चीन के शिनजियांग क्षेत्र में मुस्लिम उइगर समुदाय के उत्पीड़न को जहां पूरी दुनिया महसूस कर रही है और कार्रवाई कर रही है। वहीँं गरीबी और भुखमरी से जूझता तंगहाल पाकिस्तान चीन के फेंके हुए टुकड़ों पर निर्भर है और विश्वभर में अलग-थलग पड़ चुका पाकिस्तान अब चीन का विरोध करने का जोखिम नहीं उठा सकता
विश्व जनमत उइगर समुदाय के खिलाफ चीन की उत्पीड़नकारी गतिविधियों के विरुद्ध लामबंद दिख रहा है। कई पश्चिमी देशों ने मुस्लिम उइगर अल्पसंख्यक समूह के अधिकारों के हनन में शामिल रहे चीनी अधिकारियों पर प्रतिबन्ध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों को यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा द्वारा समन्वित प्रयास के रूप में पेश किया गया है।
32 साल में पहली कार्रवाई
दरअसल चीन के शिनजियांग स्वायत्त क्षेत्र के शिविरों में चीन ने उइगर आबादी के लिए नारकीय माहौल बना दिया है। यहां बड़ी संख्या में आबादी को हिरासत में रखा जाता है, जहां अत्याचार, जबरन श्रम और यौन शोषण के आरोप लगातार सामने आए हैं। उल्लेखनीय है कि यूरोपीय संघ की चीन के खिलाफ यह कार्रवाई कई वर्षों के बाद देखने में आई है। 1989 के तियानमेन स्क्वेयर हत्याकाण्ड, जब बीजिंग में सैनिकों ने लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई थीं, के बाद से चीन पर मानवाधिकारों के हनन से संबंधित कोई नए प्रतिबंध नहीं लगाए गए।
ये हैं आरोपी
इन नए लगाए गए प्रतिबंधों में यात्रा प्रतिबंध और परिसंपत्ति को फ्रीज़ करने सहित ऐसे अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध शामिल हैं जो शिनजियांग में स्थित चीनी प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों को लक्षित करते हैं, जिन पर उइगर मुसलमानों के खिलाफ मानवाधिकार हनन के गंभीर आरोप लगाये गए हैं। जिन प्रमुख लोगों पर प्रतिबन्ध लगाया गया है, उनमें सबसे प्रमुख हैं चेन मिंगगुओ, जो स्थानीय पुलिस बल ‘शिनजियांग पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो’ के निदेशक हैं। शिनजियांग की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थायी समिति के सदस्य वांग मिंगशन पर भी प्रतिबन्ध लगाए गए हैं। यूरोपियन यूनियन का मानना है कि उइगर लोगों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
चीनी सरकार के स्वामित्व वाले आर्थिक और अर्धसैनिक संगठन शिनजियांग प्रोडक्शन एंड कंस्ट्रक्शन कॉर्प्स (एक्सपीसीसी) के पार्टी सचिव वांग जुन्झेंग को भी प्रतिबंधित किया गया है। उल्लेखनीय है कि एक्सपीसीसी का पब्लिक सिक्यूरिटी ब्यूरो, जो सुरक्षा मामलों पर एक्सपीसीसी की नीतियों को लागू करने का प्रभारी है, के मुख्य कार्यों में इन कैम्प के प्रबंधन की जिम्मेदारी भी शामिल है। इसके अलावा इस सूची में शिनजियांग में कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व उपप्रमुख झू हैलुन, का नाम भी शामिल है जिन पर शिविरों के संचालन की ‘देखरेख’ में महत्वपूर्ण दखल रखने का आरोप है।
चीन का इनकार
चीन हमेशा से ही ऐसे आरोपों को सिरे से नकारता रहा है। चीन ने शिनजियांग प्रांत में उइगरों को हिरासत में रखने के लिए बनाए गए ऐसे शिविरों के अस्तित्व से इनकार किया था, इसकी जगह उसका कहना था कि यह रोजगार संबंधी प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ ही कट्टरपंथी जिहादी सोच वाले युवाओं को पुन: शिक्षित करने के लिए केंद्र हैं और इनमें मानवाधिकारों के हनन जैसी किसी भी घटना से स्पष्ट इनकार किया।
सामने आई वास्तविकता
परन्तु इन तथाकथित पुनर्शिक्षा केन्द्रों की वास्तविकता विश्व के सम्मुख आ चुकी है। संयुक्त राष्ट्र से जुड़े मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अमेरिकी विशेषज्ञों का मानना है कि शिनजियांग के ऐसे शिविरों में कम से कम दस लाख उइगर मुसलमानों को हिरासत में रखा गया है, और इन पर अत्याचार, जबरन श्रम और नसबंदी तक का उपयोग करने का आरोप अनेक मानवाधिकार संगठन लगातार लगाते रहे हैं। दूसरी तरफ चीन निर्लज्जतापूर्वक यही दोहराता रहता है कि उसके शिविर व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं और यह इस क्षेत्र में व्याप्त चरमपंथ से लड़ने के लिए अति आवश्यक हैं।
बदले की कार्रवाई
दूसरी तरफ, चीन ने इस प्रतिबंधात्मक कार्रवाई से कोई सुधार लाने के बजाय एक प्रतिक्रियावादी कार्रवाई की है। चीन ने सोमवार को कहा कि यूरोपीय संघ की प्रतिबंधात्मक घोषणा पूरी तरह से झूठ और दुष्प्रचार पर आधारित है। बदले की कार्रवाई करते हुए चीन ने यूरोप में दस लोगों और चार संस्थाओं पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की है जो कथित रूप से चीन की संप्रभुता और हितों को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाते हैं और दुर्भावनापूर्ण रूप से झूठ और दुष्प्रचार को बढ़ावा देते हैं। चीन के इन प्रतिबंधों से प्रभावित लोगों को चीन में प्रवेश करने या इसके साथ व्यापार करने से रोक दिया गया है।
जर्मन राजनेता और चीन के लिए यूरोपीय संसद प्रतिनिधिमंडल के अध्यक्ष रेइनहार्ड बुटिकॉफ़र चीन की इस प्रतिबन्ध सूची में सबसे उच्च स्थान पर हैं। इसके साथ ही साथ शिनजियांग में चीन की नीतियों के प्रमुख विशेषज्ञ एड्रियन ज़ेनज़, जिन्होंने चीन द्वारा किये जाने वाले व्यापक मानवाधिकार हनन पर विस्तृत रपटें प्रकाशित की थीं, इस सूची में शामिल हैं। उइगरों की जबरिया नसबंदी पर पिछले साल उनकी रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए संयुक्त राष्ट्र ने एक अंतरराष्ट्रीय जांच का प्रस्ताव किया था। इसके साथ-साथ स्वीडिश विशेषज्ञ ब्योर्न जेरडेन और डच विधिवेत्ता सोज़ेरड सोज़र्ड्समा को भी प्रतिबंधित किया गया है।
पाकिस्तान का रुख
इस सबके बीच पाकिस्तान जैसा देश, जो इस्लामी देशों के बीच सबसे बड़ी सैन्य शक्ति माना जाता है, और गाहे-बगाहे दुनियाभर के मुस्लिमों का खैरख्वाह होने का दम भरता है, चीन में उइगर मुस्लिमों के साथ हो रहे इस भीषण उत्पीड़न के प्रति किस तरह उपेक्षा का भाव प्रदर्शित करता है, यह आश्चर्य का विषय है।
अपनी कट्टरपंथी सोच के कारण ‘तालिबान खान’ की उपाधि प्राप्त कर चुके पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान, जो प्रधानमंत्री पद ग्रहण करते ही स्वयं को दुनियाभर के मुस्लिमों के अधिकारों का स्वयंभू रक्षक घोषित कर चुके हैं, पिछले दो साल में अनेक बार अपनी इस्लामी कट्टरपंथी सोच से दुनिया को अवगत करा चुके हैं| अपने चुनावी वादे में वह पाकिस्तान को मदीना के पवित्र राज्य, जो कि एक इस्लामी कल्याणकारी राज्य होगा, में बदलने की बात करते रहे हैं।
