बुर्के या नकाब का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं, महिलाओं को मानसिक ग़ुलाम बनाते हैं कट्टरपंथी
May 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

बुर्के या नकाब का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं, महिलाओं को मानसिक ग़ुलाम बनाते हैं कट्टरपंथी

by WEB DESK
Mar 12, 2021, 12:00 am IST
in भारत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दुनिया के हर देश—प्रदेश में कपड़ा पहनना या फैशन उसकी भौगोलिक स्थिति के हिसाब से विकसित हुआ। फिर ऐसा क्या कारण है कि अरब में अत्याधिक गर्मी होने के बावजूद एक महिला को काले कपड़े में लपेट दिया गया। और आज भी महिलाओं को उनकी भौगोलिक स्थिति के प्रतिकूल होने के बावजूद यह काला कपड़ा और नक़ाब पहनने के लिए मजबूर किया जाता है।

स्विट्ज़रलैंड में बुरखा बैन की खबर के बाद विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। इस फैसले को देखने के बहुत से पहलू हैं। कुछ सवाल हैं, जैसे क्या यह फैसला किसी मजहब विशेष के ख़िलाफ़ है ? महिलाओं के अधिकारों के ख़िलाफ़ है ? या किसी ऐसे मुल्क़ द्वारा लाया गया है, जो इस्लाम या मुसलमान के खिलाफ है ?

सबसे पहले तो हमें यह जान लेना चाहिए कि स्विट्ज़रलैंड कोई पहला मुल्क़ नहीं है, जहां बुर्का बैन हुआ हो। इससे पहले फ्रांस, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, मोरक्को, ट्यूनीशिया,अल्जीरिया समेत तकरीबन 18 मुल्क़ों में बुर्का बैन हो चुका है। इनमें से अधिकतर देश वो हैं, जो अपनी सहिष्णुता के लिए जाने जाते हैं और जहां सभी मत—पंथों के लोग मिल जुलकर रहते हैं। तो फिर यह फैसला लेने की नौबत क्यों आई ? ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब बुर्का पहनकर अपनी पहचान छिपाकर अपराधियों और आतंकवादियों ने संगीन अपराधों को अंजाम दिया और पुलिस व सेना की आंखों में धूल झोंकी। आतंकवादी हमलों में बहुतों ने अपनी जान गंवाई। कितने देशों की आंतरिक सुरक्षा में सेंध लगाकर ग़ैर कानूनी कारनामों को अंजाम दिया गया। ऐसे में इन मुल्क़ों के पास बुर्का बैन करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा। इस सबके बावजूद स्विट्ज़रलैंड में बुर्का बैन किसी तालिबानी फैसले की तरह नहीं बल्कि रेफरेंडम द्वारा वोटिंग करवाकर जनसमर्थन द्वारा लिया गया फैसला है।

अब सवाल यह उठता है कि 21वीं सदी में जब हम महिलाओं के हक़ की बात करते हैं और उनके चुनाव के अधिकार की बात करते हैं तो बुर्का पहनना उनका अधिकार क्यों नहीं है ? एक महिला होने के नाते मैं पूरी ज़िम्मेदारी से कहती हूं कि किसी भी तरह का वस्त्र पहनना एक महिला की मर्ज़ी पर निर्भर करता है, उसका अधिकार है। जैसे जीन्स पहनना किसी महिला की मर्ज़ी हो सकती है ठीक उसी तरह अपने शरीर को ढककर रखना, या सिर पर दुपट्टा ओढ़ना या हिजाब करना भी एक महिला की मर्ज़ी हो सकती है। लेकिन यहां दो बातें महत्वपूर्ण हैं। पहली, बात यह कि हिजाब और बुर्के या नक़ाब में फ़र्क़ होता है। और दूसरी उससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि हर अधिकार की एक सीमा होती है। अपने चेहरे को ढककर, नक़ाब पहन कर, अपनी पहचान छिपाकर सार्वजनिक स्थानों पर घूमना किसी भी दृष्टि से जायज़ या संवैधानिक नहीं है। हमारा कोई भी अधिकार चाहें वह मानवाधिकार हो या फिर वैधानिक। किसी दूसरे की सुरक्षा व अधिकारों को ख़तरे में डालकर नहीं लिया जा सकता।

