असम विधानसभा चुनाव : विकास का नारा, विपक्ष बिखरा-हारा
May 22, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

असम विधानसभा चुनाव : विकास का नारा, विपक्ष बिखरा-हारा

by WEB DESK
Mar 16, 2021, 03:34 pm IST
in भारत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

असम में गत 5 साल में विकास के नए मापदंड गढ़े गए हैं। लोहित नदी पर भारत का सबसे लंबा पुल भूपेन हजारिका सेतु बना है, जिसकी लंबाई 9.15 किलोमीटर है। इसके साथ ही और कई विकास के अनूठे काम हुए हैं, जबकि कांग्रेस बिखरी और घटी हुई स्थिति में है

असम में विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 9 मार्च थी। लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि 9 मार्च की सुबह तक मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस चरण के लिए अपने सभी प्रत्याशी तय नहीं कर पाई थी। हालांकि इस चरण में पड़ने वाले 47 में से 43 क्षेत्रों के लिए पार्टी ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए थे। दिन ढलने को हुआ तो खबर आई कि कांग्रेस ने हिन्दीभाषी बहुल तिनसुकिया सीट राष्ट्रीय जनता दल (बिहार में महागठबंधन के अगुआ) के लिए छोड़ दी है। शेष तीन सीटों में से एक-एक आंचलिक गण मोर्चा (अजीत कुमार भुइयां नीत), बदरुद्दीन अजमल के आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) और भाकपा (एमएल) के लिए छोड़ दी गई। इसी तरह दूसरे चरण में नामांकन की अंतिम तिथि 12 मार्च थी, लेकिन इस चरण के प्रत्याशियों को तय करने में कांग्रेस के पसीने छूट गए। हालांकि इस चरण के लिए एआईयूडीएफ ने अपने तीन प्रत्याशी पहले ही घोषित कर दिए। दूसरी ओर इन दोनों चरणों के लिए सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की सूची 5 मार्च को ही जारी कर दी थी। दो दिन बाद उसकी मुख्य सहयोगी असम गण परिषद ने भी अपने आठ उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी।

आठ पार्टी, एक गठबंधन, शून्य चेहरा
बिहार चुनाव में महागठबंधन के बहाने भाजपा विरोधी मतों के एकीकरण से अत्युत्साहित कांग्रेस ने असम में भी इस प्रयोग को दोहराने की आजमाइश तो कर ली है मगर लगातार गठबंधन का कुनबा बढ़ाते जाने के बाद भी पार्टी अपना एक अदद नेता खोज पाने में सफल नहीं हो सकी है। कांग्रेसनीत महाजोट को राष्ट्रीय जनता दल के रूप में असम में आठवां साथी मिला है। इससे पहले कांग्रेस ने एआईयूडीएफ के रूप में मुस्लिम मतों का सौदागर ढूंढा तो भाकपा, माकपा और भाकपा (माले) का साथ उसे स्वत: मिल गया। कांग्रेस और एआईयूडीएफ की दोस्ती से उपजे आंचलिक गण मोर्चा को भी महाजोट में शामिल किया गया है, तो वहीं बोडो स्वशासित क्षेत्र में सत्ताच्युत हो चुके बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने भी इसी छतरी में समाना वाजिब समझा। पर इतने क्षत्रपों से भरे महाजोट की परेशानी का सबब यह है कि उसे पूरे राज्य में लेकर चलने वाला एक अदद नेता नहीं मिल पा रहा। तरुण गोगोई और संतोष मोहन देव की विरासत संभालने की जद्दोजहद में लगे गौरव गोगोई और सुष्मिता देव के लिए यह राह बिल्कुल भी आसान नहीं। पूर्व मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया के पुत्र देवव्रत सैकिया भी इस कतार में हैं लेकिन स्वीकार्यता का संकट उनके साथ है। दूसरी ओर भाजपा के पास मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और हिमंत बिस्व शर्मा की निर्विवाद जोड़ी है और इन नेताओं पर मित्रजोट के सहयोगी घटकों को कोई आपत्ति भी नहीं है। इसलिए स्वीकार्यता की यह टक्कर निश्चित रूप से भाजपा के पक्ष में जा रही है।

