यूपीए सरकार के दौरान सोनिया गांधी की नेशनल एडवाइज़री काउंसिल ने देश के मंत्रीमंडल को बंधक बना रखा था. सोनिया गांधी के निजी सचिव मंत्रीमंडल के कागज़-फाइलें उठाकर ले जाते, और सोनिया-राहुल-प्रियंका की तिकड़ी के सामने पेश करते थे
परिवार और उसके दरबारियों के रंग-ढंग तो आज भी जस के तस हैं, जैसे आज से 45 साल पहले थे. कांग्रेस आज भी वही इमरजेंसी वाली कांग्रेस है. जिहादियों का पोषण करने वाली, भ्रष्टाचार के दलदल में घिरी, एक परिवार की तानाशाही वाली कांगेस.
हालात ने मजबूर कर दिया है. राहुल गांधी को इमरजेंसी को गलत कहना पड़ रहा है, जो उनकी दादी ने इस देश पर थोपी थी, क्योंकि कुर्सी खतरे में आ गई थी. वो चुनाव की आचार संहिता के उल्लंघन की दोषी पाई गईं थी. इंदिरा ने कुर्सी बचाने के लिए पूरे देश को कारागार में झोंक दिया. लाखों लोग जेल में ठूंसे गए. उन्हें यातनाएं दी गईं. सैकड़ों मारे गए. हजारों अपाहिज हुए. लोगों के घर छीने गए, नौकरियां छीनी गईं. कांग्रेस पार्टी और उसके शाही खानदान को कभी इमरजेंसी पर पछतावा नहीं हुआ. उनका काम चलता रहा, लेकिन आज मीडिया और सोशल मीडिया के युग में लीपापोती की गुंजाइश नहीं रही. जब आज के युवा को इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल और आम जनता पर की गई ज्यादतियों के बारे में पता चलता है, तो वो आक्रोशित हो उठता है. तीखे सवाल करता है. अब मुंह छुपाने से काम नहीं चलने वाला. इसलिए कांग्रेस के युवराज का बयान आया है कि ”मैं मानता हूँ कि वो एक भूल थी. पूरी तरह से ग़लत फ़ैसला था…” लेकिन क्या कांग्रेस और राहुल गांधी, अथवा सोनिया गांधी में रत्ती भर भी परिवर्तन आया है? गांधी परिवार और उसके दरबारियों के रंग-ढंग तो आज भी जस के तस हैं, जैसे आज से 45 साल पहले थे.
राहुल गांधी ने कहा कि आपातकाल के दौरान संवैधानिक अधिकार और नागरिक आज़ादी निलंबित कर दी गई थी, प्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया था और बड़ी संख्या में विपक्षी नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था. लेकिन ये सारी चीज़ें आज के माहौल से बिल्कुल अलग थी…. सोनिया राहुल के दौर की कांग्रेस क्या इससे अलग है? सोनिया –राहुल ने दस सालों तक यूपीए सरकार पर शासन किया, जहां प्रधानमंत्री तक को बोलने की आजादी नहीं थी. संजय बारू की किताब ‘एक्सीडेंटल प्राइमिनिस्टर’ में जिक्र आता है कि कैसे मनमोहन सिंह मीडिया में अपना नाम आने से असहज और चिंतित हो उठते थे, और हर श्रेय राहुल गांधी को देने के लिए विवश थे. राहुल गांधी उद्दंडता से सरकार के बिल को मीडिया के कैमरों के सामने फाड़ देते थे. इंदिरा गांधी ने आपातकाल की आड़ में विपक्ष के नेताओं को जेल में ठूंसा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे सांस्कृतिक सामाजिक संगठन को लोकतंत्र विरोधी बतलाकर उस पर प्रतिबंध लगाया. और हाथ किससे मिलाया ? कम्युनिस्टों से, जो लोकतंत्र और संसद में विश्वास ही नहीं करते. जिनका उद्देश्य ही इन सारी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को समाप्त कर देश पर कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही स्थापित करना है. रूस, चीन, कम्बोडिया सभी जगह कम्युनिस्टों ने यही किया है. आज की कांग्रेस भी यही कर रही है. वो संघ और हिंदू संगठनों को कोसती है, मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ मिलकर चुनाव लडती है और अर्बन नक्सलियों के समर्थन में धरने देती है. कन्हैया कुमार और उमर खालिद के समर्थन में राहुल गांधी जेएनयू पहुंच जाते हैं.
राहुल गांधी का हाल ही का बयान कि आरएसएस स्कूलों के माध्यम से वही काम करता है, जो पकिस्तान में इस्लामी लोग मदरसों के माध्यम से करते हैं, राहुल और शाही परिवार की उसी पुरानी मानसिकता को दर्शाता है, जिसमें गट्ठा वोटों की दलाली के लिए हिंदुओं के संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू संस्थाओं पर लानत भेजी जाती है, हिंदू आतंकवाद का झूठ फैलाया जाता है, और दूसरी ओर जिहादी कट्टरपंथियों की चंपी मालिश की जाती है. राहुल गांधी ने सरस्वती शिशु मंदिरों पर ये कीचड़ फेंका है, जिनमें से करोड़ों भारतीय पढ़कर निकले हैं. सेना, पुलिस, प्रशासनिक सेवाएं, न्याय, चिकित्सा, शिक्षा, व्यापार, कृषि आदि के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, यश कमा रहे हैं. वो भी सोचते होंगे कि ऐसा कौनसा आतंकवाद हमारे विद्यालय में पढ़ाया गया जो हमें कभी पता नहीं चला. राहुल गांधी की वोटबैंक राजनीति की खासियत ये है कि उन्होंने उंगली उठाई ‘पाकिस्तान’ के मदरसों पर. भारत के मदरसों पर क्यों नहीं? भारत के देवबंद, और जमात ए इस्लामी पर क्यों नहीं ? हुर्रियत कांफ्रेस, पीएफआई पर क्यों नहीं? क्यों कांग्रेस बंगाल में मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है? क्यों अपने पक्ष में फतवे निकलवा रही है?
राहुल और सोनिया गांधी का लोकतंत्र में आस्था का हाल यह है कि जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव का निधन हुआ तो सत्ता के मद में चूर सोनिया और राहुल गांधी ने दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार तक नहीं होने दिया. नरसिम्हाराव के परिवार को संदेश भिजवा दिया गया कि वो उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली से ले जाएं. इतनी नफरत, जो मृत्यु के बाद भी ख़त्म नहीं होती? मृत्यु के बाद देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री का ऐसा अपमान ? और आप सत्ता में थे राहुल जी, तो क्या देश की राजधानी आपकी जागीर हो गई थी, जहां आपकी अनुमति के बिना किसी का दाहसंस्कार नहीं हो सकता था?
राहुल ने आपातकाल पर अपनी सफाई पेश करते हुए कहा कि ..”लेकिन तब कांग्रेस ने भारत के संस्थानिक ढांचा पर कब्जा करने की कोशिश नहीं की थी. सच कहें तो यह क्षमता भी नहीं है. कांग्रेस की विचारधारा हमें ऐसा करने की अनुमति भी नहीं देती है.” सच तो यह है यूपीए सरकार के दौरान सोनिया गांधी की नेशनल एडवाइज़री काउंसिल ने देश के मंत्रीमंडल को बंधक बना रखा था. सोनिया गांधी के निजी सचिव मंत्रीमंडल के कागज़ और फाइलें उठाकर ले जाते, और सोनिया-राहुल-प्रियंका की तिकड़ी के सामने पेश करते. सीबीआई के दुरुपयोग की मिसाल है, यूपीए सरकार का वो जूनून, जब सोहराबुद्दीन और इशरत जहां जैसे जिहादी आतंकियों के एनकाउंटर को आधार बनाकर अमित शाह को फंसाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी गई थी.
राहुल गांधी ने कहा कि “हमें संसद में बोलने की अनुमति नहीं है। न्यायपालिका से उम्मीद नहीं है. आरएसएस-भाजपा के पास बेतहाशा आर्थिक ताकत है और व्यवसायों को विपक्ष के पक्ष में खड़े होने की इजाजत नहीं है. लोकतांत्रिक अवधारणा पर यह सोचा-समझा हमला है..” सच यह है कि 2014 के बाद से कांग्रेस के नेतृत्व में संसद का कामकाज ठप किया जा रहा है. सच यह है कि राफेल मामले में झूठ बोलकर, और सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना करके राहुल गांधी ने अदालत में माफी मांगी है. सच यह है कि नेशनल हेराल्ड भ्रष्टाचार मामले में मां-बेटा जमानत पर बाहर है. सच यह है कि सोनिया-राहुल की हुकूमत के दौर में मीडिया में उनके खिलाफ जाने वालों को यहां तक कि उनके करीबियों को भी प्रताड़ित किया जाता था. इसका एक उदाहरण है, पत्रकार तवलीन सिंह से संबंधित अजीत गुलाबचंद, जिनकी हजारों करोड़ की लवासा हिल सिटी परियोजना को यूपीए के पर्यावरण मंत्रालय ने पलीता लगा दिया, क्योंकि तवलीन सिंह ने कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार की निरंकुश सत्ता और कांग्रेस सरकारों के भ्रष्टाचार पर अपनी कलम चलाई थी.
सोनिया-राहुल गांधी की कांगेस पार्टी के लोकतंत्र के ये हाल हैं, कि कांग्रेस के वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता जी-23 नाम से बगावत का झंडा बुलंद कर रहे हैं, और खानदान के दरबारी उन्हें घुमा-फिराकर गद्दार बतला रहे हैं. कांग्रेस आज भी वही इमरजेंसी वाली कांग्रेस है. जिहादियों का पोषण करने वाली, भ्रष्टाचार के दलदल में घिरी, एक परिवार की तानाशाही वाली कांगेस.
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