श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए धनपति तो यथाशक्ति योगदान कर ही रहे हैं, जो भिक्षा पर जीवनयापन करते हैं वे तक श्रीराम मंदिर निर्माण में अपना योगदान कर जीवन को धन्य बनाने के लिए आगे आ रहे
स्व. आशा कंवर (प्रकोष्ठ में) की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम इच्छानुसार उनके गहने बेचकर श्रीराम मंदिर के लिए 7 लाख रु. की राशि अर्पित करते हुए उनके परिजन
पक्षीराज जटायु हों, वंचित समाज की शबरी हो, जामवंत, सुग्रीव, हनुमान या फिर विभीषण…और उस केवट को आप कैसे भूल सकते हैं जिसने श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण को नदी पार कराई थी! सबके रंग-रूप, आकार-परिवेश, बोली-बानी, रहना-खाना अलग। समानता है तो बस इतनी कि ये प्रभु श्रीराम के हैं और श्रीराम इनके हैं। उसी धागे के सहारे ये सब आपस में पगे-बंधे हैं। अब जब राम की अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को निर्माण हो रहा हो तो राममय भारत में सब के मन में होड़ मची है कि मंदिर निर्माण में कुछ हाथ उसका भी लग जाए तो अहोभाग्य!
एक तरह से देखें तो पूरा भारत ही अयोध्या बन गया है और भारतवासी अयोध्यावासी।
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण कार्यक्रम एक फरवरी से जोर—शोर से चल रहा है। धनपति तो यथाशक्ति योगदान कर ही रहे हैं, जो भिक्षा पर जीवनयापन करते हैं वे तक श्रीराम मंदिर निर्माण में अपना योगदान कर जीवन को धन्य बनाने के लिए आगे आ रहे हैं। कहीं विद्यार्थियों ने अपनी गुल्लक तोड़ दी तो कहीं एक वर्ग द्वारा किए जा रहे कुप्रचार के बावजूद मुस्लिम वर्ग के लोग श्रीराम को भारत का सबसे बड़ा आदर्श बताते हुए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र निधि समर्पण अभियान में आस्था और प्रसन्नता के साथ बढ़—चढ़कर योगदान कर रहे हैं।
रामभक्ति की अनूठी मिसाल बनीं आशा कंवर
जोधपुर की सूरसागर भूरटिया निवासी आशा कंवर (54 वर्ष) कुछ ही दिन पहले कोरोना से जंग जीतकर अस्पताल से घर लौटीं। उन्होंने एक फरवरी को अपने पति विजय सिंह एवं पुत्र मनोहर सिंह के सामने झिझकते हुए श्रीराम मंदिर के लिए अपने सारे गहने भेंट करने की इच्छा जताई। एक मध्यमवर्गीय परिवार। पति और पुत्र ने उनकी बात का समर्थन किया। बेटे मनोहर ने मां को आश्वस्त किया कि गहने किस तरह सौंपे जाएं, इस बारे में वह शीघ्र ही पता करेगा। 3 फरवरी को नियमित जांच के लिए आशा कंवर अस्पताल गर्इं तो डाक्टरों ने फेफड़ों में संक्रमण बताकर उन्हें भर्ती कर लिया। अगले दिन 4 फरवरी को सुबह 9 बजे आशा कंवर ने अंतिम सांस ली।
उनके दम तोड़ते ही शोक संतप्त पति ने पत्नी की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान के तहत समर्पण निधि जुटाने वाले जोधपुर के एक दल को फोन किया और रुंधे गले से कहा, ‘‘श्रीमान, मैं विजय सिंह गौड़ बोल रहा हूं। मेरी पत्नी आशा कंवर श्रीराम मंदिर के लिए अपने सारे जेवर भेंट करना चाहती थीं। आज वह हमें छोड़कर चली गर्इं। उनकी अंत्येष्टि से पहले कृपया आप लोग आइए और उनकी अंतिम इच्छा के तौर पर सारे गहने प्रभु के लिए ले जाइए।’’
फोन प्रांत प्रचार प्रमुख हेमंत घोष ने उठाया था। वे सन्न रह गए, फिर स्वयं को संयत कर बोले, ‘‘कृपया आप पहले अंतिम संस्कार कीजिए। उनकी इच्छा जरूर पूरी होगी।’’
