वामपंथी मीडिया ने दक्षिणी अफ्रीका द्वारा भारत द्वारा दी गई कोरोना वैक्सीन के लौटाए जाने की झूठी खबर फैलाई गई। जैसे ही दक्षिणी अफ्रीका को इस बात का पता चला वहां के विदेश मंत्री ज्वेली मखीजे ने आकर सफाई दी कि हमने ऐसा कुछ नहीं किया है
कांग्रेसी ‘इको सिस्टम’ के वामपंथी मीडिया हाउस भारत को बदनाम करने की कोई कोशिश नहीं छोड़ रहे। वह बार बार असफल होने के बाद भी झूठी खबर बनाने से बाज नहीं आ रहे। दूसरी तरफ षडयंत्रकारियों के पक्ष में 21 वर्षीय छोटी बच्ची, गरीब मास्टर का बेटा जैसे जुमले तलाश कर लाने की भी उनकी परंपरा पुरानी हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से नई मीडिया के आने के बाद उनकी राह आसान नहीं रही। उनकी झूठी कहानियां अब अधिक समय तक टिक नहीं पाती। मुख्य धारा की मीडिया से पहले कई बार सोशल मीडिया उनके झूठ की हवा निकाल कर रख देता है। कोरोना वैक्सीन के साथ तो यह थोड़ा अधिक ही हुआ। जब यह वैक्सीन बनने की प्रक्रिया में था, भारत विरोधी शक्तियां इसके संबंध में अफवाह फैलाने में लग गई थीं। नागरिक समाज की जागरूकता की वजह से हर बार इन्हें मुंह की खानी पड़ी।
दक्षिण अफ्रीका द्वारा भारतीय वैक्सीन लौटाने की झूठी खबर
कोरोना वैक्सीन को लेकर सबसे ताजा मामला दक्षिण अफ्रीका द्वारा भारत से खरीदे गए 10 लाख एक्सट्राजेनेका वैक्सीन के डोज को वापस करने का है। समाचार पत्रों और वेबसाइट के माध्यम से फैलाई गई अफवाह के अनुसार— यह नए स्ट्रेन पर काम नहीं कर रहा था। एनडीटीवी जैसे चैनल ने इसे अपने यहां खबरों के बीच काफी प्रमुखता से दिखाया और देखते ही देखते हर एक वामपंथी मीडिया हाउस पर इस खबर को बगैर सत्यता जांचें ही चला दिया ।
झूठी खबर वामपंथियों द्वारा इतनी तेजी से फैलाई गई कि दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्री ज्वेली मखीजे को सामने आकर इस पर सफाई देनी पड़ी। उन्होंने जोहांसबर्ग में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि मुझे पता ही नहीं चला कि आखिर यह खबर कहां से चली और किसने इस खबर को बिना सत्यता जाने चला दिया। हम भारत की वैक्सीन को वापस नहीं कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि भारत से आई वैक्सीन सभी स्ट्रेन पर काम कर रही है। इतना ही नहीं भारत से आई वैक्सीन बुजुर्ग व्यक्तियों पर भी बेहद कारगर काम कर रही है और हमने 15 लाख डोज का और आर्डर दिया है।
वामपंथी मीडिया समूहों को सच्ची खबर सामने आने के बाद अपनी फेक न्यूज वापस लेनी पड़ी। इसलिए हमें वामपंथी मीडिया समूह की फेक न्यूज की जगह अपने देश के वैज्ञानिकों पर भरोसा रखना चाहिए।
झूठी थी वैक्सीन लगने से स्वास्थकर्मियों के मौत की खबर
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में सचिव राजेश भूषण ने कहा कि राज्य एईएफआई समितियों ने उन सभी 19 मौतों पर विचार-विमर्श किया, जिनके संबंध में वामपंथी मीडिया झूठी खबर फैला रहा था। फेक न्यूज कारखाने में सभी मौतों को कोरोना वक्सीन से हुई मौत लिखा जा रहा था। जबकि जांच के बाद इसके पीछे वैक्सीन का प्रभाव होने का कोई सबूत नहीं मिला। केंद्र सरकार ने फरवरी 04, 2021 को ‘कोविड-19 वैक्सीन से 19 स्वास्थ्यकर्मियों की मृत्यु’ की बात को एकदम निराधार बताया। सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि कोरोना वैक्सीन लगने और स्वास्थ्यकर्मियों की मौत के बीच कोई संबंध जांच में नहीं मिला।