यह अंतर है असम में चुनाव लड़ रहे दोनों प्रमुख गठबंधनों के आत्मविश्वास में। आक्रामक प्रचार का समय आने तक कांग्रेसनीत महागठबंधन (महाजोट) प्रत्याशी तय करने के गणित में उलझा रहा, जबकि भाजपानीत राजग (मित्रजोट) अधिकांश प्रत्याशी तय कर समीकरणों में लग गया। इस अंतर से यह साबित होता है कि इस बार के चुनाव में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को मुख्य मुद्दा बनाने की कांग्रेस की रणनीति की हवा प्रचार शुरू होने से पहले ही निकल गई है। वास्तव में ‘महाजोट’ का विचार ही ‘सीएए’ एवं ‘एनआरसी’ के मुद्दे को भुनाने के लिए बना था। कांग्रेस ने चतुराई दिखाते हुए ऊपरी असम की अधिकांश सीटों से खुद लड़ने का फैसला किया। इन सीटों पर पहले चरण में होने जा रहे मतदान में प्राय: हिंदू वोट अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी हैं। वहीं कांग्रेस ने निचले असम में सारा दारोमदार एआईयूडीएफ पर छोड़ दिया है। यहां तीसरे चरण में मतदान होना है और इस क्षेत्र की अधिकांश सीटें मुस्लिम-बहुल हैं। इसी तरह एआईयूडीएफ ने दूसरे चरण में भी बराक घाटी में मुस्लिम-बहुल सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए, जबकि कांग्रेस आंतरिक सघर्ष के कारण अंत तक ऊहापोह में रही।

सीएए विरोधी गठबंधन की पटकथा गत वर्ष राज्यसभा चुनाव के दौरान लिखी जा चुकी थी, जब कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने संयुक्त रूप से एक गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवार अजीत कुमार भुइयां को मैदान में उतारा और सफल रहीं। असम के अग्रणी समाचार चैनल ‘प्राग न्यूज’ के संपादक भुइयां सीएए के मुखर विरोधी रहे हैं। उन्होंने ही आगे चलकर आंचलिक गण मोर्चा की स्थापना की, जो आज महाजोट का प्रमुख घटक है।

जैसे-जैसे सीएए विरोधी एकत्रित होते रहे, भाजपा इस मुद्दे पर और दृढ़ होती गई। सीएए के पारित होते ही अगप ने अकड़ दिखाई तो भाजपा ने उससे नाता तोड़ने में देर नहीं की। यह बात अलग है कि आगे चलकर अगप की राजग में वापसी हुई लेकिन असली खेल विधानसभा के टिकटों में हुआ। अगप के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत की सीट ब्रह्मपुर को भाजपा ने अपने खाते में डाल लिया। वरिष्ठ नेता हिमंत बिस्व शर्मा के बेहद करीबी माने जा रहे जीतू गोस्वामी को यहां से मैदान में उतारा गया है। हालांकि सीएए के पारित होने के बाद से ही महंत अपनी पार्टी में अलग-थलग थे, इसलिए यह फैसला कुछ लोगों के लिए आश्चर्य का विषय नहीं रहा। सीएए विरोधियों के लिए अगला झटका था तेजपुर से पांच बार के विधायक और अगप के महासचिव बृंदावन गोस्वामी का टिकट काट नए-नवेले पृथ्वीराज राभा को टिकट देना। गोस्वामी भी सीएए के विरोध में मुखर रहे थे। इससे भाजपा ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि जो भी सीएए के विरोधी रहे हैं, उन्हें अगप भी अपना टिकट न दे।