वह इस्लामोफोबिया को कथित रूप से “प्रोत्साहित” करने के लिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन की आलोचना कर चुके हैं, साथ ही उन्होंने फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग के नाम एक खुला पत्र प्रकाशित किया था जिसमें इस सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से इस्लामोफोबिक सामग्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। इसके साथ ही साथ वे गैर-मुस्लिम देशों में इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए मुस्लिम नेताओं से सार्वजनिक आह्वान कर चुके हैं। यही नहीं, एक वैश्विक इस्लामी नेता बनने की चाह में इमरान खान चेचन्या, यमन, फिलिस्तीनी क्षेत्रों, और कश्मीर में मुस्लिम समुदायों के साथ कथित दुर्व्यवहार पर लगातार विलाप करते आये हैं।
स्पष्ट है कि खान खुद को मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर स्वघोषित प्रवक्ता के रूप में सामने रखते आए हैं। परन्तु उइगर मुसलमानों का विषय आने पर यह ‘स्वयंभू रक्षक’ अपना मुंह छुपाता नज़र आता है| उइगर मामले पर इमरान खान की नीति पूरी तरह से छल, भ्रम और उपेक्षा से परिपूर्ण है। इमरान खान इस मुद्दे से जुड़े सवालों को दरकिनार करते हैं, और साथ ही सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं कि उन्हें इस मुद्दे के बारे में ‘पर्याप्त जानकारी’ नहीं है। साथ ही साथ वह यह भी कहते हैं, कि वह इस विषय को सार्वजनिक रूप से नहीं उठा सकते, क्योंकि चीनी अत्यंत ‘संवेदनशील लोग’ हैं।
इमरान की छीजती विश्वसनीयता
इमरान खान का व्यवहार जहां उन्हें इस्लामी देशों के बीच अविश्वसनीय बना रहा है, वहीं पाकिस्तान के भीतर भी एक व्यापक असंतोष लगातार बढ़ता ही जा रहा है और उइगर मुसलमानों का उत्पीड़न इसके लिए एक उत्प्रेरक का काम कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि इस्लामाबाद द्वारा उइगरों पर एक आंतरिक मूल्यांकन रिपोर्ट पिछले वर्ष प्रस्तुत की गई थी जिसमे पाकिस्तानी नागरिकों के बीच चीनी शासन के खिलाफ “क्रोध की चिंताजनक स्थिति” का उल्लेख भी था। इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि पाकिस्तान के कट्टरपंथी इस्लामी नेताओं के भाषणों में चीन और पाकिस्तान सरकार के विरुद्ध आग उगली जा रही है जिसके निशाने पर पाकिस्तान सरकार की चुप्पी है। यह इमरान खान के लिए चिंताजनक स्थिति है क्योंकि उनकी लोकप्रियता इसी कट्टरपंथी वर्ग के बीच सर्वाधिक थी जो लगातार खिसकती जा रही है।
खान कुछ भी कहते रहें, पर इस व्यवहार का कारण स्पष्ट है। इस समय चीन पाकिस्तान के लिए भाग्य विधाता की भूमिका में आ गया है। गरीबी और भुखमरी से जूझता तंगहाल पाकिस्तान चीन के फेंके हुए टुकड़ों पर निर्भर है और विश्वभर में अलग-थलग पड़ चुका पाकिस्तान अब चीन का विरोध करने का जोखिम नहीं उठा सकता। इसीलिए इस समय उइगर मुसलमानों का प्रश्न पाकिस्तान के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर चुका है।
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