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होम भारत

गांधी परिवार मतलब के यार

by WEB DESK
Mar 17, 2021, 01:10 pm IST
in भारत
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जब भी गांधी परिवार के राजनीतिक अस्तित्व पर संकट मंडराता है, यह उत्तर से भागकर दक्षिण चला जाता है। उत्तर में सियासी ठिकाना मिलते ही दक्षिण के मतदाताओं को भूल जाता है। इस परिवार को न तो देश की चिंता है और न देशवासियों की

देश के पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुदुचेरी में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। इसलिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी केरल में मछुआरों के साथ मछलियां पकड़ रहे हैं और देश को बांटने वाले बयान दे रहे हैं। इस बार उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत के लोगों की राजनीतिक समझ कम है। यही राहुल गांधी उत्तर भारत की अमेठी सीट से 15 साल तक सांसद रह चुके हैं। राहुल गांधी के इस विभाजनकारी बयान पर चौंकने की जरूरत नहीं है, बल्कि गांधी परिवार की फितरत ही यही है। उत्तर में जब इस परिवार की स्थिति जरा भी असहज होती है तो यह दक्षिण में शरण लेता है और जैसे ही उत्तर में इन्हें सियासी ठिकाना मिलता है तो ये दक्षिण को ठेंगा दिखा देते हैं।

पूर्व में राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी और मां सोनिया गांधी ने जो किया, वही अब कांग्रेस के ‘युवराज’ भी कर रहे हैं। दरअसल, राहुल गांधी बीते दिनों अपने नए संसदीय क्षेत्र वायनाड के दौरे पर थे। 23 फरवरी को उन्होंने तिरुअनंतपुरम में एक सभा में कहा, ‘‘15 साल मैं उत्तर भारत से सांसद था। मुझे वहां दूसरी तरह की राजनीति का सामना करना पड़ता था। केरल आना मेरे लिए ताजगी भरा रहा, क्योंकि यहां के लोग मुद्दों की राजनीति करते हैं। सिर्फ सतही नहीं, बल्कि मुद्दों की तह तक जाते हैं।’’

राहुल गांधी के बयान का मतलब
अमेठी में भाजपा नेत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से ऐतिहासिक पटखनी मिलने के बाद राहुल गांधी वायनाड सीट से संसद पहुंचे, जहां वह तरो-ताजा महसूस करते हैं। आज राहुल कहना चाहते हैं कि उत्तर भारत के लोग सतही मुद्दों पर राजनीति करते हैं। उनकी मां सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं, लेकिन उन्होंने भी उनके बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि राहुल गांधी आदतन लोगों को बांटते हैं। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘कुछ दिन पहले वह पूर्वी भारत में थे, तो पश्चिम भारत के खिलाफ जहर उगल रहे थे। आज दक्षिण में हैं तो उत्तर के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। लेकिन अब ‘बांटो और राज करो’ की राजनीति काम नहीं करेगी। लोगों ने इस राजनीति को खारिज कर दिया है।’’ नड्डा का इशारा राहुल गांधी द्वारा असम में गुजरात और गुजरातियों के लिए की गई अपमानजनक टिप्पणी की ओर था। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी ट्वीट किया, ‘‘अहसान फरामोश! इनके बारे तो दुनिया कहती है- थोथा चना बाजे घना।’’

यही नहीं, खुद कांग्रेस में भी उनके इस बयान पर तूफान मचा हुआ है। कांग्रेस में राहुल की विदूषक राजनीति के विरोध में झंडा बुलंद करने वाले जी-23 समूह के नेता आनंद शर्मा ने कहा कि कांग्रेस के पास उत्तर भारत के महान नेता रहे हैं। संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, कैप्टन सतीश शर्मा से लेकर राहुल गांधी जैसे नेताओं को चुनने के लिए कांग्रेस अमेठी के लोगों की आभारी है। कपिल सिब्बल भी राहुल के इस बयान का विरोध कर चुके हैं। राहुल गांधी की ओर से उत्तर भारतीय मतदाताओं को कमतर आंकने वाला बयान ऐसे समय में आया है, जब उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने पार्टी की जड़ें मजबूत करने के लिए उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। लेकिन राजनीतिक रूप से ‘नासमझ’ राहुल गांधी उनकी मेहनत पर ही पानी फेर रहे हैं।

इंदिरा ने किया था चिकमंगलूर का रुख
देश की राजनीति में 1978 का उपचुनाव महत्वपूर्ण माना जाता है। यह आपातकाल के तत्काल बाद का दौर था और लोगों में आपातकाल की ज्यादतियों के विरुद्ध बहुत आक्रोश था। उत्तर भारत से कांग्रेस का लगभग सफाया हो चुका था। इंदिरा गांधी के विरुद्ध एक लहर थी और उनके लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश की जा रही थी। आखिरकार यह तलाश कर्नाटक की चिकमंगलूर संसदीय सीट पर जाकर समाप्त हुई। चंद्र गौड़ा वहां से सांसद थे। चंद्र गौड़ा से त्यागपत्र दिलाकर चिकमंगलूर सीट खाली कराई गई। वहां इंदिरा का सामना कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जनता पार्टी के नेता वीरेंद्र पाटिल से हुआ।

इंदिरा गांधी ने अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान दक्षिण भारतीयों की शान में कसीदे पढ़े। वह कहती थीं कि दक्षिण के लोग कार्य संस्कृति को समझते हैं। दरअसल, पूरे उत्तर भारत में जिस तरह से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था, उसकी खीझ इंदिरा के बयानों में साफ झलकती थी। वह चिकमंगलूर में 77,000 मतों से चुनाव तो जीत गर्इं, लेकिन यह जीत उनकी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं थी। उपचुनाव में उन्हें राजनीतिक जीवनदान मिला, लेकिन वह चिकमंगलूर या दक्षिण भारत के साथ वफादारी नहीं निभा सकीं। चुनाव के दौरान उन्होंने लोगों से जो वादे किए थे, उन्हें भूल गर्इं और राजनीतिक पुनर्वास होने के बाद कभी चिकमंगलूर या दक्षिण भारत की ओर नहीं लौटीं।

कट्टरपंथियों के साथ कांग्रेस

19 मई, 1986- सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो प्रकरण में 23 अप्रैल, 1985 को फैसला सुनाया था कि किसी भी तलाकशुदा मुस्लिम महिला को पति से गुजारा-भत्ता पाने का अधिकार है। लेकिन 1986 में राजीव गांधी की अगुआई में कांग्रेस की सरकार बनी, जिसे बहुमत हासिल था। इसने शीर्ष अदालत के फैसले को पलटने के लिए मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण)-1986 कानून पारित किया।

9 मार्च, 2005- तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजिंदर सच्चर की अगुआई में सात सदस्यीय ‘सच्चर समिति’ का गठन किया था। इसका उद्देश्य देश के मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का अध्ययन करना था, जबकि हिंदुओं की स्थिति जानने के लिए आजादी के बाद आज तक ऐसी कोई समिति या आयोग नहीं बना। समिति ने 30 नवंबर, 2006 को लोकसभा में रिपोर्ट पेश की और संप्रग सरकार ने इसकी 76 में से 73 सिफारिशों को लागू भी कर दिया।

2006-तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अल्पसंख्यक कल्याण के लिए 15 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की थी। तब सोनिया गांधी ने सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा था कि इस कार्यक्रम का एकमात्र उद्देश्य अल्पसंख्यकों को लाभ पहुंचाना है। उस समय पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर ने राष्ट्रीय सलाहकार समिति से इसलिए इस्तीफा दे दिया था कि सरकारी योजनाओं को सीधे मुसलमानों से न जोड़कर अल्पसंख्यकों से क्यों जोड़ दिया गया।

दिसंबर 2006- तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 11वीं पंचवर्षीय योजना और विकास पर चर्चा के लिए बुलाई गई राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में कहा था, ‘‘समाज के सभी पिछड़े व अल्पसंख्यक वर्गों, विशेषकर मुसलमानों को विकास के लाभ में बराबर की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए उनका सशक्तिकरण किए जाने की जरूरत है। देश के संसाधनों पर पहला हक उन्हीं का है।’’

9 सितंबर, 2008- मालेगांव बम विस्फोट में पहली बार ‘भगवा या हिंदू आतंकवाद’ शब्द का प्रयोग किया गया। तब केंद्र में संप्रग व महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा की गठबंधन सरकार थी। ‘हिंदू आतंकवाद’ से जुड़े बयान पर भाजपा के तीव्र विरोध के बाद कांग्रेस नेता और तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने फरवरी 2013 में माफी भी मांगी थी। 

सितंबर 2013- मुजफ्फरनगर दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने हिंसाग्रस्त इलाके का दौरा किया था। लेकिन उनका यह दौरा मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति ही थी, क्योंकि सपा और बसपा में मुस्लिम वोटबैंक को लेकर रस्साकशी चल रही थी।

मई 2017- केरल के कन्नूर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गोमांस बांटा। इसमें एक आरोपी रिजील मुकुत्टी राहुल गांधी का करीबी था, जो कांग्रेस के टिकट पर 2011 में केरल विधानसभा चुनाव में तलाशैरी सीट से चुनाव लड़ चुका था।

11 जुलाई, 2018- राहुल गांधी ने बुद्धिजीवी और उदारवादी कहे जाने वाले मुसलमानों के साथ चाय पर चर्चा की। वह सच्चर समिति से जुड़े अबू सालेह शरीफ, पूर्व आईएएस एमएस फारुकी, रक्षांदा जलील, फराह नकवी, सुहैल अयूब, गजाला अमीन, इतिहासकार इरफान हबीब, आसिया जैदी, जफरुद्दीन खान फैजान आदि से मिले। दरअसल, सोनिया गांधी ने इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में कहा था कि भाजपा ने लोगों को यह भरोसा दिला दिया कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है, जिससे पार्टी हाशिए पर चली गई। पार्टी पर लगे इसी ठप्पे को हटाने के लिए राहुल गांधी ने गुजरात व कर्नाटक विधानसभा चुनावों में मंदिर यात्राएं की थीं। चाय पर चर्चा भी उसी का हिस्सा थी।

2019- भाजपा सरकार जब तीन तलाक के मुद्दे पर विधेयक लेकर आई तो कांग्रेस ने लोकसभा में इसका समर्थन किया, लेकिन राज्यसभा में संशोधनों के नाम पर इसे अटका दिया। कांग्रेस कट्टरपंथी मुसलमानों को नाराज नहीं करना चाहती थी।

2019-20- नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध शाहीन बाग में मुसलमानों के प्रदर्शन को कांग्रेस ने समर्थन दिया।

19 फरवरी, 2020- केरल में पुलिस प्रशिक्षुओं को मेस में बीफ परोसा जाता है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने यह कहते हुए कोझीकोड के मुकक्म पुलिस थाना के सामने ‘बीफ पार्टी’ की कि पुलिस प्रशिक्षुओं के मीनू से गोमांस को हटा दिया गया है। बीफ बांटने की शुरुआत केरल प्रदेश कांग्रेस समिति के सचिव के. प्रवीण कुमार से हुई। मेन्यू में बदलाव की खबर ही झूठी थी।

11 अगस्त, 2020- उत्तर-पूर्वी बेंगलुरु दंगे में कांग्रेस व पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया (पीएफआई) की सांठगांठ उजागर हुई। कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति के घर पर मुसलमानों द्वारा हमला सुनियोजित था। इसमें कांग्रेस नेताओं के साथ पीएफआई व सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ इंडिया (एसडीपीआई) के लोग शामिल थे। आरोपपत्र में कांग्रेस के दो पार्षदों को भी आरोपी बनाया गया था। हिंसा के बाद जब सोशल मीडिया पर आक्रोश फूटा तो कांग्रेस के बड़े नेताओं डी.के. कुमार, सिद्धारमैया और दिग्विजय सिंह आदि ने इसे ‘अपमानजनक पोस्ट’ बताते हुए घटनाक्रम पर लीपा-पोती करने का प्रयास किया।

17 फरवरी, 2021- पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस ने कट्टरपंथी पार्टी सेकुलर फ्रंट आॅफ इंडिया (एसएफआई) के साथ गठबंधन किया है, जिसका मुखिया अब्बास सिद्दिकी है। हालांकि इसे लेकर कांग्रेस के ही नेताओं ने मोर्चा खोल रखा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा का कहना है कि यह पार्टी की मूल विचारधारा तथा गांधीवादी और नेहरूवादी पंथनिरपेक्षता के खिलाफ है।

सोनिया गई थीं बेल्लारी
अब बात 1999 के आम चुनाव की। उस समय देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नाम की हवा बह रही थी। उनके छोटे से कार्यकाल में सेना ने जिस तरह कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाई थी, उससे वह राष्ट्र नायक के रूप में उभरे थे। आर्थिक उदारीकरण और लोक कल्याणकारी योजनाओं के कारण भी उनकी नीतियों को जनता के बीच खासा समर्थन मिल रहा था। इस सबसे अलग एक बात और थी। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार को अस्थिर करने के लिए दक्षिण भारत कार्ड का इस्तेमाल किया था। सोनिया गांधी ने वाजपेयी सरकार के खिलाफ जाल बुना और अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयललिता उसमें फंस गर्इं। दरअसल, सोनिया गांधी ने एक चाय पार्टी के बहाने वाजपेयी सरकार को गिराने की मुहिम शुरू की। जयललिता उनके झांसे में आ गर्इं और वाजपेयी सरकार के समक्ष कई मांगें रख दीं। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी मांगों को मानने से इनकार कर दिया। नतीजा, जयललिता ने राजग सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के राजनीतिक दांव-पेंच से सरकार एक वोट से गिर गई।

इस पूरे शक्ति परीक्षण में कांग्रेस की बेशर्म सत्ता लिप्सा भी सामने आई। संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर गिरधर गोमांग ने लोकसभा में अपने मताधिकार का अनैतिक प्रयोग किया, जो दो दिन पहले ही ओडिशा के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले चुके थे। इससे वाजपेयी की लोकप्रियता और बढ़ गई। मध्यावधि चुनाव में जब सोनिया गांधी को अमेठी में खतरा महसूस हुआ तो उन्होंने दो जगह से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इसके लिए दूसरी सुरक्षित सीट की तलाश शुरू हुई, जो इंदिरा गांधी की ही तरह कर्नाटक के बेल्लारी में जाकर खत्म हुई। लेकिन यहां भी उनकी राह आसान नहीं थी। सुषमा स्वराज ने इस सीट से सोनिया को चुनौती दी। हालांकि सोनिया बेल्लारी और अमेठी, दोनों जगह जीतने में सफल रहीं। सास की तरह वह भी चुनाव में कर्नाटक और दक्षिण भारत के प्रति अपना प्रेम दर्शाती रहीं, लेकिन बाद में उन्होंने बेल्लारी सीट से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद आज तक सोनिया गांधी बेल्लारी नहीं लौटीं। जिस तरह उत्तर भारत में ठिकाना मिलते ही इंदिरा गांधी का दक्षिण प्रेम हवा हो गया था, उसी तरह सोनिया गांधी ने भी दक्षिण भारत को ठेंगा दिखा दिया।