दरअसल सीएए के विरोध का असली पेच तो कांग्रेस में फंसा था। ऊपरी असम में स्थानीय नेतृत्व एआईयूडीएफ का साथ लेने के सवाल पर बंटा हुआ है। वास्तव में ऊपरी असम में बाहरी और स्थानीय के विषय पर जो भावानात्मक ज्वार रहा है, एआईयूडीएफ की राजनीति उसके ठीक विपरीत ध्रुव पर केंद्रित है। ताजा उदाहरण पार्टी के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल के वायरल वीडियो का है, जिसमें वे संप्रग के सत्तासीन होने पर भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने का अभियान चलाने और इसके लिए ‘रोडमैप’ तैयार रखने की बात करते देखे गए हैं। इस तरह के बयान और एआईयूडीएफ का वर्चस्ववादी रवैया न केवल ऊपरी असम में कांग्रेस का खेल बिगाड़ेंगा, बल्कि बराक घाटी में भी पार्टी पर विपरीत प्रभाव डालेगा जिसका भाजपा को सीधा फायदा होगा। कांग्रेस राष्ट्रीय महिला समिति की अध्यक्ष सुष्मिता देव की नाराजगी भी लगातार इसी बात को लेकर रही है और अब सोनाई जैसी पार्टी की परंपरागत सीट एआईयूडीएफ को दिए जाने से स्थानीय कार्यकर्ताओं का गुस्सा, जो केंद्रीय नेतृत्व पर फूटा है, वह भी पार्टी के लिए खतरे की घंटी है।

हालांकि कांग्रेस का यह खतरा हिंदू समाज के लिए भले का सूचक है। पार्टी ने जहां निचले असम में एआईयूडीएफ को मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण के लिए खुली छूट दी, वहीं बराक घाटी की 15 में से 8 सीटें मुस्लिमों के खाते में डालने की चाल भी चल दी। घाटी में 5 सीटें तो सीधे एआईयूडीएफ को दी गई हैं, बाकी 10 में से तीन सीटें मुस्लिम उम्मीदवारों को देने के लिए पार्टी लगभग तैयार थी। बराक घाटी में कई क्षेत्रों में तो मुस्लिम मतों की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से भी अधिक है। ऐसे में कांग्रेस का भितरघात भाजपा को फायदा दे सकता है।

मोदी के नाम पर सब मौन
भाजपा के पक्ष में एक और बड़ा चेहरा है, देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। पार्टी से नाराज होने वाले और पार्टी छोड़ने वाले नेता तक नरेंद्र मोदी के नाम पर मौन हो जाते हैं, वहीं कई बार विपक्षी दलों के अत्युत्साही कार्यकर्ता तक भी नरेंद्र मोदी का नाम आने पर ढीले पड़ जाते हैं। खासकर बुनियादी विकास और भ्रष्टाचार नियंत्रण के राजग के सूत्र को प्रधानमंत्री के नाम के साथ स्वीकार्यता की बड़ी मुहर लगी है। प्रधानमंत्री ने विगत 6 वर्ष में अपने ताबड़तोड़ असम दौरों से भी यहां के जनमानस में जगह बनाई है, जबकि केवल चुनावी मौसम में रैली के लिए आने वाले भाई-बहन राहुल-प्रियंका गांधी को यहां ‘चुनावी पर्यटक’ कहा जाने लगा है।

असम चुनाव के प्रमुख मुद्दे
असम में तीन चरण में चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण में 47, दूसरे चरण में 39 और तीसरे चरण में 40 सीटों के लिए चुनाव होंगे। दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस के मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं-

भाजपा

विकास। इसके अंतर्गत पूरे राज्य में पुलों और सड़कों का जाल बिछाना।
असमिया संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा।
नागरिकता संशोधन कानून को पूरी तरह लागू करके घुसपैठियों को बाहर का रास्ता दिखाना।
भ्रष्टाचार पर नियंत्रण
कोरोना को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए कदमों का प्रचार।

कांग्रेस

नागरिकता संशोधन कानून को रद्द करना।
5,00000 सरकारी नौकरी देना।
चाय बागान के श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी 365 रु. करना।
200 यूनिट बिजली नि:शुल्क देने का वचन।
गरीब महिलाओं को 2000 रु. मासिक भत्ता देने का वादा।

