प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत 2 मार्च को ‘भारत समुद्र शिखर सम्मेलन-2021’ का उद्घाटन कर अर्थ के क्षेत्र में भारत के सामुद्रिक सामर्थ्य को विश्व पटल पर शीर्ष स्थान दिलाने हेतु एक समयोचित पहल की है। वैश्विक सामुद्रिक अर्थतंत्र के परिक्षेत्र में भारत को वैश्विक नेतृत्व की भूमिका में स्थापित करने की दिशा में आयोजित इस आॅनलाइन सामुद्रिक सम्मेलन ‘सागरमंथन’ में 100 से अधिक देशों से 1़ 70 लाख प्रतिभागियों की सहभागिता आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के बढ़ते प्रभाव की परिचायक है। इस त्रिदिवसीय सम्मेलन में आठ देशों के मंत्रियों सहित कई देशों के राजदूतों, 100 से अधिक कम्पनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों और 160 विशेषज्ञ व्याख्यानकर्ताओं ने भाग लिया। इन विशेषज्ञों में 24 देशों के 115 शीर्ष अंतरराष्टÑीय विशेषज्ञ भी सम्मिलित हैं। इस अवसर पर भारत के सामुद्रिक सामर्थ्य को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि, सामुद्रिक आर्थिक सामर्थ्य के क्षेत्र में भारत का पारम्परिक रूप से नैसर्गिक नेतृत्व रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट घोषणा की कि यह ‘शिखर सम्मेलन समुद्री क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों को एक साथ लाएगा और भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था के विकास को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगा। भारत इस क्षेत्र में पारम्परिक रूप से एक प्राकृतिक अगुआ रहा है। भारतीय तटों पर उन्नत सामुद्रिक अर्थव्यवस्थाएं और सभ्यताएं फलती-फूलती रही हैं।
केवल समुद्री नौवहन में ही ढाई लाख करोड़ रु. की परियोजनाओं के प्रारूप तैयार हो चुके हैं और 2016 की सागरमाला योजना के अन्तर्गत 6 लाख करोड़ की परियोजनाओं पर पहले से चिह्नित हैं।
ढांचागत सुविधाओं के विस्तार को प्राथमिकता
प्रधानमंत्री ने इस सम्बन्ध में सरकार के दृढ़ आशय को स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘सरकार का ध्यान वर्तमान ढांचागत सुविधाओं को उन्नत बनाने, नई पीढ़ी की अवसंरचना तैयार करने और जहाज निर्माण की क्षमताओं में वृद्धि को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने पर है।’ ढांचागत सुविधाओं के विस्तार, दिशासूचक प्रणाली और नदी सूचना प्रणाली व्यवस्था के जरिये क्षेत्रीय संपर्क को बेहतर बनाने पर भी ध्यान दिया जाएगा। इससे बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार तक बेहतर आवागमन सुनिश्चित हो सकेगा।
बंदरगाहों में निवेश को व्यापक प्रोत्साहन
मोदी ने कहा कि ‘भारतीय बंदरगाहों पर पहुंचने वाले जलपोतों और माल लेकर निकलने वाले जलपोतों के लिये प्रतीक्षा समय कम हुआ है, बंदरगाहों पर भंडारण सुविधाओं में निवेश किया जा रहा है। हम बंदरगाहों में निजी निवेश को प्रोत्साहन देंगे। उन्होंने आगे कहा कि बंदरगाह क्षेत्र में अगले 15 वर्ष के दौरान 82 अरब डालर के निवेश की योजना है। ऐसे में भारत को निवेश का केंद्र बनाना दुनियाभर के निवेशकों के लिए अच्छा होगा। समुद्री नौवहन क्षेत्र में स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने की योजना है। इसके साथ ही जलमार्गों के विकास, समुद्री विमान सेवाओं की शुरुआत और तटीय रेखा पर स्थित प्रकाश स्तंभों को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाएगा। समुद्री नौवहन क्षेत्र में निवेशकों के लिए 31 अरब डॉलर मूल्य की 400 परियोजनाओं का खाका तैयार हो चुका है।
प्रधानमंत्री ने सामुद्रिक क्षेत्र में भारत के सभी पड़ोसी देशों को आमंत्रित किया है। उनका कहना है, ‘‘मैं दुनिया को भारत आने के लिए आमंत्रित करना चाहता हूं और हमारे विकास प्रक्षेपवक्र का हिस्सा बनाना चाहता हूं।’’ भारत समुद्री क्षेत्र में आगे बढ़ने और दुनिया की एक अग्रणी नीली अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने के बारे में बहुत गंभीर है। लेकिन, सामुद्रिक पड़ोसियों को आमंत्रित करते हुए भी, चीन की शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों को देखते हुए सम्मेलन से चीन को दूर ही रखा गया है। प्रधानमंत्री व सरकार का कूटनीतिक दृष्टि से यह अत्यन्त साहसिक कदम है।
पर्यटन विकास का लक्ष्य
भारत का लक्ष्य 2030 तक देश में 23 जलमार्गों को परिचालन में लाने का है। सड़क परिवहन की तुलना में जलमार्ग से परिवहन लागत की दृष्टि से मितव्ययी और पर्यावरण रक्षा के लिए अत्यन्त अनुकूल तरीका है। प्रधानमंत्री ने सामुद्रिक क्षेत्र में पर्यटन विकास की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि भारतीय तटक्षेत्र में 189 लाइटहाउस में से 78 को पर्यटन के तौर पर विकसित करने की योजना है। इससे पर्यटन विकास, विदेशी मुद्रा अर्जन व रोजगार में भी वृद्धि होगी। यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि जहाजरानी क्षेत्र में विश्व भर में कार्यरत अधिकारियों में भारत का हिस्सा 9 प्रतिशत से भी अधिक है। विश्व में भारतीय नौवहन अधिकारियों की संख्या 86,084 है।
जलपोत निर्माण हेतु वित्तीय सहायता
भारत विश्व के चार इस्पात उत्पादकों में से एक होते हुए भी जलपोत निर्माण में अपना स्थान नहीं बना पाया है। इसलिए देश में जलपोत निर्माण के विस्तार पर बल देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में स्पष्ट रूप से घोषित किया कि सरकार घरेलू स्तर पर जलपोत निर्माण सुविधायें खड़ी करने, उनकी मरम्मत का बाजार बनाने पर पूरी गम्भीरता से ध्यान दे रही है, इस हेतु जलपोत निर्माण कारखानों को पर्याप्त वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी। वैश्विक जलपोत निर्माण के 92 प्रतिशत पर चीन, दक्षिण कोरिया और जापान का नियंत्रण है। भारत का अंश एक प्रतिशत से भी न्यून है। इससे भारत जलपोत निर्माण में अपना स्थान बना सकेगा।
2016 में केन्द्र सरकार द्वारा बंदरगाह के नेतृत्व वाले विकास को बढ़ावा देने के लिए सागरमाला परियोजना की घोषणा की गई थी, जिसमें 6 लाख करोड़ रुपये की लागत से 574 से अधिक परियोजनाओं को 2015-2035 के दौरान कार्यान्वयन के लिए चिह्नित किया गया है। ये परियोजनाएं 2030-35 तक परिचालन में आ जाएंगी। पुराने जहाजों के पुनर्चक्रण में भारत के पारम्परिक नेतृत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि कचरे से सम्पदा उत्पन्न करने के लिए घरेलू जहाज पुनर्चक्रण उद्योग को भी बढ़ावा दिया जाएगा। भारत ने शिप्स एक्ट 2019 का पुनर्चक्रण किया और हांगकांग अंतरराष्टÑीय सम्मेलन के लिए सहमति व्यक्त की। जहाज पुनर्चक्रण में विश्व में भारत का 27 प्रतिशत अंश है।
इस सम्मेलन का उद्देश्य था भारत में समुद्री क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देना। शिखर सम्मेलन अगले दशक के लिए भारत के समुद्री क्षेत्र के विकास के रोडमैप की संकल्पना को साकार करेगा और भारत को वैश्विक समुद्री क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए काम करेगा।
