राहुल गांधी चर्च में घुटनों पर बैठते हैं लेकिन मंदिरों में उन्हें बताना पड़ता है यहां कैसे पूजा की जाती है, शिशुमंदिर और विद्या भारती के जिन स्कूलों पर वह सवाल खड़े रहे हैं इसमें दोष उनका नहीं उनकी शिक्षा उनके संस्कारों का है जो उनके परिवार उनकी माता सोनिया गांधी उर्फ एंटोनियो माइनो से मिले हैं
चर्च में घुटनों पर बैठकर प्रार्थना करते राहुल गांधी.
बात वर्ष 2018 के 22 जुलाई की है, दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक थी। जहां राहुल गांधी ने शिशु मंदिर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह समझना जरूरी है कि रा.स्व.संघ क्या है और वह कैसे काम करती है? उसके कई संस्थानों में से एक है शिशु मंदिर। अब सवाल यह उठता है कि ये चलते कैसे हैं? तो संघ और भाजपा जहां भी सत्ता में आते हैं, अपने संस्थानों को बनाने का काम वे सरकार से पैसा चोरी करके करती है।
उनके बिना सिर पैर के इस आरोप की हवा थोड़ी देर में ही निकल गई थी। भाषण के बाद जब ‘कांग्रेसी वामपंथी इको सिस्टम’ सक्रिय हो गया। कट्टरपंथियों और कांग्रेसी वाट्सअप समूह में उनके भाषण के अंश शेयर होने लगे। उसी दौरान जिन कांग्रेसी सोशल मीडिया मंचों पर साझा किए जाने के बाद भाषण को कॉपी पेस्ट किया जा रहा था, थोड़ी ही देर में उन सभी जगहों से इस भाषण को हटा लिया गया। जिन ‘कांग्रेसी इको सिस्टम’ के पत्रकारों और आंदोलनजीवियों ने राहुल के भाषण को सोशल मीडिया पर बांटा था, वे ठगे के ठगे रह गए।
राहुल साल दो साल में संघ को लेकर माफी मांगने लायक कोई न कोई बयान दे ही देते हैं। उसके बाद जब सार्वजनिक तौर पर उनकी फजीहत होती है फिर पार्टी की तरफ से सफाई जारी की जाती है।
कांग्रेस के भीतर संघ को दी जानेवाली गाली को इसलिए भी संरक्षण दिया जाता है क्योंकि इससे चर्च और इस्लामिक संगठनों को दूरगामी फायदा होता है। उन्हें कन्वर्जन करने में आसानी होती है। कांग्रेस जब तक केन्द्र में रही, कन्वर्जन करने वाले समूहों के लिए सबसे अनुकूल समय रहा। स्वास्थ, शिक्षा, पर्यावरण जैसे मुद्दों पर कांग्रेस इको सिस्टम के वामपंथी एनजीओ को एफसीआरए के माध्यम से पैसा मिलता था और वह पैसा कन्वर्जन पर खर्च हो रहा था।
पेरियार ईवी रामसामी जैसे हिन्दू विरोधियों को दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत तक स्थापित करने में कांग्रेस इको सिस्टम के वामपंथी समूह ने करोड़ों रुपए खर्च किए। दक्षिण भारत में भारतीय राष्ट्रीयता और संघ के विरोध के लिए कांचा इलैया शेफर्ड जैसे लोग खड़े किए गए जो अमेरिकी राष्ट्रवादी एनजीओ के खर्चे पर अमेरिकी राष्ट्रवादी चर्च के प्लेटफॉर्म पर खड़े होकर भारतीय राष्ट्रप्रेमियों को अपशब्द कहते रहे। कांग्रेसी इको सिस्टम के खर्चे पर खड़े इन विद्वानों के जीवन का विरोधाभास समाज के बीच उन्हें हास्यास्पद बनाता है।
इस तरह भारत के अंदर सोनिया एंटोनियो माइनो की सरकार में जो हिन्दु विरोधी बीज बोया गया, उसी का परिणाम है कि तमिलनाडु की पंद्रह प्रतिशत आबादी ईसाई हो चुकी है। मेघालय और मिजोरम ईसाई भूमि जैसे ही लगते हैं।
पत्रकार संजय तिवारी के अनुसार — ”राहुल गांधी को मंदिर मस्जिद जाते भी देखा है लेकिन जितने सहज वो चर्च में दिखते हैं, और कहीं नहीं दिखते। मंदिर मस्जिद में उन्हें बताना पड़ता है कि अब क्या करना है लेकिन चर्च में जैसे उन्हें हर कर्मकांड पता है कि कब क्या करना है। पादरी से आशीर्वाद लेते समय घुटने पर बैठा जाता है, ये मुझे राहुल गांधी को देखकर पता चला। वरना हम क्या जाने कि चर्च के क्या नियम हैं?”
राहुल गांधी अब इस नए बयान के लिए विवादों में हैं। बकौल राहुल गांधी ” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्कूलों के जरिए हमला शुरू किया है। जिस तरह से पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथी मदरसों के जरिए अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं ठीक उसी तरह से संघ अपने स्कूलों के जरिए अपनी विचारधारा आगे बढ़ा रहा है। कोई ये सवाल नहीं पूछता कि संघ के पास सैकड़ों-हजारों स्कूल चलाने के लिए पैसे कहां से आ रहा है?”
मनमोहन सिंह सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे कौशिक बसु से कॉर्नेल विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में चर्चा के दौरान राहुल गांधी जब अपना यह बयान दे रहे थे, उस वक्त राजनीतिक खबरों की समझ रखने वाले समूह को यह जानते हुए अधिक देर नहीं हुई कि राहुल के लिए इस साक्षात्कार की योजना कांग्रेस के वामपंथी इको सिस्टम ने बनाई होगी। संघ और हिन्दू समाज से यह समूह अपनी नफरत कभी नहीं छुपाता। इस बयान के पीछे कांग्रेस की असम और पश्चिम बंगाल के मुसलमानों को साधने की छटपटाहट भी नजर आती है। कांग्रेस के ‘वामपंथी इको सिस्टम’ को लगता है कि संघ के खिलाफ दिए हुए बयान का व्यापक असर मुसलमानों और ईसाई समुदाय पर होता है और जो रा.स्व.संघ को अपशब्द कहेगा, उसे मुसलमान अपना वोट जाकर दे आएगा। जबकि राहुल गांधी के ‘वामपंथी इको सिस्टम’ को अब समझ लेना चाहिए कि अब समय बदल रहा है और उनकी वजह से बार—बार राहुल गांधी का सार्वजनिक अपमान होता है। ऐसे ही बयानों की वजह से समाज का एक बड़ा तबका राहुल को अब गम्भीरता से लेना बंद कर चुका है।
साल 2016 की बात है। असम में दसवीं की परीक्षा में सरफराज हुसैन ने राज्य में टॉप किया था। उसे परीक्षा में 600 में 590 नंबर मिले हैं। सबसे खास बात यह है कि वह विद्या मंदिर का छात्र था। जिसकी तुलना राहुल गांधी पाकिस्तानी मदरसों से करते हैं। सरफराज हुसैन के स्कूल के प्रधानाध्यापक अक्षय कालिटी कहते हैं – ” हमें कभी मुस्लिम समुदाय से आने वाले बच्चों से कोई शिकायत नहीं मिली। हमारा जोर शिक्षा की गुणवत्ता पर रहता है। हम शिक्षा के माध्यम से छात्रों की पहचान भारतीय संस्कृति से कराते हैं।” यह छोटी सी बात राहुल गांधी को समझने में बहुत देर लगेगी क्योकि वे इन दिनों असम और बंगाल के कट्टरपंथी मुसलमानों को खुश करने में व्यस्त हैं।
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