केरल में निकाली गई इस रैली में कुछ लोगों ने RSS की यूनिफॉर्म पहनी थी। परेड में आरएसएस की यूनिफार्म में शामिल लोगों को जंजीर से भी बांधा गया था। इस रैली के कई वीडियो और फोटो सामने आए हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि इस दौरान अल्लाह-हू-अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह जैसे कई अन्य इस्लामी नारे लगाए गए।
1921 के मोपला दंगे की 100वीं वर्षगांठ पर केरल की कट्टर इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा मलप्पुरम जिले में शनिवार को आयोजित रैली से प्रदेश में भय का माहौल फैल गया है। यह भड़काऊं रैली केरल के मलप्पुरम जिले के तेनियापलम शहर में आयोजित की गई थी। उत्तर प्रदेश पुलिस ने अभी हाल में पीएफए के दो कार्यकर्ताओं को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के एक मामले में गिरफ्तार किया है, जो उत्तर प्रदेश में संघ से जुड़े से कार्यकर्ताओं को मारने की इरादे से वहां पहुंचे थे। यूपी में गिरफ्तार दोनों पीएफए कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ भी मलप्पुरम जिले के कई इलाके में महिलाएं और बच्चों को लेकर जुलूस निकाला गया।
गौरतलब है पीएफआई ने मल्लपुरम में निकाली गई यह देशविरोधी रैली वर्ष 1921 के हिंदू नरसंहार की शताब्दी के तौर पर मनाने के लिए बहुत पहले घोषणा कर दी थी। केरल में निकाली गई इस रैली में कुछ लोगों ने RSS की यूनिफॉर्म पहनी थी। परेड में आरएसएस की यूनिफार्म में शामिल लोगों को जंजीर से भी बांधा गया था। इस रैली के कई वीडियो और फोटो सामने आए हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि इस दौरान अल्लाह-हू-अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह जैसे कई अन्य इस्लामी नारे लगाए गए। एक नारा कुछ ऐसा था, ‘जो चाकू 1921 में निकाला था, वो अरब सागर में फेंका नहीं था।’
जुलूस के दौरान कुछ नारे काफी भड़काऊ और उत्तेजक थे। इसमें आरएसएस के यूनिफार्म वाले सदस्यों को जंजीर में बंधा हुआ दिखाना भी शामिल है। रैली में आरएसएस की यूनिफार्म में लोगों के साथ कुछ लोग ब्रिटिश अधिकारियों की भी वेशभूषा में थे। इन लोगों के हाथ में भी रस्सी बंधी और इसका दूसरा छोर लुंगी और जालीदार टोपी पहने लोगों के हाथ में थी। आरएसएस और ब्रिटिश अधिकारियों का कपड़ा पहने लोग जालीदार टोपी और लुंगी पहने लोगों का अनुसरण कर रहे थे, जिनके हाथ में लाठियां थी। सांप्रदायिकता से प्रेरित रैली में लगाए गए उक्त नारों का उद्देश्य सीधे- सीधे हिन्दुओं को डराना और धमकाना था।
तेनियापलम शहर में आयोजित यह रैली मलप्पुऱम जिले के चेलारी और पलक्कड में निकाली गई। यह वह इलाका है जब 100 वर्ष पूर्व हुए दंगे हुए थे, जो मोपला विद्रोह के रूप में कुख्यात है। इस दंगे में 10000 से अधिक हिंदुओं को नरसंहार और 1 लाख हिंदुओं को घर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया था, जबकि भारी संख्या में हिन्दू महिलाओं को धर्म परिवर्तन कराया गया था। इस इलाके में बहुत सारे गांव ऐसे भी हैं, जहां पर अब एक भी हिन्दु नही रहते या भी उनको वहां बसने नहीं दिया जाता है। इस भड़काऊ रैली के खिलाफ अभी तक केरल की वामपन्थी सरकार ने पीएफआई के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। वजह साफ है, क्योंकि निकाय चुनाव में खुलेआम पीएफए ने वामपन्थियों को समर्थन किया था।
उल्लेखनीय है कट्टर इस्लामी संगठन पीएफआई पर पाबन्दी की मांग उठ रही है, लेकिन सबूतों और गवाहों के अभाव में निर्णय नहीं लिया गया, लेकिन मोपला दंगे की वर्षगांठ पर पीएफए द्वारा मलप्पुरम में निकाली गई रैली से अब यह साफ हो गया है कि यह संगठन आतंगवादियों के हाथों में खेल रहा है। हालांकि पिछले साल यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एंटी-सीएए दंगों के दौरान पीएफआई द्वारा की गई हिंसा के कारण प्रतिबंध लगाने के लिए कहा था, लेकिन केंद्र सरकार ने एंटी-सीएए हिंसा के कारण पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने को स्थगित कर दिया था।
निःसंदेह देश को दंगों की आग में झोंकने में पीएफआई की सक्रियता अब सतह पर आ चुकी है, जिनके तार यूपी में हाथरस कांड के बाद दंगे की साजिश से जुड़े होने के आरोप हैं। वहीं, हाल में यूपी में गिरफ्तार हुए दो पीएफआई सदस्यों की गिरफ्तारी के मद्देनजर केंद्रीय गृह मंत्रालय को पीएफआई के ऊपर पाबन्दी लगाने में देर नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह संगठन खुलेआम दंगों की ऐलान करता है। चूंकि यह स्पष्ट है कि केरल की वामपन्थी सरकार पीएफआई के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं करेगा, ऐसे और पीएफआई की गतिविधियों को देखते हुए गृह मंत्रालय अगर और इंतजार करेगी तो शायद केरल हाथ से निकल चुका होगा।
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