले की सागरदिघी सीट, मसुहरा खातून को रानीनगर सीट और रूबिया खातून को डोमकल सीट से उम्मीदवार घोषित किया है। माफूजा खातून प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष हैं। माफूजा पिछले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी की उम्मीदवार थीं। माफूजा वाम मोर्चे के टिकट पर दो बार विधायक रह चुकी हैं। 2001 और 2006 के विधानसभा चुनाव में वे कुमारगंज सीट से जीती थीं। भाजपा ने डोमकल विधानसभा सीट पर 38 वर्षीया रूबिया खातून को मैदान में उतारा है। इस सीट पर 83 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। भाजपा ने मुर्शिदाबाद के भगवानगोला से मोहम्मद महबूब आलम, मालदा के चांचल से मोहम्मद मतीउर रहमान, उत्तर दिनाजपुर के चोपड़ा से मोहम्मद शाहीन अख्तर और ग्वालपोखर से गुलाम सरवर को उम्मीदवार घोषित किया है। तृणमूल कांग्रेस के 291 सीटों पर घोषित उम्मीदवारों में से 42 मुस्लिम हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने सभी 294 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 57 उम्मीदवार मुस्लिम थे।
2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। उस समय तृणमूल कांग्रेस ने 184 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। इनमें 38 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया था। आइएसएफ ने अपनी सेकुलर छवि दर्शाने के लिए 10 हिंदू चेहरों को टिकट दिया है। उसन रायपुर से मिलन मांडी, महिषादल से विक्रम चट्टोपाध्याय, चंद्रकोना से गौरांग दास, मंदिरबाजार से डॉ. संचय सरकार, हरिपाल से सिमल सोरेन, राणाघाट उत्तर-पूर्व से दिनेश चंद्र विश्वास, कृष्णगंज से अनूप मंडल, चोपरा से कांचन मैत्र, संदेशखाली से वरुण महतो और अशोकनगर से तापस चक्रवर्ती को उम्मीदवार बनाया है। पश्चिम बंगाल के मुसलमानों का एक तबका मानता है कि ममता बनर्जी राजनीतिक फायदे के लिए उनका इस्तेमाल करती रही हैं। उधर ममता भाजपा को मुस्लिमों का दुश्मन बताती रही हैं।
इससे मुस्लिमों का ही नुकसान हुआ है। मुस्लिम मतदाताओं की चुप्पी ने ममता की चिंता को बढ़ा दिया है। यदि मुस्लिम मतदाता वाममोर्चा-कांग्रेस और आइएसएफ गठबंधन, तृणमूल कांग्रेस तथा ओवैसी की पार्टी के बीच बंटते हैं, तो भाजपा को इसका सीधा लाभ मिल सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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