पश्चिम बंगाल : विकास की आस
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होम भारत पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल : विकास की आस

by WEB DESK
Apr 2, 2021, 03:55 pm IST
in पश्चिम बंगाल
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मनोज वर्मा

दीदी ( ममता बनर्जी ) कहती हैं कि ‘खेला होबे’ तो पश्चिम बंगाल की जनता कह रही है कि ‘खेला खत्म होबे, विकास होबे। विकास आरंभ होबे’। जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए पश्चिम बंगाल का विकास होबे का नारा बुलंद किया, लाखों लोगों की भीड़ ने प्रधानमंत्री के सुर में सुर मिलाते हुए विकास होबे का समर्थन किया। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री जब मंच से केंद्र सरकार की पश्चिम बंगाल को दी गई विकास योजनाओं का जिक्र करते हैं तो लोग उनकी बात को गौर से सुनते हैं और जब वे आंकड़ों और तर्कों के साथ यह बताते हैं कि कैसे वामदलों के शासन में पश्चिम बंगाल विकास के मामले में पिछड़ा और ममता के राज में कैसे नौजवानों का राज्य से पलायन हुआ तो इसे सुन कर लोग गंभीर हो उठते हैं।

तथ्यों से तिलमिलाई तृणमूल
भाजपा का ‘विकास होबे’ नारा लोगों को इसलिए भी लुभा रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी सहित भाजपा के दूसरे नेता केंद्र सरकार के पश्चिम बंगाल के लिए किए गए विकास के कार्यों का ब्यौरा जनता के सामने रखते हुए यह भी बता रहे हैं कि ममता बनर्जी सरकार ने राज्य के लिए केंद्र सरकार की कौन-कौन सी विकास योजनाओं में अड़ंगा लगाया। लिहाजा आज बंगाल का गरीब पूछ रहा है कि उसे आयुष्मान भारत योजना के तहत मुफ्त इलाज की सुविधा का लाभ क्यों नहीं मिला? तो बंगाल का किसान पूछ रहा है कि उसे किसान सम्मान निधि के हजारों रुपये क्यों नहीं मिले। यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि केंद्र की इन दोनों योजनाओं को लेकर ममता सरकार ने उदासीन रवैया अपनाया। उसने केद्र की योजनाओं को लेकर इसलिए भी राजनीति की ताकि राज्य की जनता को मोदी सरकार की विकास और कल्याणकारी योजनाओं का पता न चले। सवाल उठता है क्या ममता सरकार की इस प्रकार की नकारात्मक राजनीति से पश्चिम बंगाल का भला हुआ?

असल में तृणमूल कांग्रेस और वामदल—कांग्रेस गठबंधन की तुलना में भाजपा के वादे और दावे इसलिए भी लोगों को लुभा रहे हैं क्योंकि पश्चिम बंगाल की जनता तृणमूल कांग्रेस, वामदल और कांग्रेस तीनों का ही शासन देख चुकी है जबकि भाजपा पहली बार राज्य में विकल्प के रूप में उभरी है। इतना ही नहीं, पश्चिम बंगाल सहित पूर्वी भारत के विकास को लेकर केंद्र की मोदी सरकार अपने कार्यों का दृष्टिकोण राज्य की जनता के सामने लगातार रखती रही है। मसलन, प्रधानमंत्री कहते हैं कि ‘बंगाल पहले जितना आगे था, अगर बीते दशकों में उसकी वह गति और बढ़ी होती, तो आज कहां से कहां पहुंच गया होता।’

