सम्मान और पहचान बचाने का अभियान
May 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

सम्मान और पहचान बचाने का अभियान

by WEB DESK
Apr 1, 2021, 12:40 pm IST
in भारत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

असम के विधानसभा चुनाव की अधिसूचना के बाद भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली चुनावी सभा के लिए करीमगंज जिले को चुना। चुनाव से पहले पार्टी की प्रदेश इकाई की अंतिम कार्यकारिणी सभा भी इसी करीमगंज में हुई। यह अकारण नहीं है कि भाजपा ने इस मुस्लिम-बहुल जिले पर इतना जोर दिया है। इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे लौटना होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचंड मोदी लहर में भी भाजपा यह सीट नहीं निकाल पाई थी। हालांकि तब पूरी बराक घाटी में भाजपा का खाता नहीं खुला था। पार्टी सिल्चर सीट भी नहीं जीत पाई थी। लेकिन दो साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में सिल्चर में जबरदस्त वापसी करते हुए उसने सात में से छह सीटों पर कब्जा जमा लिया। करीमगंज की फांस तब भी खत्म नहीं हुई। इस संसदीय क्षेत्र की आठ (इस जिले की पांच) विधानसभा सीटों में से दो ही भाजपा के हाथ लग पाई थी।
करीमगंज में अपने भाषण की शुरुआत में प्रधानमंत्री मोदी ने बराक घाटी की महान हस्तियों को नमन करने के साथ ही असम के महान सपूत लचित बरफूकन को भी याद किया। उन्होंने क्षेत्र के लोगों को घुसपैठ की समस्या के प्रति एक बार फिर से चेतावनी दी। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘असम पर वीर लचित बरफूकन जैसे महान और पुण्यात्मा व्यक्तित्व का आशीर्वाद रहा है, जिन्होंने असम को और भारत को ‘विदेशी आक्रांताओं’ से बचाने में अहम भूमिका निभाई है।’’

यह चुनाव हमारे लिए युद्ध है। यहां हमारा मताधिकार ही हमारा हथियार है। यह युद्ध है अपनी जन्मभूमि को सुरक्षित करने का, यह युद्ध है अपनी जाति-माटी-भेटी (सम्मान) की सुरक्षा का। जिस तरह वीर लचित बरफूकन ने मुगलों को गुवाहाटी से 200 किमी दूर धकेल दिया था, उसी तरह हमें अपने मत का प्रयोग करके मुगलों के वंशजों (बांग्लादेशी घुसपैठियों) को गुवाहाटी से 200 किमी दूर ही रोक देना है।
— हिमंत बिस्व शर्मा, वरिष्ठ भाजपा नेता

वास्तव में वीर लचित बरफूकन पिछले कुछ समय में असम की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण हो चले हैं। उल्लेखनीय है कि असम के वरिष्ठ भाजपा नेता हिमंत बिस्व शर्मा ने वीर लचित के कृतित्व को असम में ‘मियां संस्कृति’ को रोकने के प्रतीक के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है और साथ ही वे लचित को याद करते हुए असम की जनता को ‘मियां राजनीति’ करने वालों को सबक सिखाने की अपील लगातार कर रहे हैं। करीमगंज में भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए शर्मा ने कहा था, ‘‘यह चुनाव हमारे लिए युद्ध है। यहां हमारा मताधिकार ही हमारा हथियार है। यह युद्ध है अपनी जन्मभूमि को सुरक्षित करने का, यह युद्ध है अपनी जाति-माटी-भेटी (असमिया में भेटी का अर्थ पगड़ी यानी सम्मान है) की सुरक्षा का। जिस तरह वीर लचित बरफूकन ने मुगलों को गुवाहाटी से 200 किमी दूर धकेल दिया था, उसी तरह हमें अपने मत का प्रयोग करके मुगलों के वंशजों (बांग्लादेशी घुसपैठियों) को गुवाहाटी से 200 किमी दूर ही रोक देना है।’’

वैचारिक दरार
असम विधानसभा के 2016 के परिणाम देखें तो बारपेटा के आठ में तीन, बंगाईगांव के चार में दो, करीमगंज के पांच में दो, धुबरी के पांच में दो, ग्वालपाड़ा के चार में एक, दरंग के चार में तीन, मोरीगांव के तीन में दो और होजाई के तीन में दो सीटें भाजपा या उसके सहयोगियों को मिलीं। नगांव की सभी तीन सीटों पर भाजपा गठबंधन को सफलता मिली, जबकि दक्षिण सालमारा और हैलाकांडी में पार्टी का खाता नहीं खुल सका। इस प्रकार मुस्लिम-बहुल आबादी वाले बड़े जिलों में भाजपा को कम सीटें मिलीं, तो छोटे जिलों में खाता ही नहीं खुला। मध्यम आकार के जिलों में ही भाजपा कामयाब हो पाई। यह हालत तब है जब राज्य की 126 में से 86 सीटों पर भाजपा गठबंधन कामयाब रहा था। स्पष्ट है कि मुस्लिम-बहुल सीटों एवं अन्य सीटों के बीच वैचारिक दरार है।

