चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीतियों के चलते दक्षिणी चीन सागर से लेकर तिब्बत और शिन जियांग और इससे लगे क्षेत्रों में तनाव की स्थितियां लगातार बनी हुई हैं। अगर भारत की बात करें, तो पिछले वर्षों में डोकलाम घाटी में हुए विवाद और उसके बाद लद्दाख में चीनी घुसपैठ और गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद इस इस क्षेत्र में तनाव में और भी अधिक वृद्धि हुई है। 1947 में पाकिस्तान के जन्म के साथ ही भारत को एक शत्रुतापूर्ण सीमांत मिला। 1949 में चीन में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना के बाद पूर्व से लेकर पश्चिम तक पूरी उत्तरी सीमा पर एक नई चुनौतीपूर्ण स्थिति कायम हुई, जो 1962 के युद्ध के रूप में परिणित हुई। पर 1967 के नाथू ला और 1986 के सुम दोरोंग चू में हुए संघर्ष में भारत के सैन्य बलों ने चीन को जोरदार प्रत्युत्तर दिया।
भारत के सम्मुख एक नए संयुक्त खतरे का प्रवेश हुआ पाक-चीन 1960 के दशक के शुरुआत से और चीन-पाकिस्तान के सीमा समझौते के बाद भारत के सम्मुख एक नए संयुक्त खतरे का प्रवेश हुआ। पाकिस्तान द्वारा चीन को ट्रांस कराकोरम ट्रैक्ट दिए जाने के बाद इन दोनों शत्रु देशों के साथ मिलकर भारत विरोधी अभियान में सहभागिता, भारत की सुरक्षा के सम्मुख एक विचारणीय प्रश्न है। भारत के उत्तर पश्चिम सीमांत की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह इन दोनों शत्रु देशों के बीच फंसा हुआ है।
एक तरफ से पाकिस्तान, दूसरी तरफ से भारत को घेरे चीन ऐसे में अब आक्रामक चीन की रणनीति ये है कि एक तरफ से पाकिस्तान और दूसरी तरफ से चीन भारत को घेरे । पाकिस्तान और चीन के मध्य पिछले वर्षों में सैन्य और सामरिक सहयोग में अत्यधिक वृद्धि हुई है। 2017-18 से चीन पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले गिलगित और बाल्टिस्तान क्षेत्र में अत्यधिक सक्रिय दिखाई दे रहा है और यहां के स्कार्दू एयर बेस में चीन की सक्रियता लगातार बढ़ती जा रही है।
भारत से वायु शक्ति में सामना करना एक बड़ी चुनौती चीन के लिए भारत से वायु शक्ति में सामना करना एक बड़ी चुनौती रही है। और इससे निपटने के लिए उसने शिनजियांग और तिब्बत क्षेत्र में कुछ बड़े एयर बेस विकसित किए हैं। युद्ध की स्थिति में चीन ने भारत के लद्दाख समेत उत्तरी क्षेत् में आक्रामक भूमिका निभाने के लिए काशगर, होतान और नागरी गुर्गुन्सा जैसे तीन बड़े एयरबेस विकसित किए है, लेकिन इन वायुसैनिक अड्डों के साथ कुछ मूलभूत समस्याएं हैं और भारत के खिलाफ कार्रवाई करने की इनकी क्षमता कई कारणों से सीमित ही जाती है।
समुद्रतल से 11000 फीट से अधिक ऊंचाई पर है वायुसैनिक अड्डे सबसे महत्वपूर्ण कारण इस ऊंचाई वाले कठिन क्षेत्र में दूरी का है, काशगर से लेह की दूरी 625 किलोमीटर है, वहीं खोतान से लेह की दूरी 390 किमी और गुर्गुन्सा से लेह की दूरी 330 किमी है। उल्लेखनीय है ये सभी वायुसैनिक अड्डे समुद्रतल से 11000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित हैं। और इतनी अधिक ऊंचाई से लड़ाकू विमानों को टेकऑफ करने में भार का बढ़ना एक बड़ी समस्या पैदा करता है और इस भार को कम करने के लिए लड़ाकू विमान में भरे जाने वाले ईंधन और साथ मे ढोए जाने वाले हथियारों को कम करना आवश्यक हो जाता है। और इन दोनों की कमी के कारण वायुसेना की मारक क्षमता पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही साथ राडार के द्वारा पकड़े जाने और जवाबी हमले से निपटने में तुलनात्मक कुशलता की कमी चीनी सेना के लिए एक बड़ी चिंता का कारण है।
स्कार्दू एयर बेस चीन की वायु सेना के लिए अत्यधिक उपयुक्त अब भारत के विरुद्ध इस्तेमाल करने के लिए सामरिक रूप से स्कार्दू जैसा एयर बेस चीन की वायु सेना के लिए अत्यधिक उपयुक्त चुनाव बन गया है। लद्दाख से लेकर कश्मीर और पंजाब तक अपनी आक्रामक क्षमता का प्रसार करना चीनी वायुसेना के लिए तुलनात्मक रूप से आसान हो जाएगा। स्कार्दू, लेह से लगभग 100 किमी और कारगिल से मात्र 75 किमीकी दूरी पर है। पाकिस्तान की सेना इस एयर बेस का ज्यादा उपयोग नहीं कर पाई, लेकिन हाल ही में इसने इस अड्डे का विकास शुरू कर दिया है। अब यहां के दो हवाई पट्टियां हैं, जिनमें से एक ढाई किमी, और दूसरा 3.5 किमी लंबी है।