पिछड़ता गया बंगाल
‘आजादी से पहले पूर्वी भारत के दो शहर कोलकाता और चट्टोग्राम (अब बांग्लादेश) न सिर्फ प्रमुख व्यापारिक केंद्र थे, बल्कि इनके माध्यम से शेष भारत जुड़ा हुआ था। लेकिन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के विभाजन के बाद जल मार्ग के बाधित होने से अगरतला और कोलकाता के बीच की दूरी 550 किमी से बढ़कर 1600 किमी हो गई। इस विभाजन से पूर्वोत्तर राज्यों का संपर्क टूट-सा गया था जो इस क्षेत्र की आर्थिक, राजनैतिक और स्थानीय पहचान से जुड़े संकट की एक बड़ी वजह था। आजादी के वक्त औद्योगिक क्षेत्र में बंगाल की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत थी जो अब 3.5 प्रतिशत है। रोजगार 27 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक पहुंच गया है। प्रति व्यक्ति आय 1960 में महाराष्ट्र की प्रति व्यक्ति आय से दोगुनी थी और अब महाराष्ट्र से आधी भी नहीं रह गई है। 1960 में बंगाल भारत के सबसे अमीर राज्यों में था पर आज बहुत नीचे चला गया है। एक जमाना था कि बंदरगाहों की आवाजाही 42 प्रतिशत थी और आज 10 प्रतिशत रह गई है। 1950 में देश की फार्मा इंडस्ट्री में इसका 70 प्रतिशत हिस्सा था जो अब 7 प्रतिशत रह गया है। बंगाल का जूट उद्योग महत्वपूर्ण था, आज बहुत सारी मिलें सिर्फ कागजों पर चल रही हैं। राजस्व वृद्धि में 2011-12 और 2019-20 के बीच 31 राज्यों में बंगाल 16वें नंबर पर है। 2020-21 में लिये गए कर्ज की बात करें तो आज राज्य में हर बच्चा 50,000 रु. के कर्ज के साथ पैदा होता है। सड़क है कि गड्ढा, पता ही नहीं चलता। बिजली की सेवा भी खस्ताहाल है। एफडीआई में 2011 में बंगाल की हिस्सेदारी एक प्रतिशत थी और अभी भी 1 प्रतिशत ही है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 36 प्रतिशत की कमी, तो अस्पतालों में बिस्तरों की कमी है। इस क्षेत्र में राज्य 23वें नंबर पर है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों के 39 प्रतिशत तो सर्जन के 87 प्रतिशत स्थान खाली हैं। शहरी विकास के लिए केन्द्र ने जो राशि भेजी है, वह भी खर्च नहीं हो पा रही। 56 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय नहीं है। एक लाख की संख्या पर 13 डिग्री कॉलेज हैं।

अबतक की सरकारों पर प्रश्नचिन्ह
भाजपा के नेता जब पश्चिम बंगाल की यह तस्वीर लोगों के सामने रखते हैं तो वामदल,कांग्रेस और ममता बनर्जी सरकारों को लेकर कई सवाल उभर आते हैं। गृह मंत्री अमित शाह आंकड़ों के जरिए बंगाल का पिछड़ापन गिनाते हैं। वे कहते हैं कि आजादी के वक्त देश की जीडीपी में बंगाल का एक तिहाई हिस्सा था। तीन दशक के कम्युनिस्ट और एक दशक के तृणमूल शासन में यह ग्राफ गिरता गया है। न कांग्रेस विकल्प है और न तृणमूल। हम भाजपा के लोग बंगाल को एक बार फिर से शोनार बांग्ला बनाएंगे। वैसे पश्चिम बंगाल लंबे समय से पलायन का दंश सह रहा है। पहले भी काम और रोजगार के लिए बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल से देश के दूसरे राज्यों की तरफ मजदूरों का पलायन होता रहा है, लेकिन ममता बनर्जी के राज में यह और बढ़ा। 2011 की जनगणना के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच बंगाल से 5.8 लाख लोगों का पलायन हुआ, जो टीएमसी के राज में करीब-करीब दुगुना बढ़कर 11 लाख से ज्यादा हो गया है और बंगाल पलायन के मामले में देश भर में चौथे नंबर पर पहुंच गया है।

बंगाल के लिए नई दृष्टि
दरअसल पश्चिम बंगाल एक राज्य का नाम भर नहीं, बल्कि एक ‘जिबोनधारा’ (जीवनधारा) है। प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में कहा जाए कि, ‘बंगाल जो आज सोचता है, वही कल भारत सोचता है, इसी से प्रेरणा लेते हुए हमें आगे बढ़ना है।’ 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही भाजपा सरकार के एजेंडे में पश्चिम बंगाल सहित पूर्वी भारत का विकास प्राथमिकता में रहा है और इसका असर बंगाल की भूमि पर देखने को मिल रहा है। मसलन, पश्चिम बंगाल का प्रमुख व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र हल्दिया न सिर्फ आत्मनिर्भर भारत का केंद्र बिंदु बन रहा है, बल्कि विश्व मानचित्र पर छाने को तैयार है। बीती फरवरी में ऊर्जा गंगा परियोजना की 348 किमी लंबी डोभी-दुर्गापुर प्राकृतिक गैस पाइपलाइन को राष्ट्र को समर्पित किया गया। गैस आधारित अर्थव्यवस्था का केंद्र बनने जा रहे हल्दिया और पश्चिम बंगाल के विकास की इस तस्वीर को इससे भी समझा जा सकता है कि करीब दो साल पहले खाद्य और पेय पदार्थ से जुड़ी एक नामचीन कंपनी का माल हल्दिया से ही अंतर्देशीय जलमार्ग के जरिए उत्तर प्रदेश के बनारस पहुंचा था। आजादी के बाद यह पहला अवसर था कि जब भारत अपने नदी मार्ग को व्यापार के लिए इस्तेमाल करने में सक्षम हुआ। कंटेनर वेसल चलने से पूर्वी भारत न सिर्फ जलमार्ग के जरिए बंगाल की खाड़ी से जुड़ चुका है, बल्कि लघु उद्योगों, किसानों के उत्पाद, कच्चा माल मंगाने से लेकर उसे तैयार करना और वापस भेजना इस क्षेत्र के लिए सुगम हो गया है। हल्दिया-बनारस के बीच के इस जलमार्ग ने पूर्वी भारत के लोगों के जीवन और कारोबार का तरीका ही बदल दिया है। जीवन और व्यवसाय की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए रेल, सड़क, हवाई अड्डे, बंदरगाहों, जलमार्गों में सूचीबद्ध कार्य के अलावा बंद हो रहे उद्योगों को भी पुनर्जीवित किया जा रहा है। गैस की कमी से इस क्षेत्र में उद्योग बंद हो रहे हैं, इसलिए पूर्वी भारत को पूर्वी और पश्चिमी बंदरगाहों से जोड़ने का निर्णय लिया गया है।