वैसे सीएए विरोधियों का एक अलग जमावड़ा भी है, जो इस चुनाव में जीतने की ताकत में भले न हो, पर खेल बिगाड़ने का काम बखूबी कर सकता है। आॅल असम स्टूडेंट्स यूनियन के पूर्व नेता लुरिन ज्योति गोगोई ‘असम जातीय परिषद’ के बैनर तले इस जमावड़े का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्हें साथ मिल रहा है आम आदमी पार्टी (आआपा) छोड़कर ‘राइजर दल’ नाम से नया संगठन खड़ा करने वाले हिरासतबन्द नेता अखिल गोगोई का। मजे की बात यह है कि लुरिन ज्योति और अखिल दोनों खुद दो-दो स्थानों से चुनाव मैदान में हैं। इन दोनों दलों ने गठबंधन कर लगभग 100 सीटों पर प्रत्याशी तय कर लिए हैं और अन्य सीटों पर खोज जारी है। इस गठबंधन को आसू के अलावा कृषक मुक्ति संग्राम समिति, असम जातीयतावादी छात्र परिषद आदि संगठनों का समर्थन प्राप्त है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इन्हें चुनाव में जनता का कितना समर्थन प्राप्त होता है। कांग्रेस आदि दलों से निकले कई नेताओं को भी इस गठबंधन ने टिकट दिया है। यह गठबंधन भले ही सीएए विरोधी आंदोलन की उपज हो, मगर ऐसा नहीं है कि इनका प्रभाव केवल सीएए संवेदी क्षेत्रों तक सीमित रहेगा। ऐसे में आत्मविश्वास से भरी भाजपा को भी फूंक-फंूक कर कदम रखना होगा।

भाजपा के आत्मविश्वास का सबसे बड़ा कारण है वरिष्ठ नेताओं की जनता से लगातार रही नजदीकी। गत विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हिमंत भी असम में जमीनी स्तर तक के कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहे हैं। वे इस बार कांग्रेस से अजंता नियोग और गौतम रॉय जैसे नेताओं को लाकर कहीं न कहीं से टिकट भी दिलाने में सफल रहे हैं। कांग्रेस से ही काफी पहले आ चुके उनके पूर्व साथी जयंत माला बरुआ को भी टिकट मिला है, जबकि पीयूष हजारिका, अमिय भुइयां और मानब डेका जैसे उनके पुराने साथी सरकार और पार्टी में मजबूती से स्थापित हैं।

हालांकि असंतुष्टों का कुछ असर तो भाजपा को भी झेलना पड़ सकता है। यह एक संयोग है कि दोनों ही मुख्य दलों में असंतोषी स्वरों का केंद्र इस बार बराक घाटी है। हालांकि भितरघात को संभालने में जो तत्परता भाजपा ने दिखाई है, उससे उसे बढ़त मिलना स्वाभाविक है। भाजपा की प्रत्याशी सूची जारी होने के बाद पार्टी के कई बुजुर्ग दुखी और आक्रोशित नजर आए और कुछ ने तो पार्टी भी छोड़ दी, लेकिन त्वरित क्षतिपूर्ति के लिए पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। पार्टी ने एक कैबिनेट मंत्री समेत 11 विधायकों का टिकट काट दिया, जो आक्रोश का एक बड़ा कारण बना।

नगांव के पूर्व सांसद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री राजन गोहार्इं, मंगलदेई के पूर्व सांसद रमन डेका, सिल्चर के पूर्व सांसद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री कवीन्द्र पुरकायस्थ ऐसे नेताओं में शुमार हैं जिनके विरोधी तेवर दो-एक दिन के भीतर ही ठंडे होने लगे। बराक घाटी में प्रत्याशियों के नामांकन से पहले भाजपा नेता हिमंत ने सिल्चर का दौरा कर रूठे हुए नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने की पूरी कोशिश की। इसके बाद कवीन्द्र पुरकायस्थ के पुत्र, जो टिकट के प्रबल दावेदार थे, हिमंत के साथ पदयात्रा में पार्टी का प्रचार करते नजर आए। हिमंत ने इस बीच चाय बागानों में उठी नाराजगी को शांत करने के प्रयास किए। इसे पार्टी को क्षतिपूर्ति की रणनीति की सफलता कही जानी चाहिए कि सारी आशंकाओं को खारिज करते हुए राजन गोहार्इं जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने स्वतंत्र नामांकन दाखिल नहीं किया।

