बाटला हाउस मुठभेड़ में दहशतगर्द आरिज खान को फांसी की सजा सुना दी गई है. ये फैसला तमाचा है कांग्रेस के मुंह पर. ममता बनर्जी के मुंह पर. समाजवादी पार्टी के मुंह पर. अरविंद केजरीवाल के मुंह पर. और हर राजनीतिक और आंदोलनजीवी के मुंह पर जिसने दिल्ली को दहलाने वाले दहशतगर्दों की हिमायत में आसमान सिर पर उठा लिया था. लेकिन ये बेशर्म हैं. गाल सहला लेंगे और फांसी के बाद आरिज की बरसी मनाने लगेंगे.
याकूब मेमन, अफजल और बाटला हाउस मुठभेड़. ये तीन अलग-अलग मामले हैं, लेकिन एक बात समान है. ये भारत की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण राजनीति के सबसे घिनौने चेहरे हैं. ऐसा तुष्टीकरण, जिसमें आतंकवाद का समर्थन करना पड़े, तो करो. भारत का विरोध करना पड़े, तो करो. याकूब मेमन, अफजल को फांसी हो चुकी है. बाटला हाउस मुठभेड़ में दहशतगर्द आरिज खान को फांसी की सजा सुना दी गई है. कानून की कसौटी पर एक मुठभेड़ खरी उतरी. अदालत ने कहा कि आरिज समाज के लिए खतरा है. यह दुर्लभ में दुर्लभतम मामला है. ये फैसला तमाचा है कांग्रेस के मुंह पर. ममता बनर्जी के मुंह पर. समाजवादी पार्टी के मुंह पर. अरविंद केजरीवाल के मुंह पर. और हर राजनीतिक और आंदोलनजीवी के मुंह पर जिसने दिल्ली को दहलाने वाले दहशतगर्दों की हिमायत में आसमान सिर पर उठा लिया था. लेकिन ये बेशर्म हैं. गाल सहला लेंगे और फांसी के बाद आरिज की बरसी मनाने लगेंगे.
बाटला हाउस मुठभेड़ कांड में सोमवार को पटियाला हाउस कोर्ट ने आरोपी आरिज खान को मौत की सजा सुनाई. कोर्ट ने पहले ही आरोपी आरिज खान को आईपीसी 186, 333, 353, 302, 307, 174A के तहत दोषी करार दे दिया था. दोषी करार देते हुए अदालत ने कहा था कि ये साबित हो गया है कि एनकाउंटर के वक्त आरिज खान भागने में कामयाब हो गया था. आरिज खान को आईपीसी की कई गंभीर धाराओं में दोषी पाया है. एक दशक तक कथित तौर पर फरार रहने के बाद फरवरी, 2018 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसे गिरफ्तार किया था. इंडियन मुजाहिदृीन नाम के आतंकवादी संगठन ने दिल्ली में 13 सितंबर, 2008 को सीरियल ब्लास्ट किए थे. सात दिन बाद 19 सितंबर, 2008 को दिल्ली पुलिस ने इस हमले में शामिल आतंकवादियों का एनकाउंटर कर दिया. ये सभी बाटला हाउस में छिपे थे. इस एनकाउंटर में इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा बलिदान हुए थे. ये आतंकवादियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई का मामला था. बम धमाकों में तीस लोग मारे गए थे और सैंकड़ों लोग जख्मी हुए थे. लेकिन इस देश के तथाकथित पंथनिरपेक्षवादी राजनीतिक दलों के लिए आतंकवादियों का मारा जाना एक बड़ा अवसर था. अवसर इसलिए कि मरने वाले मुसलमान थे. उन्होंने क्या किया, यह बाद की बात थी.
अल्पसंख्यकवाद की राजनीति का घिनौना प्रदर्शन बाटला हाउस कांड के बाद शुरू हो गया. इन दलों के लिए बाटला हाउस इबादतगाह बन गया था. इंडियन मुजाहिदृीन की जड़े आजमगढ़ में थीं और अधिकतर दहशतगर्द भी इसी जिले के थे. एनकाउंटर पर राजनीतिक रोटी सेकने के लिए कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह आजमगढ़ जा पहुंचे. उन्होंने कहा था कि ‘मैंने खुद वो फोटोग्राफ देखी हैं, जिसमें एक लड़के के केवल सिर पर गोली लगी हुई हैं. दहशतगर्दी में अगर एनकाउंटर होता है, तो यहां पर गोली लगना नामुमकिन है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ये पूरा प्रक्ररण मानवाधिकार आयोग को दिया था. लेकिन मुझे इस बात की तकलीफ है कि जिन लोगों को शिकायत थी, उन्हें ह्यूमन राइट्स कमीशन ने बुलाया नहीं.’
कांग्रेस समेत सभी अल्पसंख्यक तुष्टीकारकों को लगा कि बाटला हाउस तो अल्पसंख्यक वोट की फसल बन सकता है. एक और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद तो इससे भी आगे निकल गए. उन्होंने 2012 में आजमगढ़ में एक चुनावी रैली में कहा था—बाटला हाउस एनकाउंटर की तस्वीरें देखकर सोनिया गांधी रो पड़ी थीं. तत्कालीन कानून मंत्री ने ये भी कहा कि कांग्रेस पार्टी भरपूर कोशिश करने के बाद भी बाटला एनकाउंटर में मारे गए आजमगढ़ के लड़कों को इंसाफ नहीं दिला पाई.
ममता बनर्जी ने 17 अक्टूबर, 2008 को दिल्ली के जामिया नगर में एक सभा को संबोधित करते हुए बाटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बताया था. ममता उस वक्त तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष थीं और पश्चिम बंगाल में उस वक्त वाम दलों की सरकार थी. ममता किसी भी कीमत पर मुसलमानों को लुभाना चाहती थीं. ऐसे में ममता ने जामिया नगर की इस सभा में कहा कि बाटला हाउस का एनकाउंटर फर्जी था और अगर वो गलत साबित हुईं तो राजनीति छोड़ देंगी. अब भाजपा पूछ रही है कि ममता बनर्जी कब राजनीति छोड़ रही हैं. ममता को सांप सूंघ गया है. उस समय अरविंद केजरीवाल, बहुजन समाज पार्टी, सारे वामपंथी दल दिल्ली पुलिस पर टूट पड़े थे. किसी भी कीमत पर मुसलमानों को खुश करने की नीति पर चलने वाले ये दल भूल गए थे कि ये भारत की अखंडता का मामला है.
इस मामले में मानवाधिकार आयोग ने जांच करके एनकाउंटर को क्लीन चिट दे दी थी. फिर भी ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक ले जाया गया. कहीं भी एनकाउंटर पर उंगली नहीं उठी. तो भी आंदोलनजीवी गैंग इस मामले को जिंदा रखना चाहता था. ऊपर आप राजनीतिक दलों के नाम तो पढ़ ही चुके हैं. अब जरा उस गैंग के नाम सुनिए, जो बाटला हाउस से लेकर किसान आंदोलन तक शामिल हैं. एक पिटिशन दी गई, जिस पर हस्ताक्षर करने वाले ये लोग थे. शबनम हाशमी, मौसमी बसु, डा. अनूप सराया, हर्ष मंदर. श्रीरेखा व तनवीर फजर, कोलिन गोंजालविज, अरुंधति राय, कविता कृष्णन, कामिनी जायसवाल, महताब आलम, प्रशांत भूषण और हर्ष डोभाल. आरिज खान को दोषी करार दिए आठ दिन और सजा सुनाए 24 घंटे से ज्यादा हो चुके हैं. लेकिन इन अल्पसंख्यक जीवी दलों का कोई बयान और माफीनामा सामने नहीं आया है. ये इंतजार कर रहे हैं आरिज की फांसी का. ये आरिज खान को भी अफजल या याकूब मेनन की तरह पोस्टर ब्वाय बनाने की कोशिश करेंगे।
टिप्पणियाँ