प्रधानमंत्री ऊर्जा गंगा पाइपलाइन, जिसका एक बड़ा हिस्सा फरवरी में राष्ट्र को समर्पित किया गया, से न सिर्फ पश्चिम बंगाल बल्कि बिहार और झारखंड के 10 जिले लाभान्वित होंगे। इस पाइपलाइन के निर्माण कार्य से स्थानीय लोगों को 11 लाख मानव दिवस रोजगार प्रदान किया गया है। यह रसोईघरों को पाइप द्वारा स्वच्छ तरल पेट्रोलियम गैस-एलपीजी प्रदान करेगी और स्वच्छ कम्प्रैस्ड प्राकृतिक गैस-सीएनजी वाहनों को भी सक्षम करेगी। इससे सिंदरी और दुर्गापुर उर्वरक कारखानों को निरंतर गैस की आपूर्ति हो सकेगी। उज्ज्वला योजना के कारण पूर्वी क्षेत्र में एलपीजी की खपत और मांग दोनों अधिक हैं, इसलिए एलपीजी बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए काम चल रहा है। पश्चिम बंगाल में जिन 90 लाख महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन दिए गए, उनमें एससी / एसटी वर्ग की 36 लाख से अधिक महिलाएँ शामिल हैं। इस योजना का ही असर है कि पिछले छह वर्षों में पश्चिम बंगाल में एलपीजी का उपयोग 41 फीसदी से बढ़कर 99 फीसदी तक पहुंच गया है। अब केंद्र सरकार ने आम बजट में उज्ज्वला योजना के तहत 1 करोड़ से अधिक मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान करने का प्रस्ताव किया है। ऐसे में हल्दिया का एलपीजी आयात टर्मिनल ऊंची मांग को पूरा करने में बड़ी भूमिका निभाएगा। इससे पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर में करोड़ों परिवारों को फायदा होगा क्योंकि यहां से 2 करोड़ से अधिक लोगों को गैस मिलेगी। इन लाभार्थियों में से 1 करोड़ लोग उज्ज्वला योजना के लाभार्थी होंगे।

परिवर्तन की बयार बनी पहचान
दरअसल परिवर्तन की यह बयार नए भारत की पहचान बनकर उभरी है। यह पश्चिम बंगाल को पूर्वी भारत के विकास का केंद्र बिंदु बनाने की दिशा में हो रहे काम का ही परिणाम है कि नेशनल हाईवेज-वाटरवेज, हवाई मार्ग, बंदरगाहों और गांव-गांव तक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी की दिशा में लगातार काम हो रहा है। लेकिन किसी भी क्षेत्र के विकास में वहां के स्थानीय लोगों का सशक्तीकरण अनिवार्य पहलू होता है। ऐसे में केंद्र सरकार की योजनाओं से लोगों का जीवन भी सुगम (ईज आॅफ लिविंग) हो रहा है। पश्चिम बंगाल में आवास योजना के तहत 30 लाख गरीबों को घर, जनधन योजना में 4 करोड़ गरीबों के बैंक खाते, जल जीवन मिशन के जरिए 4 लाख घरों में पाइप से साफ पानी पहुंचाना और कनेक्टिविटी सुधार के लिए लगातार काम हो रहा है। कोलकाता में ईस्ट-वेस्ट मेट्रो कॉरिडोर के लिए 8,500 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं। यह कॉरिडोर देश में नदी के भीतर चलने वाली पहली मेट्रो सेवा होगा। असल में भाजपा को इस बात का बखूबी अहसास है कि विकास का मुद्दा ही ऐसा मुद्दा है जो वाम दलों, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस, तीनों को कठघरे में खड़ा करता है। इसलिए भाजपा इस बात पर जोर दे रही है कि अगर बंगाल में डबल इंजन की सरकार बनेगी तो विकास रफ़्तार पकड़ेगा, गरीबों का भला होगा। केंद्र की योजनाएं लागू की जाएंगी।

