मोदी के खिलाफ यूट्यूब पर बोलने और ट्विटर पर लिखने के लिए सबसे अधिक वही लोग आज सामग्री तलाश रहे हैं, जिनको मोदी ने अप्रासंगिक कर दिया है
संयोग ही था कि कांग्रेस आईटी सेल के वरिष्ठ कार्यकर्ता सरल पटेल के आरटीआई की जानकारी जब सामने आई उस समय अनुसूचित जाति से आने वाले एक लेखक को पढ़ रहा था। लेखक ने आरटीआई को धंधा बनाने वालों पर तंज करते हुए लिखा था — ”आजकल ‘आरटीआई एक्टिविस्ट’ होना एक नया धंधा है। हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आए! जब से आरटीआई क़ानून आया है, उसके बाद पेशेवर आरटीआई एक्टिविस्टों की सम्पत्ति जिस गति से बढ़ी हैं। इसकी जांच होनी चाहिये। भ्रष्टाचार के इन नए स्टेक होल्डर्स ने इस महान क़ानून की आत्मा को नष्ट कर दिया हैं!”
कुछ का धन बढ़ा है और सरल पटेल जैसों को कांग्रेस में पद मिला है। सरल पटेल ने 26 मार्च को आरटीआई का जिक्र करते हुए लिखा कि वे प्रधानमंत्री कार्यालय से बांग्लादेश यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री के उस दावे के संबंध में जानना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के दौरान जेल जाने की बात की।
सरल पटेल आरटीआई के माध्यम से जानना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री किस जेल में बंद रहें। यह जानने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क करने की जरूरत नहीं थी। दरअसल उन्हें कांग्रेस कार्यालय से संपर्क करना चाहिए था क्योंकि आपातकाल में कांग्रेस ने क्या किया सब जानते हैं।
यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि 1971 में रा.स्व.संघ ने बांग्लादेश की मुक्ति के लिए देश में आंदोलन किया और गिरफ्तारियां दीं। इंदिरा गांधी की सरकार ने कुछ को तो सामान्य आंदोलनकारियों की तरह सुबह पकड़कर शाम तक छोड़ दिया, पर कुछ को तिहाड़ जेल तक में बंद किया गया। इस बात की गवाही उस समय के प्रकाशित अखबारों से लेकर दर्जन भर से अधिक किताबें दे रहीं हैं। जिसमें बांग्लादेश आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों का उल्लेख है। मोदीजी ने बांग्लादेश में उसी आंदोलन की चर्चा की है।
मोदी के खिलाफ यूट्यूब पर बोलने और ट्विटर पर लिखने के लिए सबसे अधिक वही लोग आज कंटेंट तलाश रहे हैं, जिनको मोदी ने अप्रासंगिक कर दिया है। ऐसे लोग यहां वहां से प्रायोजक ढूंढ—ढूंढ कर कोलकाता से लेकर गुवाहाटी तक से यूट्यूब पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं। यह ऐसा जताने की कोशिश कर रहे हैं कि वे जमीनी रिपोर्ट दिखा रहे हैं लेकिन सचाई यही है कि वे मोदी विरोधियों के बीच घिर कर रिपोर्ट दिखा रहे होते हैं। ये आईटी सेल और यूट्यूब वाले अब निराश हो गए हैं। मोदी विरोधी आईटी सेल के सबसे प्रमुख चेहरे प्रशांत किशोर के दावे भी पश्चिम बंगाल में फेल होते दिख रहे हैं। सरल पटेल की सरलता पर बट्टा लग रहा है तो यह आश्चर्य की बात नहीं मानी जानी चाहिए।
इस पूरे मामले पर नेटवर्क 18 समूह के प्रबंध संपादक ब्रजेश कुमार सिंह की टिप्पणी सटीक जान पड़ती है। श्री सिंह कहते हैं — ”देख रहा हूं कि ‘फ़ैक्ट चेकिंग’ के नाम पर दुकान चलाने वाली कई वेबसाइट्स भी अपने एजेंडे के हिसाब से ‘फैक्ट चेक’ कर रही हैं! अगर आकाओं के एजेंडे के ख़िलाफ़ तथ्य हैं, तो या तो उस पर चर्चा ही नहीं करना या फिर संदेह का वातावरण बना देना काम हो गया है इनका! ऐसे में भला कौन भरोसा करेगा इन पर?”
वास्तव में कांग्रेस और उसका वामपंथी इको सिस्टम जिसे झूठा साबित करने पर तुला है, वह सच है। गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार किशोरभाई मकवाणा की किताब ‘कॉमनमैन नरेन्द्र मोदी, कहानी जनता के प्रधानमंत्री की’ इस संदर्भ में सबसे अधिक साझा की गई क्योंकि उनकी किताब को पढ़कर, मोदीजी ने बांग्लादेश में जो कहा वह सच है, इस बात में कोई संशय नहीं रहता। यह एक तथ्य है कि 1971 में आरएसएस ने बांग्लादेश की मुक्ति के लिए देश में आंदोलन किया और गिरफ्तारियां दीं। जिसे कांग्रेस और उसके इको सिस्टम के वामपंथी आईटी सेल वाले झूठला नहीं सकते।
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