सात समुंदर पार सेन फ्रांस्सिको में नए कृषि कानून के समर्थन में हुई रैली

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WEB DESK

अमेरिका भी भारत सरकार के तीनों कृषि सुधार कानूनों का समर्थन कर चुका है। भारतीय कृषि सुधार कानूनों का समर्थन करते हुए अमेरिका ने कहा था कि इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा।

कृषि कानून 2020 के समर्थन में सात समुंदर पार अमेरिका के सेन फ्रांस्सिको में हुई कार रैली ने भारत में कुंद पड़ चुके कथित किसान आंदोलन को और भोथरा कर दिया है। केंद्र सरकार के तीनों कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में 21 फरवरी को सेन फ्रांस्सिको में आयोजित में दर्जनों कारें शामिल हुईं, जिन पर तिरंगे के साथ-साथ अमेरिकी झंडा लहरा रहे थे। कार में सवार एनआरआई नागरिकों द्वारा कृषि कानून के समर्थन वाली तख्तियां दिखाई गईं। कार रैली के दौरान लहराई गई तख्तियों पर लिखा था, ‘सेन फ्रांस्सिको एनआरआई कृषि कानून का समर्थन करता है।’

सैन फ्रांसिस्को में कृषि कानून के समर्थन में निकाली गई यह कार रैली मिशन सैन जोश हाई स्कूल पार्किंग से 21 फरवरी को स्थानीय समय के मुताबिक 1 बजकर 30 मिनट पर निकाली गई। कार रैली के दौरान कृषि कानून के समर्थक वंदे मातरम का नारा लगा रहे थे। इससे पहले, अमेरिका भी भारत सरकार के तीनों कृषि सुधार कानूनों का समर्थन कर चुका है। भारतीय कृषि सुधार कानूनों का समर्थन करते हुए अमेरिका ने कहा था कि इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। रैली को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अमेरिका उन कानूनों या उन सुधारों का समर्थन करता है, जिससे किसानों की आमदनी अच्छी होने के साथ खेती में प्राइवेट सेक्टर के इनवेस्टमेंट को बढ़ावा देता है।

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गौरतलब है पिछले 90 दिनों से राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर जारी तथाकथित किसान और किसान आंदोलन दोनों अब अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। यही कारण है कि लगभग मृतप्राय हो चुके किसान आंदोलन को दोबारा खड़ा करने की लगातार कोशिश हो रही है, लेकिन जब से लालकिले पर किसान के भेष खड़े उपद्रवियों को चेहरा उजागर हुआ है, तो उससे आम लोग दूर हो गए हैं। कह सकते हैं कि नकारात्कता के साथ शुरू हुए कथित किसान आंदोलन की परिणित यही होनी थी, क्योंकि 11 दौर की बातचीत के बाद भी किसान प्रतिनिधि नए कृषि कानूनों के खिलाफ की कमी गिनाने में असफल रहे हैं। इससे आंदोलन कमजोर हुआ, जिसकी बानगी चक्का जाम और रेल रोको में दिख चुकी है।

दरअसल, राजधानी दिल्ली के बार्डर पर अभी भी जमे हरियाणा और पंजाब के मुट्ठीभर किसानों की वास्तविकता पहले ही सवालों में घिरी रही है, जो कि कहीं से भी देश के किसानों को प्रतिनिधुत्व नहीं करते हैं। इसलिए कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शनकारियों की वास्तविक मंशा पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए थे। कथित आंदोलन के पीछे की पोल भी जल्द ही खुल गई, जब सत्ता से दूर राजनीतिक दलों की असलियत बाहर आ गई। माना जा रहा है कि पिछले साल 26 नवंबर से जारी तीनों कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ आंदोलन अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है और कभी भी किसान आंदोलन का पटाक्षेप हो जाएगा।

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