उद्योग विरोधी हैं ममता
खड़गपुर की रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ममता सरकार ने राज्य में उद्योग नहीं लगाए, बल्कि वहां एक ही उद्योग चलता है— माफिया उद्योग। दीदी ने बंगाल को बीते दस साल में लूट-मार दी, कुशासन दिया। उन्होंने कहा कि बंगाल में मजदूर-गरीबों को भी कट मनी देना पड़ता है। असल में ममता बनर्जी की छवि एक उद्योग विरोधी नेता के तौर पर उभरी है। ममता भले ही नंदीग्राम से इस तर्क के साथ चुनाव लड़ रही हैं कि 2007 में उन्होंने वहां किसानों की जमीन का अधिग्रहण किए जाने के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोला था और चुनाव में उन्हें इसका फायदा मिलेगा। लेकिन ममता विरोधियों की दलील है कि उस समय अगर नंदीग्राम में हजारों एकड़ में पेट्रोलियम, केमिकल और पेट्रोकेमिकल हब विकसित हो जाता, तो क्षेत्र के लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिलता। उस समय पश्चिम बंगाल में बुद्धदेव भट्टाचार्य मुख्यमंत्री थे और वे उद्योग विरोधी होने की लेफ़्ट की छवि को सुधारना चाहते थे।
वर्ष 2005 में जब केंद्र सरकार ने देश भर में केमिकल हब बनाने की योजना पर विचार किया, तो बुद्धदेव ने पश्चिम बंगाल में इसके लिए पहल की और तय किया गया कि हल्दिया बंदरगाह के पास नंदीग्राम में विशेष आर्थिक क्षेत्र विकसित कर पेट्रोलियम हब बनाया जाए। तत्कालीन राज्य सरकार ने इसके लिए इंडोनेशिया के एक बड़े उद्योग समूह सलीम ग्रुप के साथ निवेश की बात भी पक्की कर ली। लेकिन योजना परवान चढ़ती, इससे पहले ही 2007 में बुद्धदेव के सियासी विरोधियों ने जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों में भ्रम पैदा किया और इसके खिलाफ हिंसक आंदोलन शुरू हो गया। आखिरकार सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। करीब-करीब उसी समय टाटा मोटर्स के पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा नैनो कार प्लांट को लेकर विरोध शुरू हुआ।

टाटा मोटर्स करीब एक हजार एकड़ जमीन पर प्लांट लगाने वाली थी, जिसकी अनुमति तत्कालीन लेफ़्ट सरकार ने दे दी थी लेकिन उसके खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया और ममता बनर्जी ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई। आखिरकार 2008 में टाटा मोटर्स ने सिंगूर की बजाए गुजरात में प्लांट लगाने का फैसला कर लिया। इसका श्रेय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ही जाता है। अगर सिंगूर में नैनो कार प्लांट लग जाता, तो क्षेत्र के लोगों के लिए रोजगार की व्यापक संभावनाएं बन सकती थीं। ममता विरोधी अब ये बातें छेड़कर तृणमूल कांग्रेस को विकास विरोधी करार दे रहे हैं। जाहिर है, पश्चिम बंगाल के इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विकास को मुद्दा बनाकर राज्य में सत्तारूढ़ ममता सरकार और वर्षो शासन करने वाले वाम दलों और कांग्रेस गठबंधन की जबरदस्त घेराबंदी कर दी है।

आजादी के वक्त औद्योगिक क्षेत्र में बंगाल की हिस्सेदारी 30% थी जो अब 3.5% है। रोजगार 27% से 4% प्रतिशत तक पहुंच गया है।

1950 में बंगाल भारत के सबसे अमीर राज्यों में था पर आज बहुत नीचे चला गया है।

2020-21 में लिये गए कर्ज की बात करें तो आज राज्य में हर बच्चा 50,000 रु. के कर्ज के साथ पैदा होता है।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों के 29% तो सर्जन के 87% स्थान खाली हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच बंगाल से 5.8 लाख लोगों का पलायन हुआ, जो टीएमसी के राज में करीब दुगुना बढ़कर 11 लाख से ज्यादा हो गया है

