उत्तराखण्ड स्थित नैनीताल जिले के रामनगर निवासी विमल कुमार ने अपनी दादी के नुस्ख़े से लीवर की दवा तैयार करके उसे पेटेंट करवाया है। विमल कुमार का दावा है कि यह आयुर्वेद की दवा उनके परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी लीवर की बीमारियों में सबसे ज्यादा प्रभावी साबित हुई है।
उत्तराखण्ड स्थित नैनीताल जिले के रामनगर निवासी विमल कुमार ने अपनी दादी के नुस्ख़े से लीवर की दवा तैयार करके उसे पेटेंट करवाया है। विमल कुमार का दावा है कि यह आयुर्वेद की दवा उनके परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी लीवर की बीमारियों में सबसे ज्यादा प्रभावी साबित हुई है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े विमल कुमार बताया कि उनकी दादी 1974 तक अपने घर में तख्त लगाकर,जलोदर रोगियों को भर्ती कर उनका निःशुल्क इलाज किया करती थीं। इससे रोगियों को दस—पन्द्रह दिनों में आराम मिलता था और वे अपने घरों को वापस जाते थे। उनकी मृत्यु उपरांत चार सालों तक उनकी मां ने उनकी दादी के नुस्खे को जारी रखा। 1977 में मां के चले जाने के बाद वे खुद इस औषधि से लीवर रोगियों के इलाज में लगे रहे।
विमल कुमार बताते हैं कि 2006 में उन्होंने और उनके बेटे ने इस दवा को व्यावसायिक तरीके से लोगों तक पहुंचाने की योजना बनाई। ड्रग लाइसेंस लिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात चेन्नै के श्री रामचन्द्र यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ श्रवण बाबू चिदंबरम से हुई। उनके साथ मिलकर इस दवा पर और शोध कार्य हुए और इस पर और सफलता मिलने पर 2017 में पेटेंट के लिए फाइल स्वीकार हुई। 11 जनवरी, 2021 को लीवर की इस दवा को सवलिव ड्रॉप्स के नाम से पेटेंट मिल गया। विमल बताते हैं कि उनका मकसद आयुर्वेद के जरिये इस दवा से लीवर के उन रोगियों का इलाज करना है जो कि हताश निराश हैं। लीवर डिसऑर्डर की कगार पर खड़े हैं। वे कहते हैं कि इस दवा का मूल स्रोत राजस्थान में पाए जाने वाला एक पौधा होता है। उनकी दादी चमेली देवी, राजस्थान से संबंध रखती थीं। तो उन्हें इसके गुणवत्ता के विषय में जानकारी थी। भूख न लगना, हेपिटाईटिस कामा, पेट में पानी भरना (जलोदर) जैसे रोगों में इसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं।
विमल कुमार के पास ऐसे सैकड़ों लोगो के प्रमाण मौजूद हैं, जिन्हें इस दवा ने फायदा पहुंचाया है। खास बात ये कि इस दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। कोई भी रोगी उनसे संपर्क करके दवा मंगवा सकता है। उनका कहना है कि वह केवल ऑनलाइन ही दवा भेजते हैं, क्योंकि दवा का बाजार उन्हें रास नहीं आता। हर जगह कमीशन बाज़ी का खेल है, जिसकी वजह से उन्हें बहुत दिक्कतें भी आईं।
बहरहाल, एक साधारण से दिखने वाले विमल कुमार ने अपनी दादी के नुस्खे की दवा को पेटेंट करवा कर ये प्रमाणित भी किया कि आयुर्वेद में अभी बहुत कुछ है, जिसे रोगियों और जरूरतमन्दों तक पहुंचाकर उनको राहत दी जा सकती है।
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