बहुत से लोग यह समझते हैं कि विंडोज और आफिस कम्प्यूटर के साथ ही आते हैं। यानी वे कम्प्यूटर का ही हिस्सा हैं। वास्तव में ऐसा बिल्कुल नहीं है। कम्प्यूटर एक हार्डवेयर है जिसे बनाने वाली कंपनियां अलग हैं जबकि विंडोज और आॅफिस सॉफ्टवेयर हैं जिन्हें माइक्रोसॉफ़्ट ने विकसित किया है। विंडोज और आॅफिस को अलग से कम्प्यूटर में डालना होता है। कई कम्प्यूटरों के साथ विंडोज पहले से मौजूद आता है क्योंकि कम्प्यूटर बनाने वाली कंपनी और माइक्रोसॉफ्ट ने इसके लिए व्यावसायिक अनुबंध किया होता है। ऐसा प्रयोक्ता की सुविधा के लिए किया जाता है ताकि उसे कम्प्यूटर के साथ कम लागत पर विंडोज भी मिल जाए। विंडोज एक आॅपरेटिंग सिस्टम है (सॉफ्टवेयर का एक प्रकार) जो कम्प्यूटर के हार्डवेयर तथा उसके भीतर काम करने वाले सॉफ्टवेयर के संचालन का काम देखता है। लेकिन विडोज अकेला आॅपरेटिंग सिस्टम नहीं है। एप्पल मैक ओएस तथा लिनक्स, दो अन्य लोकप्रिय आॅपरेटिंग सिस्टम हैं। वे भी वही काम करते हैं जो विंडोज करता है।
नि:शुल्क और मुक्त स्रोत सॉफ्टवेयर
लिनक्स एक मुक्त स्रोत आॅपरेटिंग सिस्टम है जिसके कई संस्करण नि:शुल्क भी मिलते हैं, जैसे कि उबन्तु और डेबियन। अगर आप कोई आॅपरेटिंग सिस्टम खरीदना नहीं चाहते तो इस तरह के नि:शुल्क आॅपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग कर सकते हैं। मुक्त स्रोत से आशय यह है कि उस सॉफ्टवेयर का सोर्स कोड भी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है और कोई व्यक्ति अगर प्रौद्योगिकी में प्रवीण है तो वह इस कोड में आवश्यकतानुसार बदलाव भी कर सकता है। आॅपरेटिंग सिस्टम के साथ-साथ आॅफिस सुइट के भी ऐसे विकल्प आते हैं जो मुक्त स्रोत तथा नि:शुल्क हैं। इनमें अपाची ओपन आॅफिस, लिब्रे आॅफिस, पोलारिस और डब्लूपीएस आॅफिस के नाम उल्लेखनीय हैं। इन सुइट में ऐसे कई सॉफ्टवेयर शामिल हैं जिनके जरिए आप अपना निजी तथा दफ्तर का ज्यादातर कामकाज कर सकेंगे। इन्हें इंटरनेट से खोजकर डाउनलोड तथा इन्स्टॉल किया जा सकता है।
नि:शुल्क सॉफ्टवेयर की बात चली है तो जान लीजिए कि अधिकांश श्रेणियों का कामकाज करने के लिए नि:शुल्क सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं। अवास्ट और एवीजी दो अच्छे एंटीवायरस सॉफ्टवेयर हैं जिनके नि:शुल्क संस्करण भी उपलब्ध हैं और वे काफी कारगर हैं। अगर आप फोटोशॉप का विकल्प तलाश रहे हैं तो जिम्प (GIMP) और कृता (KritaÔ) को आजमा सकते हैं। अगर मीडिया के क्षेत्र में पेजमेकिंग जैसे काम के लिए सॉफ्वटेयर चाहिए तो अनधिकृत (पाइरेटेड) सॉफ्टवेयर की बजाए स्क्राइबस (Scribus) या लिब्रे आॅफिस ड्रॉ (Draw) का प्रयोग कर सकते हैं। ये सॉफ्टवेयर कोरल ड्रा, एडोबी इनडिजाइन आदि के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
ई बुक
लेखकों और पाठकों दोनों के लिए ई बुक एक क्रांति लेकर आई हैं। इलेक्ट्रॉनिक फॉरमैट में किताबें जारी होने के बाद लेखकों को भौगोलिक सीमाओं से परे नए पाठक मिल जाते हैं जो शायद मुद्रित किताबों के लिए संभव नहीं थे। पाठकों को अच्छी किताबें अपेक्षाकृत सस्ती दरों पर आसानी से मिल जाती हैं जिन तक पहुंचने के लिए पहले उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ती थी। अमेजॉन और फ्लिपकार्ट भारत में ई बुक्स के अच्छे ठिकाने हैं, लेकिन अगर आप चाहें तो बहुत सारी ई बुक्स नि:शुल्क भी डाउनलोड कर सकते हैं। कुछ ठिकानों के नाम हैं-फीडबुक्स (feedbooks),, प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग (Project Gutenberg) और ओपन लाइब्रेरी (OpenLibrary)।
