इसमें संदेह नहीं कि शाहीन बाग में नाकाम रहीं ताकतों ने एक बार फिर उस केन्द्र सरकार को अपदस्थ करने की कोशिश की है ‘किसान आंदोलन’ के जरिए जिसके शासन में देश विरोधी तत्वों को पनाह नहीं मिल रही है, आक्सीजन नहीं मिल रही है। टिकैत के मुंह से ये ताकतें मनमाने बयान दिलवा रही हैं
अनुमान तो लगभग शुरू से ही हो गया था कि राजधानी दिल्ली के पांच मुहानों पर जुगाड़ा गया ‘किसान आंदोलन’ किसानों का नहीं, भारत को बिखरता देखने की चाह रखने वाली देशी-विदेशी ताकतों का जमावड़ा भर है। सोशल मीडिया पर विदेशी हस्तियों से पैसे के बल पर ट्वीट कराने से लेकर ‘टूल किट’ तक, एक एजेंडे के तहत कवायद सिर्फ और सिर्फ केन्द्र की मोदी सरकार को किसी न किसी तरह हिलाने भर की होती रही है। और हर शरारत का पर्दाफाश भी होता रहा है।
गाजीपुर में ‘किसानों’ का डेरा जमाए बैठे और हरियाणा, उत्तर प्रदेश (और अब प. बंगाल जाकर भी) महापंचायतों के जरिए ‘किसानों को झकझोरने की हुंकार’ भरते, कभी ‘आंदोलन’ को खत्म होते देख हिचकियां भर आंसू बहाने वाले भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का 22 फरवरी को खरखौदा में दिया बयान ‘आंदोलन’ के उक्त एजेंडे की पोल खोल देता है। टिकैत ने कहा, ‘…भीड़ जुटने से कानून ही नहीं, सरकारें भी बदल जाया करती हैं।’ बस यही मंशा है इस तथाकथित आंदोलन की। सवाल ‘कानूून में चुभने वाले बिन्दुओं’ में संशोधन कराने की सरकार की ईमानदार कोशिश से तालमेल बैठाना है ही नहीं, मंशा तो सरकार को ‘बदलने’ की है।
इसमें संदेह कहां रह जाता है कि शाहीन बाग में नाकाम रहीं ताकतों ने ‘किसान आंदोलन’ के जरिए एक बार फिर उस केन्द्र सरकार को अपदस्थ करने की कोशिश की है जिसके शासन में देश विरोधी तत्वों को पनाह नहीं मिल रही, आॅक्सीजन नहीं मिल रही है। तब शरजील को आगे करके आग भड़काई गई थी तो अब टिकैत के मुंह से ये ताकतें मनमाने बयान दिलवा रही हैं। 26 जनवरी, 2021 को दिल्ली में लाल किले पर और उसके अगले दिन सिंघु बार्डर पर हिंसा का जो रौद्र रूप दर्शाया गया था किसानों के नाम पर, वह एक बड़े मकसद की झलक भर था। पूरा आंदोलन संचालित हो रहा है कनाडा, न्यूजीलैंड, अमेरिका में बैठे खालिस्तानी तत्वों, इस्लामी जिहादी ताकतों और चर्च पोषित मीडिया समूहों, नक्सली-माओवादी नेताओं और कम्युनिस्टों द्वारा।
और इसमें किसी को संदेह है तो उसे दूर करती हैं हाल में प्रिंट और मीडिया पोर्टलों पर छपी या छपवाई गर्इं कुछ खबरें, रपट, लेख और आकलन। उसकी कुछ बानगी इस प्रकार है।
द ट्रिब्यून। 20 फरवरी 2021. आईएएनएस के हवाले से अमेरिका के मिनिपोलिस शहर से उपजी खबर का शीर्षक ही यह भ्रम पैदा करने की कोशिश करता है कि ‘किसान आंदोलन’ को अमेरिका तक से समर्थन मिल रहा है यानी यह इतना ‘विश्वव्यापी’ है। शीर्षक है-‘‘भारत में जारी विरोध को 87 अमेरिकी किसान गुटोें का समर्थन’’। नीचे खबर है कि अमेरिका के 87 कृषि, कृषि पारिस्थितिकी और खाद्य न्याय गुटों ने संयुक्त किसान मोर्चा को पत्र लिखकर अपना समर्थन जताया है। लिखा है, ‘‘भारतीय किसानों ने अपने खाद्य तंत्र पर कृषि व्यवसाय के शिकंजे को कसने वाले अन्यायपूर्ण कृषि कानूनों के खिलाफ दुनिया के इतिहास में सबसे जोशीले विरोध में से एक के लिए समर्थन जुटाया है।…कृषि कानून विरोधी शांतिपूर्ण प्रदर्शन और इस विरोध का समर्थन करने (जैसे दिशा रवि की गिरफ्तारी) वालों के विरुद्ध भारत राज्य द्वारा उठाया गया आसुरी कदम दुनिया के सामने भारतीय लोकतंत्र की खामियां दर्शा रहा है।’’ 21 फरवरी, 2021 को द वायर ने भी उक्त खबर को प्रसारित किया है, शीर्षक है-‘यूएस में 40 साल पहले हुआ: 87 किसान यूनियनों ने भारत के किसान आंदोलन पर उठाई आवाज’। रपट में लिखा है-‘रीगन के काल की किसानों को अपूरणीय क्षति पहुंचाने वाली नीतियों के चुभते उदाहरणों का उल्लेख करते हुए देश की 87 किसान यूनियनों ने भारत के किसान आंदोलन के प्रति समर्थन जताया है।’
ब्लूमबर्ग। 22 फरवरी 2021. इस पोर्टल पर छपी खबर का शीर्षक है-‘‘प्रदर्शनकारी किसानों को हिरासत में लेने के लिए भारत ने आॅनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून का लिया सहारा।’’ पूरी रपट दिशा रवि की गिरफ्तारी पर लानतें भेजने और भारत सरकार के ‘राजद्रोह कानून’ को कोसने से भरी है। लिखा है-‘उसके साथ सात और लोगों पर ऐसा ही आरोप लगाया गया है, जिसमें एक पूर्व विदेश मंत्री हैं, पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् हैं। ये मोदी के विरुद्ध बढ़ते राजद्रोह आरोपों का हिस्सा हैं। 2014 में उनके सत्ता में आने के वक्त ऐसे 43 मामलों की संख्या अब बीते दो साल में हर साल 100 से ज्यादा बढ़ी है। यह कहना है शोध समूह आर्टिकल-14 का। चूंकि एक मामले में कई लोगों को आरोपित किया जा सकता है, इसलिए इससे प्रभावितों की संख्या हजारों तक जाती है।’
आर्टिकल-14 डॉट कॉम ने अपनी वेबसाइट पर इसी विषय पर खबर छापी है इस शीर्षक से-‘औपनिवेशिक काल के कानून की वापसी’। खबर में है कि ‘नरेन्द्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से राजद्रोह कानून के तहत 7,136 लोगों पर यह आरोप लगाया जा चुका है।’ इसी खबर में आगे है, ‘सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि प्रदर्शनकारियों का 1980 के दशक के सिख अलगाववादी आंदोलन से जुड़ाव है, और दिल्ली पुलिस ने भी रवि की गिरफ्तारी को उन गुटों से जुड़ा बताया है।…राजद्रोह के आरोपी छह पत्रकारों में से एक, कैरेवॉन पत्रिका के कार्यकारी संपादक विनोद जोस ने कहा, ‘एक्टिविस्ट को अचानक खलनायक बताया जा रहा है, और पत्रकारों को सताया जा रहा है।….पिछले तीन-चार साल में सिविल लिबर्टी एक्टिविस्ट को जेल में डालना प्रेस की आजादी और कानून के राज में गिरावट दर्शाता है।’
प्रिंट मीडिया और पोर्टल में भी एक सी खबरों के जरिए भ्रामक नैरेटिव खड़ा करने की यह शैतानी कोशिश नहीं तो क्या है? साफ है कि इसके पीछे अंतरराष्टÑीय गठजोड़ है जो इन सबको ऐसी सामग्री प्रकाशित करने को खाद-पानी देता है, मीडिया का वह वर्ग जिसे लुटियन मीडिया कहा जाता है, यूं भी हर उस घटना या खबर को सेकुलर लैंस देखता है कि कहीं से, कैसे भी मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने का कोई मुद्दा मिल जाए, नहीं मिलता तो फर्जी खबरें चलाने में भी इस वर्ग का कोई सानी
नहीं है।
‘आप बनेेंगे सीएम से पीएम’
प्रतिबंधित खालिस्तानी गुट एसएफजे ने दी बंगाल और महाराष्ट के मुख्यमंत्रियों को अपने राज्यों को भारत से आजाद घोषित करने की ‘सलाह’
आपको याद होगा कि किसान आंदोलन के चलते लालकिले पर खालिस्तानी झंडा फहराने वाले को 2.50 लाख डॉलर इनाम देने की घोषणा की थी प्रतिबंधित खालिस्तानी गुट सिख्स फॉर जस्टिस (एसएफजे) गुट ने। हाल ही में इस गुट के सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू ने एक वीडियो जारी किया है। इसमें उसने बंगाल और महाराष्टÑ को ‘भारत से आजाद’ होने की सलाह दी है। उसका दावा है कि उसने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और महाराष्ट के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखकर अपनी ओर से अपने-अपने राज्यों की भारतीय संघ से आजादी की घोषणा करने को कहा है। इसके पीछे कथित वजह है, बंगालियों और मराठियों की संपन्नता, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को भारतीय दबदबे से बचाए रखना। पन्नू के अनुसार, ‘भारत सरकार के डब्ल्यूबी-विरोधी और एमएच-विरोधी रवैए के कारण प. बंगाल और महाराष्टÑ में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।’
https://www.panchjanya.com//Encyc/2021/3/2/Restless-forces-to-see-India-disintegrate.html
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