एक महत्वपूर्ण बात जो अधिकतर लोग नज़रअंदाज़ कर रहे हैं या जान बूझकर उसे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल बुर्के या नक़ाब का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है। पूरी दुनिया के मौलानाओं और इस्लामिक स्कॉलर्स से यह पूछना चाहिए कि एक तरफ आप कहते हैं कि इस्लाम वह है जो क़ुरआन में लिखा है, परंतु दूसरी तरफ आप अनेक कुप्रथाएं व बिद्दतें चलाते हैं जिनका कोई ज़िक्र क़ुरआन में नज़र नहीं आता। क़ुरआन की एक भी आयत में दिखा दें, जहां बुर्का पहनने या चेहरे को नक़ाब से ढकने का ज़िक्र हो।

पैग़म्बर मुहम्मद की पहली बीवी हज़रत ख़दीजा एक बिज़नेस विमेन यानी व्यापारी थीं। औरतों और मर्दों दोनों के बीच रहकर व्यापार करती थीं। अतः नक़ाब या चेहरा ढकने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता था। मैं तो यह मानती हूं कि पैग़म्बर मुहम्मद उस समय, उस जगह के सबसे बड़े नारीवादी या फेमिनिस्ट थे। लोग बेटी पैदा होते ही उनको दफना कर मार दिया करते थे, तो पैग़म्बर मुहम्मद ने लोगों को संदेश दिया कि जिस के घर बेटी पैदा होती है, उसको अल्लाह ने सलाम भेजा है। घर के सारे छोटे बड़े काम वो ख़ुद किया करते थे। अपनी बेटी बीबी फातिमा के आते ही उनके सम्मान में खड़े हो जाया करते थे। बहुत अफसोस की बात है कि ऐसे रसूल की उम्मत की औरतें एक काले कपड़े में लिपटी हुईं, अपनी पहचान छिपाने को मजबूर हुईं। तलाक़-ऐ-बिददत, बुर्का या नक़ाब, या फिर हलाला जैसी कुप्रथाओं और अपराधों का शिकार हुईं।

हमें यह समझना चाहिए कि इस्लाम के नाम पर यह सारी अतार्किक बातें उन महिला और मानवता विरोधी लोगों की देन हैं, जिन्होंने पैग़म्बर मुहम्मद की वफ़ात के बाद इस्लाम को एक राजनैतिक षड़यंत्र के रूप में इस्तेमाल किया। यह वही तथाकथित मुसलमान हैं, जिन्होंने सत्ता के लालच में नस्लों को ख़त्म किया। जिन्होंने सत्ता और विरासत की लड़ाई में पैग़म्बर मुहम्मद के जनाज़े को तेज गर्मी में घण्टों तक धूप में रखा। यह वही लोग हैं, जिनका मक़सद सिर्फ सत्ता पर क़ाबिज़ रहना है। जिसके लिए ही उन्होंने इस्लामिक स्टेट बनाने की रणनीति बनाई। इन लोगों को अल्लाह से कोई मतलब नहीं है। इनको बस राज करने के लिए इस्लामिक स्टेट बनाना है और उस मंसूबे को अंजाम देने के लिए उनको अशिक्षित और अनियंत्रित भीड़ चाहिये। ऐसे लोग चाहिए जिनकी सोचने समझने की क्षमता बिल्कुल ख़त्म हो चुकी हो। जो वक़्त आने पर मर भी सकें और मार भी सकें। सही और ग़लत में फ़र्क़ करने की इस मानव क्षमता को ख़त्म करने के लिए ही यह लोग फतवेबाज़ी करते हैं और अनेक अतार्किक चीज़ें एक मुसलमान से करवाते हैं। मुसलमान को क्या करना है वो भी यही बताते हैं और क्या नहीं करना है वो भी यही बताते हैं। हराम और हलाल की इतनी लंबी सूची है कि एक मुसलमान बच्चा उसको पूरा करते करते थक जाता है लेकिन फिर भी अच्छा मुसलमान साबित नहीं हो पाता। लंबे समय तक इस तरह का माइंड कंट्रोल होने के बाद एक मुसलमान इतना ज़्यादा ब्रेन वॉशड हो जाता है कि जो वो चाहते हैं वो करता है। यह 21वीं सदी की ग़ुलामी या दासता है।

इस्लामिक स्टेट बनाने के लिए यह मुसलमान को प्रायोजित तौर पर मानसिक ग़ुलाम बनाते हैं, जिसके लिए एक पूरी प्रक्रिया है। सबसे पहले उसको अलगाववादी बनाया जाता है। उसकी जीवन पद्दति, खान—पान, पहनना—ओढ़ना सब दूसरों से अलग किया जाता है। ताकि वो सबसे अलग दिखे और मुख्य धारा से जुड़ कर ना चले। यही कारण है कि मुसलमान बच्चे को कहा जाता है कि उसके लिए संगीत सुनना, नाचना-गाना सब हराम है। जब वो पूरी तरह अलगाववादी बन जाता है तो उसको कट्टरवादी बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। इस दूसरी स्टेज में उसको यह सिखाया जाता है कि जो तुम सोच रहे हो वही सही है, बाक़ी सब ग़लत और हराम है। जब वह कट्टरवादी बन जाता है तो अंतिम में उसको आतंकवादी बनाया जाता है। यह अंतिम स्टेज है जिसमें उसको यह बताया जाता है कि दूसरों को ठीक करना तुम्हारा कर्तव्य है। यदि तुम यह करोगे तो जन्नत में जाओगे। उसको यह बताया जाता है कि जो तुम्हारी सोच को ना माने उसको मार देना ना ही सिर्फ तुम्हारा अधिकार है बल्कि परम कर्तव्य है। इस तरह एक मासूम इंसान को पूरी प्रक्रिया और एजेंडे के तहत आतंकवादी बनाया जाता है। आत्मघाती हमलावर बनाया जाता है। अलग—अलग संगठन इस कारनामें को अंजाम दे रहे हैं। कोई अलगाववादी बना रहा है। कोई कट्टरवादी बना रहा है। कोई आतंकवादी बना रहा है। और कोई इस पूरी प्रक्रिया की विभिन्न कड़ियों के लिए पैसा मुहैया करा रहा है।

बुर्का या नक़ाब प्रथा भी इस प्रक्रिया की एक कड़ी ‘अलगाववाद’ का ही हिस्सा है। एक और कारण है, जिसके लिए यह एक मुसलमान को अलग पहचान देना चाहते हैं। वह यह है कि जब इस्लामिक स्टेट के लिए जंग हो तो लोगों को मारने—काटने से पहले यह पहचान पाएं कि कौन मुसलमान है और कौन मुसलमान नहीं। जननांग कर्तन भी मुसलमान को अलग पहचान करने का एक तरीक़ा है। इस्लामिक स्टेट की वो स्टैम्प है, जो एक इंसान पर लगाई जाती है। अब वक़्त आ गया है कि एक मुसलमान स्वयं अपने साथ हो रहे इस अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाये। यह 21वीं सदी का सबसे बड़ा मानवाधिकार हनन है।

जीवन पद्दति, खान—पान और वस्त्र पहनना किसी भी स्थान की भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है। नारियल केरल और सेब जम्मू—कश्मीर में इसलिए हैं कि उनकी भौगोलिक परिस्थिति अलग है। यही अंतर उनके पहनावे में भी दिखता है। क्योंकि एक जगह गर्मी अधिक है और दूसरी जगह ठंड अधिक। यही कारण है कि हमारी भारतीय संस्कृति में किसी इंसान को किसी एक पहनावे या मान्यता में बांधा नहीं जाता। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार चुनने और जीवन जीने का अधिकार है।

हमें सोचना चाहिए कि दुनिया के हर देश और प्रदेश में कपड़ा पहनना या फैशन उसकी भौगोलिक स्थिति के हिसाब से विकसित हुआ, क्योंकि कपड़ा इंसान के शरीर का तापमान नियंत्रित करता है। शरीर का तापमान बहुत अधिक बढ़ने पर लू और बहुत अधिक घटने पर हाइपोथर्मिया हो जाता है जिससे इंसान की मौत तक हो जाती है। फिर ऐसा क्या कारण है कि अरब में अत्याधिक गर्मी होने के बावजूद एक महिला को काले कपड़े में लपेट दिया गया। और आज भी महिलाओं को उनकी भौगोलिक स्थिति के प्रतिकूल होने के बावजूद यह काला कपड़ा और नक़ाब पहनने के लिए मजबूर किया जाता है। इस पहनावे का एक मुसलमान महिला से हर जगह अनुसरण करवाना अलगाववाद और कट्टरता को बढ़ावा देना है।

जिन लोगों को नक़ाब बैन करना जायज़ नहीं लग रहा उनसे मैं एक सवाल पूछती हूं। आप सोचिये कि आपके घर के दरवाज़े पर कोई नक़ाबपोश आकर घण्टी बजाए। क्या आप बिना उसकी पहचान जाने या नक़ाब हटवाए उसको अपने घर में घुस कर घूमने देंगे ? अगर नहीं तो अपने देश में क्यों घूमने दें ? क्या देश हमारा अपना नहीं ? या दूसरों की सुरक्षा और जीवन का कोई मूल्य नहीं ?

मैं नक़ाब बैन का पूर्ण समर्थन करती हूं और भारत सरकार से यह मांग करती हूं कि भारत में भी नक़ाब बैन किया जाए। यह ना सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ज़रूरी है बल्कि मुसलमानों के मानव अधिकारों के लिए भी जरूरी है। एक मुसलमान को भी अलगाववाद और कट्टरवाद की बेड़ियों से निकल कर स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार है।

(लेखिका सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं।)

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

PM Modi Adampur airbase visit

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद पंजाब के आदमपुर एयरबेस पहुंचे पीएम मोदी, जवानों को सराहा

Punjab Khalistan police

खालिस्तानी आतंकियों को हथियार उपलब्ध करवाने वाला आतंकवादी हैरी गिरफ्तार

Donald trump want to promote Christian nationalism

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कतर से मिल रहा 3300 करोड़ का गिफ्ट, फिर अमेरिका में क्यों मचा है हड़कंप?

CM Dhami Dol Ashram

मुख्यमंत्री धामी ने डोल आश्रम में श्री पीठम स्थापना महोत्सव में लिया हिस्सा, 1100 कन्याओं का किया पूजन

awami league ban in Bangladesh

बांग्लादेश में शेख हसीना की अवामी लीग की गतिविधियां प्रतिबंधित: क्या इस्लामिक शासन की औपचारिक शुरुआत?

Posters in Pulvama for Pahalgam terrorist

पहलगाम आतंकी हमला: हमलावरों की सूचना देने पर 20 लाख रुपये का इनाम, पुलवामा में लगे पोस्टर

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

PM Modi Adampur airbase visit

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद पंजाब के आदमपुर एयरबेस पहुंचे पीएम मोदी, जवानों को सराहा

Punjab Khalistan police

खालिस्तानी आतंकियों को हथियार उपलब्ध करवाने वाला आतंकवादी हैरी गिरफ्तार

Donald trump want to promote Christian nationalism

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कतर से मिल रहा 3300 करोड़ का गिफ्ट, फिर अमेरिका में क्यों मचा है हड़कंप?

CM Dhami Dol Ashram

मुख्यमंत्री धामी ने डोल आश्रम में श्री पीठम स्थापना महोत्सव में लिया हिस्सा, 1100 कन्याओं का किया पूजन

awami league ban in Bangladesh

बांग्लादेश में शेख हसीना की अवामी लीग की गतिविधियां प्रतिबंधित: क्या इस्लामिक शासन की औपचारिक शुरुआत?

Posters in Pulvama for Pahalgam terrorist

पहलगाम आतंकी हमला: हमलावरों की सूचना देने पर 20 लाख रुपये का इनाम, पुलवामा में लगे पोस्टर

जैसलमेर में मार गिराया गया पाकिस्तानी ड्रोन

ऑपरेशन सिंदूर : थार का प्रबल प्रतिकार

अमृतसर में खेत में मिला मिसाइल का टुकड़ा

आपरेशन सिंदूर : हमले में संभला पंजाब

Uttarakhand MoU between army and pant university for milets

उत्तराखंड: सेना और पंत विश्व विद्यालय के बीच श्री अन्न को लेकर एमओयू

Punjab liquor death case

पंजाब में नकली शराब का कहर, अब तक 14 लोगों की गई जान

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies