जिस समय मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया, तो रोहिंग्या मुसलमानों ने जी-जान से उनका साथ दिया था
रोहिंग्या घुसपैठिये पूरी दुनिया के लिए सरदर्द बने हुए हैं. भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने का काम कथित धर्मनिरपेक्ष दलों की वोटबैंक की राजनीति के कारण कभी पूरा न हो सका. उस पर अब रोहिंग्या घुसपैठिये भारत के कोने-कोने में फैल चुके हैं. म्यांमार से खदेड़े गए ये हिंसक मुस्लिम निकटवर्ती चीन, थाईलैंड जैसे देशों में नहीं गए. इस देश को धर्मशाला बना देने वाली कांग्रेस के सौजन्य से ये भी भारत में आ घुसे. और 2200 किलोमीटर दूर जम्मू-कश्मीर तक जा बसे. बंगाल में इन्हें अभिभावक के रूप में ममता मिलीं. जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार. दिल्ली में केजरीवाल तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी. इनके अतीत, इनकी मंशा और तमाम अवैध रूप से देश में दाखिल होने की गतिविधियों की अनदेखी करते हुए इन्हें राशन कार्ड से लेकर आधार कार्ड तक दिलवा दिए गए. अब भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने इन्हें वापस म्यांमार भेजने का बीड़ा उठाया है, तो वाजिब तौर पर इन मुस्लिम परस्त दलों के पेट में दर्द उठ रहा है.
विधानसभा चुनाव में हाल ही में असम में कांग्रेस की एक उम्मीदवार, जो बीडीओ पद से रिटायर हुई हैं, उन्होंने बांग्लादेशी मुसलमानों को याद दिलाया कि कैसे उन्होंने कुर्सी पर रहते हुए उनके कागजात बनवाए, राशनकार्ड बनवाए. यह एक घटना रोहिंग्या घुसपैठियों के देश के विभिन्न हिस्सों में बस जाने और उनके पास वैध दस्तावेज तक आ जाने की कहानी बताने के लिए काफी है. इस कांग्रेस उम्मीदवार के मुंह से जो निकला, वह इस देश का राजनीतिक सच है. मुस्लिमों के जनसंख्या विस्फोट के बीच बांग्लादेशी और फिर रोहिंग्या मुसलमान उन राज्यों में गले लगाए जा रहे हैं, जहां मुस्लिम परस्त राजनीतिक दलों का वर्चस्व रहा है.
हमेशा से कट्टर जिहादी रहे हैं रोहिंग्या
सवाल ये है कि ये आखिरकार रोहिंग्या हैं कौन. ये अखंड भारत के बंगाल प्रांत से तत्कालीन बर्मा में 16 वीं सदी के बीच पहुंचे. उस दौरान बर्मा की राजशाही में मुसलमानों को लेकर एक किस्म की हमदर्दी और पसंद पैदा हो गई थी. लेकिन रोहिंग्याओं का बड़ी तादाद में पहुंचना ब्रिटिश राज में हुआ. अंग्रेज रबड़ और चाय के बागानों में काम कराने के लिए 19वीं सदी में इन्हें मजदूर के तौर पर ले गए. जिस समय मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया, तो रोहिंग्या मुसलमानों ने जी-जान से उनका साथ दिया. पूर्वी पाकिस्तान बनने की बात शुरू हुई, तो रोहिंग्याओं को लगा कि बर्मा का रखाईन प्रांत, जहां ये मूल रूप से बसे हुए थे, पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. रोहिंग्याओं ने बौद्धों पर अत्याचार शुरू कर दिए. इस दौरान रोहिंग्या जिहादियों के एक गुट ने रखाईन को बाकायदा आजाद घोषित कर दिया. इनकी हिंसा का नंगा नाच बर्मा के रखाईन प्रांत में 1950 तक चला. इसके बाद बर्मा में सैन्य शासन लागू हो गया. सेना ने इन पर लगाम कसकर रखी. लेकिन 2010 के बाद रोहिंग्या पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और इस्लामिक देशों से आने वाली मदद के दम पर एक बार फिर हमलावर हो गए. 2012 में रोहिंग्या मुसलमानों और स्थानीय बौद्धों के बीच जबरदस्त दंगे हुए.
हमेशा रहे भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों में शामिल
सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी उमर सिद्दिकी और हैदर अली के मुताबिक सात जुलाई 2013 को बौद्ध गया के महाबोधी मंदिर में विदेशी पर्यटकों पर जो आतंकवादी हमला किया गया था वह म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर कथित अत्याचारों का बदला लेने के लिए था. यही वह गुट था, जिसने 27 अक्टूबर 2013 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए पटना के गांधी मैदान में बम धमाके किए थे. अप्रैल 2018 में सीरिया में अल कायदा के लिए काम कर रहा ब्रिटिश रोहिंग्या आतंकवाद समीऊ रहमन भारत भेजा गया. इसे भारत रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए लड़ने के लिए युवाओं की भर्ती करने और प्रेरित करने के लिए भेजा गया. रहमान के खिलाफ आरोपपत्र में एनआईए ने कहा कि यह भारत के खिलाफ अल कायदा की साजिश थी. रहमान के संपर्क पश्चिम बंगाल, झारखंड, दिल्ली और कई अन्य राज्यों में पाए गए.
2017 सितंबर में दिल्ली पुलिस को सूचना मिली कि राजू भाई नाम का शख्स आतंकवादी हमलों की साजिश रच रहा है. बाद में इस बात का खुलासा हुआ कि राजू भाई और कोई नहीं रहमान था जो कि सीरिया के अल नुसरा गुट से जुड़ा हुआ था. रहमान को हथियारों की ट्रेनिंग मिली थी और वह अल कायदा के संपर्क में था. वह सीरियाई सेना के खिलाफ भी लड़ चुका था.
अगस्त 2019 में पुलिस ने रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय के तीन लोगों को उठाया. इनसे जम्मू शहर के चन्नी हिम्मत क्षेत्र की एक झुग्गी से बरामद किए गए तीस लाख रुपये के बारे में पूछताछ की गई. जांच में पता चला कि ये रकम दो बांग्लादेशी नागरिकों इस्माइल और नूर आलम की थी. दोनों ही जम्मू में पिछले छह माह से बिना किसी वैध दस्तावेज के रह रहे थे. जांच में ये भी पता चला कि ये पैसा कुछ देशद्रोही घटनाओं के लिए आया था.
2015 में कश्मीर में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में एक म्यांमारी आतंकी छोटा बर्मी अपने दो अन्य साथियों संग मारा गया. छोटा बर्मी लश्कर से जुड़ा हुआ था. उसकी मौत ने साबित कर दिया कि रोहिंग्या आतंकी भी लश्कर और जैश के कैडर के साथ कश्मीर में दाखिल हो चुके हैं. इसके बाद एक और रोहिंग्या के आतंकी बनने की पुष्टि हुई. नवंबर 2016 के बाद यह मामला सियासी, सांप्रदायिक और जम्मू बनाम कश्मीर हो गया. नवंबर 2016 में जम्मू के नरवाल में हुए भीषण अग्निकांड में रोहिंग्या शरणार्थियों की कई झुग्गियां जल गई थी. चार रोहिंग्या झुलसकर मर गए थे. जमात ए इस्लामी समेत सभी मुस्लिम संगठन और कश्मीर के सभी अलगाववादी संगठनों ने मामले को मुद्दा बनाया. नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी,अवामी इत्तेहाद पार्टी जैसे संगठन इस्लाम के नाम पर रोहिंग्याओं के पक्ष में खड़े नजर आए.
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