महाशिवरात्रि विशेष: भगवान शिव की विराट दिव्यता का महापर्व
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महाशिवरात्रि विशेष: भगवान शिव की विराट दिव्यता का महापर्व

by WEB DESK
Mar 12, 2021, 12:00 am IST
in भारत
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महाशिवरात्रि का पर्व इस बार अनेक सुखद संयोग लेकर आया है। इस साल होने वाले कुम्भ मेले के चार प्रमुख शाही स्नान की तिथियां भी घोषित हो गयी हैं। इस शाही स्नान की रौनक हरिद्वार कुम्भ में भी दिखेगी। पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि के दिन यानी 11 मार्च को होगा

देवाधिदेव शिव की महिमा अनंत है। वे कालों के काल महाकाल हैं। अपने अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं। ‘’शिव पुराण’’ में महाशिवरात्रि को शिव-पार्वती के विवाह की पावन तिथि माना गया है। इस महा रात्रि को ‘’कालरात्रि’’ भी कहा जाता है। इस ग्रन्थ में यह भी उल्लेख मिलता है कि इसी दिन प्रदोष काल में भगवान शिव ने रौद्र रूप में तांडव नृत्य करते हुए अपनी तीसरे नेत्र से सृष्टि का संहार भी किया था। यही नहीं, कुम्भ पर्व से जुड़े समुद्र मंथन का पौराणिक विवरण भी इस पर्व की महत्ता को दर्शाता है। कहा गया है कि समुद्र मंथन के समय बाहर निकले कालकूट विष के प्रभाव से जब समूची पृथ्वी पर कोहराम मच गया तो सिर्फ भगवान शंकर ही थे जिन्होंने उस हलाहल को अपने कंठ में धारण करने की सामर्थ्य दिखायी; वह अविस्मरणीय तिथि महाशिवरात्रि की ही थी। इसी तरह ‘‘ईशान संहिता’’ में कहा गया है कि महाशिवरात्रि की पावन तिथि को महादेव शिव ज्योतिर्लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे। इसी कारण वैदिक मनीषियों की मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन महादेव की चेतना आठों पहर उनके सभी द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सघन रहती है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव की इसी विराट दिव्यता के अर्चन वंदन का महापर्व है। ज्ञात हो कि भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो लिंगस्वरूप व प्रतिमा दोनों ही रूपों में सुर और असुर दोनों ही के द्वारा समान श्रद्धाभाव से पूजे जाते हैं। महादेव को सर्वसामान्य का सर्वसुलभ देवता माना जाता है, क्योंकि चाहे नीची जाति का चांडाल हो या उच्च जाति का महापंडित; महादेव के पूजन का अधिकार दोनों को बराबर है।

कई अन्य मायनों में विशेष है हरिद्वार कुम्भ 2021
तीर्थनगरी हरिद्वार में आयोजित होने वाले कुम्भ कई अन्य मायनों में विशेष है। चारों कुम्भ तीर्थों में पहला स्नान पर्व हरिद्वार में ही आयोजित हुआ था। हरि के द्वार में इस महापर्व के आयोजन के बाद ही शेष तीनों जगह कुम्भ मेले लगने शुरू हुए थे। हरिद्वार में प्रतिदिन सुबह-शाम होने वाली गंगा आरती तो विश्वविख्यात है ही। पतित पावनी मां गंगा यहीं से मैदानी क्षेत्र में प्रवेश कर भारत की जीवनरेखा बनती हैं। श्रद्धालुओं की मानें तो ‘’हर की पौड़ी’’ भगवान तक पहुंचने का दरवाजा है। गंगा नदी में स्‍नान करने वाला हर श्रद्धालु इसी विश्‍वास के साथ कुंभ के दौरान हरिद्वार पहुंचता है। इसी तरह यहां की ‘’नीलधारा’’ क्षेत्र के बारे में यह जन विश्‍वास प्रचलित है कि भगवान विष्णु ने यहीं पर ‘’विश्‍वमोहिनी’’ रूप धर कर देवताओं के बीच अमृत का वितरण किया था।
जानना दिलचस्प है कि हरि (शिव ) की नगरी हरिद्वार में इस बार के कुम्भ पर्व के आयोजन की खास बात यह है कि राशि गणनाओं के अनुसार इस बार यह मेला 12वें नहीं वरन 11वें साल में आयोजित किया जा रहा है। दूसरे जो कुम्भ मेला सामान्य स्थिति अमूमन में चार महीने का होता था, इस बार कोरोना महामारी के मद्देनजर एक माह (1 से 30 अप्रैल ) का हो गया है। इस बाबत राज्य सरकार के साथ ही केंद्र ने कई जरूरी गाइडलाइन्स भी जारी की हैं जिनका पालन सभी श्रद्धालुओं को करना जरूरी होगा।
शाही स्नान : कुम्भ का सबसे बड़ा आर्कषण
कुम्भ मेले का मुख्य आर्कषण होता है शाही स्नान। इस दौरान अखाड़ों की भव्य और आकर्षक पेशवाई (यात्रा) पूरी दुनिया के सामने भारत की समृद्धि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत की झलक पेश करती है। हर अखाड़े का प्रयास रहता है कि कैसे वह दूसरे से ज्यादा भव्य दिखे। प्रत्येक अखाड़े में शामिल साधु-संत अपनी अलग-अलग अपनी परम्पराओं का पालन करते हुए तथा छटाएं बिखेरते हुए चलते हैं। कोई अखाड़ा हाथी पर तो कोई घोड़े पर या फिर राजसी पालकी में सवार होकर बैंड बाजे के साथ मेला स्थल पर पहुंचता है। इस दौरान अखाड़ों पर पुष्प-वर्षा होती रहती है। अखाड़ों की झांकियों में नागा बाबाओं की फौज आगे होती है तथा उनके पीछे महंत, मंडलेश्वर और महा मंडलेश्वर तथा आचार्य महामंडलेश्वर शामिल होते हैं। इस दौरान चाहे ललाट पर त्रिपुंड, शरीर में भस्म लगाए नागा साधुओं के हठयोग के करतब हों या फिर विद्वानों के प्रवचन, धर्मचर्चा और अखाड़ों के लंगर; सब कुछ देखने सुनने व ग्रहण करने लायक होता है।
हर्ष का विषय है कि महाशिवरात्रि का पर्व इस बार अनेक सुखद संयोग लेकर आया है। इस साल होने वाले कुम्भ मेले के चार प्रमुख शाही स्नान की तिथियां भी घोषित हो गयी हैं। इस शाही स्नान की रौनक हरिद्वार कुम्भ में भी दिखेगी। पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि के दिन यानी 11 मार्च को होगा।
अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी के अनुसार सातों संन्यासी अखाड़े शाही स्नान करने के लिए खासे उत्साहित हैं। इस बार चार शाही स्नान होंगे। सभी अखाड़ों के साधु-संत अपने-अपने अखाड़ों से भव्य शोभा यात्रा निकालते हुए निर्धारित स्नान पर्व पर हर की पैड़ी के ‘’ब्रह्मकुंड’’ पर पहुंचकर गंगा में डुबकी लगाएंगे।
सबसे पहले जूना, आह्वान और अग्नि अखाड़ा स्नान करेंगे, उसके बाद निरंजनी व आनंद अखाड़ा और फिर महानिर्वाणी और अटल अखाड़े के साधु-संत शाही स्नान करेंगे। पहला शाही स्नान 11 मार्च को महाशिवरात्रि पर होगा, दूसरा 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या के दिन, तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल को मेष संक्रांति (बैसाखी) पर और आखिरी चौथा शाही स्नान चैत्र पूर्णिमा के दिन होगा।
गायत्री परिवार का अनूठा अभियान ‘’आपके द्वार पहुंचा हरिद्वार’’
कोरोना के कारण कुम्भ स्नान के लिए हरिद्वार न पहुंच पाने वाले श्रद्धालुओं के लिए गायत्री परिवार ने ‘’आपके द्वार पहुंचा हरिद्वार’’ नाम से एक अनूठा अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत शांतिकुंज के कार्यकर्त्ताओं की हजारों टोलियां घर-घर गंगाजल व कुम्भ का प्रसाद पहुंचाने में जुटीं हैं। यही नहीं, गायत्री मिशन ने कुम्भ पर्व को पर्यावरण जागरूकता फ़ैलाने का भी माध्यम बनाया है। इसके तहत हरिद्वार के देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डा. चिन्मय पण्ड्या की अध्यक्षता में गठित पर्यावरण समिति मंर कुम्भ को ‘’जीरो कार्बन फुटप्रिंट जोन’’ बनाने की योजना बनी है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर इको ब्रिक्स द्वारा पर्यावरण को पालीथिन मुक्त करने तथा पानी व कोल्ड ड्रिन्क की बोतल व प्लास्टिक कप जैसे सिंगिल यूज प्लास्टिक के सुनियोजन पर भी विमर्श हुआ है। इस बाबत डा. चिन्मय पण्ड्या का कहना है कि भारतीय संस्कृति में पर्यावरण सरंक्षण के साथ पर्व व त्योहारों की कल्पना की गयी है। प्राचीन समय में जिस प्रकार पृथ्वी, जल इत्यादि का सरंक्षण दिया जाता था। ठीक आज उसी प्रकार के नियोजन की आवश्यकता है। इस क्रम में कुम्भ पर्व इस दिशा में जनजागरूकता फ़ैलाने का बेहतरीन अवसर बन सकता है।

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