उल्लेखनीय है कि 16 जनवरी को राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था, जिसमें तीन करोड़ से अधिक स्वास्थ्य देखभाल और फ्रंटलाइन वर्कर्स को शुरू में प्राथमिकता दी गई। इसके बाद ही कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया कि 19 स्वास्थ्यकर्मियों की मृत्यु वैक्सीन लगने की वजह से हुई है। जो दावा पूरी तरह निराधार साबित हुआ।
चल नहीं पाया कनाडा में खालिस्तानियों का झूठ
बताया जा रहा है कि कनाडा में बैठे खालिस्तान समर्थकों के दबाव में प्रधानमंत्री जस्टिन पेरी जेम्स ट्रूडो भारत से वैक्सीन के लिए चाह कर भी आग्रह नहीं कर पा रहे थे। दूसरी तरफ पौने चार करोड़ की जनसंख्या वाले कनाडा में कोरोना लगातार अपने पांव पसार रहा था। उत्तरी अमेरिका में स्थित देश कनाडा में टीकाकरण का कार्यक्रम ठीक से न करवा पाने की वजह से प्रधानमंत्री ट्रूडो की काफी किरकिरी हो रही थी। कनाडा की जनता में पीएम ट्रूडो के प्रति रोष बढ़ता जा रहा था। वहीं, भारत में उस समय तक दो कोरोना वैक्सीन के निर्माण की इजाजत दी जा चुकी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारतीय वैक्सीन की तारीफ करते हुए उसे सुरक्षित बताया था।
भारत ने कई छोटे-छोटे देशों और अपने पड़ोसी देशों को मुफ्त में कोविशील्ड के टीकों की आपूर्ति की है। इन सारी स्थितियों के बीच कनाडा ने भारत से मदद की मांग की। एक तरफ कनाडा में रह रहे खालिस्तानियों के लिए कुटनीतिक तौर पर यह एक बड़ा धक्का था, वहीं विश्व के विकसित देशों में शामिल कनाडा के द्वारा भारत से वैक्सीन की मांगने पर, इस टीके की वैश्विक स्तर पर मार्केटिंग और मजबूत हुई। भारत की कोविड-19 वैक्सीन की इस वक्त दुनिया भर में मांग है। भारत की ‘मेड इन इंडिया’ वैक्सीन पर दुनिया के 150 से ज्यादा देशों ने भरोसा जताया है। इस तरह वैक्सीन को लेकर अफवाह फैलाने में लगा कनाडाई खालिस्तानी गैंग अपनी ‘फेक न्यूज’ चला नहीं पाया।
कोरोना वैक्सीन बना सकती है जोम्बी
दिसम्बर 2020 में इस तरह की झूठी खबर मीडिया में चलाई गई। एक टीवी चैनल के न्यूज बुलेटिन का स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। जिसमें एक हॉस्पिटल वार्ड में खून फैला हुआ था। इस एडिटेड स्क्रीनशॉट में दावा किया गया था कि वैक्सीन लेने के बाद आदमी जॉम्बी में बदल जाएगा। यह एक झूठी खबर थी।
वैक्सीन के बहाने आपके अंदर चिप प्लांट कर दी जाएगी
यह निराधार दावा सोशल मीडिया पर तब फैलना शुरू हुआ जब एक अमेरिकी ने बयान दिया कि वह कोविड वैक्सीन से भरी ऐसी सुईं तैयार कर रही हैं, जिनके लेबल पर ट्रैकिंग के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी टैग होगा। कोई भी माइक्रोचिप इतनी छोटी नहीं होती कि उसे मरीज के शरीर में इंजेक्शन की मदद से प्लांट किया जा सके। यह कोरा झूठ था।
वैक्सीन लेने से कोरोना हो जाएगा
ऐसा बिल्कुल नहीं है। ज्यादातर कोविड वैक्सीन में पूरा वायरस नहीं है, सिर्फ उसका एक भाग है। इसलिए टीका लगने के बाद बुखार या कोई और रिएक्शन आपके इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया भर है। कुछ वैक्सीन में जीवित कोविड वायरस का इस्तेमाल किया गया है, जिनमें से दो भारत में बन रही हैं। लेकिन यह कमज़ोर वायरस है, जो आपको बीमार नहीं कर सकता। हम सब पहले ही चेचक, टीबी जैसे इस तरह के टीके लगवा चुके हैं। इसलिए अब कोविड 19 के वैक्सीन से डरने की कोई जरूरत नहीं है।
टिप्पणियाँ