आस्था का केन्द्र- कैलाश पर्वत
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम धर्म-संस्कृति

आस्था का केन्द्र- कैलाश पर्वत

by WEB DESK
Mar 3, 2021, 02:44 pm IST
in धर्म-संस्कृति
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत को पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। पृथ्वी पर स्थित अन्य पिरामिडों, पुरा-स्मारकों तथा इंग्लैंड स्थित स्टोनहेंज से इसका विशेष भू-ज्यामितीय संबंध है

तिब्बत, पृथ्वी का शीर्ष धरातल है और वहां स्थित कैलाश पर्वत को शिव तत्व का धारक और भू-नाभिक (परमाणु का केन्द्रीय भाग) माना जाता है। विश्व के विभिन्न महाद्वीपों में स्थित कई स्मारकों से कैलाश की सुनियोजित दूरी व भू-ज्यामितीय सापेक्षता भी है।

कैलाश की रहस्यमय विलक्षणता
भू-नाभिक अर्थात् धुरी शिखर (एक्सिस चोटी) कहलाने वाले पिरामिडाकार कैलाश पर्वत को प्राचीन ग्रंथों में भी पिरामिडाकार और पवित्रतम तीर्थ बताया गया है। इसका पृथ्वी के अन्य पिरामिडों, पुरा-स्मारकों एवं इंग्लैंड स्थित प्राचीन संक्रांति उत्सव स्थल ‘स्टोनहेंज’ से भी विशेष भू-ज्यामितीय संबंध है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई गौरी-शंकर शिखर अर्थात् माउंट एवरेस्ट से 2,210 मीटर कम यानी 6,638 मीटर होने के बावजूद कोई पर्वतारोही आज तक इस पर नहीं चढ़ पाया है। इसके ऊपर से विमान भी नहीं गुजरते, क्योंकि इस स्थान पर उनके नेविगेशन यंत्र काम नहीं करते। स्वर्गारोहण के दौरान पांचों पांडव और द्रौपदी में केवल युधिष्ठिर ही कैलाश शिखर तक पहुंच पाए थे।
कैलाश से ध्रुव प्रदेशों से नियोजित दूरी
पृथ्वी के नाभिक कैलाश पर्वत की ध्रुव प्रदेशों एवं इंग्लैंड स्थित 5,000 प्राचीन संक्रांति उत्सव स्थल महापाषाण शिलावर्त (स्टोनहेंज) से भी सुनियोजित दूरी है। उत्तरी ध्रुव से कैलाश पर्वत की दूरी 6,666 किलोमीटर, तो दक्षिणी ध्रुव से दुगुनी यानी 13,332 किलोमीटर है। कैलास हर साल 21 जून को सूर्य के दक्षिणायन के अवसर पर आने वाले योग दिवस अर्थात् ग्रीष्म अयनान्त के सूर्योदय के अक्षांश से अभिमुखित स्टोनहेंज से भी 6,666 किलोमीटर दूर है।

यूरोपवासियों का संक्रांति उत्सव-स्थल
ईसाइयत के जन्म से पूर्व स्टोनहेंज यूरोप में वैदिक देवता मित्र अर्थात् सूर्य के उपासकों का संक्रांति उत्सव स्थल रहा है। सूर्य-उपासना की प्राचीन परंपरा के अंतर्गत ही वहां अयन सक्रांतियों अर्थात् सायन कर्क व मकर सक्रांतियों के अवसर पर हजारों यूरोपवासी वहां सूर्य दर्शन और सूर्योपासना के लिए पहुंचते हैं तथा संक्रान्ति मनाते हैं। यूरोपीय पुरातत्वविद् एडम्स एवं फीथिअन ने अपनी पुस्तक ‘मित्राइज्म इन यूरोप’ में लिखा है कि यूरोप के सभी पुरातात्विक उत्खननों में मित्र देवता के अनगिनत पुरावशेष मिलते रहे हैं। ईसाइयत के उद्भव से पहले समूचा यूरोप वैदिक ‘मित्र देवता’ के उपासकों से भरा था। बाद में देवता मित्र अर्थात् सूर्य का स्वरूप ईरान में जाकर कुछ बदल गया और सीरिया तथा रोम पहुंचने पर बहुत ज्यादा बदल गया। इटली में तो हाल ही में 1600 वर्ष प्राचीन मित्र देवता का मंदिर भी मिला है।

वस्तुत: ईसा से 3,000 वर्ष पहले मित्र अर्थात् सूर्य उपासक समाज द्वारा निर्मित स्टोनहेंज 7 मीटर ऊंची (लगभग 23 फीट) और 20-25 टन वजनी शिलाओं को भूमि में वृत्ताकार गाड़कर दो वृत्तों का निर्माण किया गया है। यह शिलावर्त सूर्य के दक्षिणायन अर्थात् ग्रीष्म अयनान्त के सूर्योदय के अक्षांश और उत्तरायण यानी शीत अयनान्त के सूर्यास्त के अक्षांश पर केंद्रित या अभिमुखित है। दक्षिणायन के दिन 21 जून को ही योग दिवस आता है। भगवान शंकर ने इसी दिन सप्त ऋषियों को कैलाश पर्वत पर योग ज्ञान देने की सहमति दी थी। स्टोनहेंज में प्रतिवर्ष प्राचीन योग दिवस वाले दिन (ग्रीष्म अयनान्त) मेला लगता है। शीत अयनान्त अर्थात् सूर्य के उत्तरायण के दिन भी सूर्योपासना का मेला लगता है। ईसाइयत के जन्म से 6,000 वर्ष पहले वहां के सूर्य उपासकों में भारत की तरह अयन संक्रांतियों का बहुत महत्व रहा है। इस शिलावर्त का निर्माण तब किया गया था, जब इंग्लैंड के ‘एंग्लोसेक्सन’ घुमक्कड़ जनजातीय समुदाय अस्तित्व में थे, जो छाल से अपने तन ढकते थे। इस स्मारक के निर्माताओं के दाह-सस्ंकार से बची अस्थियों का डीएनए आज के इंग्लैंड निवासियों के डीएनए से भिन्न और पूर्वी भू-भाग से गए कृषक वर्ग का लगता है।