अगर आप एक लेखक हैं और आपकी कोई पुस्तक प्रकाशित होने वाली है तो आपको उसके ई बुक के विकल्प को भी आजमाना चाहिए। याद रखिए, आज मुद्रित किताब से ज्यादा आसान है उसका इलेक्ट्रॉनिक संस्करण यानी ई बुक बेचना। ऐसी किताबों को आॅनलाइन माध्यमों से भी बेचा जा सकता है। अब ई बुक बनाना कोई मुश्किल काम नहीं रहा और मूल किताबों को डिजाइन करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अच्छे सॉफ़्टवेयर ही उन्हें ई बुक में तब्दील करने की सुविधा भी देते हैं, जैसे कि एडोबी इनडिजाइन। ई बुक के बाद इन दिनों आॅडियो बुक्स का भी दौर चल रहा है। इस विकल्प को भी आजमाया जा सकता है। जब एक ही बार काम करने के बाद उसे अलग-अलग रूपों में लोगों तक पहुंचाया जा सकता है तो सिर्फ अनभिज्ञता की वजह से आप इन अवसरों से वंचित क्यों हों? जो पाठक आॅडियोबुक्स में रुचि रखते हैं वे अमेजॉन, आॅडिबल (Audible) या गूगल आॅडियोबुक्स को आजमा सकते हैं।
फोन नंबर सहेजना
अब एक छोटी, लेकिन जरूरी जानकारी। शायद ही कोई मोबाइल फोनधारक हो जिसके साथ ऐसा न हुआ हो। आपने जितने टेलीफोन नंबर जतन से जमा किये, वे मोबाइल फोन को गलती से रिसेट कर दिए जाने, उसके खराब हो जाने या चोरी हो जाने पर हमेशा के लिए आपके हाथ से निकल जाते हैं। अगर आप शुरू में ही अपने फोन नंबरों को बैकअप करने की सेटिंग कर दें तो आपको कभी इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। हालांकि अगर आपने शुरू में ऐसा न किया हो तो बाद में भी यह किया जा सकता है। तरीका इस तरह है-अपने फोन की सेटिंग्स में जाकर ‘अकाउंट्स एंड बैकअप’ पर जाएं। अब ‘बैकअप एंड रिस्टोर’ पर टैप करें। यहां जहां पर ‘गूगल अकाउंट’ लिखा दिखाई दे रहा हो, वहां पर ‘बैक अप माई डेटा’ नामक विकल्प के आगे दिए बटन को क्लिक करके सक्रिय कर दें। इसके साथ ही दिखाई देने वाले ‘बैकअप अकाउंट’ विकल्प पर टैप करें। यहां आपका गूगल अकाउंट दिखाई देगा। उसे चुन लें। अलग-अलग फोन में ये विकल्प अलग-अगल जगहों पर हो सकते हैं। अगर आपको भी ये विकल्प यहां बताए गए क्रम में न मिलें तो सेटिंग्स में जाकर उनका नाम डालकर सर्च करें। परिणाम में से अपने मतलब के विकल्प पर उंगली से टैप करें और आगे बढ़ें।
अब समय-समय पर आपके मोबाइल फोन में सहेजी गई सामग्री जैसे, फोन नंबर, वाइफाइ पासवर्ड आदि स्वत: गूगल के उस अकाउंट पर अपडेट किए जाने लगेंगे जिसका इस्तेमाल आप अपने कंप्यूटर या मोबाइल फोन पर ईमेल आदि के लिए करते आए हैं। कभी फोन के साथ कुछ हो गया तो आपके तमाम फोन नंबर गूगल अकाउंट से वापस डाउनलोड किए जा सकते हैं।
अगर आप ऐसा न करना चाहें तो इसके विकल्प भी मौजूद हैं। जैसे आप अपने ‘कॉन्टेक्ट्स’ एप के जरिए तमाम टेलीफोन नंबरों को किसी के साथ भी साझा कर सकते हैं। इसके लिए उस एप की सेटिंग्स में जाएं और ी७स्रङ्म१३ या २ँं१ी में से जो भी विकल्प उपलब्ध हो, उस पर टैप करें। अब अपने सभी फोन नंबरों को चुन लें और साझा करने के लिए ईमेल एड्रेस, व्हाट्सएप अकाउंट या किसी भी दूसरे विकल्प का चुनाव कर लें। आप चाहें तो इन्हें आॅनलाइन ड्राइव (माइक्रोसॉफ्ट वन ड्राइव, गूगल ड्राइव) आदि पर भी सहेज सकते हैं। बाद में जब भी जरूरत हो, उन्हें फिर से ‘कॉन्टेक्ट्स’ एप में लाया जा सकता है।
(लेखक सुप्रसिद्ध तकनीक विशेषज्ञ हैं)
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