यह था तो एक व्यक्ति का संकल्प, पर समर्पण की इस कहानी में पूरा परिवार शामिल था। आखिर आशा कंवर के गहने उनके समर्थन के बिना रामकाज में नहीं लग सकते थे। लेकिन यह श्रीराम प्रभु के प्रति समर्पण ही था कि अंत्येष्टि के बाद सास राधा कंवर, पुत्रियों उम्मेद कंवर व सीमा कंवर तथा पुत्रवधू सुजाता कंवर ने आशा कंवर की अंतिम इच्छा पूर्ण करने का संकल्प जताया। जब परिवार ने सात लाख रु. से अधिक मूल्य की समर्पण निधि सौंपी तो राम मंदिर के लिए समर्पण की ऐसी विरल भावना देख समर्पण निधि लेने वालों की आंखों से भी जलधार बह निकली।
जिन्हें हम हाशिये पर भी नहीं गिनते
प्रभु श्रीराम का अयोध्या में भव्य मंदिर बने— देश के जन—जन की सदियों पुरानी यह चाह अब पूरी होने जा रही है। श्रीराम भारत भूमि के सभी लोगों के पूर्वज हैं। हिंदुओं ही नहीं, मुसलमानों के भी। एक वृद्ध महिला कौसर दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में भिक्षा वृत्ति से जीवनयापन करती है। लेकिन जब उसे पता चला कि अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बन रहा है तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। उसने अपनी जमा पूंजी से श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए 1,100 रुपये की राशि समर्पित कर अपनी आस्था को प्रकट किया। कम से कम धार्मिक विद्वेष की दुकान चलाने वालों को यह जरूर देखना चाहिए कि भारत को एक करने का काम श्रीराम आज भी कर रहे हैं।
जनम हमार सुफल भा आजू
आज भगवान राम के प्रति आस्था और समर्पण का ऐसा सागर हिलोरें ले रहा है कि समाज के वंचित और अभावग्रस्त वर्ग के हौसले आपको बरबस मोह लेंगे। बाडमेर के गूंगा गांव से आई यह कहानी बताती है कि एक प्रेमी को अपना प्रेम और भक्त को अपनी भक्ति सदैव कम ही लगती है। गांव के कालबेलिया समाज के दो भाइयों जोशीनाथ व भंवरनाथ कालबेलिया ने मंदिर निर्माण के लिए 5100-5100 रुपये की निधि समर्पित की। उनके परिवेश को देखते हुए यह राशि छोटी नहीं है। उन्होंने अत्यंत संकोच के साथ बताया कि हम तो बहुत छोटा-सा योगदान कर पा रहे हैं। लेकिन हमें गर्व इस बात का है कि श्रीरामजी के काज में हमारा भी कुछ हिस्सा रहेगा। इससे हमारा जीवन सफल हो गया। प्रभु राम ने चौदह वर्ष जिस वनवासी वंचित समाज के साथ बिताए और उनके जीवन को एक विकसित आधार दिया, वह वर्ग आज भी श्रीराम के प्रति कितनी श्रद्धा और जुड़ाव रखता है, इसकी खबर हमें यह दृष्टांत देता है। श्रीराम का जब रावण से युद्ध हुआ तो देश के पूरे वनवासी समाज ने पूरे सामर्थ्य के साथ उनका साथ दिया था।
‘इसे अयोध्या पहुंचाने की जिम्मेदारी आपकी‘
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र निधि समर्पण अभियान के कार्यकर्ताओं को चहुंओर राममयी भावनाओं से ओतप्रोत परिवार मिल रहे हैं। जहां कहीं कार्यकर्ता नहीं पहुंच पा रहे हैं, उन परिवारों की तरफ से कार्यकर्ताओं को मीठा उलाहना भी सुनना पड़ रहा है कि क्या प्रभु राम हमारे नहीं हैं। फिर वे कार्यकर्ताओं को बुलाकर निधि समर्पण करते हैं।
उदयपुर के बड़गांव क्षेत्र में 82 वर्षीय मोहनपुरी को विश्वास था कि पड़ोस में निधि समर्पण का आग्रह कर रहे कार्यकर्ता उनके यहां भी आएंगे। जब कार्यकर्ता विपरीत दिशा में जाने लगे तो उन्होंने आवाज देकर बुलाया कि वे उनके यहां क्यों नहीं आ रहे। कार्यकर्ता उनकी तरफ मुड़े। उन बुजुर्ग ने सड़क पर ही अपने थैले से चेकबुक निकाली और 1,11,000 का चेक प्रभु श्रीराम के मंदिर के लिए समर्पित कर कहा कि इसे अयोध्या पहुंचाने की जिम्मेदारी आपकी है। ये आस्था, भावना के भावुकता भरे पल थे। कार्यकतार्ओं ने इन बुजुर्ग के चरण स्पर्श कर उनकी भावना को प्रणाम किया।
कूड़ा बीनने वाले परिवार की राशि नहीं, समर्पण देखिए
कानपुर में शीला कबाड़ बीनकर परिवार का भरण—पोषण करती हैं। दामोदर नगर में काठ के पुल के पास नहर किनारे उनकी झोंपड़ी है जहां वे दो बेटियों के साथ रहती हैं। उनके घर के पास से श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर के लिए निधि संकलन कर रहे कार्यकर्ताओं की टोली निकली। उनके पास मात्र 40 रुपये थे। वे उसी में से कुछ राशि देना चाहती थीं। लेकिन संकोच भी था कि शायद इतनी छोटी राशि वे लोग न लेते हों। उन्होंने कार्यकर्ताओं से बहुत सकुचाते हुए पूछा कि क्या मैं श्रीराम मंदिर के लिए इसे दे सकती हूं। टोली का नेतृत्व कर रहे विभाग प्रचार प्रमुख आशीष ने कहा कि आप 10 रुपये भी समर्पित कर सकती हैं। इस पर शीला ने अपने कुल जमा चालीस रुपये में से दस रुपये दूध के लिए निकाल कर 30 रुपये समर्पित कर दिए।
उस भक्त बालक के पैरों में जूते-चप्पल नहीं थी
प्रभु के सच्चे भक्त कैसे होते हैं…भक्ति की लौ कैसी होती है-यह जानना हो तो भीलवाड़ा जाकर माणक नगर भील बस्ती, खंड गंगापुर में किशन नाम के बालक से मिल आइए।
निधि समर्पण अभियान पर निकली टोली से एक घर के बालक ने कहा, ‘‘आप शाम को आना।’’ गरीबी या आर्थिक बदहाली का ऐसा दृश्य कि किसी की भी आंखें नम हो जाएं।
जिस बालक के पैरों में पहनने के लिए जूते-चप्पल भी न थी…वह कह रहा था कि शाम को आना। खैर टोली के कार्यकर्ताओं को उसकी बात कहीं गहरे तक असर कर गई। वे शाम को फिर उस बस्ती में गए। जो दिखा वह अलौकिक था…अलौकिक। उस बालक ने दिन भर मजदूरी की। सौ रुपये मिले। वही राशि उसने शाम को प्रभु श्रीराम के चरणों में समर्पित कर दी। ऐसे भक्त को नमन!
बच्चों ने गुल्लक तोड़ी और…
हम यह कहानी सिर्फ इसलिए नहीं बता रहे कि दोनों बच्चे मुसलमान हैं, जिन्होंने अपनी गुल्लक तोड़कर राम मंदिर के लिए एक लाख रुपये की राशि समर्पित की। विशेष बात यह है कि पूरा परिवार इतना राममय है कि जब कक्षा आठ में पढ़ने वाले आविश और कक्षा पांच के छात्र शोएब ने श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए अपनी पढ़ाई के दौरान इकट्ठे किए गए पैसों की गुल्लक तोड़ने की बात की तो पिता हाफिज अली ने अपने बच्चे और भतीजे की भावना का आदर करते हुए पैसे दान करने की इजाजत दे दी। इसके बाद बच्चों ने अपनी-अपनी गुल्लकों को तोड़ा और पचास-पचास हजार यानी कुल एक लाख रुपए राम मंदिर के लिए दान किए। यह घटना उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के कल्याणपुर गांव की है। हरि अनंत हरि कथा अनंता-ऐसे ही प्रभु श्रीराम के भक्तों की भक्ति और समर्पण की कथा भी अनंत है। कितना भी कागज रंग लें, उसकी थाह पानी संभव नहीं। प्रतिष्ठित शायर शम्सी मीनाई का श्रीराम के प्रति समर्पण देखिए-
मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ।
फिर ऐसा कोई खास कलमवर नहीं हूं मैं
लेकिन वतन की खाक से बाहर नहीं हूं मैं।
राजा वही गरीब से इन्साफ कर सके
दलदल से जात-पात से हरदम उबर सके।
जो वर्ण भेद भाव के चक्कर को तोड़ दे
शबरी के बेर खा के जमाने को मोड़ दे।
इंसान हक की राह में हरदम जमा रहे
ये बात फिर फिजूल की लश्कर बड़ा रहे।
ईमान हो तो सोने का अम्बार कुछ नहीं
हो आत्मबल तो लोहे के हथियार कुछ नहीं।
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