विकीलीक्स ने खोली पोल

विकीलीक्स ने अगस्त 2018 में खुलासा किया कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में बसाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सत्ता में आने पर उस समय के कानून में संशोधन या नया कानून लाने का वादा किया था। यह वादा उन्होंने 2006 में असम विधानसभा चुनाव के दौरान किया था। कोलकाता में रहे अमेरिकी कांसुलेट द्वारा 16 फरवरी, 2006 को विकीलीक्स केबल पर लिखे आलेख के हवाले से कहा गया कि कांग्रेस 2005 में अप्रवासी निर्धारण न्यायाधिकरण (आईएमडीटी) कानून लेकर आई थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था। इससे बांग्लादेशी घुसपैठिए और मुसलमान नाराज हो गए थे। इसीलिए कांग्रेस शीर्ष अदालत के निर्णय के विरुद्ध कानून लाकर घुसपैठियों और मुसलमानों का वोट हासिल करना चाहती थी, जो उससे छिटक रहे थे। यही नहीं, विकीलीक्स के अनुसार, कांग्रेस नेता और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने अफजल की सजा माफी की सिफारिश की थी, क्योंकि अगर केंद्र की संप्रग सरकार उसे फांसी दे देती तो 2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटबैंक कांग्रेस से छिटक जाता। तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम और सोनिया गांधी के बीच अफजल मामले में मतभेद की एक बड़ी वजह यही थी।  
17 दिसंबर, 2010- विकीलीक्स ने एक अन्य खुलासे में कहा कि राहुल गांधी ने भारत में अमेरिका के दूत टिमोथी रोमर से कहा था कि ‘हिंदू कट्टरपंथी गुट’ लश्कर-ए-तैयबा से भी अधिक खतरनाक है। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की भारत यात्रा के दौरान जुलाई 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निवास पर आयोजित एक भोज के दौरान राहुल ने रोमर से यह बात कही थी। 
11 दिसंबर, 2010- विकीलीक्स के अनुसार, भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत डेविड मलफर्ड ने कहा था कि मुंबई में आतंकी हमले के बाद कांग्रेस नेतृत्व का एक बड़ा गुट भारत में ‘मजहबी राजनीति’ कर रहा था। मलफर्ड ने यह टिप्पणी कांग्रेस नेता और तत्कालीन केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री एआर अंतुले के संदर्भ में की थी। अंतुले ने कहा था कि आतंकवादी हमलों में ‘हिंदूवादी संगठन’ भी शामिल हो सकते हैं।

न उत्तर न दक्षिण, बस सत्ता
असल में मुद्दों, उत्तर या दक्षिण से कांग्रेस को कोई सरोकार नहीं है। वह हर हाल में सत्ता में बने रहना चाहती है। राजीव गांधी हत्याकांड की जांच करने वाले न्यायाधीश मिलापचंद जैन आयोग ने साफ कहा था कि राजीव के हत्यारों को द्रमुक ने तमिलनाडु में पनाह दी। हत्याकांड के बाद कई ऐसे सबूत भी सामने आए, जिनके आधार पर कहा गया कि इस हत्याकांड से पहले एलटीटीई और तत्कालीन करुणानिधि की द्रमुक सरकार के बीच कई गुप्त संदेशों का आदान-प्रदान हुआ था। आयोग की रिपोर्ट सामने आने के बाद कांग्रेस ने केंद्र में संयुक्त मोर्चा वाली इंद्र कुमार गुजराल सरकार को गिरा दिया। कांग्रेस की जिद थी कि द्रमुक को केंद्र में जगह नहीं मिले, क्योंकि पार्टी के नेता द्रमुक को राजीव गांधी के हत्यारों का साथी बता रहे थे। हालांकि वही द्रमुक 2004 से 2013 तक संप्रग सरकार की सहयोगी रही। जैन आयोग के अनुसार, राजीव हत्याकांड में शामिल लोगों में से एक शिवरासन को द्रमुक की तत्कालीन सांसद ने घर में पनाह दी थी, जो संप्रग सरकार में मंत्री भी रहीं।

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