हमेशा की तरह इस बार के विधानसभा चुनावों में भी कम्युनिस्ट वाम लोकतांत्रिक मोर्चा मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए बढ़-चढ़कर हिन्दुओं को अपमानित करने के काम कर रहा है। लेकिन राज्य के हिन्दुओं को इस बार एक बड़े बदलाव की उम्मीद
केरल में आगामी 6 अप्रैल को विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। रणक्षेत्र सजने लगे हैं। भाजपानीत राजग, कांग्रेसनीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा और माकपानीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा वे तीन मुख्य मोर्चे हैं जो चुनाव लड़ने और राज्य में सरकार बनाने के लिए पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं।
वाम लोकतांत्रिक मोर्चे का दावा है कि वह सत्ता में बना रहेगा। जबकि कम्युनिस्ट सरकार अनेक आरोपों—घोटालों में फंसी है, जिनमें से प्रमुख हैं, सोने की तस्करी, कुरान आयात घोटाला, अवैध विदेशी फंड और रिश्वत से जुड़ा लाइफ मिशन घोटाला, केरल सरकार और एक अमेरिकी फर्म के बीच कथित एमओयू से जुड़ा ताजा घोटाला, राज्य लोक सेवा आयोग नियुक्तियों में हेरफेर आदि। उधर संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे का दावा है कि वाम मोर्चा सरकार पर भ्रष्टाचार के उपरोक्त आरोपों के कारण वह सत्ता में आएगा। भाजपा की अगुआई वाला राजग भी मौजूदा विधानसभा में केवल एक विधायक होने के बावजूद अपनी स्पष्ट जीत के प्रति आशान्वित है। (केरल के राजनीतिक इतिहास में भाजपा का खाता पहली बार 2016 में वरिष्ठ नेता ओ. राजगोपाल की जीत के साथ खुला था।) भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन त्रिपुरा का उदाहरण देते हैं, जहां भाजपा पिछली विधानसभा में एक भी विधायक न होने के बाद भी सत्ता में पहुंचने में सफल रही थी।
संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे (यूडीएफ) के बारे में स्थापित तथ्य है कि वह चुनावी लाभ के लिए हमेशा मुस्लिम और ईसाई सांप्रदायिकता का साथ लेता रहा है। वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) हमेशा यूडीएफ पर ठीक यही आरोप लगाता रहा है। लेकिन, पिछले लगभग दो दशकों से एलडीएफ खुद ही इस्लामिक कट्टरवाद का पोषण करने के साथ-साथ हर कदम पर हिंदुत्व विरोधी कट्टरपंथी रुख दिखा रहा है। शबरीमला मामले में 10 से 50 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने की परंपरा न होने के बावजूद, उन्हें मंदिर में ले जाकर मंदिर को अपवित्र करने के प्रयास एलडीएफ शासनकाल में ही हुए।
इस क्रम में नवीनतम घटनाक्रम इस्लामी कट्टरपंथियों को 1921 के हिंदू-विरोधी खिलाफत दंगों का शताब्दी समारोह मनाने देना है। खिलाफत का संपूर्ण भारतीय इतिहास स्थापित करता है कि वह सरासर हिंदू नरसंहार था। अब, सभी कट्टर मजहबी इस्लामी संगठनों ने इसका बड़े पैमाने पर जश्न मनाने का संकल्प लिया है। पिछले साल उन्होंने 1969 में ईएमएस नंबूदिरीपाद के नेतृत्व में माकपानीत वामपंथी सरकार (1967-1969) द्वारा स्थापित मुस्लिम-बहुल मलप्पुरम जिले में मुख्य कार्यक्रम की झलक का आयोजन किया था। उस आयोजन में सन् 1920 के मुसलमानों जैसी वेशभूषा पहनकर जुलूस निकाला गया था।
जब देश की संसद ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम विधेयक, 2019 पारित किया, तो माकपा नेता पिनारई विजयन के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ दल ने केरल विधानसभा में सीएए-विरोधी प्रस्ताव पारित करने की पहल की। इस प्रयास में पिनारई सफल रहे, क्योंकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने प्रस्ताव का खुलकर समर्थन किया था। यह एक तरह से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रताड़ित हिंदुओं (और ईसाइयों) पर एक आघात ही था।
माकपा के हिंदू-विरोधी कदमों का ताजा उदाहरण है कन्वर्टिड ईसाइयों को आरक्षण देने का निर्णय। इसके दो गंभीर प्रभाव देखने को मिले हैं, पहला यह कि नई प्रणाली से हिंदू अनुसूचित जातियों और जनजातियों को मिलने वाला आरक्षण कम हो जाएगा, और दूसरा, इससे अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदायों में कन्वर्जन को बल मिलेगा। केन्द्र की पूर्ववर्ती पी.वी. नरसिंह राव और देवेगौड़ा सरकारों ने इस विषय को संसद में पारित कराने की कोशिश की थी, लेकिन असफल रही थीं। अब, खुद को हिंदू-विरोध की अगुआ के रूप में स्थापित करने के लिए माकपा ने यह रुख अपनाया है।
हाल ही में मलयाली उपन्यास ‘मेषा’ को केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। अकादमी पर बेशक माकपा सरकार का नियंत्रण है। यह उपन्यास जब दैनिक मातृभूमि के साप्ताहिक परिशिष्ट में कड़ियों में प्रकाशित किया जाने लगा तो, हिंदू समुदाय को गुस्सा आना ही था, क्योंकि उपन्यासकार ने हिंदू महिलाओं के मंदिर जाने की परम्पराओं का वर्णन अत्यंत अश्लील शब्दावली में किया है। हिंदू संगठनों द्वारा कड़े शब्दों में इसकी निंदा के बाद अंतत: दैनिक मातृभूमि को इसका प्रकाशन बीच में ही बंद करना पड़ा।
कुख्यात लव जिहाद के खिलाफ माकपा और एलडीएफ शासन का रवैया उनके हिंदुत्व विरोधी रुख का एक और उदाहरण है। राज्य में लव जिहाद के स्पष्ट और ठोस उदाहरण हैं। लेकिन, लव जिहाद के मामलों में केरल पुलिस ने उच्च न्यायालय में जो रुख अपनाया, वह इसके उलट था। इसके चलते बहुत सी हिंदू लड़कियां कन्वर्जन के इस जाल में फंस चुकी हैं। मुस्लिम लड़के इन लड़कियों से शादी का वादा केवल तब करते हैं जब वे कन्वर्जन के लिए हामी भरती हैं।
केरल में एसडीपीआई और पीएफआई के आपराधिक तत्वों पर बड़ी तादाद में हत्या के कथित आरोप हैं। उन्होंने इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ मजबूत रुख अपनाने वाले एबीवीपी कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया है। अश्विनी कुमार, तलासेरी (10 मार्च, 2015), विशाल कुमार, चेंगन्नूर (17 फरवरी, 2012), श्यामाप्रसाद, इरित्ती (20 जनवरी, 2018) और सचिन गोपाल, कन्नूर (6 जुलाई 2012) ऐसे ही कुछ नाम हैं जिन्हें बेरहमी से मार डाला गया। राज्य के हिंदू 2 मई, 2003 को इस्लामिक कट्टरवाद का बर्बर उदाहरण पेश करने वाले माराडु नरसंहार को कभी भूल नहीं सकते। उस नरसंहार में रा.स्व.संघ के 8 निर्दोष कार्यकर्ता मारे गए थे। अभी 24 फरवरी, 2021 को चेरतला में एसडीपीआई कार्यकर्ताओं पर संघ कार्यकर्ता नंदू कृष्णा की निर्मम हत्या का कथित आरोप है। उस हमले में एक अन्य संघ कार्यकर्ता गंभीर रूप से घायल हो गया था।
माकपा इस्लामिक कट्टरवाद के प्रति हमेशा नरम रही है। आसन्न विधानसभा चुनाव जीतने के लिए वह इसी तुरुप के पत्ते का उपयोग करेगी, क्योंकि उसे थोक मुस्लिम वोट चाहिए। ध्यान रहे कि 2011 की जनगणना के अनुसार, केरल की कुल आबादी में 26.56 प्रतिशत मुस्लिम हैं, जबकि ईसाई 18.38 प्रतिशत। हां, माकपा को भाजपा की अगुआई में कड़ी हिंदू प्रतिक्रिया का डर भी है। राज्य के समझदार तबके का मानना है कि इस बार भाजपा इतिहास रच सकती है। विधानसभा में भाजपा का प्रतिनिधित्व ऐतिहासिक होगा। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने स्पष्ट कहा है कि वे जीतने और सत्ता में आने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं।
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