ममता दी माँ माटी और मानुष के लिए आईं लेकिन इन तीनों की कोई चिंता नहीं की बल्कि बंगाल में वही सी.पी.एम. द्वारा शुरू किये गये सिंडिकेट को ही आगे बढ़ाया है। इससे बंगाल की दुर्दशा इतनी दयनीय हो गयी है कि कल्पना से परे है।
— दिब्यज्योति चौधरी, कोलकाता सामाजिक कार्यकर्ता

ममता को लोग इसलिए लाये थे कि ममता बंगाल को विकास के पथ पर अग्रसर करेंगी लेकिन उन्होंने विकास के कोई कार्य नहीं किये। इससे बंगाल से माइग्रेंट श्रमिक बढ़ गए हंै। बंगाल से रोजगार के लिए लोग भारत के विभिन्न भागों में जाते हंै क्योंकि ममता ने सिर्फ सिर्फ तोलेबाजी को ही बढ़ाया है।
—संतोष सरकार (कास्ट अकाउंटेंट)
ममता के आने से सबसे ज्यादा बंगाल का शिक्षा तंत्र प्रभावित हुआ है। यह क्षेत्र सिर्फ और सिर्फ सरकार के लिए दुधारू गाय साबित हुआ हूं जहां ममता ने अपने कैडर को ही प्राथमिकता के आधार पर बैठाया है। आज स्थिति यह है कि विश्वविद्यालय बनाये हैं सिर्फ कागजों में, धरातल में विश्वविद्यालय के द्वार है। यही विकास ममता के द्वारा किया है।
— देबादीन बोस (असिस्टेंट प्रो बंगबासी कॉलेज कोलकाता)

ममता को इसलिए लाया गया की ममता सी.पी.एम. के द्वारा बंगाल को कंगाल बनाया गया था उसको विकास के पथ पर अग्रणी राज्य बनाएंगी लेकिन उन्होंने तो बंगाल को बंगाल की खाड़ी में डुबा दिया।।
— देबाशीष चौधरी
(एसोसिएट प्रोफेसर बंगबासी कॉलेज,कोलकाता)

आयुष्मान योजना को लेकर राजनीति
केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज के लिए आयुष्मान भारत नामक स्वास्थ्य बीमा योजना चलाई जा रही है। देश के करीब 50 करोड़ लोगों को इस योजना का लाभ देने का लक्ष्य है। पश्चिम बंगाल में केंद्र की इस योजना को लागू करने के मामले में भी ममता सरकार पर राजनीति करने का आरोप लगा।

पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार का काम
केंद्र सरकार की योजनाओं से लोगों का जीवन हुआ सुगम
बंगाल में आवास योजना के तहत 30 लाख गरीबों को घर
उज्ज्वला के तहत 90 लाख महिलाओं को मुफ्त कनेक्शन
जनधन योजना में 4 करोड़ गरीबों के बैंक खाते
जल जीवन मिशन के जरिए 4 लाख घरों में पाइप से साफ पानी पहुंचाने का काम
कनेक्टिविटी सुधार के लिए लगातार काम
कोलकाता में ईस्ट-वेस्ट मेट्रो कॉरिडोर के लिए 8,500 करोड़ रुपये मंजूर
एलपीजी गैस की कवरेज 99 प्रतिशत से ज्यादा
डोभी-दुगार्पुर प्राकृतिक गैस पाइपलाइन राष्ट्र को समर्पित
वित्त वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में असम और पश्चिम बंगाल के चाय बागानकर्मियों खासकर महिलाओं और उनके बच्चों के कल्याण के लिए एक हजार करोड़ रुपये का प्रस्ताव
पश्चिम बंगाल में कोलकाता-सिलीगुड़ी के लिए नेशनल हाइवे प्रोजेक्ट का ऐलान
बंगाल में राजमार्ग पर 25,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे
बंगाल में 675 किमी राजमार्ग का निर्माण
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पर राजनीति
पीएम-किसान योजना के तहत, लघु और सीमांत किसान परिवारों को तीन बराबर किस्तों में प्रति वर्ष छह हजार रुपये की सहायता राशि प्रदान की जाती है। बंगाल सरकार ने केंद्र की इस योजना को राज्य में लागू करने से इनकार कर दिया था जिसके चलते यहां के लाखों किसान केंद्रीय मदद से वंचित रहे। पूरे देश में यह योजना पहले से ही लागू थी, केवल बंगाल में इसे लागू नहीं किया जा सका।

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