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प्रधानमंत्री की यात्रा का दोनों देशों के रिश्तों से जितना वास्ता है, उतना ही पश्चिम बंगाल में चल रहे विधानसभा चुनाव से भी है। भारतीय पर्ववेक्षक उनके ओराकंडी के मतुआ मंदिर जाने का राजनीतिक मतलब भी निकाल रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून के कारण भाजपा को इस समुदाय का समर्थन हासिल हुआ है। 2019 के चुनाव में मोदी ने सीएए में संशोधन का वादा किया था, जिसे उन्होंने पूरा किया। इसका लाभ उन्हें 2019 के चुनाव में मिला। इस चुनाव में मतुआ समुदाय के मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उत्तर बंगाल की 51 और नदिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना की 70 से ज्यादा सीटों पर करीब 3.75 करोड़ लोग (करीब डेढ़ करोड़ मतदाता) मतुआ समुदाय से जुड़े हैं। ये लोग पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से भागकर यहां आए हैं। विभाजन के बाद से मतुआ समुदाय को नागरिकता की समस्या से जूझना पड़ रहा है। पहले ये लोग माकपा को समर्थन देते थे, फिर इन्होंने ममता का साथ दिया।
बीते कुछ वर्षों में भाजपा ने देश के दूसरे हिस्सों में दलित समुदाय के बीच जगह बनाई है। बंगाल में मतुआ समुदाय के साथ जुड़ना शेष देश की राजनीति में भी फलदायी होगा। बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनाव में मतुआ बहुल 21 सीटों में से 18 पर तृणमूल कांग्रेस को जीत मिली थी, लेकिन 2019 में सीएए-एनआरसी लागू करने की घोषणा के बाद तस्वीर बदल गई और भाजपा को लोकसभा चुनाव में 21 में से 9 सीटों पर बढ़त हासिल हुआ। मतुआ समाज खुलकर सीएए-एनआरसी लागू करने की वकालत कर चुका है। भाजपा को विश्वास है कि मतुआ, हिंदू, और बंगाली संस्कृति के जरिए उसे लाभ मिलेगा।
2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में कुल आबादी का 23.5 प्रतिशत दलित और 5.8 प्रतिशत वनवासी हैं। बंगाल के दलित एवं वनवासी मतुआ धर्म महासंघ के स्वाभाविक समर्थक माने जाते हैं। उत्तर 24 परगना जिले में बनगांव स्थित मतुआ धर्म महासंघ के मुख्यालय में मतुआ माता वीणापाणि देवी के साथ गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक की थी। वीणापाणि देवी के दबाव में ही ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली सरकार को मतुआ कल्याण परिषद का गठन करना पड़ा। वीणापाणि देवी का गत वर्ष निधन हो गया।
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