शीर्षक पढ़ कर चौंकिए मत, यहां न तो किसी को चाय बताया जा रहा है और न ही कॉफी, बल्कि चर्चा है पंजाब के दो कांग्रेसी धुरंधरों की जो कई सालों से नाराज चले आ रहे हैं। बुधवार को दोनों नेताओं ने संधि के लिए चाय पार्टी की परंतु उसका परिणाम नहीं निकला अर्थात चाय काफी (पर्याप्त) नहीं रही। शीर्षक पढ़ कर चौंकिए मत, यहां न तो किसी को चाय बताया जा रहा है और न ही कॉफी, बल्कि चर्चा है पंजाब के दो कांग्रेसी धुरंधरों की जो कई सालों से नाराज चले आ रहे हैं। बुधवार को दोनों नेताओं ने संधि के लिए चाय पार्टी की परंतु उसका परिणाम नहीं निकला अर्थात चाय काफी (पर्याप्त) नहीं रही। कई सालों से अपनी ही सरकार से नाराज चले आ रहे पंजाब के पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ चाय पर मुलाकात समाप्त हो गई है। दोनों नेताओं के बीच सौहार्द पूर्ण माहौल में बातचीत हुई। इस दौरान उन्होंने करीबी दिखावे वाले अंदाज में फोटो भी खिचवाईं। मुलाकात के बाद सिद्धू बिना मीडिया कर्मियों से बात किए चले गए। दोनों नेताओं की मुलाकात करीब 35 मिनट चली। इसके बाद सिद्धू के पंजाब कैबिनेट में फिर शामिल होने को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। दूसरी ओर, थोड़ी देर पहले सिद्धू के एक ट्वीट ने मामले में रहस्य पैदा कर दिया। इसके अपने-अपने मायने निकाले जा रहे हैं। नवजोत सिद्धू ने ट्वीट में लिखा है-'आजाद रहो विचारों से, लेकिन बंधे रहो संस्कारों से…ताकि आस और विश्वास रहे किरदारों पे। इस ट्वीट को कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ नवजोत सिंह सिद्धू की मुलाकात को जोड़ा जाने लगा है। बता दें कि कैप्टन ने इससे पहले भी नवजोत सिद्धू को अपने यहां लंच पर बुलाया था। इसके बाद उनको बुधवार को कैप्टन द्वारा चाय के लिए न्यौता देने को उनके पंजाब कैबिनेट में वापसी से जोड़ा जाने लगा। अभी तक दोनों नेताओं की बातचीत को लेकर कोई खुलासा नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री के निकटवर्ती सूत्रों का कहना है कि दोनों नेताओं ने आज हाथ जरूर मिलाया, लेकिन गले मिलने तक नौबत नहीं आई। सिद्धू और कैप्टन ने चाय का कप जरूर साझा किया और ज्यादातर पारिवारिक बातें ही हुईं। चर्चा थी कि सिद्धू को कैबिनेट में एडजस्ट करने के बारे में आज कोई न कोई फैसला हो जाएगा और जल्द ही उनकी गाड़ी पर एक बार फिर से झंडी सज सकती है। लेकिन, उनके मीटिंग में जाने से पहले उनकी पत्नी डॉ नवजोत कौर सिद्धू ने जिस तरह से बेबाकी से अपनी बात रखी, उससे ही साफ हो गया कि आज कुछ नहीं होने वाला। डॉ. सिद्धू ने कहा कि अब कोई एक साल में मंत्री बनकर क्या परफारमेंस दिखा पाएगा। उन्होंने कहा कि वह पद के पीछे नहीं भागते बल्कि उनके लिए पंजाब ही महत्वपूर्ण है। सियासी हलकों में चर्चा है कि पार्टी उन्हें इस चुनावी साल में किसी भी तरह से उपयोग में रखना चाहती है। पंजाब में जिस तरह के सियासी हालात बने हुए हैं, उससे कांग्रेस को उम्मीद है कि वह दोबारा सत्ता में आ सकती है। ऐसे में अगर सिद्धू जैसा बेबाक नेता उनके साथ नहीं रहता तो इसका संदेश अच्छा नहीं जाएगा। नवजोत सिंह सिद्धू के पार्टी प्रधान बनने की भी अटकलें पिछले कई दिनों से लग रही हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए यह फैसला लेना मुश्किल है। क्योंकि मुख्यमंत्री और पार्टी प्रधान दोनों महत्वपूर्ण पद किसी एक वर्ग को ही नहीं दिए जा सकते। 2017 के चुनाव में समाज का एक वर्ग खुलकर कांग्रेस के पक्ष में रहा है। सुनील जाखड़ को हटाकर कांग्रेस उस वर्ग को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती। दूसरा, सिद्धू के पास संगठन में काम करने का कोई अनुभव भी नहीं है। उन्हें एडजस्ट करने के फार्मूले में उन्हें इस चुनावी साल में प्रचार कमेटी का चेयरमैन बनाने की भी चर्चा है। उधर, पता चला है कि पंजाब मामलों के प्रभारी हरीश रावत भी 20 मार्च को पंजाब आ रहे हैं। उनके आने पर क्या यह रुकी हुई बात आगे बढ़ पाएगी इसको लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है।
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