सिल्चर में निवर्तमान सांसद दिलीप पॉल को रोका नहीं जा सका तो वहां हिमंत ने ‘बराक में सनातन धर्म की रक्षा’ और ‘भारत की रक्षा’ का मुद्दा उठाकर मतदाताओं को स्पष्ट संदेश दे दिया है। दूसरी ओर भाजपा सरकार में मंत्री रहे सोम रोंगहांग ने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया है मगर इस सबसे दूर अपनी अंदरूनी उठापटक को संभालने के लिए पार्टी को फुरसत ही नहीं मिल पाई। पार्टी के ज्यादातर दिग्गज पहले ही भाजपा का दामन थाम चुके हैं। इस कारण फिलहाल कांग्रेस में नाराजगी के बढ़ते स्वरों को संभाल पाना कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो रहा है।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Operation Sindoor BSF Pakistan infiltration

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने 8 मई को 45-50 आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिश की, बीएसएफ सब कुछ किया तबाह

करवाचौथ का व्रत केवल सुहागिनों के लिए ही क्यों, “तलाकशुदा और लिव के लिए भी हो”, SC ने खारिज की दलील

G Parmeshwara ED Raids Gold smuggling case

बुरे फंसे कर्नाटक के गृहमंत्री जी परमेश्वर, गोल्ड तस्करी के मामले में ED ने कई ठिकानों पर मारे छापे

प्रतीकात्मक तस्वीर

राजस्थान हाईकोर्ट: शैक्षणिक रिकॉर्ड में मां का नाम सिर्फ विवरण नहीं, बच्चे की पहचान का आधार है

Congress leader Anand Sharma praises Modi Government

अब आनंद शर्मा ने भी ऑपरेशन सिंदूर को लेकर की केंद्र सरकार की तारीफ, कही ये बात

State bank of India language dispute

कर्नाटक में भाषा विवाद: SBI मैनेजर का हिंदी बोलने पर ट्रांसफर

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Operation Sindoor BSF Pakistan infiltration

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने 8 मई को 45-50 आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिश की, बीएसएफ सब कुछ किया तबाह

करवाचौथ का व्रत केवल सुहागिनों के लिए ही क्यों, “तलाकशुदा और लिव के लिए भी हो”, SC ने खारिज की दलील

G Parmeshwara ED Raids Gold smuggling case

बुरे फंसे कर्नाटक के गृहमंत्री जी परमेश्वर, गोल्ड तस्करी के मामले में ED ने कई ठिकानों पर मारे छापे

प्रतीकात्मक तस्वीर

राजस्थान हाईकोर्ट: शैक्षणिक रिकॉर्ड में मां का नाम सिर्फ विवरण नहीं, बच्चे की पहचान का आधार है

Congress leader Anand Sharma praises Modi Government

अब आनंद शर्मा ने भी ऑपरेशन सिंदूर को लेकर की केंद्र सरकार की तारीफ, कही ये बात

State bank of India language dispute

कर्नाटक में भाषा विवाद: SBI मैनेजर का हिंदी बोलने पर ट्रांसफर

जिम्मेदार बने मीडिया और सोशल मीडिया

Donald trump Syril Ramafosa South Africa

श्वेत किसानों के नरसंहार का मुद्दा उठा दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा से भिड़े ट्रंप

Hands child holding tree with butterfly keep environment on the back soil in the nature park of growth of plant for reduce global warming, green nature background. Ecology and environment concept.

Biodiversity Day Special : छीजती जैव विविधता को संजोने की जरूरत

उत्तराखंड में 5 और बांग्लादेशी हुए गिरफ्तार, पूछताछ जारी

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies