भारतीय और रोमा समुदाय एक-दूसरे से सांस्कृतिक, आनुवंशिक, भाषायी, शारीरिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से काफी करीब हैं। दरअसल, ये लोग मूल रूप से भारतीय ही हैं। इनके वंशजों को सन् 1018 में महमूद गजनवी अपने साथ अफगानिस्तान ले गया था। कालक्रम में इनकी संस्कृति का नाम रोमा हो गया। आज पूरी दुनिया में रोमाओं की संख्या लगभग सवा दो करोड़ है। गत अंक में आपने रोमाओं के पूर्वज के बारे में पढ़ा। इस अंक में आप उनकी पांथिक मान्यताओं और विवाह संस्कार को जानें
यह बात स्पष्ट रूप से दिखती है कि जिस-जिस क्षेत्र में रोमा समुदाय के लोगों ने बसना शुरू किया उन्होंने वहां के प्रमुख मत को अपनाया। हालांकि इस संबंध में कहा जाता है कि स्थानीय पांथिक अत्याचारों से बचने के लिए रोमा समुदाय के लोगों ने वहां के पंथ को अपनाया। इसके बावजूद रोमा के कुछ समूह ऐसे हैं, जो अभी भी मूर्तिपूजक और सूर्य-उपासक हैं। कुछ रोमा समूह ‘काली सारा’ देवी की उपासना करते हैं। उनकी मान्यता है कि ‘काली सारा’ भाग्य, सौभाग्य, समृद्धि और सुरक्षा की देवी हैं। ‘काली सारा’ की पूजा के लिए कई रोमा समूह पूरी दुनिया से लेंस सेंट्स मेरिज डेलामर(दक्षिणी फ्रांस) में एकत्रित होते हैं तथा हर वर्ष 24 और 25 मई को आयोजित वार्षिक तीर्थयात्रा में भाग लेते हैं। ये पूरे समारोह के दौरान ‘काली सारा’ की प्रतिमा को एक स्थान पर सजा कर रखते हैं। समारोह में रोमा संगीत बजता रहता है। अनुष्ठान के दौरान भक्त देवी की प्रतिमा के चरणों में पुष्प अर्पित करते हैं। प्रतिमा की बड़ी सुंदर सजावट की जाती है। प्रार्थना के समय भक्त अपनी सुख-समृद्धि के लिए देवी से लिखित अनुरोध भी करते हैं। इसमें भक्त अपने द्वारा लिखित कागज को देवी के चरणों में समर्पित करते हैं। ये अनुष्ठान के अंत में देवी की प्रतिमा का विधिवत विसर्जन भी करते हैं। विसर्जन के लिए शोभायात्रा निकाली जाती है। भक्त देवी की प्रतिमा को अपने कंधों पर रखकर भूमध्य सागर के तट पर ले जाते हैं और इसे जल में विसर्जित कर देते हैं।
पश्चिमी विद्वान डॉ. राजको ज्यूरिक और डॉ. रोनाल्ड ली के साथ-साथ भारतीय विद्वान वीर राजेंद्र ऋषि और डॉ. लोकेश चंद्र ने काली सारा पूजा की तुलना भारत की दुर्गापूजा से की है। इन विद्वानों ने काली सारा को भारतीय देवी के समान माना है, जो भारत में काली और दुर्गा देवी के नाम से विख्यात हैं। इससे पता चलता है कि हिंदुओं की तरह रोमा भी शक्ति की पूजा करते हैं। फ्रांस की अंधेरी गुफाओं में मनाया जाने वाला यह उत्सव भारतीय काली पूजा और शैव परंपरा की प्रणाली के अनुरूप प्रतीत होता है। काली सारा के त्योहार के अलावा, रोमा दुनियाभर में एक दिव्य देवी आकृति की पूजा और वंदना करते हैं। यह आकृति जल के पिंडों के पास स्थित होती है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसके भिन्न-भिन्न नाम हैं। दक्षिण बाल्कन में बीबी, सेंट सारा, गुगलि, सागीया आदि। रोमा अपने रिवाजों के अनुसार अपने-अपने संप्रदायों के बीच आपसी सम्मान रखते हैं। वे पूजा के स्थान पर इकट्ठे होते हैं जिसे ‘लौचे थाना’ (अच्छी जगह) कहा जाता है।
विवाह परंपरा
रोमा समुदाय के लिए विवाह जीवन की एक शैली, समाज में विवाहित जोड़ों की सामाजिक और पारिवारिक स्थिति में बदलाव का प्रतीक है। विवाह एक पुरुष और एक महिला के बीच पारिवारिक जीवन शुरू करने के लिए अनुबंध है। आमतौर पर यह माता-पिता और रिश्तेदारों की सहमति से होता है, लेकिन कभी-कभी लड़की की सहमति के बिना भी उसका विवाह करवा दिया जाता है। रोमा समाज में विवाह को एक बंधनकारी शक्ति माना जाता है, जबकि अलगाव को द्वेष और हतोत्साहित किया जाता है। यह समुदाय किसी चर्च या राज्य के वैवाहिक कानून के तहत एक औपचारिक विवाह समारोह के महत्व पर विश्वास नहीं करता है।
सगाई और विवाह के रीति-रिवाज दुनियाभर के अनेक रोमा समूहों के लिए अलग-अलग हैं। जर्मनी के नृविज्ञानी और शोधकर्ता जूडिथ ओकेली और ब्रिटिश इतिहासकार डेविड करेसी (जिप्सीज ए इंग्लिश हिस्ट्री, पृ. 238) ने लिखा है कि रोमा संस्कृति में सगोत्र विवाह आदर्श रूप से प्रचलित है। रोमा प्रथा या कानून के अनुसार एक ही वंश या रिश्तेदारी की लड़की और लड़के के बीच विवाह निषिद्ध है। टीनकार, कल्देरस, भालू-प्रशिक्षक जैसे अलग-अलग रोमा समूह एक-दूसरे के साथ शादी नहीं करते। वे आमतौर पर अपने ही कबीले के जोड़े के साथ विवाह को स्वीकार करते हैं। रोमानी कबीला वैवाहिक गठबंधन और अनुष्ठान संबंधों से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। रोमा समाज के लोग आमतौर पर किशोरावस्था में ही विवाह कर लेते हैं। जोड़े के परिवारों द्वारा तय की गई शादी को रोमानी भाषा में ‘बियावा’ (विवाह) कहा जाता है। परिवार द्वारा तय विवाह को ये लोग आदर्श मानते हैं। दूल्हे और दुलहन निर्विवाद रूप से माता-पिता के चयन को स्वीकार करते हैं। शादी में माता-पिता की मुख्य भागीदारी होती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे प्रेम से परे भावी जीवन-साथी के परिवार की प्रतिष्ठा, हालात और सामाजिक स्थिति की जांच कर सकते हैं।
शादियों में दुलहन रंगीन कपड़े और सोने के गहने पहनती है। हालांकि शादी से पहले मेलमिलाप के दौरान, दूल्हे से स्वीकृति प्राप्त करने के लिए लड़कियों को सुंदर और आकर्षक कपड़े पहनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। रोमानी विवाह आमतौर पर विस्तृत और धूमधाम से होता है। विवाह एक भव्य समारोह है, जिसमें सभी रिश्तेदार शामिल होते हैं। ये विभिन्न बस्तियों, गांवों और शहरों से आते हैं। उन्हें एक शानदार दावत पर आमंत्रित किया जाता है। पारंपरिक संगीत और नृत्य के साथ विस्तृत रीति-रिवाजों के साथ शादी का जश्न तीन दिन तक चलता है। मेहमान नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद के रूप में उपहार और पैसा देते हैं। ये बातें इन्हें भारत के साथ जोड़ती हैं। बुल्गारिया में शादी के समय दुलहन को मेहंदी लगाने का रिवाज है, खासकर यह रस्म परिवार के करीबी सदस्यों के साथ दुलहन के घर में आधी रात को होती है। परिवार की महिलाओं द्वारा दुलहन के हाथों और पैरों के साथ-साथ हथेलियों और हाथों की उंगलियों पर मेहंदी लगाई जाती है।
दुलहन के हाथों से पैरों तक लिपटे सफेद कपड़े पर कुछ पैसे आशीर्वाद के रूप में रखे जाते हैं। यह रिवाज बुल्गेरियाई तुर्कों द्वारा भी किया जाता है। पूर्वी यूरोप की रोमा लड़कियां कौमार्यत्व के महत्व पर बहुत विश्वास करती हैं, इसलिए वे जल्दी विवाह का समर्थन करती हैं। यदि दुलहन कुंआरी साबित नहीं होती, तो शादी टूट जाती है और उसे अपने माता-पिता के पास वापस भेज दिया जाता है। इसके बाद दूल्हे द्वारा दिए गए उपहार को दुलहन का परिवार वापस कर देता है। जैसे भारत में विवाह के कुछ समय बाद गौना होता है तब दुलहन अपनी ससुराल जाती है। ठीक इसी तरह का रिवाज रोमा संस्कृति में भी मिलता है। वहां गौना के स्थान पर जेइता नामक रस्म होती है। यह रस्म विवाह के छह महीने या एक साल के बाद होती है। इस रस्म के बाद दुल्हन पति के घर जाती है। वह सास-ससुर और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करती है, सास और ससुर का सम्मान और देखभाल करती है। परिवार के लोग उससे घरेलू कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाने की उम्मीद करते हैं।
कहना न होगी कि ये सारी बातें रोमा और भारतीय समाज में समानताएं स्थापित करती हैं।
(लेखक ‘सेंटर फॉर रोमा स्टडीज एंड कल्चरल रिलेशंस, अंतरराष्टÑीय सहयोग परिषद’ में रिसर्च एसोसिएट हैं)
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