प्रश्न उठता है कि किसानों के खाते में सीधा पैसा जाने से आखिर आपत्ति किसे हो सकती है? स्वभाविक है इसमें आढ़तियों की भूमिका कम होगी और सीधा लाभ किसानों को मिलेगा। केंद्र द्वारा लाए गए तीन कृषि सुधार कानूनों में भी यही व्यवस्था है कि किसानों व उपभोक्ताओं के बीच बिचौलियों की भूमिका को खत्म किया जाए ताकि किसानों को बाजार का सीधा लाभ मिले।
कांग्रेस के किसान हितैषी होने के दावे की उस समय पोल खुलती नजर आई जब केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार को फसलों के भुगतान के लिए नए निर्देश जारी किए कि किसानों को फसलों का भुगतान सीधे उनके खाते में किया जाए। इसके साथ ही किसानों को फसल बेचने वाले किसानों को अपनी जमीन का भी विवरण देना भी अनिवार्य किया गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसे अव्यवहारिक बताया है और कहा है कि ऐसे में ठेके पर खेती करने वालों को भुगतान कैसे होगा।
केंद्र सरकार की इस कदम के खिलाफ पंजाब आढ़ती एसोसिएशन ने एक अप्रैल से हड़ताल करने का भी ऐलान कर दिया है। पंजाब मुख्यमंत्री ने केंद्र द्वारा आढ़तियों के बजाय के फसलों की खरीद का भुगतान सीधे किसानों के बैंक खातों में करने के केंद्र सरकार के निर्देश की आलोचना करते हुए केंद्र के प्रस्ताव को किसानों को भड़काने वाला कदम बताया है।
उन्होंने कहा कि एफसीआई की तरफ से किसानों को ई-भुगतान के द्वारा सीधी अदायगी के लिए जमीन रिकार्ड मांगने से स्थिति बद से बदतर होगी। उन्होंने कहा कि पंजाब में 1967 से जांची-परखी व्यवस्था चल रही है, जहां किसान आढ़तियों के द्वारा अदायगी लेते हैं, जिनके साथ उनका बहुत पक्का रिश्ता है और वह कठिन समय में आढ़तियों से ही वित्तीय सहायता लेते हैं। उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा कि किसान संकट की घड़ी में कार्पोरेट घरानों पर कैसे निर्भर रह सकता है।
गौरतलब है केंद्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय ने एक के बाद एक लगातार दो पत्र जारी करके पंजाब सरकार से कहा है कि किसानों को उनकी फसल की खरीद का भुगतान सीधा उनके बैंक खातों में किया जाए। अभी यह व्यवस्था है कि किसानों को भुगतान आढ़तियों के माध्यम से किया जाता है। इसके साथ ही एक और पत्र जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि अनाज खरीद पोर्टल पर फसल बेचने वाले किसान अपना जमीन का रिकार्ड भी देंगे। ऐसे में पंजाब सरकार के लिए किसानों को सीधे भुगतान का मुद्दा पंजाब सरकार के गले की फांस बन गया है।
केंद्र सरकार के पत्र में यह भी कहा गया कि इस रिकार्ड को मंत्रालय के पास भेजा जाए ताकि वे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के माध्यम से जब कभी चाहें तो रिकार्ड को सत्यापित भी करवा सकें। एफसीआई ने एक पत्र जारी करके कहा है कि राज्य सरकार रबी फसल शुरू होने से पहले पहले अपने एपीएमसी एक्ट 1961 में बदलाव करे।
फिलहाल, केंद्र व राज्य की खरीद एजेंसियां फसल खरीद का काम आढ़तियों के माध्यम से करती हैं। किसान फसल को अपने आढ़ती के पास लाते हैं और आढ़ती फसल की सफाई आदि की व्यवस्था करते हैं। खरीद एजेंसियों की ओर से खरीदे जाने वाले अनाज का भुगतान आढ़तियों को उनके बिल भेजने पर कर दिया जाता है और आढ़ती किसानों के खातों में ऑनलाइन अदायगी करते हैं। यह व्यवस्था कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने तीन साल पहले एपीएमसी में संशोधन करके की थी।
इससे पहले भी किसानों को सीधी अदायगी का मुद्दा काफी गरमाया रहा है। अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के समय उच्च न्यायालय ने भी किसानों को चेक से फसल की अदायगी करने का आदेश दिया था। आढ़तियों ने इसका विरोध किया तो तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा था कि यह फैसला किसानों पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वह एजेंसी से भुगतान लेना चाहते हैं या आढ़ती से लेना चाहती है।
हालांकि ई-मोड से किसानों को भुगतान की व्यवस्था कई राज्यों में पहले से ही लागू है। हरियाणा में पिछले साल धान की खरीद इसी तरह की गई थी, लेकिन पंजाब में इसने अभी रफ्तार नहीं पकड़ी है। पंजाब और हरियाणा में गेहूं खरीद अगले कुछ सप्ताहों में शुरू होने वाली है। उत्तर प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बायोमेट्रिक मॉडल से किसानों को भुगतान किया जाएगा।
प्रश्न उठता है कि किसानों के खाते में सीधा पैसा जाने से आखिर आपत्ति किसे हो सकती है? स्वभाविक है इसमें आढ़तियों की भूमिका कम होगी और सीधा लाभ किसानों को मिलेगा। केंद्र द्वारा लाए गए तीन कृषि सुधार कानूनों में भी यही व्यवस्था है कि किसानों व उपभोक्ताओं के बीच बिचौलियों की भूमिका को खत्म किया जाए ताकि किसानों को बाजार का सीधा लाभ मिले।
स्पष्ट है कि किसान हित के नाम पर नए कृषि सुधारों का विरोध करके कांग्रेस किस तरह इन बिचौलियों का बचाव कर रही है। दूसरा तथ्य यह है कि पंजाब में बड़े किसान आढ़त का काम भी करते हैं। वे औने-पौने दामों पर छोटे किसानों की फसल खरीद कर उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर केंद्र को बेच देते हैं। कमाई के इस खेल में केवल बड़े किसान ही नहीं, बल्कि लगभग हर राजनीतिक दल के कई नेता भी शामिल रहते हैं।
यही नहीं, कई बार उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश से गेहूं-धान की फसल सस्ते दामों पर मंगवा कर उसे एमएसपी के नाम पर महंगे दामों में बेच दिया जाता है। दलाली के इस खेल में पंजाब के साथ-साथ उन राज्यों के छोटे किसान भी पिस जाते हैं, जो कम दामों पर अपनी फसल बेचने को विवश होते हैं। सस्ती फसल खरीद कर उसे एमएसपी पर बेचने और इसमें भी आढ़त के नाम पर कमीशन खाकर पंजाब के बड़े लोग खूब मालामाल हो रहे हैं। वहीं, छोटा किसान गरीबी की दलदल में रहने को विवश है। अगर पंजाब सरकार किसानों को भुगतान का मार्ग सीधा केंद्र से करने की व्यवस्था करती है और जमीन का रिकार्ड उपलब्ध करवा देती है तो यह सारा खेल अपने आप खत्म हो जाएगा और लाभ असली व छोटे किसानों को मिलेगा जिसका अभी तक शोषण होता आया है।
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