फिल्म नगरी में अपने आगमन से लेकर अब तक अनुराग कश्यप को जिस एक चीज की तलाश है, वो है सुपरहिट का तमगा जिसे आज तक हासिल नहीं कर पाये हैं। वह अपने आप में एक अनोखे फिल्मकार हैं, जिसकी फिल्में जितनी ज्यादा पिटती हैं, वह उतनी तरक्की करते जाते हैं। वर्ना सोचिये जिस व्यक्ति को साल 2013 में 55 लाख रुपये की कर गड़बड़ी के मामले में तलब किया गया था, आज उन्हें और कुछ अन्य साथियों पर 650 करोड़ रुपये की टैक्स गड़बड़ी का संदेह व्यक्त किया जा रहा है
बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया। फिल्म नगरी में कोई कितना तुर्रमखान क्यों ना हो और निर्देशकगिरी के चाहें जितने पैंतरे जानता हो, लेकिन जब तक फिल्म से मुनाफा नहीं कमाकर देगा, उसकी औकात कुछ नहीं है। नई फिल्म मिलना तो दूर ऐसे किसी फिल्मकार को कोई अपने पास बिठाकर राजी नहीं होता। एक फिल्मकार के रूप में अनुराग कश्यप की शैली और विशिष्टता का आकलन आप अपनी सुविधानुसार जो हो कर सकते हैं, लेकिन एक सेठ (फिल्म में पैसा लगाने वाला) की नजर से देखें तो प्रथम दृष्टया उनकी पहचान उपरोक्त हेडिंग के अंतिम चार शब्दों से ज्यादा कुछ नहीं है। बावजूद इसके उनके पास काम की कोई कमी नहीं है। वह अपने आप में एक अनोखे फिल्मकार हैं, जिनकी फिल्में जितनी ज्यादा पिटती हैं, वह उतनी तरक्की करते जाते हैं। वर्ना सोचिये जिस व्यक्ति को साल 2013 में 55 लाख रुपये की कर गड़बड़ी के मामले में तलब किया गया था, आज उन्हें और कुछ अन्य साथियों पर 650 करोड़ रुपये की टैक्स गड़बड़ी का संदेह व्यक्त किया जा रहा है।
तो क्या इन बीते 7-8 वर्षों में अनुराग कश्यप फ्लाप से हिट फिल्मों की मशीन बन गये हैं ? या एक-एक फिल्म के कई सौ करोड़ रुपये लेने वाले नामचीन फिल्म सितारे उनकी फिल्मों में काम करने लगे हैं, जिसकी वजह से उनकी फिल्में 300, 400 या 500 करोड़ रुपये का बिजनेस कर रही हैं ? असल में ऐसा कुछ भी नहीं है। फिल्म नगरी में अपने आगमन से लेकर अब तक अनुराग कश्यप को जिस एक चीज की तलाश है, वो है सुपरहिट का तमगा जिसे आज तक हासिल नहीं कर पाये हैं। वो बात अलग है कि उनके नाम एक से बढ़कर एक फ्लाप फिल्मों की लंबी सूची है। बावजूद इसके वह खबरों में हमेशा बने रहते हैं। निर्देशकगिरी से ज्यादा वह अपने विवादास्पद बयानों, आग उगलते ट्वीट्स के अलावा उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप भी हैं। इधर, कुछ वर्षों से वह फिल्मों के अलावा ओटीटी मंचों के लिए वेब सिरीज निर्माण और निर्देशन से भी जुड़ गये हैं। लेकिन पैसों के हेरफेर से जुड़ी रकम का आंकड़ा उनकी तथाकथित कामयाबी के बजाए फ्लापगिरी से ज्यादा मेल खाता है।
तो आखिर उनकी फिल्मों को पैसा आता कहां से है ?
बीते साल एक वेबसाइट में छपे लेख के अनुसार देश-विरोधी और वामपंथी ताकतों द्वारा उनकी फिल्मों में पैसा लगाया जाता है, ताकि वह भाजपा विरोधी और भारत विरोधी प्रोपेगंडा चलाते रहें। इस लेख में अनुराग की फ्लाप फिल्मों के विस्तृत ब्यौरे के साथ कई अन्य जानकारियां भी दी गई हैं।
यहां देखने वाली बात है कि अनुराग कश्यप ने साल 2009 में अनुराग कश्यप फिल्म्स प्रा़ लि़ (एकेएफपीएल) की स्थापना की थी, जिसके तहत साल 2014 में हरामखोर नामक फिल्म का ब्यौरा मिलता है। यह फिल्म स्कूल में पढ़ने वाली एक नाबालिग लड़की और उसके स्कूल मास्टर के बीच संबंधों पर आधारित थी। इस कंपनी के तहत भी ऐसी कोई फिल्म गिनाना मुश्किल है, जिससे साबित हो की अनुराग की फिल्मबाजी मुनाफे में चलती आ रही है।
खैर, इसके दो साल बाद ही फैंटम फिल्म्स की स्थापना की गयी, जिसमें अनुराग के अलावा विक्रमादित्य मोटवाणी, विकास बहल और मधु मंटेना के नाम भी शामिल थे, जबकि साल 2015 में 50 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ रिलायंस एंटरटेन्मेंट का नाम भी इसमें जुड़ गया। मधु मंटेना के पास क्वान, जो कि एक टैलेंट मैनेजमेंट एजेन्सी है, का भी स्वामित्व है, जिसका नाम बीते साल भी काफी सुर्खियों में रहा था।
दरअसल, क्वान एक ऐसी एजेन्सी है, जिसके पास बड़े—बड़े खिलाड़ियों और फिल्म सितारों का कास्टिंग, माडलिंग इत्यादि की मार्केंटिंग वगैरह का काम है। बीते वर्ष नार्कोटिस कंट्रोल ब्यूरो द्वारा जब ड्रग्स के एक मामले में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को पूछताछ के लिए तलब किया गया था तो क्वान का नाम सामने आया था। क्योंकि दीपिका का कामकाज यही एजेन्सी देखती है। यही नहीं एनसीबी ने पूछताछ के लिए क्वान सीईओ चितगोपेकर तथा कर्मी जया साहा और करिश्मा पारिख को भी बुलाया था। यही नहीं क्वान के सह-संस्थापक अनिर्बान दास ब्लाह को साल, 2018 में यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोपों के चलते अपनी नौकरी से इस्तीफा तक देना पड़ा था।
सूत्रों के अनुसार बीते वर्ष इस एजेन्सी का नाम गलत कारणों की वजह से कई बार सुर्खियों में आया, जिसके चलते इसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची। इधर, बीते साल दिसंबर माह में करण जौहर ने भी एक टैलेंट मैनेजमेंट कंपनी की स्थापना कर डाली, जिसका नाम धर्मा कार्नरस्टोन एजेंसी है। इसका कामकाज भी वही है। लेकिन अपनी कंपनी लांच करने के बाद करण जौहर आदित्य चौपड़ा के बाद दूसरे ऐसे बड़े फिल्मकार एवं प्रोडक्शन हाउस हो गये हैं, जिनके पास टैलेंट कंपनी का स्वामित्व है। इस क्षेत्र में स्पाइस, यूनिवर्सल और रेनड्राप सरीखी पीआर एवं टैलेंट मैनेजमेंट कंपनियों के नाम भी शामिल हैं। लेकिन करण जौहर के मैदान में आ जाने से अब क्वान को सीधे चुनौती मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
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