अरुण कुमार सिंह
गत दिनों झांसी में हुई एक छोटी-सी घटना को लेकर ऐसे हल्ला मचाया गया कि वह खबर कुछ ही देर में दुनियाभर में फैल गई। उल्लेखनीय है कि 19 मार्च को उत्कल एक्सप्रेस से नई दिल्ली से राउरकेला जा रहीं दो ईसाई नन लिबिया थोमस और हेमलता और दो अन्य लड़कियों (प्रीति तिग्गा और श्वेता एक्का) को रेलवे पुलिस ने झांसी रेलवे स्टेशन पर उतार लिया था। उत्कल एक्सप्रेस से ही यात्रा करने वाले अजय कुमार तिवारी नामक विद्यार्थी परिषद के एक कार्यकर्ता को इन दोनों नन के बारे में शक हुआ था कि वे उन लड़कियों को कन्वर्जन कराने के लिए ले जा रही हैं। उसकी शिकायत पर ही रेलवे पुलिस ने उन चारों से पूछताछ की। हालांकि पूछताछ में ऐसी कोई बात नहीं निकली। इसके बाद उन चारों को दूसरी गाड़ी से राउरकेला भेज दिया गया। इस दौरान उन चारों में से किसी पर किसी ने भी हमला नहीं किया, किसी तरह की बदतमीजी भी नहीं हुई, लेकिन सेुकलर मीडिया ने यह खबर फैला दी, ‘‘झांसी में दो नन पर हमला किया गया।’’ यही नहीं, ‘‘यह भी लिखा गया कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने ननों के साथ गुंडागर्दी की।’’ जबकि शिकायतकर्ता ने पुलिस को दिए आवेदनपत्र में अपने को विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता बताया है। इसके बावजूद उस कार्यकर्ता को बजरंग दल का ‘गुंडा’ बताया गया। इसी से पता चलता है कि मीडिया के एक वर्ग ने इस घटना को कौन-सा रंग देने की भरपूर कोशिश की।
इस झूठी खबर को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने तुरंत लपक लिया और उसके बहाने उन्होंने राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ पर एक बार फिर से निशाना साधा। राहुल ने एक ट्वीट में लिखा, ‘‘उत्तर प्रदेश में केरल की नन पर हुआ हमला संघ परिवार के विषैले दुष्प्रचार का परिणाम है, जो अल्पसंख्यकों को कुचलने के लिए एक पंथ से दूसरे पंथ को लड़ाता है।’’ ये वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने दिल्ली में अपने घर से 15-20 किलोमीटर की दूरी पर मुसलमानों के हाथों मारे गए अंकित सक्सेना, राहुल राजपूत, रिंकू शर्मा, ध्रुव त्यागी, डॉ. पंकज नारंग जैसे हिंदुओं के लिए कभी भी एक शब्द नहीं कहा। लेकिन एक छोटी-सी घटना पर फैलाई गई अफवाह को इतना सच मान लिया कि चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के बावजूद उन्होंने इस पर ट्वीट किया। राहुल की इस घटिया राजनीति को ‘पूअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट’ के अध्यक्ष आर.एल. फ्रांसिस ठीक नहीं मानते। वे कहते हैं, ‘‘राहुल गांधी झांसी की घटना (जो नहीं होनी चाहिए) को लेकर समाज को आत्मनिरीक्षण का उपदेश दे रहे हैं। उन्हें पहले चर्च को आत्मनिरीक्षण करने की सलाह देनी चाहिए। चर्च पर ऐसी शंकाएं क्यों हो रही हैं, इन पर उसे विचार करना चाहिए।’’ वे यह भी कहते हैं, ‘‘आज से करीब 15 साल पहले कहीं भी कोई नन मिलती थी तो लोग उसे श्रद्धाभाव से देखते थे। लेकिन अब कहीं भी कोई नन या ईसाई वेशभूषा में कोई दिखता है तो यही बात लोगों के जेहन में आती है कि कहीं यह किसी का कन्वर्जन तो नहीं करा रहा है। उत्कल एक्सप्रेस में भी यही हुआ। चर्च को विचार करना चाहिए कि उसकी यह छवि क्यों बनी है?’’
देखा जाए तो फ्रांसिस ने चर्च के बारे में बहुत बड़ी बात कही है। हिंदू जागरण मंच, झांसी जिले के महामंत्री अचल अरजरिया भी फ्रांसिस की बात का समर्थन करते हैं। वे कहते हैं, ‘‘रेल गाड़ियों में जगह-जगह लिखा हुआ है कि यदि गाड़ी में आपको कोई संदिग्ध वस्तु या व्यक्ति दिखे तो 181 पर कॉल कर सूचित करें। यही नहीं, इस तरह की उद्घोषणाएं रेलवे स्टेशनों पर भी की जाती हैं। यात्रा के दौरान जब विद्यार्थी परिषद के उस कार्यकर्ता को ननों पर शक हुआ तो उसने पुलिस को बताया। शिकायत मिलने पर पुलिस पूछताछ तो करती ही है, और उसने यही किया। पुलिस ने ही उन सबको गाड़ी से उतारा और पूछताछ की। इसमें शिकायतकर्ता की कोई भूमिका नहीं है। इसके बावजूद उसके खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव केरल से लेकर कश्मीर तक बनाया जा रहा है।’’ अचल यह भी मानते हैं, ‘‘दरअसल, कुछ लोग इस घटना के बहाने उन लोगों का मुंह बंद करना चाहते हैं, जो कन्वर्जन या ऐसी घटनाओं के विरुद्ध समाज का जागरण कर रहे हैं।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘इस मामले को केरल विधानसभा चुनाव को देखते हुए बड़ा बनाया जा रहा है। वे सोचते हैं कि संघ विचार परिवार के कार्यकर्ताओं को जबर्दस्ती किसी मामले में फंसाने से उन्हें ईसाइयों का वोट मिल जाएगा।’’
उनकी इस बात में दम है। इस मामले को लेकर ‘केरला कैथोलिक बिशप्स काउंसिल’ ने जैसे ही नाराजगी जताई, तो केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन हरकत में आ गए। उन्होंने आनन-फानन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक पत्र भेज दिया। इसमें उन्होंने लिखा, ‘‘केंद्र सरकार की ओर से ऐसी घटनाओं की कड़ी निंदा करने की जरूरत है। ऐसे सभी लोगों और समूहों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, जो संविधान की ओर से दी गई व्यक्तिगत अधिकारों की स्वतंत्रता को बाधित करते हैं।’’ ये वही विजयन हैं, जिनके राज में केरल में आए दिन राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्या होती है। उस समय वे गृह मंत्रालय को न तो पत्र लिखते हैं और न ही किसी पर कार्रवाई करने की मांग करते हैं। विजयन के पत्र को राजनीति करार देते हुए अभाविप की राष्टÑीय महामंत्री निधि त्रिपाठी कहती हैं, ‘‘महिला सुरक्षा के लिए चिंतित अभाविप के कार्यकर्ताओं ने वैधानिक मार्ग का प्रयोग कर पुलिस को सूचित किया। इस पर केरल के मुख्यमंत्री द्वारा केरल में मिशनरियों द्वारा किए जा रहे शोषण की घटनाओं को दबाकर झांसी की घटना पर पत्र लिखना केरल के चुनावों को देखते हुए राजनीति से प्रेरित लगता है।’’ वहीं विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के प्रवक्ता विनोद बंसल कहते हैं, ‘‘जो नेता शक के आधार पर हुई पूछताछ को लेकर इतना शोर मचा रहे हैं, वे किसी हिंदू की हत्या पर भी कुछ क्यों नहीं बोलते।’’
अब बात गृह मंत्रालय की। पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह ने केरल में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि वे इस मामले को देखेंगे। इसके बाद गृह मंत्रालय ने रेलवे पुलिस से इस बारे में जानकारी भी मांगी है। कहा जा रहा है कि रेलवे पुलिस ने गृह मंत्रालय को अपनी रपट भेज भी दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय क्या कदम उठाता है।
आज से करीब 15 साल पहले कहीं भी कोई नन मिलती थी तो लोग उसे श्रद्धाभाव से देखते थे। लेकिन अब कहीं भी कोई नन या ईसाई वेशभूषा में कोई दिखता है तो लोगों के जेहन में यही बात आती है कि कहीं यह किसी का कन्वर्जन तो नहीं करा रहा है। उत्कल एक्सप्रेस में भी यही हुआ। चर्च को विचार करना चाहिए कि उसकी यह छवि क्यों बनी है? — आर.एल. फ्रांसिस, अध्यक्ष, पूअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट
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