इस प्रकार कैलाश पर्वत से नियोजित दूरी, वहां के पुरातन सूर्य उपासक, प्राचीन यूरोपीय मित्र-सम्प्रदाय या सूर्योपासक सम्प्रदाय, सूर्य की प्रतीक मानसरोवर झील, भारत में मकर संक्रांति का बिहू, पोंगल, लोहड़ी, गंगासागर उत्सव आदि किसी एक ही संस्कृति की साझी विरासत लगती है।

कैलाश मानसरोवर और भारत
तिब्बत में किसी की भी सत्ता रही हो, कैलाश मानसरोवर और वहां तक के मार्ग पर सदैव भारत का नियंत्रण रहा है। रूस और चीन के साथ दुरभिसंधिपूर्वक 24 नवम्बर, 1950 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तिब्बत पर चीनी आक्रमण के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ में चर्चा को स्थगित करवा कर 1951 में तिब्बत पर चीन की संप्रभुता स्थापित करवा दी थी। तथापि 1954 तक संपूर्ण कैलाश मानसरोवर एवं वहां तक के पूरे मार्ग पर भारत की प्रभुसत्ता तथा नियंत्रण पूर्ववत् था। वहां के अतिथि गृहों, विश्रांति गृहों, सुरक्षा चौकियों, शस्त्रागारों, डाकघरों, तारघरों, दूरसंचार केंद्रों आदि को1954 में चीन के साथ हुई संधि के अधीन नेहरू ने देशहित के विरुद्ध चीन के सुपुर्द कर दिए।

विश्व का विशालतम जल स्रोत
कैलाश के तीन तरफ तीन जल विटप हैं। इसी त्रिविष्टप से 11 देशों के लिए ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलज और घाघरा जैसी वैदिक नदियों सहित 10 हिमजल युक्त नदियां निकलती हैं। ध्रुव प्रदेशों के बाद सर्वाधिक बर्फ युक्त तिब्बत को पृथ्वी का तीसरा ध्रुव कहते हैं। इसका हिमजल 11 देशों के 1.5-2 अरब लोगों का जीवन आधार और पृथ्वी का विशालतम जल स्रोत है। कैलाश पर्वत के पास ही विश्व के सर्वोच्च धरातल पर स्थित शुद्ध पानी की सूर्याकार मानसरोवर झील एवं खारे पानी की चंद्राकार राक्षस झील है। इन झीलों और पर्वतों से एक स्वास्तिक आकृति बनती है। भू-नाभिक कैलाश पर्वत के दोनों ध्रुवों स्टोनहेंज एवं अन्य पुरास्मारकों से सापेक्ष भू-ज्योमितीय स्थिति का विवेचन आगे किया जाएगा।
(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति हैं)

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Maulana Chhangur

कोडवर्ड में चलता था मौलाना छांगुर का गंदा खेल: लड़कियां थीं ‘प्रोजेक्ट’, ‘काजल’ लगाओ, ‘दर्शन’ कराओ

Operation Kalanemi : हरिद्वार में भगवा भेष में घूम रहे मुस्लिम, क्या किसी बड़ी साजिश की है तैयारी..?

क्यों कांग्रेस के लिए प्राथमिकता में नहीं है कन्वर्जन मुद्दा? इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रहे अरविंद नेताम ने बताया

VIDEO: कन्वर्जन और लव-जिहाद का पर्दाफाश, प्यार की आड़ में कलमा क्यों?

क्या आप जानते हैं कि रामायण में एक और गीता छिपी है?

विरोधजीवी संगठनों का भ्रमजाल

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Maulana Chhangur

कोडवर्ड में चलता था मौलाना छांगुर का गंदा खेल: लड़कियां थीं ‘प्रोजेक्ट’, ‘काजल’ लगाओ, ‘दर्शन’ कराओ

Operation Kalanemi : हरिद्वार में भगवा भेष में घूम रहे मुस्लिम, क्या किसी बड़ी साजिश की है तैयारी..?

क्यों कांग्रेस के लिए प्राथमिकता में नहीं है कन्वर्जन मुद्दा? इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रहे अरविंद नेताम ने बताया

VIDEO: कन्वर्जन और लव-जिहाद का पर्दाफाश, प्यार की आड़ में कलमा क्यों?

क्या आप जानते हैं कि रामायण में एक और गीता छिपी है?

विरोधजीवी संगठनों का भ्रमजाल

Terrorism

नेपाल के रास्ते भारत में दहशत की साजिश, लश्कर-ए-तैयबा का प्लान बेनकाब

देखिये VIDEO: धराशायी हुआ वामपंथ का झूठ, ASI ने खोजी सरस्वती नदी; मिली 4500 साल पुरानी सभ्यता

VIDEO: कांग्रेस के निशाने पर क्यों हैं दूरदर्शन के ये 2 पत्रकार, उनसे ही सुनिये सच

Voter ID Card: जानें घर बैठे ऑनलाइन वोटर आईडी कार्ड बनवाने का प्रोसेस

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies