झारखंड कांगे्रस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव का मानना है कि रांची में दशकों से रहने वाले कारोबारी और बिहार के लोग ‘बाहरी’ हैं। ये लोग जनजातियों का हक मार रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों पर वे कुछ भी बोलने से परहेज करते हैं
भारत में रह रहे बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए। झारखंड में भी इन घुसपैठियों ने अपनी जड़ें जमा ली हैं, पर किसी सेकुलर नेता ने इन लोगों को बाहरी नहीं बोला।
यह शायद भारत का दुर्भाग्य ही है कि कुछ नेता अपने ही देश के लोगों को ‘बाहरी’ मानकर उन्हें स्थान विशेष से हटाने का प्रयास कर रहे हैं और विदेशी घुसपैठियों को बसाने के लिए देशद्रोह की भी हद पार कर रहे हैं। इन दिनों झारखंड में ऐसा ही हो रहा है। कांग्रेस की झारखंड इकाई के अध्यक्ष और राज्य के मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव ने कहा है, ‘‘रांची की जमीन दूसरे लोगों के हाथों में चली गई है। रांची में बिहारी और मारवाड़ी बस गए हैं, जिससे जनजातीय समाज के लोग कमजोर होते जा रहे हैं।’’ अपने बयान के विरोध के बावजूद उरांव ने यह भी कहा है कि बाहर के लोग आएं तो दोना दो, कोना नहीं। यानी स्वागत में भोजन (दोना) कराओ, मगर जमीन (कोना) मत दो। उनके इस बयान के समर्थन में रांची में जनजाति समाज के कुछ लोगों ने रैली भी निकाली। यानी उरांव के विषैले बयान का असर भी होने लगा है।
बता दें कि उरांव आईएएस अधिकारी रह चुके हैं। अपने को तो वे सरना कहते हैं, पर उनका झुकाव ईसाइयत की ओर अधिक रहता है। शायद यही कारण है कि उन्होंने कभी उन लोगों को बाहरी नहीं कहा, जो पूरी दुनिया से आकर झारखंड में बस रहे हैं, ईसाइयत का प्रचार कर रहे हैं और हिंदुओं को ईसाई बना रहे हैं। उरांव ने कभी उन बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को भी बाहरी नहीं कहा, जो राज्य के विभिन्न हिस्सों में बस रहे हैं और स्थानीय जनजातीय समाज की लड़कियों से निकाह कर उनकी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं।
उरांव के इस समाज-तोड़क बयान का कुछ नेता विरोध कर रहे हैं, तो कुछ बेशर्मी से उनका बचाव भी कर रहे हैं। झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष केशव महतो कहते हैं, ‘‘रामेश्वर उरांव के बयान को गलत तरीके से देखा जा रहा है। उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा था मगर लोगों ने गलत समझ लिया।’’ वहीं भाजपा ने उरांव के बयान को समाज तोड़ने वाला और बहुत ही शर्मनाक बताया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता कुणाल सारंगी कहते हैं, ‘‘जिस पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष विदेशी मूल की हैं, उस पार्टी के एक प्रदेश अध्यक्ष को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए।’’
रांची की जमीन दूसरे लोगों के हाथों में चली गई है। रांची में बिहारी और मारवाड़ी बस गए हैं, जिससे जनजातीय समाज के लोग कमजोर होते जा रहे हैं।
—डॉ. रामेश्वर उरांव, मंत्री
झारखंड सरकार एवं अध्यक्ष, कांग्रेस (झारखंड)
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने रामेश्वर उरांव के विवादित बयान को उनकी व्यक्तिगत सोच बताते हुए कहा है, ‘‘कांग्रेस का विश्वास जोड़ने में है, न कि तोड़ने में।’’ लेकिन उनकी यह दलील झारखंड के लोगों को हजम नहीं हो रही। सामाजिक कार्यकर्ता चतुर्भुज महतो कहते हैं, ‘‘कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के बयान को व्यक्तिगत कैसे माना जा सकता है? दरअसल, कांग्रेस को देश से कोई मतलब नहीं रह गया है। वह सत्ता के लिए देश के लोगों को ही बाहरी बता रही है और विदेशी घुसपैठियों को बसाने के लिए हर तरह का कुकर्म कर रही है।’’
मजेदार बात यह है कि जो अजय कुमार आज कांग्रेस को समाज को जोड़ने वाली पार्टी बता रहे हैं, वही एक बार कांग्रेस के असली स्वभाव का शिकार हो चुके हैं। उल्लेखनीय है कि अजय कुमार दक्षिण भारतीय हैं और आईपीएस अधिकारी और जमशेदपुर से सांसद रहे हैं। कुछ साल पहले उन्हें कांग्रेस की झारखंड इकाई का अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय ने उनके बारे में कहा था, ‘‘झारखंड में झारखंडी या बिहारी की कमी हो गई है जो एक दक्षिण भारतीय को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।’’
हालांकि उरांव के उपरोक्त बयान से प्रदेश में कांग्रेस को कितना नुकसान हो सकता है, इसका ज्ञान कुछ कांग्रेसियों को है। इसलिए वे लोग उरांव के बयान का विरोध कर रहे हैं। महगामा से कांग्रेस विधायक दीपिका पांडे सिंह ने ट्वीट करके अपना विरोध जताया है। उन्होंने इसकी जानकारी राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह को भी दी है।
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि प्रदेश कांग्रेस के नेताओं में जबर्दस्त आंतरिक लड़ाई है। इस लड़ाई में हर नेता अपना पक्ष मजबूत करने के लिए उलटा-सीधा बयान देता है। उरांव ने भी यही किया है। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश सिंह कहते हैं, ‘‘उरांव ने जिस रांची में बिहारी और मारवाड़ियों के बसने की बात कही है, उसी रांची के ईरबा, नेवरी, पीपराचौड़ा समेत अनेक स्थानों पर बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ-साथ सऊदी अरब के भी मुसलमान रह रहे हैं। पता चला है कि इनका वीजा खत्म हो चुका है, फिर भी ये रांची में मजे से रह रहे हैं। कभी किसी कांग्रेसी नेता ने इन्हें निकालने की बात नहीं की। इसलिए नहीं की, क्योंकि ये घुसपैठिए और इनके आका कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों के समर्थक होते हैं। इन घुसपैठियों के राशन कार्ड, मतदाता पहचानपत्र, आधार कार्ड फटाफट बन जाते हैं। इनके वोट पाने के लिए सभी सेकुलर दल चुप रहते हैं।’’
राजनीतिक दलों की इस तुष्टीकरण नीति से ही पूरे झारखंड में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए तेजी से बढ़ रहे हैं। कुछ समय पहले राज्य पुलिस मुख्यालय ने एनआरसी की जरूरत और बांग्लादेशियों के बढ़ते प्रभाव को लेकर एक रपट गृह विभाग को भेजी थी। रपट के अनुसार बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए बिहार और बंगाल के रास्ते झारखंड में शरण ले रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार झारखंड में अवैध मुस्लिम घुसपैठियों की संख्या लगभग 15,00,000 हो गई है। इन अवैध घुसपैठियों की बढ़ती आबादी से सांस्कृतिक और सुरक्षात्मक खतरे उत्पन्न हुए हैं। बांग्लादेशियों के आने से अपराध व देश विरोधी गतिविधियां भी बढ़ी हैं। जांच एजेंसियों ने रामगढ़, रांची, जमशेदपुर आदि कई स्थानों से कई बांग्लादेशी आतंकवादियों को पकड़ा भी है। इन घुसपैठियों ने सरकारी जमीन के अलावा कई स्थानों पर निजी जमीन पर भी कब्जा किया है। इन घुसपैठियों के कारण ही राज्य के कई इलाकों में पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया जैसे प्रतिबंधित संगठन की मजबूत पकड़ बनी है। साहिबगंज, पाकुड़, धनबाद समेत अन्य जिलों में जेएमबी के आतंकियों की गतिविधियां भी बढ़ी हैं। पुलिस की एक रपट के अनुसार 1951 में झारखंड में 8.09 फीसदी मुस्लिम आबादी थी, 2011 में यह आबादी बढ़कर 14.53 फीसदी हो गई है। इसका मुख्य कारण है बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ, लेकिन दुर्भाग्य से इन घुसपैठियों पर कभी किसी सेकुलर दल ने कुछ नहीं कहा।
15 नवंबर, 2000 को बिहार को विभाजित कर झारखंड नाम से अलग राज्य की स्थापना की गई थी। खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड के अंदर औद्योगिक क्षेत्रों की भरमार है। यहां पूरे देश के लोग अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं। इन लोगों ने अपने परिश्रम से झारखंड को सींचा है। पर अब समय का ऐसा कुचक्र चल रहा है कि इन्हें अब बाहरी कहकर अपमानित किया जा रहा है, डराया जा रहा है। यह न तो देश के लिए ठीक है और न ही झारखंड के लिए।
उम्मीद है कि समाज को तोड़ने वाली राजनीति करने वालों को झारखंड के लोग भाव नहीं देंगे और जैसे सदियों से रह रहे हैं, वैसे ही आगे भी एकजुटता के साथ रहेंगे।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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