प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 17 मार्च को एक ट्वीट किया। इसके जरिए उन्होंने लोगों को बताया कि गुजरात के नर्मदा जिले के केवड़िया में सरदार पटेल की प्रतिमा ‘स्टैच्यू आफ यूनिटी’ को लोकार्पण के बाद से अब तक 50 लाख लोग देखने आ चुके हैं। साथ ही, उन्होंने अन्य लोगों से भी इसे देखने का आग्रह किया। नर्मदा नदी के तट पर निर्मित विश्व की इस सबसे ऊंची प्रतिमा से सरदार सरोवर बांध का मनमोहक दृश्य तो दिखता ही है, गुजरात सरकार द्वारा विकसित संग्रहालय, बटरफ्लाई पार्क, टेंट सिटी, जंगल सफारी आदि के साथ आसपास के स्थानों के रमणीय प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद लिया जा सकता है। यहां पर अब साल भर सेमिनार, कॉर्पोरेट बैठकें, सम्मेलन होते रहते हैं। स्वयं प्रधानमंत्री भी पिछले दो वर्षों के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों में कई बार उपस्थित रहे। कुल मिलाकर केवड़िया अब विश्व के मानचित्र पर भारत के सर्वाधिक देखे गए पर्यटन स्थलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है।
‘स्टैच्यू आफ यूनिटी’ नर्मदा में ही क्यों!
नर्मदा जिले में 90 प्रतिशत लोग ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं। यहां की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी जनजातीय है। यह केंद्र सरकार के पिछड़े क्षेत्रों को दी जाने वाली विशेष सहायता के सबसे बड़े लाभार्थी जिलों में शामिल है। फिर भी स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार की दृष्टि से इसकी गिनती सबसे पिछड़े जिलों में होती है। केंद्र सरकार के आर्थिक अनुदानों से इस जिले की तस्वीर नहीं बदली। यहां आज भी लोग नंगे पांव दिख जाते हैं। यहां के युवा समीपवर्ती सूरत, वडोदरा, भरूच जैसे स्थानों पर जाकर मजदूरी करने को विवश हैं। जनजातीय समुदाय ने अमर सिंह चौधरी के रूप में राज्य को एक मुख्यमंत्री भी दिया है।
गुजरात का 18 प्रतिशत भू-भाग व 14.8 प्रतिशत आबादी जनजातीय है। राज्य के कुछ इलाके गरीबी रेखा से बहुत नीचे हैं या नीचे रखे गए हैं। गरीबी, उस पर वनवासी व जंगल का क्षेत्र, मिशनरियों के फलने-फूलने के लिए यह अनुकूल वातावरण होता है। गुजरात के दक्षिणी छोर उमर गांव से लेकर उत्तर के गोधरा-साबरकांठा तक की लंबी सीमा के महाराष्ट्र से लगे होने के कारण यहां आए दिन नक्सली गतिविधियां होती रहती हैं। इन इलाकों में बड़ी संख्या में एनजीओ शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की आड़ में ईसाई मत के प्रचार में जुटे हुए हैं। इन संस्थाओं द्वारा जनजातीय लोगों को बहला कर कन्वर्ट करने की खबरें अक्सर मीडिया में आती रहती हैं। अकेले ताप्ती जिले में ही ‘इंडिया गॉस्पेल लीग’ का 340 चर्च स्थापित करने का लक्ष्य है, जहां 523 छोटे-छोटे गांव हैं। यहां 6.6 प्रतिशत लोग कन्वर्ट हो चुके हैं। बीते कुछ दशकों के दौरान इन इलाकों में सैकड़ों चर्च बन गए हैं। ईसाई मिशनरियां जहां भी जाती हैं, अन्याय, जमीन पर अधिकार और आदिवासी-मूल निवासी-आर्य प्रपंच के नाम पर सीधे-साधे लोगों को भड़काती हैं। लोगों को शुरू में लगता है कि वे उनकी हितैषी हैं, लेकिन कब महज चंद किलो चावल के बदले उन्हें ईसाई बना दिया जाता है, उन्हें इसका पता ही नहीं चलता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिशनरियों की करतूतों को अपने सामाजिक जीवन की अवधि में बहुत करीब से देखा व समझा है। इन्हीं कारणों से उन्होंने केवड़िया को सरदार पटेल की प्रतिमा के लिए चुना।
‘भीलिस्तान’ की साजिश
आज का युवा आसानी से एनजीओ के फैलाए प्रपंच में फंसकर गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं और अपने जीवन के साथ परिवार को भी तबाह कर देते हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान के जनजातीय बहुल जिलों को मिलाकर नक्सलियों और वामपंथियों के सहयोग से ‘भीलिस्तान देश’ बनाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। इसके लिए बाकायदा ‘भीलिस्तान टाइगर फोर्स’ का गठन भी किया जा चुका है। गुजरात के बहुतायत युवा इस संगठन से जुड़े हुए हैं। इन्हें भ्रमित कर हथियार उठाने के लिए उकसाने में वरवर राव, सुधा भारद्वाज, कोबाड गांधी, मेधा पाटकर जैसों ने कोई कमी नहीं छोड़ी है। इन्हीं षड्यंत्रों को देखते हुए नरेंद्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में वनवासी समाज के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। इसके पीछे उनका उद्देश्य इस समस्या का स्थायी समाधान करना था। वे कुछ बड़ा करना चाहते थे ताकि इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर सृजित किए जा सकें। देश-विदेश के लोगों के यहां आकर रहने से वनवासी समाज भी उनके संपर्क में आएगा, जिससे वे अच्छा जीवन जीने के लिए प्रेरित हो सकेंगे। यही कारण है कि वामपंथियों को यह परियोजना फूटी आंख नहीं सुहाती। वे स्टैच्यू आॅफ यूनिटी की जगह अस्पताल बनाने की रट लगा रहे थे, क्योंकि उन्हें यह डर था कि अगर वनवासी समुदाय आत्मनिर्भर हो गया तो उनके प्रपंचों में नहीं फंस कर वह न तो कन्वर्ट होगा और न ही हथियार उठाएगा। जब ऐसा कुछ होगा ही नहीं तो जाहिर है, उनके धन के स्रोत भी बंद हो जाएंगे।
इसलिए जब सरदार पटेल की भव्य एवं विशाल प्रतिमा बनाने का विचार बना तो केवड़िया पहली पसंद रहा। देश को एक सूत्र में पिरोने वाले सरदार पटेल के बाद आज उनकी प्रतिमा इस देश के उपेक्षित जनजातीय समाज के कल्याण के लिए मजबूती से खड़ी है। बीते दो वर्ष में 50 लाख लोग इसे देखने आ चुके हैं, जो अमेरिका की ‘स्टैच्यू आॅफ लिबर्टी’ तथा पेरिस के एफिल टावर को देखने वाले आने पर्यटकों की संख्या से कहीं अधिक है। इतनी अधिक संख्या में लोगों के आने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को कितना लाभ हुआ होगा! होटल-रेस्तरां खुलने से कितने लोगों को रोजगार मिला होगा! इससे स्थानीय कृषि उपजों का उचित दाम किसानों को अपने घर के आंगन में ही मिल रहा है। दूध व दुग्ध उत्पाद से भी लोगों की आर्थिक स्थिति सुधार रही है। कुल मिलाकर इस परियोजना से हजारों स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिल रहा है।
गुजरात सरकार भी केवड़िया को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में मानचित्र पर लाने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र ने हाल ही में अमदाबाद-केवड़िया शताब्दी रेल सेवा शुरू की है। केवड़िया को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने के लिए सीधी रेल सेवाएं शुरू करने के साथ वहां हवाईअड्डा भी बनाने की योजना है। केवड़िया के आसपास भी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ‘वाटर स्पोर्ट्स’, जंगल सफारी और तरह-तरह के पार्क आदि विकसित किए जा चुके हैं। आजादी के 72 वर्ष बाद यहां का वनवासी समाज आधुनिक विकास का साक्षी बन रहा है। आने वाले समय में क्षेत्र में विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा के नए संकुल भी निर्मित होंगे। कुल मिलाकर अब स्थानीय लोगों को न तो रोजगार के लिए सूरत या अमदाबाद जाना पड़ेगा और न ही भविष्य में इस शिक्षा व चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ेगा। आने वाले समय में केवड़िया की गिनती गुजरात के सबसे समृद्ध स्थलों में होगी।
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