संयुक्त अभ्यास के लिए होतान के और स्कार्दू एयर बेस का उपयोग इस विकसित सैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल चीन द्वारा किये जाने के प्रमाण भी मिल रहे हैं । अगस्त 2019 में पाकिस्तान और चीन की वायु सेनाओं के एक संयुक्त अभ्यास के लिए होतान के और स्कार्दू एयर बेस का उपयोग किया गया था। शाहीन श्रृंखला के अंतर्गत किये जाने वाले इन अभ्यासों का मुख्य केंद्र स्कार्दू एयर बेस ही रहा जो भारत के लिए चिंता का एक विषय बना हुआ है। सामरिक मामलों के जानकारों का मानना है कि स्कार्दू एयरबेस में चीनी वायुसेना की गतिविधियों में वृद्धि देखी जा सकती है। यहां चीनी वायुसेना के J10 लड़ाकू विमानों के साथ साथ इल्युशिन 78 टैंकर की उपस्थिति लगातार देखी जा रही है।
भारत से हिसाब बराबर करने के मंसूबे बांधे बैठा है पाक अपनी भूमि को विदेशी शक्तियों को उपलब्ध कराने की पाकिस्तान में पुरानी परंपरा रही है। चीन को इस क्षेत्र में छूट प्रदान कर पाकिस्तान अपने कई उद्देश्यों को हासिल करने की कोशिश कर रहा है, जहां एक ओर वह भारत के खिलाफ अपने कुटिल मंसूबों को पूरा करने में चीन की सहायता कर भारत से अपना पुराना हिसाब बराबर करने के मंसूबे बांधे बैठा है। गिलगित-बाल्टिस्तान में असंतोष को दबाने के लिए उत्पीडन वहीं दूसरी ओर वह गिलगित बाल्टिस्तान में स्थानीय असंतोष को दबाने के लिए न केवल उत्पीडन का सहारा ले रहा है, बल्कि इसके साथ ही खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र से बड़ी जनसंख्या के इस क्षेत्र में हस्तांतरण और अब बड़ी संख्या में चीनी सामरिक तंत्र की उपस्थिति एक महत्वपूर्ण कारक है। पाक अधिकृत गिलगित और बाल्टिस्तान क्षेत्र में पृथक बलवारिस्तान के निर्माण के लिए बलवारिस्तान नेशनल फ्रंट संघर्ष छेड़े हुए है। बाल्टिस्तान जिसमे स्कर्दू और अस्तोर जैसे आबादी वाले प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं, के लोगों के लद्दाख के लोगों के साथ घनिष्ठ जातीय, धार्मिक संबंध रहे हैं।
शिया और इस्माइलियों के साथ कारगिल के शियाओं के घनिष्ठ संबंध गिलगित और बाल्टिस्तान के शिया और इस्माइलियों के साथ कारगिल के शियाओं के घनिष्ठ संबंध रहे है । पाकिस्तान के कट्टरपंथी सुन्नी और वहाबी उन पर लगातार अत्याचार करते रहे है। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में शियाओं की आबादी 1948 में 85 प्रतिशत थी, लेकिन अब घटकर 50 प्रतिशत रह गई है। पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा अनुचित भूमि आवंटन और अन्यायपूर्ण रोजगार अवसर उपलब्ध कराते हुए गिलगित और बाल्टिस्तान में इस वहाबी मतानुयायी आबादी को व्यवस्थित रूप से बसाया है। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में नॉर्थर्न लाइट इन्फैंट्री, जैसा सैन्य बल मुख्य रूप से स्थानीय आबादी से भर्तियां किया करता था, परंतु अब इस मे मुख्यत बाहरी आबादी को भर्ती किया जा रहा है क्योंकि स्थानीय शिया आबादी विश्वास के लायक नहीं समझा जारहा।
चीन के लिए इकोनॉमिक कॉरिडोर सामरिक महत्व का है पाकिस्तान जहां चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को अपने आर्थिक विकास के लिए अति आवश्यक शर्त मान रहा है, वहीं चीन के लिए इसका सामरिक महत्व है और चीन के काशगर से खुंजरेब दर्रे से होते हुए पाकिस्तान में प्रवेश करने वाला राजमार्ग, आपात स्थिति में चीन को वैकल्पिक पहुंच मार्ग प्रदान करता है, लेकिन क्षेत्र में अशांति के चलते चीन का निवेश संकट में आ चुका है। ऐसी स्थिति में चीन अपने सामरिक हितों और विस्तारवादी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भी इस क्षेत्र में अपने सैन्य अधिष्ठानों को मजबूती प्रदान करने के लिए सक्रिय है।
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