पश्चिम बंगाल का सिंगूर आज बर्बाद है, यहां गरीबी है, बेरोजगारी है और अपराध है। यह वही जगह है, जहां आंदोलन कर ममता सत्ता पर काबिज हुईं। ममता ने यहां टाटा की फैक्ट्री नहीं लगने दी। वहीं गुजरात का साणंद आज उसी फैक्ट्री के लगने के बाद एशिया का सबसे बड़ा ‘ऑटो मैन्युफैक्चरिंग हब’ बन गया है
पश्चिम बंगाल में चुनाव अब अपने पूरे जोर पर आ चुके हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता शहर की अपनी परंपरागत सीट भवानीपुर को छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। कई विद्वान इसे ममता बनर्जी की आक्रामक राजनीति का हिस्सा मान रहे हैं, लेकिन आंकड़ों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि भवानीपुर सीट से ममता बनर्जी का हटना उनका आक्रामक राजनीति से ज्यादा भवानीपुर सीट पर अपनी संभावित हार से बचने का रास्ता है। भवानीपुर सीट से ममता बनर्जी पहली बार 2011 में उपचुनाव में 54 हजार वोट से जीती थीं। इसके बाद साल, 2016 में उनकी जीत 54 हजार से घटकर 25 हजार पर आ गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था। भाजपा उम्मीदवार चंद्र कुमार बोस कोलकाता दक्षिण लोकसभा सीट से चुनाव भले ही हार गए हों, लेकिन भवानीपुर सीट पर उन्हें टीएमसी उम्मीदवार से 3 हजार ज्यादा वोट मिले थे और ममता बनर्जी स्वयं जिस कोलकाता के वार्ड नंबर 73 में रहती हैं, उस वार्ड से चंद्र कुमार बोस को टीएमसी उम्मीदवार की तुलना में 496 वोट अधिक मिले थे। ऐसे में भवानीपुर सीट छोड़कर ममता बनर्जी का जाना बहुत हद तक उनके संभावित हार के खतरे को टालने के लिया गया फैसला समझा जा रहा है।
हालांकि नंदीग्राम की लड़ाई भी ममता बनर्जी के लिए सरल नहीं होने जा रही। नंदीग्राम में 30 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम वोट हैं। इसके बावजूद ममता बनर्जी नंदीग्राम में मंदिर—मंदिर घूम रही हैं, क्योंकि इस पूरे क्षेत्र पर शुभेंदु अधिकारी का दबदबा माना जाता है, जो इस बार भाजपा से उम्मीदवार हैं। इसके अतिरिक्त जिस नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलन की वजह से ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनीं थी वो ही आंदोलन अब लोगों में उनसे नाराजगी का बड़ा कारण बनता जा रहा है। ममता बनर्जी ने आंदोलन करके सिंगूर से टाटा की कार फैक्ट्री भगा तो दी और इस आंदोलन के बल पर वो स्वयं बंगाल की मुख्यमंत्री भी बन गईं, लेकिन इससे सिंगूर को कोई लाभ नहीं हुआ। टाटा कार फैक्ट्री लगने से सिंगूर में जो रोजगार और व्यवसाय की संभावना बनी थी वो ममता के आंदोलन के बाद पूरी तरह चौपट हो चुकी है।
आज सिंगूर स्थिति यह है कि यहां का किसान सरकारी सहायता पर मिलने वाले सस्ते अनाज पर जिंदगी काट रहा है, क्योंकि टाटा कार प्लांट के मलबे से भरी उसकी जमीन अब खेती लायक भी नहीं बची है। इसके उल्ट तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से सिंगूर से निकलकर टाटा की कार फैक्ट्री गुजरात के जिस साणंद कस्बे में लगी थी वो इलाका आज भारत ही नहीं एशिया का सबसे बड़ा ऑटो मैन्युफैक्चरिंग हब बन चुका है। टाटा के बाद वहां पर मारुति सुजुकी, फोर्ड, जनरल मोटर्स, हीरो मोटोकॉर्प जैसी दर्जन भर कंपनियां अपने प्लांट लगा चुकी हैं। इस विकास के चलते साणंद में जमीन के भाव सोने के भाव के बराबर हो गए हैं। ये सारा विकास जो असल में पश्चिम बंगाल के सिंगूर के हिस्से में लिखा था वो ममता के आंदोलन के चलते गुजरात के साणंद चला गया। कमोबेश नंदीग्राम की कहानी भी, इससे अलग नहीं है। इसलिए नंदीग्राम और सिंगूर के लोगों में ममता सरकार को लेकर एक बड़ी नराजगी है। इसी वजह से कुछ-कुछ समय पर ममता बनर्जी इन इलाकों में इंडस्ट्रियल पार्क बनाने की बात भी करती रहती हैं।
खैर, उद्योग बंद कराके, मिले बंद कराके, मजदूर और किसानों का भला करने के वामपंथी विचार की कीमत इस देश को बहुत भारी पड़ी है। कितनी ही कपड़ा मिले, जूट मिले, उद्योग धंधे इस तरह मजदूर और किसानों को भड़काकर बंद कराए गए हैं। आजकल सिंगूर वाला विकास का मॉडल किसानों को दिल्ली में समझाया जा रहा है। इसलिए किसानों को इन नेताओं पर विश्वास करने से पहले सिंगूर और साणंद जाकर वहां के अंतर को समझ लेना चाहिए। तब शायद वो समझ पाएं क्योंकि सिंगूर बर्बाद हुआ और क्यों साणंद आज विकसित है। ममता बनर्जी भी लोगों के इस गुस्से को समझती हैं, इसलिए इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ममता नंदीग्राम के अलावा एक अन्य सीट से भी पर्चा भर सकती हैं। ताकि अगर नंदीग्राम में पासा उल्टा पड़ जाए तो वह सीट उनको जीत दिला सके। यही काम राहुल गांधी ने लोकसभा के समय किया था।l
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