उल्लेखनीय है कि लचित बरफूकन अहोम साम्राज्य के सेनापति थे। मुगलों ने जब असम विजय के लिए 1671 में आक्रमण किया था तो लचित के नेतृत्व में अहोम सेना ने सरायघाट के युद्ध में मुगलिया फौज को परास्त कर वापस भेज दिया था। लचित एक वर्ष बाद ही बीमारी से चल बसे मगर मातृभूमि की रक्षा के लिए उनका शौर्य अमर हो गया। ढाका से मुगल फौज जब ब्रह्मपुत्र के रास्ते गुवाहाटी के नजदीक पहुंच गई, तो उसकी हजारों तोपों, बंदूकों और गोला बारूद का सामना करने के लिए अहोम साम्राज्य के पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे। वीर लचित के बारे में अफवाह फैलाकर अहोम दरबार में उनकी विश्वसनीयता पर भी संकट लाने की कोशिश मुगलों ने की, लेकिन वे नाकाम रहे। लचित के दृढ़ निश्चय ने मुगलों को छोटी सी अहोम सेना के समक्ष घुटने टेक कर लौटने को मजबूर कर दिया था। यूं तो लचित बरफूकन से लेकर आचार्य शंकरदेव तक को भाजपा असम के आत्मसम्मान के प्रतीक के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रही है, लेकिन करीमगंज की धरती पर उनका बारंबार उल्लेख कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण हो जाता है। यह असम के आत्मसम्मान का भी विषय है।
2011 की जनगणना के अनुसार करीमगंज जिले की 56.4 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। करीमगंज जिले के पश्चिम और पश्चिमोत्तर दिशा में बांग्लादेश की सीमा लगती है। जिला मुख्यालय तो बिल्कुल बांग्लादेश की सीमा पर है। मुख्यालय के पास ही जलीय सीमा पोस्ट है, जहां से नौका के माध्यम से बांग्लादेश जाने-आने के लिए आधिकारिक चौकी है। इसके अलावा सड़क मार्ग से सीमा पार करने के लिए चौकी शहर से 15 किमी दूर सुथारकांदी में स्थित है। पिछले 10 वर्ष छोड़ दें तो दोनों देशों की सीमा पर आवागमन रोकने के लिए सेना की चौकसी के अलावा कोई ठोस अवरोध नहीं हुआ करता था। किसी जमाने में यह बांग्लादेश से अवैध आवागमन का एक प्रमुख मार्ग हुआ करता था।

किला बचाने की कवायद
करीमगंज के अलावा असम के अन्य 10 जिले भी मुस्लिम बहुलता वाले हैं। इन जिलों की सीटें प्राय: कांग्रेस या एआईयूडीएफ के कब्जे में रही हैं, लेकिन इस बार इन्हें भाजपा का डर लग रहा है। इसलिए दोनों दल मिलकर भाजपा को रोकने के लिए मजहबी भावनाएं भड़का रहे हैं। भाजपा के विकास के एजेंडे ने इन दलों के परंपरागत वोट बैंक को हिला दिया है। इसलिए मजहबी बैसाखी के सहारे वे अपना किला बचाना चाह रहे हैं। अनधिकृत आंकड़ों के अनुसार बारपेटा में 71 प्रतिशत, बंगाईगांव में 50, दरंग में 64, धुबरी में 80, ग्वालपाड़ा में 58, हैलाकांडी में 60, मोरीगांव में 53, नगांव में 55, होजाई में 54 और दक्षिण सालमारा में 98 प्रतिशत के आसपास आबादी मुस्लिम है। 2015 तक दक्षिण सालमारा तो धुबरी का ही हिस्सा हुआ करता था। इस समय असम के 33 में से 11 जिलों में आधी से अधिक आबादी मुस्लिम है। यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि 11 जिलों में केवल तीन (करीमगंज, धुबरी और दक्षिण सालमारा) ही बांग्लादेश से प्रत्यक्षत: सीमा साझा करते हैं, लेकिन जनसांख्यिकी विभेद अंदरूनी जिलों मे ज्यादा है। इनके अलावा कछार, कामरूप और नलबारी में 35 प्रतिशत से अधिक तथा लखीमपुर और चिरांग में 20 प्रतिशत से अधिक आबादी मुस्लिम है। गौर करने की बात यह है कि 1951 में जहां असम में मुस्लिम आबादी 25 प्रतिशत से कम थी, वहीं 2011 की जनगणना में यह 35 प्रतिशत से अधिक हो गई। 1971 से 1991 के बीच राज्य की मुस्लिम आबादी में 3.87 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई। इससे पहले ऐसी बढ़ोतरी 1931-41 के बीच ही रही थी या फिर 2001-11 के बीच देखी गई। महत्वपूर्ण यह है कि असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की कवायद में कांग्रेस चाहती है कि 1971 तक भारत आकर रह रहे लोगों को ऐसा सबूत पेश करने पर एनआरसी में शामिल कर लिया जाए, वहीं भाजपा का दृढ़ मत है कि 1951 की प्रथम एनआरसी में शामिल लोगों अथवा उनके वंशजों को ही नई एनआरसी में भी भारतीय नागरिक माना जाए।

1991 में राम मंदिर आंदोलन के ज्वार में जब पूरे देश में भाजपा की लहर चली तो उस समय यहां का भी हिंदू समाज आंदोलित हुआ और जिले की पांच में से चार सीटें भाजपा की झोली में आ गर्इं। तब बराक घाटी में भाजपा को कुल नौ सीटें मिली थीं। ऐसा ऐतिहासिक प्रदर्शन भाजपा दोबारा नहीं कर पाई। तब चाय बागान बहुलता वाले विधानसभा क्षेत्र उधारबंद, लखीमपुर, बड़खला, अलगापुर, काटलीछेड़ा और एक अन्य क्षेत्र बदरपुर भाजपा के हाथ नहीं आ सका था। इस समय भी, बागानों में अच्छी लोकप्रियता के बावजूद इनमें से केवल दो क्षेत्र पार्टी के हाथ मेें हैं। इस कारण भी इस कसक को दूर करने के लिए पार्टी लामबंद दिखती है। प्रधानमंत्री ने 18 मार्च की अपनी करीमगंज रैली में इन दोनों तथ्यों को जोड़ते हुए कहा, ‘‘बराक घाटी न केवल असम का ‘गेटवे’ है, बल्कि असम में भारतीय जनता पार्टी की ‘डबल इंजन’ सरकार का भी ‘गेटवे’ है। तीन दशक पहले जब देश में भाजपा का उतना विस्तार नहीं हुआ था, तब भी बराक घाटी ने 15 में से नौ सीटें भाजपा को दी थीं। इस बीच भाजपा आपके बीच रहकर लगातार संघर्ष करती रही है। पिछले पांच वर्ष में सरकार के कामकाज का उपहार भाजपा को देने के लिए बराक घाटी के साथ साथ पूरे असम की जनता आतुर है।’’
बात केवल वोट बटोरने या सरकार बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि बौद्धिकता की फिजां में भारत की वास्तविक खुशबू को घोलने तक विस्तृत है। वीर लचित और श्रीमंत शंकरदेव जैसी विभूतियों के कृतित्व सामने रखने का ही यह परिणाम है कि जो कांग्रेस नागरिकता संशोधन अधिनियम को रद्द करने के हवा हवाई दावे चुनावी माहौल में करती आई थी उसे अपने चुनावी घोषणापत्र में नामघरों को आर्थिक सहायता की घोषणा भी शामिल करनी पड़ी। हालांकि यह काम भी ठेठ कांग्रेसी शैली में हुआ है। वास्तव में असम में भाजपा सरकार के आने के बाद नामघरों को सुरक्षित करने का काम शुरू हुआ है। भाजपा सरकार ने 2,50,000 रु. हर नामघर के लिए दिए हैं। असम दर्शन की तरह करीब 9,000 नामघरों की पुनर्प्रतिष्ठा का काम चल रहा है। यह काम असम की संस्कृति के संरक्षण की दृष्टि से हो रहा है। भाजपा ने घोषणा की है कि दोबारा सत्ता में आने के बाद असम के पारंपरिक सभी वैष्णव मठों (सत्र) और नामघरों को यह सहायता दी जाएगी। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि पार्टी सत्ता में आने पर 50 वर्ष पुराने नामघर, मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे आदि को आर्थिक अनुदान देगी। इतना ही नहीं कूचबिहार के मधुपुर सत्र के संरक्षण के लिए भी अलग अनुदान का वादा पार्टी ने किया है। इतना ही नहीं, कांग्रेस कामाख्या मंदिर के प्रसिद्ध अंबुवाची मेला के सालाना उत्सव के प्रचार-प्रसार के लिए भी वादे कर रही है।

कमजोर होती कांग्रेस
कांग्रेस और एआईयूडीएफ गठजोड़ को वरिष्ठ भाजपा नेता शिलादित्य देव के शब्दों में इस प्रकार समझा जा सकता है, ‘‘2016 में कांग्रेस के 26 निर्वाचित विधायकों में 15 मुस्लिम थे। बाकी बचे 11 हिंदू में दो सिधार गए और चार पार्टी छोड़ गए। अब पांच ही बचे हैं। इससे पता चलता है कि हिंदुओं के बीच कांग्रेस की कितनी विश्वसनीयता है।’’ इस परिस्थिति में आने के बाद भी कांग्रेस अपने मुस्लिम तुष्टीकरण के एजेंडे पर ही आगे बढ़ रही है।

इसे अपने तय मुद्दों से भटकाव कहें या वास्तविकता को स्वीकारना, न चाहते हुए भी कांग्रेस को इस ‘धर्मयुद्ध’ में ऐसी घोषणाएं करनी पड़ रही हैं, जिनसे आज तक पार्टी बचती रही है। नामघर और अंबुवाची से आगे चलकर पार्टी ने प्रत्येक जिले में एक गोशाला की स्थापना का वादा कर खुद को गोभक्त साबित करने की कोशिश की है, फिर भी वह अपने गले की घंटी से पीछा छुड़ा नहीं पा रही है। असम के इतिहास-संस्कृति पर बहस में खुद को पीछे छूटता देख पार्टी ने भाषा आंदोलन व असम आंदोलन के शहीदों के परिजनों के लिए पेंशन का वादा किया, तो इसमें सीएए विरोधी आंदोलन में मारे गए लोगों के लिए भी पेंशन की बात जोड़ दी है। यह बात तो पार्टी बता नहीं सकती है कि भाषा आंदोलन व असम आंदोलन तो उसी की गलत नीतियों के कारण उपजे असंतोष का परिणाम थे और उनमें मरने वाले सरकारी गोली से मारे गए थे। बस, इस मजबूरी में वह सीएए विरोधी आंदोलन को भी एक ही डंडे से हांकने का प्रयास कर रही है।
‘धर्मयुद्ध’ की इस बिसात पर जीत किसकी होगी, इसका निर्णय तो दो मई को मतों की गिनती के साथ होगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि अपना ‘धर्म’ स्पष्ट कर पाने में कांग्रेस के पसीने छूट रहे हैं।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Peaceful Enviornment after ceasfire between India Pakistan

भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद आज क्या हैं हालात, जानें ?

Virender Sehwag Pakistan ceasfire violation

‘कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है’, पाकिस्तान पर क्यों भड़के वीरेंद्र सहवाग?

Operation sindoor

Operation Sindoor: 4 दिन में ही घुटने पर आ गया पाकिस्तान, जबकि भारत ने तो अच्छे से शुरू भी नहीं किया

West Bengal Cab Driver Hanuman chalisa

कोलकाता: हनुमान चालीसा रील देखने पर हिंदू युवती को कैब ड्राइवर मोहममद इरफान ने दी हत्या की धमकी

ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए आतंकियों को पाकिस्तान ने सैनिकों जैसा सम्मान दिया।

जवाब जरूरी था…

CeaseFire Violation : गुजरात के शहरों में फिर ब्लैकआउट, कच्छ में फिर देखे गए पाकिस्तानी ड्रोन

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Peaceful Enviornment after ceasfire between India Pakistan

भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद आज क्या हैं हालात, जानें ?

Virender Sehwag Pakistan ceasfire violation

‘कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है’, पाकिस्तान पर क्यों भड़के वीरेंद्र सहवाग?

Operation sindoor

Operation Sindoor: 4 दिन में ही घुटने पर आ गया पाकिस्तान, जबकि भारत ने तो अच्छे से शुरू भी नहीं किया

West Bengal Cab Driver Hanuman chalisa

कोलकाता: हनुमान चालीसा रील देखने पर हिंदू युवती को कैब ड्राइवर मोहममद इरफान ने दी हत्या की धमकी

ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए आतंकियों को पाकिस्तान ने सैनिकों जैसा सम्मान दिया।

जवाब जरूरी था…

CeaseFire Violation : गुजरात के शहरों में फिर ब्लैकआउट, कच्छ में फिर देखे गए पाकिस्तानी ड्रोन

india pakistan ceasefire : भारत ने उधेड़ी पाकिस्तान की बखिया, घुटनों पर शहबाज शरीफ, कहा- ‘युद्धबंदी चाहता हूं’

Pakistan ने तोड़ा Ceasefire : अब भारत देगा मुहंतोड़ जवाब, सेना को मिले सख्त कदम उठाने के आदेश

international border पर पाकिस्तान की कायराना हरकत : गोलाबारी में BSF के 8 जवान घायल!

Fact Check

पाकिस्तान ने भारत में फैलाए ये फेक वीडियो

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies