बाइडेन और मोदी प्रशासन दोनों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे वैश्विक आतंकवाद से लड़ने के लिए आपसी सहयोग करेंगे और साथ रहेंगे। और इसीलिये अटकलों के बाज़ार में यह कहना महत्वपूर्ण होगा कि भारत और अमेरिका के पारस्परिक सम्बन्ध आतंकवाद की लड़ाई में और मज़बूत ही होंगे।
एक राष्ट्र के रूप में कई समान विशेषताओं और रणनीतिक उद्देश्यों के बावजूद, भारत और अमेरिका कई वर्षों तक विभिन्न राजनीतिक, राजनयिक और आर्थिक कारणों से आपस में एक दृढ द्विपक्षीय बंधन विकसित नहीं कर सके। हालांकि, दोनों देशों ने कुछ स्थितियों को छोड़कर मिलनसार संबंध ज़रूर बनाए रखे। 2014 के बाद, भारत-अमेरिका संबंधों के इतिहास में एक नया अध्याय देखा जा सकता है, जहां दोनों नेताओं, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों ने एक नए युग की शुरुआत की। भारत और अमेरिका की मित्रता का नया अध्याय प्रारम्भ करने में चीन की सामरिक-कूटनीतिक महत्वाकांक्षाओं, विशेष रूप से हिन्द प्रशांत क्षेत्र में अपने दबदबे को बनाने और कायम रखने को रोकने, वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और सबसे महत्वपूर्ण, आतंकवाद की वैश्विक चुनौती के खिलाफ लड़ाई लड़ने और जीतने जैसे उद्देश्यों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किन्तु अमेरिका में नेतृत्व में बदलाव के साथ, जहां हाल ही में जो बाइडेन ने अमेरिका के 42वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। पर इसके बाद से ही भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर कई आशंकाएं तैरने लगीं। बाइडेन का शासन कैसा होगा ? क्या यह ओबामा कालीन शासन का विस्तार होगा, क्योंकि उन्होंने ओबामा की सरकार के दौरान उपराष्ट्रपति के रूप में अमेरिका की सेवा की थी या वह कुछ नया लेकर आएंगे ? क्या वे अपनी पार्टी और अपनी विचारधारा को प्रमुखता देते हुए निर्णय लेंगे या वे अपने देश के प्राथमिक और महत्वपूर्ण उद्देश्यों और ज़रूरतों को पूरा करेंगे ? सबसे महत्वपूर्ण बात, कोविड—19 के संकट काल में वे अमेरिका में आंतरिक आर्थिक और राजनीतिक संकटों का समाधान कैसे खोजेंगे ? कई और प्रश्न हैं, लेकिन हमें कुछ वास्तविकताओं को समझने की आवश्यकता है। यह बात तो सच है कि एक डेमोक्रेट होने के नाते, बाइडेन ट्रम्प द्वारा लिए गए कई फैसलों को रोक सकते हैं। हालांकि, इसके लिए उन्हें अमेरिका के रणनीतिक उद्देश्यों और प्राथमिकताओं को भी समझते हुए महत्व देना होगा। उदाहरण के लिए, ये बात तो तय लगती है कि चीन के मामले में वे ट्रम्प की तरह आक्रामक भले न हों लेकिन वे निश्चित रूप से चीन के विस्तारवादी एजेंडे को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में उचित कार्रवाई करने की पूरी कोशिश करेंगे। फिर हमें यह भी समझने की आवश्यकता है कि नेताओं के बदलाव से किसी देश की नीतियां और उद्देश्य रातोंरात नहीं बदल जाते हैं। इसलिए बाइडेन को भी वैश्विक और इस्लामिक आतंकवाद का मुकाबला करने, अपने देश में स्थिरता कायम रखने और वैश्विक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के त्वरित और दीर्घकालीन उद्देश्यों पर काम करना ही होगा। हाल ही में बाइडेन ने सीरिया पर जिस तरह का कठोर रुख अपनाया है, तमाम तथाकथित वाम और लिबरल्स को भले ही झटका लगा हो, विश्व राजनीति के विशेषज्ञ भलीभाँति समझते हैं कि यह अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में उनका अपने राष्ट्र की नीतियों और उद्देश्यों को तरजीह देते हुए उठाया गया कदम है। यही बात आगामी समय में भारत-अमेरिका संबंधों के मामले में भी लागू होती है।
दोनों देशों ने आतंकवाद के कारण अविस्मरणीय हानि और कभी न भूल सकने वाले समय का सामना किया है। और लंबे समय से इस संभावित वैश्विक चुनौती से लड़ने की दिशा में संयुक्त रूप से काम भी कर रहे हैं। अमेरिका पर 9/11 आतंकी हमले के दो महीने बाद भारत ने अपनी संसद पर क्रूर आतंकी हमले का सामना किया। तब से दोनों देश अमेरिका के साथ “ग्लोबल वॉर ऑन टेरर” के रूप में प्रारम्भ किये गए एक साझा अभियान पर काम कर रहे हैं। वर्ष 2000 में सूचना के आदान-प्रदान और संयुक्त कार्यों के माध्यम से आतंकवाद से लड़ने के लिए एक संयुक्त मिशन को शुरू करने के बाद, भारत और अमेरिका ने 2002 में अपने व्यापक संयुक्त आतंकवाद-रोधी पहल के एक भाग के रूप में साइबर सुरक्षा मंच भी शुरू किया। 2010 में दोनों देशों के बीच आतंकवाद रोकने हेतु द्विपक्षीय सहयोग का विस्तार करने के लिए एक संयुक्त अभियान पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें विभिन्न आतंकवाद-रोधी पहल जैसे महत्वपूर्ण सूचना का आदान-प्रदान तथा आतंकवाद-रोधी तकनीक और उपकरणों को विकसित करने और आपस में साझा करने कैसे बिंदु शामिल थे। 2010 में ओबामा ने भारत का दौरा करने के बाद, इन पहलों और आतंकवाद-रोधी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को मजबूत करने के लिए आयोजित किये गए दो महत्वपूर्ण संवादों और कार्यक्रमों में शिरकत की। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, अल कायदा जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों को खतरनाक आतंकवादी संगठन घोषित करने के बाद दोनों देश आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक संयुक्त घोषणा के साथ आए और आगे आतंकवाद संगठनों की स्क्रीनिंग से संबंधित महत्वपूर्ण सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर कर विश्व सुरक्षा की दिशा में एक नवीन पहल की। इस संयुक्त आतंकवाद-रोधी पहल में एक और मील का पत्थर तब स्थापित किया गया, जब भारत अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी प्रेसिडेंशियल डायरेक्टिव-6 (HSPD-6) में शामिल हो गया। यह संदिग्ध आतंकवादियों से संबंधित अवर्गीकृत सूचनाओं के आदान-प्रदान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। 2019 में, भारत और अमेरिका की सेनाओं ने मिलकर वाशिंगटन में संयुक्त अभ्यास किया। यह एक विशेष अभ्यास था जो कुशल जवाबी कार्रवाई और आतंकवादी अभियानों का अभ्यास करने के लिए किया गया था। दोनों देशों ने आतंकवाद के मुद्दे को भी उठाया और दोनों ने द्विपक्षीय (2019 में) और बहुपक्षीय (QUAD, 2019) संवादों में आतंकवाद का दृढ रूप से मुकाबला करने के लिए वैश्विक सहयोग का आग्रह किया।
नेतृत्व में बदलाव के साथ, यह कहा गया कि ट्रंप के विपरीत कामकाजी नीतियों के संदर्भ में बाइडेन इस्लामिक देशों के प्रति नरम होंगे, किन्तु सीरिया पर हाल ही में उनके द्वारा की गई कठोर कार्रवाई ये स्पष्ट दर्शाती है कि वे कड़ी आतंकवाद-विरोधी नीतियों का पालन करने के मामले में उतने ही कठोर होंगे जितने ट्रम्प थे। ओबामा शासनकाल में उन्होंने “आतंकवाद विरोधी प्लस”, नामक नीति बनाई थी जो पारंपरिक सैन्य तैनाती के बजाय आक्रामक हवाई हमलों और विशेष अमेरिकी बलों के छोटे समूहों का उपयोग करते हुए आतंकवादियों से लड़ने पर केंद्रित थी। यह रणनीति आतंकवादियों और आतंकवादी समूहों के खिलाफ पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, अफ्रीका और बाकी दुनिया में प्रमुखता से चलाये गए अभियानों में स्पष्ट परिलक्षित हुई थी।
पाकिस्तान को लेकर भी हमें ये समझने की ज़रूरत है कि अमेरिका पाकिस्तान को भारत के नज़रिये से नहीं देखेगा। बाइडेन प्रशासन अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए पाकिस्तान को आमंत्रित और शामिल कर सकता है और इसलिए उसके प्रति नरम रुख अपना सकता है। परन्तु चीन के साथ पाकिस्तान के रणनीतिक गठजोड़ को भी अमेरिका नहीं भूलेगा और न ही यह कि बीते कुछ वर्षों में पाकिस्तान ने चीन के प्रति अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट की हैं। और इसीलिये बाइडेन से यह उम्मीद करना गलत नहीं होगा कि वे पाकिस्तान के प्रति आतंकवाद की दृष्टि से कड़ा रूख ही अपनाएंगे।
बाइडेन कुशल निगरानी और साइबर सुरक्षा नीतियों और प्रावधानों के भी प्रवर्तक प्रतीत होते हैं। क्योंकि वे इसे अमेरिका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं में से एक मानते हैं। यह भारत के लिए भी एक प्राथमिकता है और इसलिए दोनों देशों के बीच संयुक्त सिग्नल और इलेक्ट्रॉनिक खुफिया तंत्र विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। अमेरिका में पहले से ही SIGINT (सिग्नल इंटेलिजेंस) है, जो अपने सरकारी अधिकारियों के साथ विदेशी सिग्नल (संचार प्रणाली, रडार, और हथियार सिस्टम) से संबंधित जानकारी का पता लगाता है और साझा करता है। इसमें लगभग 13 अन्य एजेंसियां हैं, जो खुफिया जानकारी एकत्र करती हैं और उनका विश्लेषण करती हैं। भारत में हालांकि खुफिया सुधारों के युग की शुरुआत होती दिख रही है, फिर भी इसे सक्षम खुफिया जानकारी एकत्र करने और विश्लेषण की दिशा में एक लंबा सफर तय करना है। भारत और अमेरिका ने नवंबर 2019-बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) में एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जो अमेरिका को भारत के लिए आधुनिक उपकरण और वास्तविक समय की खुफिया जानकारी और जानकारी प्रदान करने में सक्षम बनाता है। यह दो अन्य समान समझौतों-लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) की श्रृंखला में अंतिम एक था, जिन पर 2016 में संचार संगतता और सुरक्षा समझौते (COMCASA) के रूप में और 2018 में हस्ताक्षर किए गए थे।
बाइडेन और मोदी प्रशासन दोनों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे वैश्विक आतंकवाद से लड़ने के लिए आपसी सहयोग करेंगे और साथ रहेंगे। और इसीलिये अटकलों के बाज़ार में यह कहना महत्वपूर्ण होगा कि भारत और अमेरिका के पारस्परिक सम्बन्ध आतंकवाद की लड़ाई में और मज़बूत ही होंगे।
(लेखिका जेएनयू में सहायक प्राध्यापक हैं)
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