सामुद्रिक अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बल
केंद्रीय बंदरगाहों के स्वतंत्र प्रभार, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री मनसुख मंडाविया के अनुसार, ‘‘भारतीय समुद्री क्षेत्र में आधुनिकीकरण, विकास, क्रूज पर्यटन, रोपैक्स फेरी सेवा, सी प्लेन सेवा की मांग बढ़ रही है और पूरी दुनिया भारत में निवेश करना चाहती है।’ बंदरगाहों के निकट स्मार्ट सिटी और औद्योगिक पार्कों के विकास की भी महत्वाकांक्षी योजना को स्पष्ट करते हुए प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि भारत बंदरगाहों को तटीय आर्थिक क्षेत्रों, पोर्ट बेस्ड स्मार्ट सिटी, औद्योगिक पार्कों के साथ जोड़ रहा है। इससे औद्योगिक निवेश बढ़ेगा और बंदरगाहों के नजदीक दुनियाभर की निर्माण गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
समयोचित पहल
भारत की यह अत्यन्त समयोचित पहल है। जहाजरानी क्षेत्र में भारत का स्थान सुधारने की अविलम्ब आवश्यकता है। भारत की 7,516 किलोमीटर लंबी तट रेखा है जो 9 राज्यों व कई द्वीपों में फैली हुई है। इस तट रेखा पर 12 बडेÞ और कई लघु पत्तन हैं। लेकिन, वैश्विक जलपोत स्वामित्व में भारत के स्वामित्व व ध्वज युक्त पोतों का अंश टन के आधार पर 0़ 88 प्रतिशत व डालर में आय के आधार पर मात्र 0़ 53 प्रतिशत है। भारत के स्वामित्व अर्थात् भारतीय ध्वज युक्त जलपोतों की संख्या 1737 है। विश्व के 10 प्रमुख सर्वोच्च जलपोतों के स्वामित्व युक्त देश क्रमश: जापान, ग्रीस, चीन, सिंगापुर, नार्वे, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैण्ड व डेनमार्क हैं।
6 वर्ष में क्षमता दोगुनी
हमारे बंदरगाहों ने इनबाउंड और आउटबाउंड माल ढुलाई के लिए प्रतीक्षा समय कम कर दिया है। हम पोर्ट और ‘प्ले-एंड-प्ले इन्फ्रास्ट्रक्चर’ में भंडारण की सुविधा के विकास में भारी निवेश कर रहे हैं ताकि उद्योगों को ‘पोर्ट लैंड’ के लिए आकर्षित किया जा सके। 6 वर्ष में बंदरगाहों की क्षमता को बढ़कर दुगुनी होने से देश में विदेश व्यापार व सामुद्रिक परिवहन के क्षेत्र में सहजीकरण हुआ है। 2014 में देश के बड़े बंदरगाहों की क्षमता करीब 870 मिलियन टन सालाना थी, जो अब बढ़कर करीब 1,550 मिलियन टन हो गई है। इससे न सिर्फ हमारे बंदरगाहों का विकास होता है, वरन् समग्र अर्थव्यवस्था के विकास में सहायता मिलती है।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर ई-बुक मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 जारी कर सामुद्रिक अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भारत के आगामी 10 वर्ष का विस्तृत मार्ग-चित्र भी प्रस्तुत किया। यह शिखर सम्मेलन व इसमें घोषित योजनाओं से 10-15 वर्ष में भारत सामुद्रिक अर्थव्यवस्था की एक महाशक्ति बन सकता है।
इन पर होगा पूरा ध्यान
हमारे स्वामित्व वाले टापुओं का समग्र विकास, नौवहन क्षेत्र में स्वच्छ अक्षय ऊ र्जा स्रोतों को बढ़ावा
सभी प्रमुख बंदरगाहों पर सौर और पवन ऊ र्जा आधारित विद्युत प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया पर तेजी से काम
घरेलू स्तर पर जहाजों के निर्माण और उनकी मरम्मत का बाजार विकसित करने को प्रोत्साहन
जलपोतों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए भारतीय शिपयार्ड के लिये वित्तीय सहायता नीति
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